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"____________________"
कविता
"नारी नहीं जहान हूँ हिन्द की मैं शान हूँ"
हाँ वही इश्क करना है मुझे
"इस बार जो बरसा सावन"
क्या हाल बनाया तुम्हारा वसुंधरा
८४ जूनी बाद मिला है जीवन
पहल्यां ही बता देंदी
सुनो एक बात कहता हूं (भाग - 1)
सुनो एक बात कहता हूं (भाग - 2)
भींगे-भींगे बारिश वाले प्यार
तारों को आंचल तक आना होगा
पत्नी हूँ तुम्हारी मैं भी प्रेम चाहती हूँ
मां ने मुझको जन्म दिया,पर पिता ने मुझको पाला है ।
रूह में मेरी समाओगे कब
बीते वक्त का एक घाव ज़हन में रह गया है
कोई दिल में जब उतरता है
बारिश वाला प्यार
मोहब्बत का मकां
खुद में खुद के लिए अभि ज़िदा हूँ मैं (स्वाभिमान)
बारिश वाला प्यार
2020 तू क्यूं रुठा है रे?
#उस शाम हुई बरसात बहुत
उस रात हुई बरसात बहुत
आज दिवस है काकोरी का
कवि हो जाना
वो जो रह गई उन बातों का क्या?
#सावन_है_आया
Story mirror competition
यथार्थ रूप भाग-२
#पुराने धागे (रिश्ते)
मेरी बेटी मेरी माँ हो गयी
करवा चौथ पर पति की व्यथा
सम्मान आज़ादी का (आज़ादी विशेषांक)
है खोफ मंजर फैला हुआ
"अपना इंडिया अब भारत बनने लगा"
प्यार मोहब्बत जिंदाबाद by कुमार आशू
मुंबई शहर अलबेला है
आँसू कलम ने भी बेइंतहा बहाए है
तुम होते तो बात ओर होती
लाॅकडाउन में पति की दशा
मैं और बनारस के पथरीले घाट
अबकी जनम माेहे बेटी काे ना दीन्हा
मैं आज भी वहीं खड़ा हूँ।
मै वेदनाओं में ही जलता रहा
हाँ माँ तुम ही तो हो
हाँ इश्क़ में तेरी मेरी एक ही राशि है
अब आया है पन्द्रह अगस्त
इतना हँसो कि रोने का वक्त ना मिलो
एक सुहाना सा अहसास
तुम्हारे घर में एक छोटा सा कोना चाहती हूँ
मदारी कौन (लघुकथा)
दहलीज। (लघुकथा )
हैरत नहीं कि अब जान बेहतर है
स्त्री कमज़ोर नहीं होती है
कविता-ख़्वाब देखा करो
तुम्हारे आंगन की तुलसी हो जाना चाहती हूँ
सबके दिल में
गिरकर ही संभलता है इंसान
चित्र पर आधारित प्रतियोगिता
चित्र आधारित प्रतियोगिता
बिना स्वार्थ के सारथी बनो
महल और झोपड़ी ( मरीचिका)
मैं खुश हूँ मेरी झोपड़ी मे
"तेरे महलों को छूकर आती धूप"
माँ ...जो मैंने तुम्हें कभी न बताया
साहित्य बने मेरी पहचान
दादी माँ का प्यार
हीरोज
एक बात मैं और कहूं क्या?
मौत के शिकंजे में जिंदगी
ये कलयुग का इंसान है
अक्सर भूल जाते है लोग
साज़िशें बहुत की उसने मुझे ढाने की
क्या कर रहे हो तुम?
मैं तुमसे प्यार नही करता
कभी मेरे श्रृंगार से वाक़िफ होते
दरबदर खुदा खुद के दर से
मन में कुछ जिज्ञासा है
मन में कुछ जिज्ञासा है
माँ आपकी पहली रोटी कैसी थी
"कॉमिक्स की दुनिया" (बाल-रचना)
कलम-मिल गई मुझे शादमानी
सोचता हूं कि क्या लिखूं
असंभव कार्य संभव करती हैं बेटियाँ
बेटे बहादुर होते हैं
कभी गौर से देखा नहीं
हिंदी की कविता उर्दू का तराना बन जाता हूँ
बदलता आपकी तरह रहा मेरा किरदार नहीं
गुरु की महिमा कोई क्या गाए
धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस
हास्य की तीन चुटकियां
मैं वीर पुरुष बलशाली
सोशल मीडिया का बुखार है छाया
तुम्हें कब मना किया है
क्यों लगता है मैं बहू से बेटी ना बन पाई
दिल कुतरने का हुनर न सीख पाया मैं
प्रेम विश्वास के बिना
कहीं आदत वो कभी आफत हो
पर हमें भी लिखना है
क्या ? वो भी हमारी तरह बिखर जाते होंगे
हमारा अभिमान हो हिन्दी
हम उस देश के वासी हैं
वक्त करवटें बदलता है
हिंदी दिवस विशेष - विश्व में पहचान हिंदी
कव्वाली,,बच्चों में नैतिक मूल्य
कव्वाली-बच्चों के नैतिक मूल्यों पर
हिंदी राष्ट्र धरोहर है
तुम छोड़ गये पद का निशान
हिंदी से हम हिंदुस्तानी
हिंदी क्या है??
चैतन्य महाप्रभु और विष्णुप्रिया
हिंद देश हिंदी दिवस - सार्थकता
माँ की आँखों के तारों
मातृ-पिता ही प्रथम गुरु
मैं हिन्द की भाषा हिन्दी हूँ
हिंदी है पहचान हमारी
हमारा अभिमान है हिंदी
हिंदी महज भाषा नहीं है
हिंदी है हिन्द की शान
द महत्व एंड द वैल्यू ऑफ़ राष्ट्रभाषा हिंदी
मैं हूँ हिन्दी सज रही माथे पर मेरे बिंदी
हिंदी हैं हम
कुछ बात तुम्हें सुनाते हैं
सच बताना - कुमार आशू की ग़ज़ल
इंसान आज जमी पर आया है।
हिन्द के वासी हम , हिंदी है अभिमान ...
प्रवासी मजदूर
देश प्रेम की भाषा
दिल के सांचे में अश्क ढलता है
यूँ हाथ थामकर हर पल का
सूरज का यह सुनहरा खत
बस मुझेअच्छा लगता है
हिंदी से हिंदुस्तान है
हिंदी से हिंदुस्तान है
हिंदी से हिंदुस्तान है
चालीस की देहरी पर
अबोली आँखें
शायद एक दिन मैं बन पाऊँगा कवि
शायद एक दिन बन पाउँगा कवि
क्या है आज के अखबार में
काँटों के बीहड़ में खिले गुलाब
ब्रजमंडल में ग्रीष्म
क्या लिखू क्या ना लिखू
माँ से जब भी मिला हूँ खुदको बिसरा हूँ
नये दौर के बच्चों में नादानियाँ कहाँ रही
शरद पूर्णिमा में रास
जोगन की यात्रा
खुद में खूबसूरत है हम
चाय सिर्फ चाय नहीं.....
मित्रता मेरी दृष्टि में
जब हम किसी के प्यार में होते हैं तो
मौला.....! तू करम करना
जब भी छुओगे मिलेगी नमी मुझमे
लड़कियों को कमजोर समझने की भूल
Kya neend aati hai tumhe
ख्याल से हकीकत की कलम
इतना हँसें कि रोने का वक्त ना मिले
मेरे मन मे डर नाम का शैतान
काश ! मुड़कर देख लेते
मत करो जीवन नष्ट ये अद्भुत वरदान है
सन्नाटे में तैरता सा कोलाहल
यथार्थ रूप भाग-४( एक पुकार उस मनस्वी को)
"चाँद से हुई बातचीत"
बेटी हूं मैं : पराया धन ना कहना
जिंदगी तुम इतनी दूर क्यों हो
जाने ये कैसी है मीडिया
माँ भारती शर्मसार हो गई
मैं सिमटकर रहूंगा कब तक
काश ! मृत्यु से पहले जाग जाते
ये मजदूर नही है, सुनहरे भारत का अभिमान है
दुख के दिन
हादसों कि मोमबत्तियां
हाइकु तथा वर्ण पिरामिड
क्या तुम्हें याद है?
हर पुरुष पैदा स्त्री ही होता है
मुझे तू अपना सा लगता है
चुनावी मुद्दा (हास्य व्यंग)
बहुत कुछ है हमारे बीच
तू मुझे अपना सा लगता है
मुझे तू अपना सा लगता है
बेटी को पराया धन न कहना
जब कोई धोखा देता है
बदलना होगा बंदरों को
हाथों में आ जाती है कलम
मैं छाँव तेरे आँगन की
प्यार की बातें
हम पास तो हैं पर साथ नहीं
गीत कहूं या ग़ज़ल कहूं
कहाँ कठिन है ज़िंदगी
ये फूफा भी कमाल करते है
मैं इसे इशारे समझूं या क्या समझूं?
कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में
प्रकृति की गोद मे....
मेरे जज्बात
नवरात्रि में नौ देवियां
क्यों खुद को पढ़ना भूल जाते हो
मैंने जीवन जीना सीखा है
बेबसी
तब तुम मेरे पास आना प्रिय
जो असलियत है.......
जाते जाते दे गई वो मेरी आंखों में पानी
हुआ जा रहा गड़बड़झाला
मुझे हारकर जीत जाने दो
कौन कहता खामोशी में बात नही होती
राजा-रंक सभी फल ढ़ोते
मुझे तू अपना सा लगता है
आँसुओं को पनाह नहीं मिलती
तुम क्यों शोक मनाते हो?
ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है
हक दुश्मन से मांग रहा है
तू नहीं प्यार के काबिल
!! नवरात्रि में नवदुर्गा माँ !!
बँटे आज हम जाने क्यूँ
श्रम साधक को विश्राम नही
क्यों न मिलकर सुख दुःख बाटें
कभी बैठो पास तसल्ली से
अच्छा होगा संवाद करो
देखकर मुझको थोड़ा सा जो मुस्कराने लगे
काश..एक बार तुम मेरी खामोशी सुन लेते
दिखा दे शक्ति का अवतार है तू
हीन हो संवेदना से चल रहा है आदमी
सत्ता के नशे मे चूर हो
तब गांव हमें अपनाता है
मैं आश्चर्य करता हूँ
मुमकिन हो सफर हो आसां
जनप्रतिनिधि इंसान करो
ज़िंदगी तो बस एक खुली किताब हैं
कैसे तूफां होगा शांत
जिऊं तो सुहागन मरु तो सुहागन।
चिड़िया पिंजड़े में कैद हो गई
राज के दोहे "पाखंड "
आलू का तो हाल न पूछो
कहाँ खो गया मेरा प्यार
वो अदीब इकबाल कहीं रह गया
मै हंसती खेलती चहचहाया करती थी
वो तो जान है मेरी ...
जिंदगी मुट्ठी में बंद रेत सी
ऐ चाँद तेरी क्या बात है....
जब जन्म लेती है "बेटी"
मिले खुदसे हुए ज़माना सा लगता है
छोड़ो झूठी बात बनाना
सुरभित मुखरित पर्यावरण
कफ़न में लिपटकर आना है
कव्वाली-त्यौहारों की
मैं महालक्ष्मी धन की शक्ति
माँ तेरी साड़ी लाऊँगा
दीप वह फिर से जलेगा
और ये सब तुडे़-मुडे़ से, सिकुडे़ से अखबार
नारी ही नारी की सूत्रधार है!
उपवन फूल खिलाना होगा
राम तुम्हें फिर आना होगा
होता समय बड़ा बलवान
बैरंग सी मैं,कभी धूप तो कभी छाँव की तरह
पानी पर चलता है क्यों
ज्यों-ज्यों बड़ी होती है बेटी
दिल दर्द से भर जाता है
भर-भर लोटा पिए जा रहे
पाली थी अब तक जो खुशफहमियाँ
असां नहीं एक स्त्री को समझ पाना
"हर महिला एक सशक्त-योद्धा"
आवाहन करती है ये वसुंधरा
हे! देशभक्त जाँबाज वतन के रखवालों
कहाँ खो गया मेरा प्यार
बहरी क्यों सरकार आज है
बदला-बदला शहर हो गया
इक उजाले का नयन में आस होना चाहिए
" चलते चलते "
" अस्मिता "
हमको फ़र्ज निभाना होगा
ना अधूरा एक भी श्वास रहे।
ज़िन्दगी सबकी बदलती जा रही है
कितनी जल्दी भूल जाते हैं
जहां तक उम्मीद है
भोपाल गैस त्रासदी पट
दिप जैसे चमकते रहो तुम ...
मैं समय हूँ ...
मुझे उनके आने का पैगाम देना
मुझे वो नज़रें बदलनी हैं
बहुत हुआ कि अब कुछ कहा नहीं जाता
मन क्यों बहके रे बहके
मेरी डायरी
बारिश का मौसम
मुझे तू अपना सा लगता है
मैंने सबका कहना माना
हैवान की हैवानियत
हैवान की हैवानियत
मुझे तू अपना सा लगता है
ये तज़ुर्बा कुछ और है
आखिरी मोड की तरफ
नित अधर लाली लगाना छोड़ दो
प्रभु मन में उम्मीद जगा दो
शहर में बसा गँवार मन
रिश्तों का अन्तर्द्वन्द
क्यों चुप बैठो हो परमपिता ?
इन प्रश्नों की शरशय्या पर
गुलाबी ठंड मेरे द्वार
कुछ पल बैठिए उनके पास
फिर से आँखें हुई सजल शायद
उनसे जो हमारी ये मुलाकात हो गई
मैं तो हूं ही बेवकूफ
जिंदगी ऐसे ही चलती है
#अभिलाषाएं जाग रहीहैं
लॉक डाउन में क्या खोया क्या पाया
शायद दूर तक सफर कर रहा हूं
मैं बाहर निकलूंगा तो
मेरे अन्दर मैं कैद हूं
हाँ मैं थोड़ी बदल गईं हूँ
आखिर मेरा क्या कसूर था
अब्बू का ख़याल व नमक की मिठास
मेरे सवाल पास में उनके पड़े हुए
तुम्हारी मुस्कान.....
कुछ भी हमारा नही होता
तुम्हारा प्यार.....
राह में कुछ लोग अब भी मुस्कराते चल रहे
अपनी शक्ति को पहचानो
बेटी की पाँती पापा को
यह साल कैसा रहा #2020
कहिये 2020 को अलविदा
तुझको भूल न पाएं....
कहिए 2020 को अलविदा
२०२० तुमसे कोई शिकायत नहीं
अपनों को अपना हाल बताना मुश्किल हो जाता है
2020 तुमने सिखलाया भी है बहुत कुछ
देखो देखो नया वर्ष है आया
जीवन का एक दिन सा भी
दिन सामान्य हो या विशेष
नूतन वर्ष का अभिनंदन
नवल वर्ष तेरा।अभिनन्दन
पिता तब बहुत रोता है
मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
दर्द छुपाता रहा.....
सूरज नहीं बुझने दूंगा
सर्वे भवन्तु सुखिनः
जग के उर्वर आँगन में
मेरी छत
मेरे देश में पौष मास
जो अपने है उनको पराया ना कर
जर्रानवाजी बनाम मेहमाननवाजी
सब कुछ ये सरकार खा गई
बाक़ी हो आज भी मुझमें
आदमी की मौत मरा कुत्ता
हिंदी से हम हिंदुस्तानी
मैं अक्सर खुदबखुद.....
स्वयं छाया स्वयं आधार हूँ मैं
मौन
सुन..बापू तेरे देश में
मेरे देश में पोषक का स्वागत
उठो बेटियों शस्त्र उठाओ
(राष्ट्रीय बालिका दिवस) गर मैं गर्भ में न मारी जाती...
बेटी हूँ मैं भी..
तुझसे प्यार करने लगी हूँ मै
जब कोई बात दिल में घर कर जाती है
ऐसा हिंदुस्तान कर दे.....
शहीदो के नाम दिया जलाते है
आओ हम माँ के तिरंगे आँचल को सँवार दें
एक दीया शहिदों के नाम
सैनिक संभालते हैं ख़ुद को
"हमारा हिन्दुस्तान"
शहीद सैनिक का शव
खूंटी पर टंगी वर्दियां
शत शत नमन
शत शत नमन
खूंटी पर टंगी वर्दियां
सौगात तिरंगे की
ससुराल लौटती बेटियां
एक दीया शहीदों के नाम जलाएँ
मैं दिल्ली हूँ दिल्ली
भारत का बेटा हूँ मैं
देश मेरा महान है
अमर शहीद
एक दीया सेना के नाम
एक दीया शहीदों के नाम
देख ये कौन चलें हैं
जनवरी 26 सन् 21
भारत माता की संतान
# शहीदों की याद में एक दिया जलाये
एक दीया शहीदों के नाम करते हैं।
मैं प्रकृति हूँ
तेरे इश्क में डूबे डूबे से हम हैं
देश का मंत्र गणतंत्र
#चित्र प्रतियोगिता
जीवनसाथी
ए-माँ तुम खुदा की भी खुदा लगी हमको
सपने में पापा आए
तुम और मैं
मैं चांद नहीं आफताब हूं
तड़पती हूँ
मुझे कुछ कहना है
#तुम पुरूष हो....
चेहरा
एक दूसरे के पूरक है हम
#चित्र प्रतियोगिता (बचपन के वो दिन)
बचपन -एक जमाना
मुझे कुछ कहना है
कहाँ गए वो बचपन के दिन
बचपन की एक बात
पहली मोहब्बत की पहली बारिश
बचपन -एक जमाना
#बचपन के पल...
साल भर अपना रिश्ता रहा
बचपन में
प्रेम पेड़ के मानिंद है
ना कर इतना गुमां अपनी कलम पर ऐ शायर
नस नस से गुजरती संवेदनाएँ
हे माँ तू मेरी जन्नत है,
मोहब्बत की कुछ बूंदें।
रो पड़ता हूं ये सोच-सोच...
हर वक्त बस है धोखा...
खुश है वो देखो कितना..
कल मिलोगी जब तुम मुझसे...
क्युं आँख तेरी भर आयी है ...
दिल खोल के लुटा देती है..
आज मिलेगी वो मुझसे...
वो पल मैं कैसे बतलाऊं..
ना जाने क्यूँ आज अधूरा
संवेदना
पनपी मन में एक अभिलाषा
देव भूमि में प्रकृति का कहर
मन ख्वाहिशों का जंगल
आनलाईन इश्क़ आफलाईन इश्क़
सवालों के बेहतरीन जवाब
"आनलाइन इश्क"
बच्चों डरो मत मुश्किलों से
वैलेंटाइन तड़का (हास्य)
संवेदनाएं जागृत कर...
काश तुम Hug कर पाते"
आदमी का आदमी होना बड़ा दुश्वार है
ऑनलाइन इश्क *
"लव आजकल"
वैलेंटाइन याद रह गया उनको याद करेगा कौन
इनबॉक्स वाला इश्क़
ऑनलाइन इश्क का खुमार
भारत के वीर सपूतों को नमन
आखरी मोहबत..
आशिक़ की अभिलाषा
ऑनलाइन इश्क
कलम शहीदों की जय बोल
तेरे ना होने से
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
तुम हो तो
ज़जबात
सावन सी भिंगादो ना
ऋतुराज आया
ऋतुराज बसंत
माँ सरस्वती को माल्यार्पण
मीठी मीठी बातें
अंखियों के झरोखों से
आह्वान
सावन गीत
आया बसन्त झूम के
ऋतुराज बसंत है आया
आया बंसत झूम के
'मधुमास'-ऋतुराज बसंत
मोहब्बत
प्रकृति की सुंदरता
तेरा आना
तेरी आंखों के पैमाने
बारिश हो रही है
मधुर मिलन
मनमीत
मेरी जिंदगी में चली आना
फोन ऐ मोहब्बत
प्रणय मिलन की आकांक्षा
मेरी जिंदगी में चली आना
अस्तित्व की आवाज
अस्तित्व की आवाज
वो लड़की*
प्यार का मर्म
प्यार का मर्म
सावन की सौगात
गीत "जिंदगी की कहानी"
एक घने पेड़ की छांव
उस घने पेड़ की छांव
अपना वह घर पुराना...
दरमियान तेरे मेरे
क्या तेरा भी है नाम कोई?
मन के आईने में
ओ सनम मेरे सनम
कामदेव राज
जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया
जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया
ज़िन्दगी है उड़ती चिड़िया
बरसात में तेरा दीदार
रिमझिम बरसता पानी
सावन की बूंदे
गाँव ! तुम्हारी बहुत याद आती है
कुछ उल्टा सीधा
बदलते शक्ल
गाँव ! तुम्हारी बहुत याद आती है
कौन हो तुम
मेरा गांव मेरा आंगन
शायद ज़िन्दगी होना था...!
क्या वो मुझको रोक पायेगा
अंकुरण
अंजान पथ
इंतजार
सावन की सौगात
सावन की सौगात
याद बहुत आए
बहुत याद आए
जीवन गाथा
मुस्कुरा कर वह कह के चले गए।।
"रिमझिम सावन की बूंदे..."
गरीबी की मार
गरीबी और परायापन
विरहिन
प्रणय मिलन
ग़ज़ल-इश्क़ की हद जानता है
कशिश
*कसक*
*कसक*
खुशियाँ
प्यार का इजहार
प्यारा घर
Ajnabi Si Dastak
मन के भाव
रचनाकार की रचना
बच्चा एक अकेला
मन से बचपन
दुष्कर ही श्रेयस्कर
अंधेरे का आकर्षण
हो जाओ तैयार साथियों
वृद्ध
थम गई ताल
हिंदी से हम हिंदुस्तानी
मन दर्पण
"अतीत की यादें"।
मन के भाव
Mera bharam
Khud se Rubru
मै आज भी वही हूं
जीने की ललक
कल्पनातीत प्रणय मनुहार
"मुझे मेरा वो गाँव याद आता है"
अंतिम यात्री
इसी का नाम ज़िन्दगी है
जीने का चाव
मन में आता ताव
मृगनैयनी सी तेरी नयन
जीने की कला
अन्नदाता
मेरी आह की आवाज
तेरा साथ है
आखों में चमकता प्यार तेरा
चाय के बहाने
सुनो मेरी कहानी
"मेरा प्रेम नयन नीर निश्छल सा है"
मौन स्वीकृति
आरम्भ का अंत
काजल
छलकते जज्बात *❤
"काली नैयना मदहोश शाम लगती है"
बहुत बोलती हैं ये आंखे तुम्हारी
किरकिरा हुआ काजल
येदिलकर रहा है तुम से ही बातें
दूर ना जाना
पेड़ बनकर नहीं तलवार बनकर
काजल*
काजरारे नैन
काजल
हलचल
मैं खूंटे से नहीं बंधूगीं
मैं खूँटे से नहीं बंधूगीं
हमसफ़र/दोस्त
मैं खूँटे से नहीं बंधूगीं
Kajal Ka Badal
मन के जज्बात
काजल
वक्त की तलवार की धार
प्रतिक्षा
मैंने तो मांगा है बन्धन पिया
प्यार के रंग
तुम मेरे हो
मेरा मन सुमन की तरह खिला दिया
तुझे मजबूत बनना होगा
मौन अभिव्यक्ति
इज़हार-ए-मोहब्बत
"राख मेरी कौन ढोयेगा "
कुण्डलियाँ "बसंत और पलाश"
दीवानगी
इजहारे_मुहब्बत
मुझसे प्यार है और नहीं भी
बिटिया कहे
मधुर मधुर तेरी ये बोली
प्रियवर हो
तुमसे है प्यार
कचरे के डिब्बे में भरा कचरा
शुक्रिया माँ
मन तन के पार
मन तन के पार
माँ की ममता
मैं और मेरे अच्छे दिन
मां
आप मेरी जिंदगी हो
आपके ढेरों उपकार हैं माँ
"अब हमें प्रखर रहने दो "
मां तू है ममतामयी
"काश मिले फिर तेरे आँचल का कोना"
रूह आसमान में रहती है
नारी तू ही शक्ति है
माँ और ममता *
मां की ममता
"नारी तुझे क्या उपहार दूँ"
माँ की एक अलग दुनिया हुआ करती है।
माँ
सफेद गुलाब के फूलों का दीदार
भूले-बिसरे चंद लम्हों के हवाले
पचपन में मन खोजे बचपन
भूली बिसरी यादें
भूली बिसरी हसीन यादें
मै भी मौन तू भी मौन, लफ्जो की खामोशी समझे कौन
मिलन की बेला आई
"पुरानी डायरी के बंद पन्ने"
बचपन..
बीते हुए लम्हों में
घर की याद...
उसकी हर सौगात को सम्मान दें
तेरे बिना धड़कन भी कहाँ धड़कती है
तेरे बिना धड़कन भी अब कहाँ धड़कती है
सार छंद आधारित गीत "शिव बिन कौन"
दिल की आशा
चाँद आज छुट्टी पर है
प्रेम की गाड़ी चल पड़ी
काव्य-मंच
साड़ी का पल्लू
प्राण वायू श्याम है
कचरे वाला बच्चा
आजकल पल पल रंग बदल रहे हैं लोग
यूँ हाथ थामकर हर पल का
तेरे मेरे दरमियां
"प्रणय मिलन की वर्षा"
"अंतरात्मा की आवाज "
विरह वेदना
प्रेम की गाड़ी चल पड़ी
मैं पुकारुँ तुझे
जुदाई*
"प्रेम में तेरे"
जातिये जजाति हो गइल बा
छलिया
#छलिया
संग की मूरत
"एक कविता"
दिल ही तो जाने है
*अधूरी कहानी"
✍️अनजान चेहरा सा हैं, मुस्कुहाट सी निजदिकिया हैं,
गीत
इश्क़..फिर हार जाएगा
दे दे मिलाई।
बिछडो न तुम (गीत)
रात के आकाश में जागता एक चांद
कविता का दरबार
तुम जो मिले
हाय ये कैसी मजबूरियाँ
आहत मन....
ख़ता
जुदाई
बाँसुरी
कविताएं और कविताएं
"क्यो प्यासा रह जाता है"?
जिंदगी मिली मुझे
बन्द दरवाजे
सफ़र यादों का ❤
कविता जन्म लेती है तब,जब
गूढ़ रहस्य
मैं कविता हूँ...!
शब्दों की महिमा
सूखते हुए दो पत्ते हम
न्याय इतनी दूर क्यों ?
न्याय इतनी दूर क्यों ?
सूर्पनखा की नाककटाई !
यह प्रकृति एक सुंदर पुस्तिका
होली मन से कभी बेमन से
"एक रंग प्रीत का रंग दे मुझे"
यूँ तो मेरा क़त्ल हुआ है।
कभी जिये होते आकाश में
मैं हिरण्यकश्यपु हूँ।
असली फूलों के दीदार को
ज़िन्दगी के रंग
व्यंग्य
कोरोना वायरस और प्रकृति
हास्य रस
ब्याह के लड्डू*
चिंटू की खुशी
विरह का अंत, अमित प्रारंभ
बेवफा हम नहीं
इक बेचारा
मेहरबां है रब जो उसने हमें मिलाया
कुछ कुछ होता है
एक नारंगी रंग के फूल सा
अजब गजब शादी
थम गए
बुढ़ौती में हमरा के लव होइ गवा..!
अल्फाबेट
"गीत मिलन के"
मिलन रूत ❤
प्रेम और गलतफहमी
रूह से रूह का मिलन
लो आज पूरी होगई हमारी अधूरी कहानी...
बेला मिलन की.....
मुरादों वाली रात
पृकृति
पृकृति
मैं कुड़ी हरिद्वार की
"खेले खेल हवा से डाली"
चॉकलेट का घर 🍬🍭
डिजिटल जनरेशन
धुंध *
स्टेटस
ये बच्चे अच्छे होते हैं...
हाशिए पर सैनिक
बंदर मामा
आऊँ भरूँ तुझे अंक में
"प्रहरी"
पिंकू बतख
मेरी माँ ख़ुश रहे
माँ भारती के गहने
बृक्ष बचाओ
मां त्रिपुर सुंदरी
शक्तियों की प्रतीक देवियाँ
मां से गुहार
नवरात्रे
कर लो विनती मेरी अब स्वीकार मेरी माँ "
खुले आसमानों से जिंदगी को देखना, बहुत ही खूबसूरत सा दिखाई देता है।।
मां कालरात्रि महिमा
इसी का नाम है ज़िन्दगी
बच्चों से बतियां
"मैं एक चिड़िया प्यारी "
इन्साफ़ बानो की चीख़
नवदुर्गा माँ जगदंबा 🌺
हे माँ दुर्गा
शौर्य गीत
चतुर्थ देवी मां कुष्मांडा
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-1
सन्नाटे में तैरता सा कोलाहल
मोहब्बत सी हो गई है, तेरे एक इंतजार में...
बिंदु छंद "राम कृपा"
पुण्डरीक छंद "राम-वंदन"
शालिनी छन्द "राम स्तवन"
वीर सिपाही
ग़म ना कर
दुर्योधन कब मिट पाया: भाग-2
भारत देश और इंसान
"चहु ओर खुशियां फैल जाएंगे"
कोरोना बोलो तुम्हे कब है जाना
कोरोना का प्रतिकार
ठानी है हमनें
एक अहसास कोवैक्सीन भरा
जरा दिल को थाम के
आज शिक्षकों की व्यथा
सड़कों पर बिखरी हुई यह विवशता
मिलकर भगायेंगे कोरोनावायरस
भय की शिला
कोरोना से हार चुके क्या ईश्वर से ये कहे बेचारे?
चेहरे पर मुस्कान आएगा
स्त्री हूँ मैं अबला नहीं ...
मेरे मनवा अब मत रोओ
नया सवेरा
काँटों के बीहड़ में खिले गुलाब
आशा दीप जलाए रखना
माँ का चेहरा देखा है
जीवन का वो सतरंगी सा इंद्रधनुष
जीवन - गीत
मैं एक फूल सी कोमल सुकन्या
फूल सदा मुस्काता है।
गीतिका छंद "चातक पक्षी"
मैं फूल हूँ
चेहरे छुपाने पड़ रहे हैं
देखा जो एक फूल को फूल बेचते हुए
प्रकृति से पंगा (भोजपुरी गीत)
बीते दिन वापस नहींं आते
फूल 🌸
सपना सपना ना रह जाये (कविता)
फूल
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-3
सम्पूर्ण सृष्टि का प्यार
क्या धरती बस इंसान की है ?
वह फूल कांटा ही चुभाता है
बँटे आज हम जाने क्यूँ
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-4
एक कड़वे सच के आईने में
पहली बारिश की बूंदों सी
बुद्ध प्रबुद्ध का ध्यान धरें।
हे कृष्ण! कितना आसान है
मैं एक तितली अंजानी सी
वह गुलाब के फूलों का बाग
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-5
उम्मीद से सजे ज़िन्दगी
उम्मीद की लौ
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-6
नव - प्राण हुआ
जो कुछ नहीं करते बहुत कुछ करते हैं
फिर तू मुस्कुराएगा
अब तो मेघ करो बौछार।
मैं वायोर्विद मैं ही चार्वाक
पर्यावरण सप्ताह विशेष हाईकू
आशाएं
आशा एक किरण *
उसकी बाजी उसके मोहरे
यादों की किताब का हर पन्ना
एक खुले आसमान की हवाओं की तलाश में
यह सृष्टि मेरी ही तो है
#तेरे मेरे सपने(प्रतियोगिता हेतु)
# तेरे मेरे सपने (प्रतियोगिता)
मेरे घर की खिड़की से
तेरे मेरे सपने ❤
बरखा बरसी पर कलश खाली
सपने मनु शतरूपा के
गुमानी एहसास
बिना पूछे सबकुछ बता देते हैं
बिना पूछे सबकुछ बता देते हैं
ज्ञानी हर एक है
तुम सुनो न सुनो
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
मैं खुद में तुमसे ज्यादा नहीं था कभी
यूँ तकरार बनी मनुहार
बीते लम्हें
पिता पर वर्ण पिरामिड
बचपन की डायरी
💐💐"लड़कियों के बचपन से पचपन तक का सफर💐💐 "
जिंदगी से कोई शिक़वा नहीं...
खो गये दिन मुहब्बत के
दवा देनेवाले ने दर्द और बढ़ा दिया
मेरे घर आई एक नन्ही परी
मेरा स्वाभिमान
पंछी निराले रंगीले।
क्यूंकि तू ग़म है...
परछाईयाँ अगर बोल सकती
एक अंधाधुंध दौड़ में
अधूरा सा प्यार था।।
सिले होंठ
✍️बेहिसाब है,यह खुशियां तेरे एक मुस्कुराहट में।।
मित्रता दिवस (Freindship Day)
" क्या अब भी वो खुशबू " 💐💐
बरवै छंद "शिव स्तुति"
ये उदास-उदास सी आँखे
✍️इंसान को भी जीना सिखा देता है।
"हरियाली तीज "💐💐
अखण्ड भारत का संकल्प
तुम खो मत देना ये आज़ादी
मैं आज की व्यवस्था हूँ
दरवाजे बन्द मिलते हैं
✍️गम भी जिंदगी को कितना कुछ सिखा देता है।।
मैं तो तो अकेला ही चला था
एक अंधाधुंध दौड़ में
राधा की पायल बोल उठी
रास छंद "कृष्णावतार"
हिंदी से हम हिंदुस्तानी
कौन जाने कब कहाँ ......
नारी के जीवन में इतवार नहीं आता
✍️किसी को किसी से भी प्यार हो जाता है।
" आहट प्यार भरी " 💐💐
बस इसी का नाम तो है जिंदगी
सामंजस्य, सह-अस्तित्व और समन्वय
जूगनू बनू या कि जोगन
कहाँ गये वो दिन कान्हा...
तुझको देखू तुझको पाऊ
क्या खोया क्या पाया?
आते होंगे रवि अभी...
माँ शारदे वरदान दे |
देखो घड़ी क्या बोल रही...
" हे संतति तुम्हे प्रणाम " 💐💐
"बापू तेरे बंदर तीन " 💐💐
मैंने आज बस इतना किया
सत्य अहिंसा के पूजारी....
उर्मिला की विरह वेदना
मैं मेरी हाँ मेरी...
प्रेम मधुरसम मस्ती है
प्रीत में कुछ ना शेष
ले कान्हा मैं आय गयी रे
तेरी यादो के अंजुमन में
ये शून्य ही सम्पूर्ण है
तुम ही बतलाओ कान्हा...
रंग रही मैं नवरंग रे
हर जुबां पे मैं रहूंगी......
मौन
परिवर्तन कहीं आस-पास है
इस तरह मैं जीना सीख गया
मेरे घर में माँ आयी है
माँ जाने क्या कहती है
कहो श्याम कैसे आये?
मुस्कुराइये कि आप आज......
*प्यार अपने आप से कर.....*
मैंने क्या बिगाड़ा था
जिंदगी कुछ इस तरह....
हिंदीवासी हिंदी बोलो
खुशी के आँसू बहा के देखो
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-27
बहुत कोशिश की मैंने
सार्थक करे ये दीपावली
मैं महालक्ष्मी धन की शक्ति
चलों लम्हें चुराते हैं
तुम्हारे प्यार की बारिश
दिल पर ज़रा हाथ रख दो
क्या करूँ, बीच में नेहरू आ गया
जिंदगी की डायरी
पुराने दोस्त याद आएं
एक दौर था जब मां जिंदा थी
उससे मिलने की खुशी मत पूछो
थोड़ी दूर तो साथ चलों
मैंने तो नहीं कहा था
क्योंकि मैं खास हूं
✍️You were the only one, my father
मायका मेरा मायका हां हां मेरा मायका
यात्री गण अपने सामान का खुद ध्यान रखें
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-29
शुभ कर्मों में देरी क्यूँ
मेरा ओर तुम्हारा रिश्ता मां
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-30
तुम्हारी साँस बन जाऊ
मेरे नयना बरस रहे हैं
मैं तो तो अकेला ही चला था
मैं एक सोयी चेतना हूँ
" ओ मित्रों " बनाम " ओमिक्रोन "
वक्त के इस काफिले में
वक्त के इस काफिले में
कैकयी तुम क्यूँ बदनाम हुई?
एक बच्चे को हँसा दिया
***ओजसपूर्ण हिन्दी ***
" महकती कली "
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-31
खो गया है मेरा प्यार
तुम और तुम्हारी बातें
तुम्हारे सीने में मेरा दिल
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-32
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-33
तुम्हें कैसे समझाऊं...
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
बाल कविता होली में मची है धूम
मैं ख़ुद को बेकार समझता हूँ,
जीवन का सच!
तुम्हारे बिन
हर लमहे को इतिहास बनाओ
क्या क्या काम बताओगे तुम
जिदंगी, मुझको तुझसे प्यार है
अर्द्धनारीश्वर सा सच
सांप की हंसी कैसी होती
क्यों सत अंतस दृश्य नहीं?
आज मैंने एक रोते हुए बच्चे को हँसा दिया
वक्त के इस काफिले में
किस राह के हो अनुरागी
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग:35
याद आती हो तुम .....
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग:36
यात्री गण अपने सामान का खुद ध्यान रखें
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग:37
एकता कपूर का फोन आया
हे माँं करुणामयी शारदा
गीत... हो रहे हैं लोग
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग:38
सलीक़े से हवाओं में जो ख़ुशबू घोल सकते हैं
गीत.. मुरझाने से क्यों घबराना
क्या रखा है वक्त गवाने [प्रथम भाग]
गीत.. हाथ में खंजर लिए
वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में द्वितीय भाग
वर्तमान से वक्त बचा लो पंचम भाग
मैं क्या लिख रहा हूं
जाग-जाग री सुप्त भाग्य की रेखा।
ये पूजा ये गायन क्या है?
पल पल तुम्हें पुकारा
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-39
यहां उनका भी दिल जोड़ दो
उठो युवा तुम उठो ऐसे
दुयोधन कब मिट पाया :भाग:40
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-41
फिर से सतयुग भू पर लाओ
धरती और आसमां की तरह
ठंडी क्या आफत है भाई
मेरी प्यारी भाभी मां
मैं पुल होना चाहता हूँ
"मैं अभी और पढ़ना चाहती हूं"
भारत रत्न
जुबां खामोश कहती है !
हम तन्हा हो जाते हैं -कविता
वो दिन याद करो
एहसास
Khud ki talash
फूड इंस्पेक्टर की दावत (व्यंग्य )
मेरी संघर्षमय जीवनी
आम आदमी बेजार-कृष्णाजाधव
आपकी इक आँख को तलवार होना चाहिए
मेरे ही घर में पूछ के लाया गया मुझे
किसी को ये ज़मी दे दो किसी को आसमाँ दे दो
What does a rose say?
यदि उसे नजरों से गिराया नहीं होता
तुम क्या जानो तुम मेरे लिए क्या हो।
आजकल मेरे महबूब सर पर पूरा आलम उठाए हुए हैं
हर किसी के हाथ में अब आंच है।
धर्म के प्रति उदासीनता
अब भी समय है "इंदर" सुधर क्यूँ नहीं जाते
कुछ लोग यूँ ही परेशान हैं
Journey to In law's house
मरते किसान नहीं, मर रही हमारी आत्मा है।
स्थायित्व (Stability)
क्या कर रही हूं मैं?
“दायरे–इश्क़ में हुस्न”
नाख़ुदा का कसूर देखा!
सब जायज़ दिखाई देता है
ग़रीब के घर सपने नहीं होते
सुकून मग़र बशर भरपूर है
मैं हो गया फ़कीर बशर
कामयाबी हमारी राहे-हयात का इक ख़ूबसूरत मरहला है
साथ तिरे सारा ज़माना है
रचेंगे बिल्कुल अलग हिंदुस्तान
वक़्त से बशर बना कर चल
प्यास दरिया की बुझती है समंदर में आकर
शामो-सहर रोजो-शब आज और कल बदलते हैं
क़रीबी का एहसास बनाए रख
कुछ भी नहीं है बशर बात नई जिंदगी में
घर की बात बशर रखा कर घर मेंअपने
खून नस्ल-ए-आदम का बहा है
मत पूछ मुझ से हबीब मेरे
धूप कभी ठंड सूखा कभी बारिश
आईना मग़र सच बताएगा
चाल बशर उक़ज़ा की मतवाली है
माना कि मश्ग़ूल हो तुम
यादों का आभास हुआ मुझ में
मतलब की बातें करते हैं
शेर-ओ-सुख़न से दूर रहते हैं
ख़ुद को मना लेना बेहतर है
किसीको जीना आ जाता है बशर
तेरी यहाँ पर याद किसे रहती है
जुदा सबकी फ़नकारी है
ना दुआ काम आएगी ना दवा काम आएगी
हद-ए-बर्दाश्त का बांध टूट कर सैलाब बन सकता है
हद-ए-बर्दाश्त का बांध टूट कर सैलाब बन सकता है
सावन के महीने में कोई बड़ी शिद्दत से याद आता है
हयाते-मुस्त'आर बशर कमाल की हो
वक़्त मिलता ही कहाँ है बशर जिंदगी को संवरने के लिए
अंधे रेवड़ी बांटने में लगे
तन्हा होकर रह गई जिंदगी
ख़त्म करो बशर येह तलाश अपनी गैरों की हयात में
बारिशों की झड़ी लगी है
रहगुज़र से दूर ही रहा घर-बार मिरा
कच्चे घरों को कौन बचाने वाला है
तुम्हारे साथ गुजारा हुआ वक्त
पल-पल तिल-तिल मरता है आदमी
दश्त हरा पानी छू-कर होता है
और बशर इस जहां में क्या रखा है
दश्त -ओ -शजर के साए क्या काम आए
संतुलित रहें सदा जज्बात
जीकर तो देख आज अपना
ऊंची हो जाती है दीवार कभी कभी
सुकूँ से बशर हम सैर करें
तू ख़ुद यहाँ पर बशर जबतक किसीके काम का नहीं
जाती उसकी मग़र यादें नहीं
येह तेरा अहसास मेरे साथ मौजूद क्यूं रहता है
ख़ुदा का अपना कोई मज़हब नहीं है
अनेक सैय्याद एक परिंदा
दिल-ए-नाशाद तक़दीर बनाना चाहता है
सुलझाए अव्वल हालात घर के
बशर मग़र कभी रोया नहीं
शाम ए हयात होने को आई
बशर सब -कुछ जान लेता है
मुफलिसी ने बेनक़ाब कर रखा है
सुकून वोह बशर मिल गया इक फ़क़ीरी से
दोज़ख भी तिरा क़ुबूल अता फ़रमाकर देख
मानाके मौसम तेरे शहर का दिलकश और सुहाना है
तिश्नालबी बुझती नहीं
बशर ज़ेरे-ए-असर आकर दामने-कोह के सहन में बस गया
**रात बाकी है**
दर्द किसानों के वो क्या जाने
सुब्ह का इतजार करके देख
सियासत से ही सियासत की काबू में रखना माया मुमकिन है
बशर तुझको जीना अभी आया ही नहीं
ख़ामोश रहकर बशर वो अश्आर हज़ार कह देते हैं
मकाँ के भीतर हरसू घुप्प काला अंधेरा था
शिद्दत और बढ जाती है उनके याद आने की
इन्सानियत के लिए फ़रियाद करें
ऐ जिंदगी ख़्वाब तिरे तमाम सदा मुकम्मल नहीं होते हैं
सुकूँ महफ़ूज़ घर-भर का
निकालने को जाए कहाँ ख़ुद का ग़ुबार आदमी
बंदे तेरा अंदर कहाँ है
जिंदगी मिली है जीने के लिए
हिज्र-ओ-फ़ुर्क़त में हबीब के कभी बसर करने का इरादा भी नहीं है
किस्तों में अदा होती है
ख़त में उसके आज भी वही ख़ुश्बू आती है
ज़रूरी नहीं के हर मुफ़लिस बिकने वाला हो
इक उम्र गुजरी है बशर यहाँ तक आने में
महब्बत महब्बत होती है
दीपक जगता बुझता रहता है
यायावर फकीरों के मुकद्दर में कभी कहीं घर नहीं आता
अपने आज की हिफ़ाज़त कर
जिसदिन इन्सान सुधर जाएगा
किसका बशर इंतज़ार करें
तसव्वुर में हबीब हमारा देखा
शख़्स जो बे-हद खास होते हैं
जीने के लिए सारा जग भागे
क्यूं करे कोई नफ़रत उनसे
इमदाद ए किरदार लोगोंको याद जुबानी होगी
इमदाद ए किरदार लोगोंको याद जुबानी होगी
अज़ीज़ मुझे समझ न सके अजनबी मग़र समझ गए
गुजारिश की बरसात की आसमान देखकर
थोड़ी-सी हसरत होती है
किसी सयाने को ना इश्क़ करना आया
जो कभी नहीं रोते बशर उन्हे क्या ग़म नहीं होते
काश लूटने कोई हमारे रंजो -मलाल आ जाता
अमन का रास्ता बातचीत के द्वार से होकर गुजरता है
है गुफ़्तगू भी लाज़िम राब्तों के वास्ते!
घर में ख़ान-ए-ख़ानाँ हो गए
आगाज़े-सफ़र कर रहा है तू
ग़ुरूर ओ नख़रे नाज़ उनका
छुपाकर अपने ग़म रखिए
अच्छा-खासा वक़्त हमारा बशर जहाँ से गुज़र गया
मुकाम भी अपना बिना बताए हुए चला गया
तुमअपने सपने बशर जिस ज़बान में देखो
हयात-ए-मुस्त'आर खुदमें इक छोटासा सफ़र है
अदू समझा जिसे मेरी हबीब निकली
सालती है बशर हमको येह ख़ामोशी औलाद की
किस क़दर है बशर जरा देखिए दिलका विश्वास उनका
कुछ कम अपने अहबाब रख
साथ जिस शख़्स के हमेशा तुमने शराफ़त की होती है बशर
धन्य होता हर व्यक्ति
दिल का बुरा नहीं बशर आदमी वक़्त का मारा है
अनल, जल धूल, सलिल जज़्ब है सब तुझमें
कीमतों ने छुआ आसमान
औलाद की ख़ातिर सबकुछ कर जाता है आदमी
दुआएं उम्र ए दराज़ होने की न मांग
अबतो जीना शुरू कर बशर
फासले राब्तोंकी असलियत बता देते हैं
तादाद-ए-अहबाब तेरे भले ही कम हों
प्रभु के प्रति रहें कृतज्ञ
आदमी परेशान-सा रहता है
तैयार हैं छोड़नेको घरबार हमतो
उत्साह का नव प्रवाह
उसी की रहगुज़र हो गए
राब्तों का रास्ता नहीं मिलता
किस तवील-ओ-कद का है इन्सान
अहबाब का अहसान हो जाता
विसाले-हबीब की बशर सदा हमको रहती आस है
क्यूं उतावले होते हो
मसरूफ़ ओ मश्ग़ूल तो रहने दो
ज़ख़्मों का ईलाज तेरे तबीब के पास नहीं
काश जन चेतना भरे कुलांचें
बीते हुए दिन बशर अब अक्सर बेहतर लगने लगते हैं
नब्ज़ क्या खाक देखेगा तबीब मेरा
वो हमसे पूछे कितना है क़रीब मेरा
दिलों के रस्ते नहीं मिलते
यौमे-आजादी से बड़ादिन हो नहीं सकता
गुड़िया है मोमकी या बनी फौलाद की
हवाले किसी के ना अपनी औक़ात कर
सुधार आगे के लिए परिवेश
कोई येह तो बताए के हिंदुस्तान और भी है
बेनाम शहीदों को क्याक्या हुए थे हासिल ईनाम याद हैं
सुकून-ए-ज़ीस्त मयस्सर ही नहीं कहीं आदमजात में
बेरोज़गारी का प्रच्छन्न दैत्य
सितम हमने बशर क्या क्या न क़ल्ब बेचारे पे किए
किसी को चाहने से पहले ख़ुदको आजमा लेना
जी भरकर ख़्वाब देखो आपही की रात है
असल जिंदगी बशर हर तर्ज़ ओ तक़रीर से परे होती है
कामिल कोई शय नहीं है इधर बशर जमाने की
हर इंसान लगाता दांव
जख़्म-ए-जिगर को बशर मेरे हरा अभी कुछ रोज रहने दे
अश्आर तेरा काम लिखना है
हारने को कुछ बचा ही नहीं
धरातल की दशा से मुंह मोड़
गैरों से दोस्ताना अहबाब से रक़ाबत रखते हैं
तालीम-ए-हयात कभी मुक़म्मल नहीं होती
मुझको मिरा अंदर नहीं दिखाई देता
मुझको मिरा अंदर नहीं दिखाई देता
हयात में मग़र बशर हयात से मात खाता है आदमी
किरदार इन्सान का ज़ीस्त में असली सरमाया होता है
बेसबब बोलने का नुकसान मग़र बशर ज़रूर हो जाएगा
बेसबब बोलने का नुकसान मग़र बशर ज़रूर हो जाएगा
नेकदिल इन्सान भी बशर यहाँ गुनहगार हो जाते हैं
उम्रे-ए-तमाम शबे-तन्हाई है
लोगों के जज़्बात बदलते हैं
मैं सब कुछ था तेरा, मेहंदी महावर हो नहीं पाया
आज वतन की शान में करते थकते नहीं गुणगान
मुकम्मल कभी सपने नहीं होते
गैरों की खूबियां ढूंढ लेता है
कमाल तो है मग़र बुलंदियों पर टिके रहने
जन पक्ष में लेखनी चले
टूट गया अभिमान चांद का
तहखानों में छुपा रखा है
नसीब से मग़र कमही मिला है
क़ुसूर नहीं बेचारी जिंदगी का
अहबाब ही रखने लगे अदावत
मुकम्मल कर सफ़र बशर हम आते हैं
अहबाब फ़िक्र-ए-मुसबत वाले क़िस्मत से मिला करते है
नीर क्षीर विभेद का विवेक
मजा तो दर्दे-जिगर छिपाने में होता है
साहिल पे उफ़ान आता है
चलो चांद पे बसते हैं
चांद पर बसने की बात करते हैं
सरगिरानी में भी मसर्रतों का हमारी न कमाल पूछिए
याद नहीं वो पल मुझे...
राखी के धागों में है पिन्हा बहन-भाई का प्यार सलामत
इन चरागों को तो बशर बुझ ही जाना था
ख़ाकसारी में भी बशर उन की बड़ी शान होती है
निगाहें आज तक टिकी हैं बशर उसी तरफ़ मुंतज़िर तुम्हारी
भूल सकता नहीं अपने मां -बाप को
आकर देख कभी क़रीब मेरे
करने लगे मन-पूरे लोग
हयात जीना अलग बात है
अपनी पहचान को भूल गए
रिश्ते याद तो आ जाते हैं
नैतिक मूल्यों को बचाए अब कौन
ये हसरतें मुंतज़िर हैं किस बात की
कोई नहीं है क़रीब मिरे
ख़ामोशी से बेहतर लफ़्ज अगर बशर हों तो बोलिए
तहरीर-ए-मुक़द्दर लिख दी है बशर खुदा ने हमारी पानी पर
मुलाक़ात हबीब से ख़्वाब में कम न थी
उम्रें गुज़र जाती हैं बात दिल की कानों तक आने में
चार दिनों का है तू तो बशर मेहमान यहाँ
थोड़ी-सी जरुरतों वाले घर की रहगुज़र पर
सुकून थोड़ातो अपने लिएभी बचाकर रख बशर
ज़ीस्त से जिंदगी-भर से यूं खेलता रहा है बशर
किसी की दश्त-ब-दश्त रहगुज़र है
जीवन वह है बशर जो हम ने जिया है
अना के मरीज़ की बशर दवा क्या है
वस्ल तेरी मज़बूरी उसी से
कितने खुदाओं पे यक़ीन करें
लोग खुदा बदल लेते हैं
चले आए हम सवाली की तरह
दुआ में हाथ हमारे उठ गए
मेरे वतन में खुदा बहोत हैं
आकलन करने को चाहिए सही तंत्र
आता नहीं है बशर कभी फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर
फ़न कोई उस्ताद के बग़ैर आता नहीं
सब शिक्षकों को प्रणाम
मेरी किसीसे कोई जफ़ा नहीं
सवेरा हुआ सवेरा हुआ
सुलझी हुई मिली थी बशर हयात आदमी को
बे-शुमार मसर्रतें होती हैं मयस्सर जरा-सा मुस्कुराने से
पीछे रहबर के क्यूं चलें बशर जब हम अपनी ही डगर चलें
जीने के अहसासात गुजारे हमने गाँवमें अपने
मन की आवाज
धूप में जले हम छांव के होते हुए
सन्मति औ विवेक का कोष
मुकम्मल सब काम होते हैं
खेलते रहेंगे रक़ीब बशर हमारे जज़्बात से
जिन्दगी से हमने हमारा बाक़ी सफ़र पूछा
हंसने के लिए बशर रोनेको तैयार हो जाता है
जीने केलिए बंदा मरने को तैयार हो जाता है
कौन याद दिलाएगा शक्ति
मंज़िल से लौटे हुए मुसाफ़िर कहाँ जाएं
आरजू दिल की बशर कह कर बयाँ की नहीं जती
बीते हुए वोह जमाने ढूंढ़ कर कहाँ से लाऊँ
मैं हिन्दी हूं
यौम-ए-हिंदी मुबारक
बोली भाषा मज़हब की दुहाई देनेके आदी लोग
कहां ढूंढू मैं अपनी खुशी
चलो मोहब्बत का एक घराना बना लें
जबर्दस्ती नज़र आती है
*रिश्ते जिंदा हों*
*साथ बशर अपने ला नहीं सकता*
*बेमानी है बे-मतलब बोलना*
*अपना मेयार बुलंद रख*
जमाने गुज़र जाते हैं बशर खुशियों के आने में
हयात क़ज़ा की मोहताज बनकर रह गई है
*बशर अपने रास्ते बदलता रहा*
*लोग तो सारे हमारे रहेंगे*
*सहर सुहानी हो जाए*
अच्छे -भले लोग बशर बीमार हो जाते हैं
*आँखों से नमी नहीं जाती*
*है दस्त-याब हर-शय*
*काबिले-बिल-क़स्द बने*
सहेजे रखें संकल्प का प्रकाश
*विस्मित विषधर सकल भुजंग*
छोटा बड़ा गिलास देखते हैं
*बड़ा सरल है किसीसे खुश रहना*
*रौनक-ओ-मसर्रत से यौमे-ए-खास की हर पहर गुजरी*
खुद अपना तमाशा मत कर
*हमें बशर हरसू इन्सान में इन्सान नज़र आता है*
मेरी प्यारी माँ
*दूल्हा नहीं दिखता*
जन मन में हो उत्कट चाह
*कठिन है बिन कुछ कहे कुछ कहना भी*
*तेरे बोलने का असर क्या होगा*
बुलन्दियों को छू लेना बड़ी बात नहीं है
कर्मों के बल पर बदल गए
याद का नहीं है असर तो और क्या है
*मुश्क़िल डगर है तो क्या*
*आख़िर तेरे शहर में आना हुआ*
हौसले से जग जीतता रहा
शकुनियों ने फैलाया अफवाहों का धुंध
*अपने तो बस नाम के होते हैं*
*मुझ को मिरा जलाल-ए-जमीर काफी है*
मानवीय संवेदना बनी रहे
*जीने के हुनर भूल गए *
*खिलता है चमन बरसात के बाद*
*ऐतबार जहां किया वहीं पे फ़रेब मिला*
*इन्सान का बस आना जाना रहता है*
दूसरों को देते हैं ज्ञान
*पीठ पर वार नहीं करते*
किरदार जिंदा रहता है
*दश्त का भी दस्तूर होता है*
*नज़रिया बड़ा हो जाता है*
*ज़हर पिए जा रहे हैं*
*रहगुज़र मुकद्दर में ''बशर'' तेरे लिखा है*
*है तसव्वुर के भी पार बशर*
*सफ़र नहीं है आसान मोहब्बत का*
करते नहीं हैं याद हमको हबीब हमारे
"ताड़का-वध प्रसंग"
*हम से ही "बशर" हमारी बात हो गई*
*वक़्त से बड़ा नहीं उस्ताद कोई*
वो अब हमसे नाराज़ नहीं है
अपने -अपने रस्ते हो लिए
*समझाने लगे हैं लोग *
*हयात ने मारा बशर*
*किताबी जिंदगी से बाहर चला जाए*
क्या बताए बशर किसीको
*रस्मे-अदावत निभाई ज़ालिम ने*
*ए'तिबार खुदपर ही रहा नहीं*
लीजिए प्रेम का अवलंब
*गूंगी बिन आवाज़ ग़ज़ल*
कोई अपने मां-बाप से बड़ा नहीं हो सकता
मन में क्यों भरा रहे घमंड
*लोग किरदार समझ लेते हैं*
नामुराद इक दूसरे पे इल्ज़ाम लगाते रह गए
*पहचाने जाने में जमाने लगे हैं*
*पता ही नहीं नाम बशर का*
खुद को छलते क्यूं हो
वहशीपन का शिकार होती मानवता
*दरीचों से देखते रह जाएंगे*
*याद आना क्या काफी नहीं*
घिर आए यादों के बदरा
खोए सितारे
*क्यूं कोसते हो अपने आज को*
*खुद का चश्मा लगाकर देखा*
*जग से नहीं हौड़ बशर*
*कुछ गीला पड़ गया है*
करते रहिए भूमिकाओं का निर्वाह
मां का दर रहे सब चूम
जिंदगी ही सिखाती है सबक जिंदगी के
अरबपतियों की सूची बेलगाम
सहर-ए-वस्ल जाती क्यूँ है
*उसका ख़्याल सबका ख़्याल रखता है*
*अनसुनी करी नफ़्ज-ए-क़ल्ब हमने*
*फ़साना याद रह गया*
जिंदगी बेहाल होती जा रही है
*आब -ए-हफ़त-दरिया की प्यास*
*मुस्कुराने में क्या जाता है*
"संवेदना" [महाकाव्य] से
राजनीतिकों में चिंता नहीं शेष
*मेहनत और मशक़्क़त की चलती है*
"रावण-अंगद संवाद"
*हुई उम्रेतमाम शाद होते होते*
*वज़न इल्म का उठा सकते हैं नहीं*
क़ुदरत ने करिश्माई ताक़त बख़्शी है
प्रभु राम नाम का अवलंब
खुला है ख्वाजा का दरवाज़ा
*जिंदगी तजुर्बात सिखाती है*
काम चलता रहता निर्द्वंद्व
*वालदैन का इम्तिहान*
अपनी भी ग़ैरत है अना है
आदमी ने ज़हर घोला है
जरुर अन्त होना है संसार का
आस उस की मन में विश्वास जगाती है
मतलब कोई और निकालता है
सबका अपना ज़माना होता है
माँ तुम्हारे रूप से
*संजीदा दिखाई दो*
*ख़त्म आदमी की पहचान हो गई *
सांप सूंघ जाया करते हैं
*जीने की आरज़ू रखे है बशर*
*उस्ताद से बड़ा चेला हो गया है*
*मिटादो मन-मुटाव जमाने से*
बेटी की बिदाई के वक़्त पिता द्वारा बेटी को दिया गया वक्तव्य
जनता के हिस्से सिर्फ हलाहल
*जीने का तरीक़ा बड़ा आसान है*
*पवित्र पावन चरित्र*
इससे उजले प्रतीक नहीं
*दुनिया अपनी मिल्कियत नहीं है*
*जिंदगी का पता नहीं*
यह कैसी दोस्ती की है
औरों को क्या पता होगा
दृढ़ आत्मबल की दरकार
*तोलने की ज़रूरत क्या है*
सपनो का जहान
विष बो रहे समाज में सरेआम
"प्रेम गाथा"
*मेयार ए बुलंद के मिज़ाज क्या हैं*
*फ़िक्र-ए-अना-ए-वालिद*
आदमी को आदमी हि रहनेदो
*रहबर की क्या सुनेंगे*
*न बताना पड़े न जताना पड़े*
*कण कण में भगवान*
*कलम दवात के सहारे हैं*
*शराब ने डुबोया है* म
*ये सिक्के इन बाजारों में नहीं चलते*
*हम तो अपने इरादे जानें*
*येह कौनसी शहर हुई*
*जीने के लिए मरता हूँ मैं*
*याद उस को भी हमारी आती होगी*
*इसका हमें न पता था*
तबीब करने लगे शिफ़ा वबा से
मुकद्दस आयतें हो गईं यादें हबीब की
माटी का तेरा खिलौना
"बशर" किरदार तेरा कितना महान है
छटपटाता रहता है आम इंसान
'बशर' को चालबाजियां कहां आती हैं
आदमी को आदमी नहीं क्या मज़ाक कहें
*जमाने का होता है हाथ फ़ितरत-ए-इन्सा बनाने में*
चलो अदला-बदली करते हैं किरदारों की
हरसू बेइंतहा रौशनाई है
सुशब्द बनाते मित्र बहुत
वुजूहात हमारे अंदर जज़्ब होती हैं
*धनदौलत जिंदगीमें सच्चे अहबाब होते हैं*
उजालों के भी अदब हुआ करते हैं
रौशनाई के भी अपने उसूल ओ अदब हुआ करते हैं
वोट की खातिर पखारें कदम
जीवन से तम को दूर करो
सच समझने में चूका तंत्र सारा
*शायरों का यही हाल होता है*
*सब दूरियां मिटा बैठे*
"श्रीराधा-अमृत चौपाई भाग-1"
अधिकांश होते हैं गुमराह
*सीने में धड़कता क्या है*
रोने लगे मुस्कुराने वाला
*यहाँ पर नहीं हूँ मैं*
"आधुनिक पथभ्रष्ट समाज"
*दिल अपनी कहता है*
"श्रीराधा-अमृत चौपाई भाग-2"
हुनर ख़ामुशी का सीख बशर
ज़ाहिर अपनी तजवीज़ हम क्यूं करें
*मक्कारी नहीं चलगी*
*कदमों में जमाना होता है*
*तू जमाने बग़ैर मुतमईन नहीं है*
*लम्हों की मुलाक़ातें हैं*
"श्रीराधा-अमृत चौपाई भाग-3"
*दिल को पहलू में संभाल कर रखा करो*
मुसाफ़िर बनना चाहूंगा
"दर्द की जीती-जागती मिसाल"
*मुसाफ़िर बनकर रहना है*
*भीतर भरा समंदर है*
कैसे कहें के वो हमारा हमसफ़र हमदम नहीं
अपना ही दिल लगने लगा है सितमगर
अपना ही दिल लगने लगा है सितमगर
*माटी में माटी होने दफ़्न आ गई*
दुश्वारियां सिमट जाती हैं हयात से
*जिंदा अपने उसूल हैं*
*मुस्कुराए हुए ज़माना हुआ*
*रंग- ए- मौसम -ए -हयात*
*रंग-ए-मौसम-ए-हयात*
*रंग-ए-मौसम-ए-हयात*
*अहसासे-फुर्क़त हुआ हदे- हयात से निकलकर*
उसीकी नज़र-ए-नायत दिखाई नज़र आती है
*खुद को लुटा बैठा*
खुशियों से ज्यादा ग़म निकले
*ज़रूरी राब्ते निभाना हुआ*
आदमी मैं मरा हुआ हूँ
*गिरने का जिनको खौफ़ नहीं होता*
*उन्हींसे दूर रहना उन्हींको चाहना*
मोहब्बत में वफ़ा ना हो
*तहज़ीब-ओ-तमद्दुन का इन्सान हो*
*मुड़कर भी नहीं देख*
सफ़र से गुजरता हर कोई है
बुलंदी पर बने रहना और बात है
"शादी"
*हालात वक़्त वक़्त के अपनी जगह*
ख़ूबसूरत झूठ है हयात तेरी
हुई नींदें हराम रातों की
दीदार हबीब का काम आया
*ख़्वाहिशें कहाँ ख़त्म होती हैं*
मेहमानों की तरह रहे
रस्ते को घर बना लिया
अपनों का हर मुमकिन ए'तिमाद करें एहतराम करें
ज़मीन से उठकर मिट्टी कहाँतक जाएगी
क्या हुआ हासिल अमीर होकर
अगर जिंदगी किताब होती
सरपर ले लिया पत्थर उछालके
किसी और का नसीब क्या जानें
*कलमदवात बदल जाते हैं*
हालाते-हयात को बशर नसीब समझ बैठे
हालाते-हयात को बशर नसीब समझ बैठे
मरनाभी था गवारा गर एकबार होता
मोती लड़ियों में पिरोने लगती है
आंखें कराती हैं पहचान
*पहलेसा हिंदुस्तां हो जाए*
मौसम-ए-बहार का नशा तरी है
*शाद रहने की वज़ह ढूंढ लेने का नाम हयात है*
Love is the most valuable thing in the world
ग़मे-हिज्र न खुशी मिलन की हमको
*नज़रें उसने घुमालीं दिल हमारा बैठगया*
*मुझमें मैं रहा ही नहीं*
मुझ में 'मैं' बचा ही नहीं
"धराकांत"
इक दूजेके सहारा न हुए
*चैनकी नींद सो जाता है*
ख़ुलूस किस शय का नाम है"
क्या लिखा जा सकता है???
*जिंदगी से मिलने को तरस गए*
*आस्मां छूने को बेताब हो गए*
*नींद है तो ख़्वाब नहीं*
रवैया क्या है तुम्हारा
किस मुकाम पर आ गए हैं हम
*सरपर कुछ नहीं आस्माँ के सिवा*
ऊन के गोले और मां ककी सलाइयां
ऊन के गोले और मां की सलाइयां
चलते बने लोग बशर खाक डाल कर कब्र पर
तुझपे कितना एतबार करूं
बचकर रहने का तरीक़ा है
जिन्दगी की जुस्तजू ही जां ले गई
मन भरकर बशर बात हुई
*जीत हुई कभी मात हुई*
*सराबों से आब चाहता है*
रोया मग़र बशर गोया आकर दिसम्बर के महीने में
बनाकर किरदारे-दास्ताँ छोड़ दिया
अपनी पसंद की रहगुज़र हम निकलें
जाहिल बेवकूफ़ी से बाज नहीं आता
*मुस्कुराना है मुश्क़िल बहोत*
दर्द की दर्द से शिफा किए बैठे हैं हम
खामोशियां इस क़दर "बशर" नहीं अच्छी
हालात से निराश नौजवान
वजूद हमारा कायम अख़लाक के भरोसे
*दुश्मनी सस्ती हो गई है*
कैसे खुदा राजी रहे
*हम हुए वैसा ग़रीब न हुआ*
खुदसे सुनना चाहता हूँ
अहसान मानिए हमारी फुरक़त और फ़ासलों का
बतियाते रहा करो बशर
जख़्म दिखलाकर तमाशा क्या करना
इबादत केलिए न इल्मो-हुनर चाहिए
नाम होने का था गुमान मग़र
*वक़्त वस्ले-यार में गजारा हुआ*
तवज्जोह किया करो दिलके मकान की
आदमी ही आदमी के काम आता है
हयात में मिले हर फ़रेब से वाकिफ़ हूँ
आना यहाँ दुबारा नहीं
तयक़्क़ुन जाहिलों का
तयक़्क़ुन जाहिलों का
हाथों की लकीरों में क़िस्मत न रही
मतपूछ हमसे कैसे हमने हयात गुजारी हो
जन्नत को भी ला सकता है क़रीब अपने
मसाइल कुछ अयाँ नहीं हैं
आदमी खुदा बनने से बाज नहीं आता
मरने से फुरसत न होती
शीर्षक (भारतीय सेना)
कुरबत मिले तो जीकर देखें
मुर्शिद खड़ा देख कर
वक़्त अपना सफ़र करता है
दूर है तेरा घर अभी
जद अपनी "बशर" अपने दस्तरस में नहीं
खामियाँ हर कहीं होती हैं
*शाद रहने केलिए नाशाद रहता है*
*खुश रहने में भी कुछ जाता है क्या*
मुलाक़ात की गुंजाइश रखिए
दूरका वास्ता रखता है
हौंसले को समेट कर मेघ बन
गुरेज कर जरा परहेज रख
खुद खुदा ही जाने उसकी खुदाई
वोह फ़ना हो जाते हैं सचके हकपर खड़े रहने में
किसी और के कब दीवाने हो गए
एक और साल गया
"अंत"
*मनकी गहराई कौन जाने
कागज़ की कश्ती में घर
मौसम-ए-सर्द में बर्फबारी आम बात है
जख़्म से बात करे जख़्म
किसी के लिए किसी में कोई खास बात होती है ©️ "बशर"
ग़म जमानेभर से पाये हमने
हम भी तो देखें दिल उसका अपने सीने में डालकर
हैं औरभी मुख़्तलिफ जानवर-जात दुनिया के जंगल में हर किस्म के मग़र आदमजात के बदरंग किरदार का सूरत-ए-हाल ही और है
आदमजात के किरदार का सूरत-ए-हाल और है
मौसमे-बहार को फिर बहाल कर
नुक़ूश-ए-दर्द अपने छोड़ चला
दरिया का किनारा बाक़ी है
उनको नहीं हमारी ख़बर
हयात-ए-मुस्त'आर की सदाक़त जानले
*साल नया सबको रास आए*
न इन्सान बदलेगा न दहर बदलेगी
पैरों पर खड़ा नहीं होता
वक़्त हाथ से फिसल गया
आने वाला साल अच्छा हो
नवविहान का स्वागत है
आमाले-कमाल तेरा तुझपर है
साल ये बेमिसाल बदले
एक और बरस हयात से चला गया
बीते बरस की बातें पुरानी कहानी हुई
*बेसबब बशर बेताब*
पूछो तो यही कहता है बशर
मजनू बनजायें गर हमको लैला मिले
उसके हबीब की भी बातें सुनी
नये साल की खुशी न पुराने का ग़म
टिके हैं कैसे पांव आसमान के जमीन पर
मेरे सिवा कौन चलता है तेरे साथ
चले जाएं रंजो-मलाल भी
सुनते हैं कि साल बदल गया है
वस्ल-मुलाक़ात के तहज़ीब को न भूल जाना
यादों की क़ैफ़ियत-ए-दिलबरी है
कोई किसीसे जफ़ा करे ऐसा न खुदा करे
कद काठी किरदार की बड़ी हो गई है
रास्ते सफ़र के बहुत हमने बदल बदल कर देखे
तेरी इक झलक पाने केलिए आतुर
आदमी, आदमी की बू से परेशाँ है बहुत
शराब पीकर न ख़्वाब देखा कर
वो इल्मो-हुनर हमें नहीं आता दर्दे-जिगर जिससे बांटें
शब्दशिल्पी कोईभी नहीं हो जता
तन्हाइयों की हैं बशर मजबूरियाँ बहुत
सफ़र-ए-हयात में कांटों से भरा रहगुज़र आता है
कहीं कोई दवा नहीं शिफ़ा नहीं
दिलों में गर्माहट बहुत है
जान में जान आ जाती है
हबीब की रक़ीबों से रब्त-ए-शानाशाई निकली
दश्त-ए-शनासाई में हमको दोस्ती बड़ी हरजाई मिली
दरबदर होकर घरकी बहुत याद आती है
सबने अपने-अपने देखे
सबक जमाने से सीखा था
सुख़न जो ख़ामोशी से अयाँ होता है
मां -बाप भी बंट जाते हैं
हुई नहीं नसीब शब-ए-नींद
सच और हक़ की सब बात करते हैं
गर्म अहसास भी सर्द हो गए
मेरी लाज है तेरे हाथ
उसकी बनाई तस्वीर अलग है
मुस्तक़बिल के अपने खुद ही खुदा होंगे हम
मुस्तक़बिल के अपने खुद ही खुदा होंगे हम
किस जन्म की रक़ाबत का बदला लिया
कच्चा धागा तोड़ दिया हमने
नींद औरों की उड़ाकर
हुदूदे-ग़म हम पार कर आए हैं सारे
हिन्द हिन्दी और हिन्दुस्तान
सैलाब लाने लगे हैं कभी बूंद को तरसाने लगे हैं
बैठे रह गए वो हाथ मलते रहे
सुख़न कहने से रह गया
तेरेसे भी बेहतर शख्सियत हैं
हौसलें बुलंद हैं
जिंन्दगी हमें कहाँ कहाँ ले गई
हरसूरत हरसू हरशय के हालात पर लिख
सवाल ही गलत किया जाए तो जवाब कोई क्या बताए
उम्रे-पीरी में अहद-ए-शबाब चाहते हो
उम्रे-पीरी में अहद-ए-शबाब चाहते हो
अखबारों में छप जाने से नाम नहीं होता
आंखें चुराने की ज़रूरत क्या है
जोरो-जुर्म राख हो जाएं
फ़रेब भरे हैं प्यार में
संस्मरण --खुली आंखों से देखा स्वप्र भी सच होते हैं
यारब हमको तेरीही हिफ़ाज़त है
ला-हासिल ही रहता है यादगार में
ज़िक्र तेरा सब सफ़्हात में
तीसरा हमें गवारा नहीं बशर
नसीब ने दिए हमें बेशुमार ग़म
खेलते नज़र आते नहीं बच्चे आजकल
नसीब हमको भी अहद-ए-फ़राग़त
दर्द जिगर में होता है
पूछते आना बशर चैनो-अमन के दाम
बर्फ़ पर घर बसाने लगे हैं
ख़ामोशी से बड़ा जवाब नहीं
कुछतो नसीब का भी होना चाहिए
हम सब इम्तिहान में हैं
मंज़िलें दूर नहीं हो जाया करतीं
कोई मुनव्वर नहीं मिलता
बशर की औक़ात क्या है
इरादों को मदद नहीं चाहिए तक़दीर की
रंगों में रवानी है
अच्छाई ने हमको बुराई से सिला दिया
तिरे शहर में क्या क्या नहीं होता
खुद से बशर बेगाना होता चला गया
भूलना भी चाहे तो भूल न पाये
बदनामी शोर मचाकर आती है
बदनामी बड़ा शोर मचाकर आती है
टिम होर्टिन याद आ एगा
खुदको खाली मत होने देना
जिंदगी को देखकर पसीना आया
लोग-बाग बदल गए आवाज़
सफ़रपर तो निकलना पडेगा
होगी इन्तेहा-ए-जहां आदमी के बग़ैर
मेरा संसार मुक़म्मल कर दे
तुमजो चाहोतो फ़ासले और बढा लो
कोशिश जीने की करनी चाहिए
तहरीर ए कलम नायाब हो
रिश्तों के मरने से पहले
अधूरा फ़साना याद है
होंठों पे तबस्सुम हो
कानों को हो गई है आदत सुनने की आवाज़ उनकी
अलग अपनी पहचान रखते हैं
खुदही बशर खुदके रहबर
आ गए मां-बाप दहेज में
मंजिल से फिरभी दूरी है
दर्द -ए -जिगर नाकाम न हो जाए
मसर्रतें बंट गईं खुशनसीबों में
रोना-धोना क्या काम आएगा
ख़्वाब से गुज़र गई रात अपनी
फिरसे निखर गई रात अपनी
मुतमईन हो जाना होगा आसान
"राम अवतरण"
अंतस् में जब राम विराजे 🙏
उम्र-भर के लिए सो जाएंगे
विश्वास के दीप जलाए हैं
*मुश्क़िलात से भरा होता है सफ़र*
*मुश्क़िलात से भरा होता है सफ़र*
गैरों और बेगानों पर भी ऐतिबार किया
उगते सूरज की सहर को देखें
सच को साबित हलाल करना
जिगर का टुकड़ा बिछड़ जाता है
संघर्ष
नुस्खे बे-हिसाब रखते हैं
जीने से सरोकार छोड़ दिया
तुमको कभी अनदेखा न करे
तुमसे ज्यादा नहीं है खास कोई
यौमे-जम्हूरियत मुबारक
खुद केलिए बचाकर अंधेरा रखा
जो हमें भूल जाते हैं
काफ़िले किसीके वास्ते रूकते नहीं है
पल पल गुजारा सुहाना याद आता है
मतपूछ मकाँ किधरगया मकीं किधर गए
चांद क्या लिखें महताब क्या लिखें
वफ़ा और यक़ीन एक ही खुदा में
मैं ही सैय्याद मैं ही निशाने
उम्र पक गई मग़र हम कच्चे रह गए
अच्छी क़ाफ़िया-पैमाई है
खूबियाँ औरों की देख "बशर"
प्यास क्या है तिश्नगी क्या है
मेरी शायरी मेरी जज़्बात
*नज़र-ए-'इनायत उसकी*
दिमाग से पैदल बेबात की बात करता है
सदका इल्मो -मालूमात का
देखा है हर जख़्म भरते हुए
ख़िताब-ए-बाबा-ए-उर्दू
राज -ए -दिल अपने खोलना नहीं
चाह तुम्हारी न होगी
जिंदा भी हैं के मरगए इतनी तो ख़बर रखो
ख़ामुशी पर सवाल खड़ा
रूठने से रिश्ते गहरे होते हैं
लोग अपनी ज़रूरतों को याद रखते हैं
मरतीं आ कर साहिल पर
शिद्दत इस क़दर दुआओं ने कर ली
वक़्त को आते-जाते साल न समझ
खुदा बचाए रुस्वाई के अज़ाब से
ताकीद परेशान करती है
मशक़्क़त से गुजरी है हयात अपनी
खुदसे खुद की ही जवाबदेही
गृहस्थी में फ़क़ीरी का मजा लीजिए
खुशियों का इंतज़ार तेरा
खुश रहें इन्तज़ार क्यूं करें
बे-सबब तकरार क्यूँ करें
संजीदगी अगर कहीं होती है
राब्तों में दम नहीं है
मछलियों को बहुत गुमान हुआ है
ताबे'दार बे-शु'ऊर निकला
अना दीये को रोशनाई की
किनारों को मिलाने चले हो
चांद सहर ए सराब में देखा
फ़ासलों का फ़ैसला आसान नहीं होता
हमने मान लिया कि यही सही है
वसूक़ ओ यक़ीन से फ़रेब किया
वसूक़ ओ यक़ीन से फ़रेब किया
वक़्त को मनाने में जमाने निकले
बेचैन रहती है रात हमारी
कैसा अजीब सा इस दुनिया का खेल
बुज़ुर्गियत फ़जूल मत करना
ज़िन्दगी नए नए रंग बदलती है
अना में रहे कम न हुए
तेरा लहू लहू तो मेरा लहू क्या है
इन्सान बेसबब परेशान रहता है
उम्रे-तमाम इंतज़ार करने को भी हम हैं तैयार
सरक न जाएं रिश्ते हिफ़ाज़त रखा करो
जर्द पत्ते समेटकर आग लगाने को
कहे अश्आर तमाम मग़र अपनेही शिफ़ा-ए-मर्ज़ पर
किनारों को मिलतेहुए नहीं देखा
एक ढूंढो हज़ार मिलते हैं
आसमान पाना चाहता है
मुंतज़िर दोनों तरफ़ अहबाब मुलाक़ात के
कहनेको अश्आर नहीं है
बुर्के पर नक़ाब लगाकर आया
मुक़म्मल कभी सपने हो न सके
ख़ामोशियों में शोर पुरज़ोर होता है
हौसला खुदही का काम आता है
दिल से दूरी थोड़ी हैं
फरिश्तों को सुना है पलटते हुए अपनी बात से
खुदही हमने खुदका तमाशा किया
जियेबग़ैर बसर हो जाएगी
छू कर देखूँ क्या आसमान!!
मैं फलक राग की रागिनी
जाने तू कहाँ है माँ
जवानी हमने रूठने मनाने में गुजारी है
जेबों में नहीं दिलों में संजोये जाते हैं
जेबों में नहीं दिलों में संजोये जाते हैं
शाम रहने दी ना सवेरा रहने दिया
तेरा ही रहने दिया ना मेरा ही रहने दिया
सूना है फ़लक महताब के बग़ैर
ना पैदा होते हुए पूछा
किसीने नहीं बसर करते हुए पूछा
किसीने नहीं बसर करते हुए पूछा
नहीं बसर करने के लिए किसीने पूछा
बाप औलाद से डरता है
तुम्हारा नाम बिगाड़ेंगे
"एक सौदा ऐसा भी..."
गिला अब कुछ भी नहीं
जो झुक गए तो कुछ नहीं
सोच तिरी ख़्याल तेरा
तुम्हारी परछाई दिखाई देती हो
चांद के ख़्वाब न देखा करो
चाहे भी कोई तो किस क़दर चाहे
अंधेरों का कोई मुंतज़िर नहीं होता
बच्चे अब बड़े हो गए
जीना हमको गवारा न हुआ
आंसू आंखों से बाहर नहीं आ पाते हैं
मेहनतकश नसीबों के मोहताज नहीं होते
आसमानों से बाते करने लगे हैं
मेरे सजदे की अधूरी ख्वाहिश...
फ़ासले और दूरियां
भीड़ है जिसमें सभी अकेले हैं
मरना जीने की आदत से कम नहीं
जफाओं के लिए मैं वफ़ा सोचूं
दुश्मनी सरेआम किया करो
तुमको मुबारक ये जहाँ
इन्सान तो आख़िर इन्सान होता है
फिर भी बचा रह जाता है ।
मैंने हिम्मत बहुत दिखाई है
इरादा अगर हम पर छोड़दो
जीहुजूरी का नाफरमान हूँ मैं
अपनी नजरों में गिरने का सबब न हो जाए
चेहरों की सिलवटों में हमने पढी हैं
अपने बैठेहैं अपनों से दूर
सपनों का महल बनाते हैं
वक़्त गुज़र जाता है
बनालेना उम्रेतमाम का तख़मीना
बड़ी बड़ी किताबों में
आज पुराना ख़त मिल गया...
ख़ुशगवार मंज़र देखा करो
मस'अला तो मसर्रतों का है
मतलब के रिश्ते टिकना मुश्क़िल
बीते वक़्त को रोता है
जख़्मे-जिगर सहलाने केलिए
ए वतन
ए वतन
मेरे वतन
जर्द पत्ते गिरा दिए डाली से
अहल-ए-करम देखते हैं
ख़ैरात-ए-चराग़ क्या दोगे
इधर से गुज़र जाने के बाद
अक्स हमारा ही दिखाई देगा
तिश्नालबी छुपानी नहीं आती
हमको तो इल्म ही नहीं
अक्लमंदी काबिलियत का नाम है
"बशर" खुद को धोका देता है
तुम्हारा येह जमाना नहीं है
परेशानियाँ हर-बात में
अंदेशा ए फुर्क़त का मलाल आता है
हर भरे दरख़्त अब कहाँ रहे
ख़ामोशियों से गुरेज़ कर
भुलाने के काबिल हैं
दिल से वतन निकला ही नहीं
साथ रहने को मकीं घर समझ लेते हैं
जंग मनों के भीतर चलती है
किताब पुरानी पढ़ो ख़्यालात नये मिलेंगे
जिंदा होने का अहसास हुआ
प्यारे गिरधर गोपाल नज़र आए
वतन से ऐसी बेवफ़ाई न थी
अपनों को अपना कहने से डर लगता है
जाहिलों को मज़हब का सहारा
सोने वालों की सहर होगी
अच्छे वालिद बन छागए थे
घरोंदे राब्तों के रेत पर
दवा से ज्यादा असर दुवा से हुआ
ना हम को कोई शिकायत है
न दिन चैन देगा न नींद चैन देगी
जाने वजूद हमारा कहाँ होगा
आजाद मुक़म्मल तौर से ख़ुश्बू-ए-चमन है
हबीब मेरे बेहद नाराज़ भी हैं
है कोई बशर फ़रिश्ता मग़र
जल्दबाजी कभी नहीं करते हुए देखा
सभी अकेले बेइंतिहा बेशुमार होते हैं
दूर खुद से भागता रहा आदमी
तरस गए हैं तेरे सुनने को मधु बैन
अवसर जो तेरे पास है
उनकी छवि मेरे मन में
जानवर आदमी से प्यार करता है
लोग जवानी में मर जाते हैं
भोली सूरत बुलाती है वापस घर हमको
तेरी अपनी चुस्ती से
धड़कने भी दिलमें धड़कनी चाहिए
यादों से बिछुड़ना ना आया
सफ़र मुक़म्मल कर गया सागरमें समाकर
इतना सा ही तो फ़र्क है
दुश्मन तुम्हारे अंदर बैठा है
डरने जैसा कुछ भी नहीं है
उनपर ऐतबार नहीं किया जा सकता
अपने आप पर ए'तिमाद ओ एहतराम की इब्तिदा करें!
अक्ल आती है ठोकर खाकर
फ़सादी के पास होता दीमाग आधा है
रुपय्या बचा कहाँ है
खोटे सिक्कों के जोर से
सच से परेशानी है
सब्र का फल मीठा होता है
दर्पण में मुख संसार में सुख
जो दिखाई दे वह सच हो, यह सच नहीं
ज़ीस्त है बशर जीकर जाएगी
उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं
मंहगी यहाँ जमीनें कमबख़्त हो गई
बीता वक़्त खरीद कर बताए
आते जाते रहेंगे लोग
अहसासात और जज़्बात यहाँ
तक्लीफ़ में परिवार साथ हो
हम में उनमें फ़र्क ही क्या
अपनों के ही सुख में अपना सुख देखा
खुदको खोना पड़ता है
'बशर'' ऐसा भी दर-ब-दर नहीं देखा
अपने हमसफ़र भी हम हैं
रिश्तों को संजीदगी से देखा होगा
दिल टूट जाने के बाद
बशर तू कहाँ फिदा है
बुज़ुर्ग सयाने गुज़र गए
जमीं के अंधेरे उजारे
मुस्कुराहट का क्या राज है
शराब हदें भूल जाती है
जितनी बड़ी जंग होती है
मुश्क़िल हालात में भी मुस्कुराते रहो
गर मन मज़बूत होगा तो
तेरे दिल से मेरे दिल 💞💞
हल ढूंढने मे मदद दो
बड़ी जंग अकेले में लड़ी जाती है
खुद को न बेगैरत रखो
उधार की है ये जिंदगी
बहुत जल्द दूर हो जाते हैं
बुरे वक़्त में लोगों के काम आता है
जफ़ाओं की हम कहेंगे
मां मेरी प्रेरणा
मिट्टी का मिट्टी में मिल जाना ना समझे
जी भरकर हमने जिया ही नहीं
डर क्या डरने से कम हो जाएगा
कांटों में गुल खिलता है
महरूम कर दिया दादू को पोते के दीदार से
नारी तुम कमजोर नहीं
जिस के पैरों में फटे बिवाई
क्या आखीर-ओ-तासीर से भी बचकर निकल सकते हो
सूरत से भी बढ़ कर होता है स्वावलंबन
मुद्दत हुई जिसे खुदसे मिले
बताए तो सही हुई क्या है ख़ता हमसे
राब्ते निभाते भी हैं
~ नाराज़गी मेरे महबूब की
राह-ए-सफ़र मिलने वाले रहबर नहीं हुआ करते
तेरा नाम लिख दिया ✍️
हमारे अगर बेटी नहीं होती
हिज्र-ओ-विसाल का सिलसिला रह गया
कौन है तेरा मेरे सिवा यहाँ पर
और फिर वो भी सो जाते हैं
अनसुनी सदाएं रह जाती हैं
वफ़ा करने वाला तन्हा क्यूँ है
फिर उन्हीं का ख़्वाब आएगा
बदहालियों में भी ख़ुशहाल है
गवारा नहीं ज्वाब मिरे
फ़ासला दरमियान में रहा
कुछ भी बदल सकते हैं
जीने केलिए जगह नहीं
बेटी के घर लाया गया है
बेहतर ख़ामोशी तेरी आज
हरबात जबानी पूछने लगे हैं
गैरों की कहानी पूछने लगे हैं
पीने वालों की कहानी सलामत
माहे रमजान की दिली मुबारकबाद
दिलों में घर चाहता हूँ
मसर्रतें हयात से ख़फा रहती हैं
अब्र बनके मानसपटल पे छा गई
हाथ कब तक मलते रहोगे
मेहनतकश 'ऐश-ओ-'इशरत केलिए रोता नहीं
पार्थ तुम्हें भी बनना होगा
हमने बच्चा बनकर रहना चाहा
मुक़म्मल कहीं कोई सपना
सेवा अपने मां-बाप की
काफिया पैमाईश के बग़ैर
ज़रूरतें कम सब्र रखें ज्यादा
हमने सबने ही खुदको मारा है
केशों से तुम कह दो-कविता
भीतर अपने तलाश कर
बन गए किस्से-कहानी अफ़्साने लोग
जरा भी नहीं मलाल करते हैं
इन्सान नहीं मिलता
मां - बाप के पास बैठ जाया करो
चाहे जैसे भी हों हालात
मुश्क़िलात में लोग कमाल कर गए
अकेला अब्र बेचारा कहाँ कहाँ बरसे
पीरी में सब साफ नज़र आता है
दुआसे बढ़कर दवा क्या है
रहे बैठे तिश्नगी लिए अरसा
सब्र सहने वाले की
खुदको नाशाद करता है
फकीरों ने ✨✨
तन्हाई की ख़ामोशी से गुफ़्तगू होती है
मरनेपे तुला होतो क्या करें
बशर तेरी कहानी इब्रतनाक है
नादानी से काम नहीं चलता मुहब्बत में
ए बहती हवाएं जरा मंज़िल का पता देती जाएं
आते कल का सपना देखा था
बाद-ए-आज कल भी होते हैं
इन्सान की रगों में खून काला बहने लगा है
जीना ना मरना अपने हाथ
मुकद्दर है 'बशर' का परेशाँ होना
आलिम सालिम फ़ाजिल का साथ है मंज़ूर
कोई अपनों से दूर न रहे
किरदार ऐसा हो कि याद रहे
इंतज़ार में हबीब के
मतलब निकल जाए तो कदर कौन करता है - sumit arya shayari - शायरी
बुराई में सियासत दिखाई देती है
वीर चरणों के स्पर्श से...
परिंदे के दिल से कफ़स निकालना है
तुम बन जाना मेरी होली
आईने से डरते हैं
इन्सानियत पर सबका अधिकार होता है
गैरों से ज्यादा अपनों के ग़म मिले
बेटा उसके लिए फ़रिश्ता है
तेरी नज़र पे है तू क्या देखता है मुझमें
आपको अपनी खूबियाँ मुबारक
वक़्त के घाव वक़्त के साथ खुद ही भर जाएंगे
जुबान अनपनी ख़ामोश रखनी पड़ी
अपना किसीको बनाने में
पहूँच कोई नहीं रहा है
थोड़ा-सा सुकूँ चाहिए
गुजिश्ता साल.... नज़्म
अर्थार्जन का सुखद संयोग
खुशियों को दरकिनार न कर
दिल की बातें दिमाग़ को नागवारा
कुदरत का शाहकार लिए फिरते है
विडंबना
मुकद्दर में नहीं गुफ़्तगू
भ्रष्टाचार ने बदल डाला
नींद को आने में देर हो जाती है
इन्तेहा भी भ्रम से हुई
हम फिर भी सलामत हैं
ख़ामोशी से हमें डर लगता है
दो शे'र ( चार मिसरे )
लोग अपने ऐब जिंदा रखते हैं
उलझने बढाना कौन चाहता है
न रही किसीसे उम्मीद
आईने में मिलने वाला है
बच निकला उसे रब मिला
क़दम सही उट्ठे इसका ए'तिमाद कर
ऊपर वाला सब देखता है
अकेले कैसे जिया जाता है
लफ़्ज़ों की भरमार किसी
हयात इक ख़ूबसूरत ख़्वाब है
फ़ितरत बदलती नहीं इन्सान की
मैं साहित्य हूं भारत का
जिंदा ख्वाहिशों से जिंदगी की कहानी है
तहरीर ए किताब ए हयात
हम हैं कि मानते नहीं
चरागों ने इक़रार किया
किस्सा मेरा उनको अफ़्साना जरासा लगा
वस्ल की उम्मीद बाक़ी है
अल्फ़ाज ना कर सके बयाँ
बशर किताबी बातें कहता है
ताउम्र करना पड़े पश्चाताप
बसर करने का तरीक़ा दे दे
हिंदुस्तान नज़र आता है
राब्तों से राब्तों का विश्वास मर रहा है
नज़ाकत न पूछ अल्फ़ाज़-ए-उर्दू की
रंग जाओ दिल के रंग में
रंग जाओ दिल के रंग में
मसर्रतों से ख़ौफ़ज़दा
हवाओं से जर्द पत्तों को इश्क़
चांद का नूर 🌙
पानी का नामोनिशान न होगा
ख़ुश्बू भी हो तो बात बने
हर कोई आम खाना चाहता है
सफ़र-ए-हयात-ए-मुस्त'आर
ज़हर पीना पड़ता है ग़म खाना पड़ता है
रातों की नींद गंवाई है
जीने केलिए तैयार रहो
हासिले-सुकूने-क़ल्ब
किरदार की सच्चाई लिख
दुनिया से कोई उम्मीद ही नहीं
रातों की नींद गंवाई है
सामने वाले का कद छोटा दिखता है
सवाल तहज़ीबो-तमद्दुन का है
सब से ज्यादा कीमती
वो लड़की नहीं है वो एक तितली है
शोख़ चंचल हवा दरिया की पानी लगती हो
बस दुआओं में मिला कोई हक़ नहीं आया
मेरे दिल में रहने वाले तुम दरार भी नहीं देते
उदास चेहरे की सभी बलाएँ उतार लूँ तेरी
किसी का होकर आने से,तेरा जाना लगा अच्छा
गिरना फिसलना खुद को उठाना पड़ता है
फिर रहे हैं दर बद्दर, तुम, दर दर से पूछ लो
जब रखवाला ही जुआरी था
लौटेगा यकीन है वो जिद्द पे अड़ा हो, बेशक
वो अब पूछते हैं हाल, कमाल ही तो है
रुको न तुम करते रहो सवालों का सिलसिला
मुझमें ही रह के मुझ से फासला भी कमाल का है
घर में एक ही खिड़की होती थी ब्यार आने की
नृत्य काल कर रहा,भुजाओं में दो सर लिये
मदमस्त चली पुरवाई है
अंधेरों से जुगनुओं की बात होती है
वसवसे और वहम में गुज़र गई
नादानी और अहम में गुज़र गई
किनारा ना किया कीजिए
जिंदगी मुसलसल रहगुज़र है
आसमां से आती है मौत कैसे
जिन्दा शख़्स को नहीं दफनाते
खुदको समझाने केलिए तैयार रहो
आदमी परेशान रहता है
कुछ तो वज़ह रही होगी
सुकून-ए-क़ल्ब असल सरमाया
कोई भी चीज खास नहीं है
खुद को भूला हूँ तेरी याद में
हमारी बेकदरी का है मलाल उनको
जीने केलिए मरना पड़त है
क़ीमत शय है ये एहसास
इंतज़ार-ए-हबीब ताक़यामत रहेगा © डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"
अब तो 'बशर' याद ही नहीं
ऐतिबार कोई एक तोड़कर जाता है
हिम्मत बुलंद है जहां
जिंदगी क्या चीज़ है मौत से इंसान डरता नहीं
किसीकी शाम -ए -तरब बनो
जीना सिखाकर ही दम लेगी
अक्ल-मंद बनकर जियें
ख़राब वक़्त में हमने अकेले ही दिन बिताए
दर्द में भी मुस्कराया करो
मुग़ालते में गुज़र गई
सभी दौलते-दर्द से मालामाल हैं
आख़िर डूबना है शबो-शाम होने पर
बेमिसाल है ये जात आदमी की
रहने दे तुझ को पास मेरे
"बशर" बड़ा मुख़्लिस था
जिन्दगी इम्तिहान लेती है
अपना बेगाना पहचान लेती है.
मोहब्बत का रास्ता 💫
लिख दे दो जून के निवाले
हुजूम दुश्मनों का हमारे अंदर है
भाईचारे से है हमारी हस्ती
दिल के काशाने में है
किरदार हमें हमारे कर्म से मिला है
दौलत से परखने लगे हैं
फ़ितरत काफिराना हमारी
बिछड़ते हैं फितरते-अना और सवाले नाक से
तू बना दे 💫
अहमक़ाना रास्ता छोड़ दो तो अच्छा
ऐसे रिश्ता-नाता तोड़दो तो अच्छा
प्यार हो तो हद-ओ-हदूद के पार हो
रिश्तों को बेघर कर जाएं
मिटा देती है तीरगी
लोग सुबह के अख़बार क्यूँ हैं
इंतज़ार की बातें महज़ किताबी हैं
कांटे न बिछाइये इस क़दर
बिन मर्जी राब्ते निभाए नहीं जाते
हुई शामे हयात सहर होते हुए
पलमें सदियां जीकर जाते हैं
बंदपड़े अपने घटके पट खोल
फिरसे बिछती बिसात हर मात के बाद
मुश्क़िल है जगह पाना लोगों के दिल में
भीतर बाहर एक जैसा हो
किसीके होकर भी देखो
किसी और केलिए रोकर भी देखो
राज-ए-दिल सदा बना रहे
जंग जीत सकते हो अपने किरदार से
अपने तेरे तुझको जगाने नहीं आए
मैं अश्क पे अश्क बहता रहा
हयात का आदमी अज़ीम किरदार होता है
तल्ख़ियाँ बढने से पहले
हाथों की लकीर बनाकर रखती है
मुझको मिला वो सिला किसीके पास नहीं मिला
मंज़िल ख़्वाब नज़र आने लगे
बीते हुए दिनों का लौटकर आना
आईने पे क्या गुज़री
माँ सरस्वती तुम्हें हमारा नमन
दुनियादारी को देख कर
सही सोच और सच्ची नीयत
ताना -बाना जीवन का उलझा ही रहा
यारों की महफ़िल में आया करो
जितनी सफाई देगा ज्यादा यहाँ
मुफ़लिस की बस्ती में चलकर दुआ करें
नश्वर सब ये संसार मान कर
शफ़्फ़ाफ़ हो क्या खाक दामन
दुआओं का भागीदार ज़रूर
नाशाद दिल फिरसे शाद हो जाएं
मज़हब की दीवारों से ऊपर
सिकंदर को हराते कलंदर नहीं देखा
उजालों की अहमियत घट नहीं जाती
खेलकर तीन पत्ती ताश
अब खुदको भी समय कुछ दान करो
नहीं पता सच की कैसे सफाई देते हैं
हिज़ाब नहीं करते मुलाक़ात करते वक़्त
हबीब मिरे हंसकर तो दिखाना
चर्चे 😍
मझधार में लाकर रख दिया
तन्हा भी नहीं रहने देतीं
हुआ मशहूर हयात में
बताएं क्या नुक़्स आपको मय के बशर
सोता ही नहीं है आदमी आठों पहर
जनता जनार्दन है बिखरी हुई
बेवफ़ा निकला हबीब हमारा
सही शख़्स ही मानता है
जमाने लगने लगे हैं सहर होने में
खौफ़ कितना मासूम परिंदों को
जोर आता है निभाने में
दिलमें उतरने वालोंको संभालकर रखिए
सच्चे अहबाब मिलना ख़ूबसूरत ईनाम है
शब -ए-ग़म बदनाम हो गई है
परिंदा कहीं भी जाए शामको वहीं लौट आएगा
ज्यादातर बेबात सोचते हैं
कुछ लोग मेरी पसंद के भी होंगे
मुकद्दर को बदलने की ख़्वाहिश रखते हैं
अपना घर तो अपना घर होता है
जिस नज़र से देखेंगे दुनिया वैसीही दिखाई देगी @ "बशर "
मेरा नाम नही 🥵
और कोई नहीं मेरा ही साया था
खुद के साये से भी हैं महरूम
आदमी बेचैन है सांसभर चैनो-अमन केलिए
हमतो अपनी गलतियों केलिए मश्हूर हैं
दाल में कहाँ कहाँ काला है
अपनी शेख़ी बघारने वाले लोग
नींद रात-भर आती नहीं है बशर
आरज़ू क्या रह जाएगी
हा मैं मजदूर बहुत मजबूर हूँ
बुरे को दोज़ख भी कम है
खुदको जाना बना कलंदर है
फ़कीरों की सोहबत में बादशाहत का अंदाज़
ज़माने ने जैसा समझा वैसा हुआ मैं
खुशी के पास कामयाबी की कमान है
इन्सान की क़ीमत कहाँ
सुना दोगे तो मिट जाते हैं
हरहाल में हिट जाते हैं
वक़्त ए तकलीफ़ नज़र आते हैं
ख़ुलूस-ए-वफ़ा दरकिनार हुई
मोहब्बत भी तार तार हुई
घरकी बातें बाहर बताना ठीक नहीं
इन्सान छोड़ेगा नहीं
मनसे फ़कीर होना बड़ी बात होती है
व्यापकता असीमित हो जाती है
शुक्रिया मेरी जिंदगी में आने केलिए
लोग सब पैदल जाएंगे
मुसीबत से बड़ी मकतबे-हयात नहीं होती
मांझी अनाड़ी दूर किनारा
लहरों को पार वो कर गया
तहरीर कहीं नज़र न आई
ख़राब ना किया करो मिज़ाज मिरा
दास्ताने-उल्फ़त मिरी
मुहासिबा-ए-सफ़र क्या कहें
कोई बेवफ़ा हो जाए
आजमाइश उसूल-ओ-ईमान वालों की ही होती है
धुआं 🔥
अपना कहने को जी चाहता है
जंगल जोगी का ठिकना है
जीने के लिए मरना पड़ता है
आंखों ने मेरी कोई सपना नहीं देखा
खुले आसमान में जीना चाहता हूँ
सच खड़ा अकेले में
औलाद मा-बाप से बड़ी नहीं हो सकती
बदल गया है जमाना हमारा
उम्मीद पर सारी दुनिया टिकी है
फ़कीर होना चाहता हूँ
सपने देखना ज़रूरी है
फ़ितरत में होती है
इन्सान की औक़ात उसकी गैरत में होती है
रक़ीब भो नहीं पर वो मिरा हबीब भी नहीं
मफ़रूर कहे चाहे कोई मग़रूर कहे
सारा खेल लकीरों का है यार
भीतर से कितने रीते हैं हम
परेशान कर गया 💔🥀
लाशें उठाके जनाज़ा चली
इन्सान बस खुश रहा करे
समझौता मत करो अपने वक़ार से
ज़रूरतें बदल जाती हैं इन्सान की
सिलवटें फिर संवार रहा हूँ
उम्मीदों की कश्तियां
रहगुज़र को सफ़र कहते हैं
जिंदगी ऐसे गुजारी जाती है
हम फिर रोज़मर्रा में खो जाएंगे
सुगम सरल डगर कहते हैं
हे अवधपति हे रघुनन्दन
जिंदगी हमको जीकर चली गई
मुश्क़िल है घरको घर करना
लाख आवाजें लगाया करना
खुदको धोखा देना आसान है
यादें जीने की वज़ह बन जाती हैं
तन्हा रहने की आदत डाल लीजिए
अल्फ़ाज ऐसे न निकल पड़े कि वापस लेने पड़े
हासिल सुकूने-क़ल्ब बहुत जहं होता है
रहा नहीं वक़्त रौशनाई का
दिलके काशाने में हमारे सनम हैं
बहुत कुछ खोना पड़ता है
बूढा हो गया होता अगर मां का सर पर हाथ नहीं होता
अभी जिंदा मेरा बचपन है
भीगी हुई वोह रातें सारी
ज़मीन पर चल कर देखो
बंदे हम काम आने वाले हैं
किरदार अमर कर जाते हैं
इन्सान है ना-फ़रमाँबरदार
आज किसी का दिल टूटा है
मुझको आंखों में बसाने वाले
जमाने गुज़र जाते हैं तकरार में
अलग अलग ठिकाने हुए
ख़ामुशी ने सब ज़ाहिर कर दिया
जोशो-ख़रोश पाने में नहीं
दिल के काशाने में खुदा रखते हैं
गुम किताब चश्मे-पुरनम में
लम्हे जो जी लिए अपने नाम चाहिए
मां की बदौलत हम हैं
दर-हक़ीक़त ये है कि मां की बदौलत हम हैं
कहोतो किसे मां कहो
ख़्वाहिशों और हसरतों में रह गई कमियां
खुशियाँ अपने पास नहीं आती
अपने दिल की आवाज सुनी
मैं कुछभी नहीं जानता
मुझे नहीं फ़िक्र कोई हाले-दिल बताने में
जिंदगी बंद द्वार खोलने को तैयार है
अंदेशा न था साजिशों के राज पर
तैयार सुख-दुख में इक आवाज़ पर
बोलूं तो, बीते हुए काल-खंड से सीखा हैं.......
मिलती नहीं खुशी होती है
खुशियों की दौलत आपस में मिलती हैं
है शिफ़ा मग़र मां की दुआ में
पता लगा कि लापता निकले
लहू पसीना बनकर रोमरोम से निकल आता है
बशर हैं सब अग़्यार यहाँ
माँ के हाथ का साया है
माँ से बड़ी नेमत नहीं
उनका क्या करें जो दिल में समाए हैं
ज़िन्दगी को ठहरा हुआ देखा है
उम्र हुई तमाम दर्दे -दिल को समझाने में
उसके नहले पे दहले हैं
जब तलक "बशर" बच्चा था
सब्र अपना भी बाकमाल
कोई किसी केलिए ज़रूरी नहीं हो सकता
ईनाम ओ सजा का पता नहीं
जनाजे में नहीं आने वाला
सुकूँ मयस्सर नहीं होता
अभ्यागत"....तुम आए जब से, हो उदासीन.....
मौसमों के मिज़ाज बदलने का मजा लिया कीजिए
बेमानी होने लगता है बारबार सुना गया भी
फ़क़ीरी तक पीछा करती हैं
सफ़र ज़िन्दगी की आसान हो गई होती
बर्बाद ज्यादा हुआ बचा कम है
मनके पिंजरे से हिरासत न गई
*भीतर बहोत उथल-पुथल मचाते हैं
शुक्र है सिर्फ़ महसूस करता है
मालिक-वालिक कोई नहीं
हसरतों के पगडंडियों पर बढ़ने लगा हूं.....
जीवन" ओ तू जरा साथ तो चल.......
इस जमाने से विदा लेकर ......
नया ज़माना नया दौर देखा जाए
वोभी जाने जो हमसे कहा न जाए
रोशन चेहरा तेरा ☺️
किरदार अमर होगा गर नियत जिंदा रहेगी
आप क्यूँ हैं उनके बिना नाखुश
भूल गया है नाम मिरा
"बशर" फिरभी अकेला था
मुश्क़िल है उसकी पहचान
विदेशी शहर
मन मेरा ऐसे ही बरबस बिहंस गया........
ज़रूरी है जीते-जी चेहरों पे मुस्कान लाना
तुमने रुख़सार पर अपने ये जो तिल लगा रक्खा है
बाक़ी हैं कुछ किस्से अभी अनकहे
बचाने के प्रयत्न हज़ार करते हैं
ख़ामोशियों से मुहब्बत का गुमाँ कर बैठे
सुकून ए चैन ओ अमन बनाया
बर्बादियों की ओर जाती हैं
अदाकारी करने वाले को
ग़रीब इत्ती सी दुआ करे
सुकून-ए-क़ल्ब किसीको यहाँ नहीं मिलता
मनों के मिलने से घर बनता है
आख़िर ज़हर तो पीना पड़ता है
कब्रें पड़ीं हैं खाली लाशों से भर कर
हंसना मुस्कुराना मयस्सर न हो
मिलने हमसे अहबाब पुराने ले आ
रास्वता क़्त पर नहीं दिखाया
ख़्वाहिशों के रस्तों से उफ़क तक जाना है
भँवर से निकलना मुश्क़िल होता है
अपने घर में ही रहता है
ख़्याल हमारे पुराने निकले तो
डूबने केलिए इक जिंदगी चाहिए
तुम कितने दूध के धुले हो मैं जानता हूँ
अमीर लोग मदीना देखते हैं
ख़ुदकुशी का हौसला कहाँ से लाएं
सपने का प्रतिबिंब हृदय पर अब-तक छाया......
शायद मसाइल का कोई हल भी हो
घरतो अपना घर है फिरभी मग़र बुलाता है
मिले भी नहीं और याद उन्हीं को किया
अपना ना रहे साथ तो याद आती है
समझदार सभी इन्सान हो जाए
दिल से लोग क्यूँ नहीं निकल पाते
जिंदगी गुजारा करनी पड़े
जायका चखने में कोई हर्ज नहीं है
तुम्हेभी कोई ग़म नही हमें भी कोई ग़म नहीं
भला किया अच्छा किया उसका सिला क्या
पता उसको भी है अपनी जात का
गैरौं से कौन नाराज़ होना चाहता है
अहबाब की पसंद का हो ख़्याल जहां कमाल वहाँ है
मतलब-परस्त लोगों का रिश्ता बेमानी होता है
किनारों से ही खिसकती है ज़मीन अक़्सर
रास्ते भी हैरान रह गए
सितम लोगों ने कलसे ज्यादा आज किया
जज़्बातों की उम्र हुआ करती है
हुनर ये मिलता है उसी को
बुढापा हमारा मज़लूम होगा
ख़ामोशी से बड़ी कोई बात नहीं
फ़जूल हुआ स्कूल जाना
सुकून-ए-क़ल्ब को पा लेना
मोहक उनका दीदार ज्यादा हुआ
ज़िन्दगी बेज़ारी बेचैनी से लबरेज है
अपनी हैसियत ओ औक़ात याद रख
है पार करना भवसागर तैर कर
नेकी क़बूल हो गई है खुदा के घर
धोखे खाने का आदि जो हो गया है
नहीं कोई ग़म फ़कीर बन जाने का
ये तो दिलों का सौदा है बशर
तेरे बग़ैर जीकर मैंने क्या मरना है
ऐ मंज़िल मिरी रुक जा जरा
हम उनकी यादों में खोए थे
सुब्ह भी दोपहर लगती है
धर्म जात और परिवार की परवाह है
रूतबा उसकी पहचान नज़र आता है
तुझे लड़ना भी खुद है
सामने आकर खड़े हो गए ग़म ए हयात
अच्छा करूं यह मेरा धर्म है
बार -बार बुरा करे वो बेशर्म है
उदासियां उन्हें नज़र नहीं आतीं कभी
अपनी भी किसीको ख़बर हो
साथ अपनी कब्र लिए फिरते हैं
यादें हैं हर वक़्त पास थोड़ी हैं
इश्क़-ए-हिज्र ही अब मिरी इबादत हो गई है
आदमी को अपना मेयार नहीं खोना चाहिए
उसी का आस्तां ज़रूरी था क्या
इक ज़माना अपने आप में हर शख़्स है
बे-सबब बे-हिसाब रश्क है
यकसाँ खुद भगवान नहीं होता
आवाज़ को ख़ामोशी से समझा जा सकता है
चाहूं हे रघुनंदन सबरी की गति........
रोना तमाम उम्र का तेरा बेकार हो जाएगा
मंज़िले-मक़्सूद कुछ नहीं है खाक के सिवा
मनसे अंधा अपने अंदर क्या देखे
येह सब सपने लगते हैं
दर्द ए दिल मिला कि अश्क ए चश्म मिला ग़म ए हयात मुझे तुमसे मेरे हमदम मिला
सब भूल जाएंगे तुम कितने अच्छे थे
न दिल लगाकार बात की
बर्बादी का हमारे ग़म न करें
व्यर्थ न जाने पाएं तौला हो के मण
आख़री सांस तक काम आएगी
सबके क़िस्मत में होता नही हंसाने वाला
लफ़्ज हमारे अनसुने ही रह गए
चाहे जिस घर जा बैठे
मज़हब की क़ुरबानी जायज़ हो सकती है
दोस्तों से हारा हो
चेहरे पे लगाते हैं चेहरे
चेहरे पे लगाते हैं चेहरे
अच्छे बुरे हालात होते है
पढ़े नहीं जाते हैं लिखे हुए अल्फ़ाज
फिसलने वालों का पता तो चला
सब्ज शजर की छांव में
रिश्तों का रंग घुलने में वक़्त लगता है
आप पर हमें ऐतबार है
बड़े खुश थे जब बच्चे थे
सारा शहर उसके जनाजे में निकला इक वो न निकला जनाज़ा जिसके तक़ाज़े में निकला @"बशर"सारा का सारा शहर उसके जनाजे में निकला
खुदको व इस क़दर भी ना गिराओ
कर्मों का ही सिला मिला है मुझे
तमाशाई सभी बवाल के हैं
पहुंचता कहींभी नहीं है
मनहूस जगह है जमाने केलिए
वही दूर हैं जो सबसे क़रीब हैं
रब पर भी भरोसा नहीं होगा
मन में होना ज़रूरी है
रातोंरात कोई मुल्क़ हिंदुस्तान नहीं हो जाता
भीतर बाहर जमाल ही जमाल है
ख़ूबसूरत रास्ता रहता है
आग बरस रही है आसमान से
उम्रभर हमको काम आईं माँ की दुआएं
जून की उसके नसीब में नहीं है
जीतने वाला साबित हुआ
ज्यादा से भी सब्र नहीं
मदहोशी जैसे हो गए हैं
सीनेसे निकलकर किधर जाएगा
घरबार कोई क्या देखे
क़ुदरत हमारी तस्वीर ए हयात तराशती रहती है
इन्सां संभल जाता है तूफ़ान-ए-हवादिश से निकल जाने के बाद
तीरगी को सुब्ह ओ सहर कोई कैसे कहे
भूल कर रहा हूँ मैं
पलक पांवड़े बिछाए रखिए
ख़्वाब था कि आंख खुलते ही बिखर गया
कलभी अपना है गर आज अपना है
गांव के सपनों से भी गए
हरकोई हरकिसी से बेगाना है
नाम केलिए बदनाम हो जाता है
रूह फिर लौट आती है
जमाले-ख़्याले-मुसबत कमाल रखते हैं
जज़्बात सारे बेनक़ाब होगए
हम खुदही कहीं रहे नहीं साथ अपने
जीत के क़रीब होता है
इसी का नाम नसीब होता है
माशूक रब नज़र आने लगे
अब इन दिनों को क्योंकर गुजारें
हयाते-मुस्त'आर हमारी बिन तुम्हारे न गुज़रेगी
तकब्बुर से हासिल कुछ नहीं होता
ख़ामोशियों से मिले घाव भी जल्द नहीं भरते
दुआ में हम क्या मांगें
जो डूबन चाहो रस माधुरी........
मैं ख़ुद डॉक्टर हूं" - यमुना
मन के पट खोल दिया करो
दिल लगाने पर भी नहीं लगता बशर तिरे शहर में
दिल लगाने पर भी नहीं लगता बशर तिरे शहर में
हिज्र-ओ-वस्ल का सिलसिला रहता है
बूंद बनकर सागर में समा जाना
जीने का बहाना चाहिए
रोटी भी तमाशा दिखाई देती है
उम्र ए तमाम हुई इंतज़ार करके
तेरे बिना जी नहीं पाएंगे हम
कर्मों का असर किरदार पर दिखता है
चलने वालोंको ही मंज़िल मिला करती है
वालिद का अज़ीम साया नसीब होता
इन्सान से जोरोजब्र नहीं
हमतो तसव्वुर की तरह खुदही मिट जायेंगे
कब्र किसीकी कभी होती कहीं आबाद नहीं
यादों की कश्ती ढूंढर ही किनारा
सफ़र-ए-हयात सबकी एक ही
अपनों से जख़्म खाये हैं
चांद ही की ईद हो जाती है
चांद ही की ईद हो जाती है
तेरे बाद 💔
आने जाने के दरमियाँ ज़ालिम ज़माना पड़ता है
खुद ही खर्च हो जाओगे
पता ही नहीं जिंदा हैं कि मर गए हम
वक़्तही कहां लगता है
छोटे दिल वाले बड़ी बातों की फ़िक्र नहीं किया करते। -बशर
जिंदगी तिरे लिए हमने मरके देख लिया
हर रहगुज़र-ए-सफ़र से गुज़र के देख लिया
वो ऊंचाइयां बुलंदियां किस कामकी
खून पसीना बहाना पड़ता है
बदले हुओं से मिलने को तैयार नहीं हैं हम
जमाने को बदलने का कारण होते हैं
मुमकिन नहीं मुलाक़ात है
अकेलपन की राहों अकेला मुसाफिर मै
अपने अंदर तो कोई-कोई कलंदर था
बेकाबू कर 🙏
खुदगर्ज लोग सिखा जाते हैं
पता ही नहीं कौन हबीब है कौन रक़ीब है
दुबारा कौन कमबख़्त चाहता है
खाली मत बैठो घर पर
तुम में और मुझ में कौन है बेहतर?
चाहत नहीं रहती कुछ कहने की
चाहत ही मिट जाती है जग में रहने की
वहीं पे खड़े थे हम
वहीं पे खड़े थे हम
वाह वाह और सिर्फ़ वाह वाह
रिश्तों को निभाने में जियें कि मरें
लाजरख मेरे हिस्से का रिज़्क़ तू ही देकर
नासमझी और नादानी से
आराम की जिंदगी बसर करोगे
राब्ता अपने रब से रखिए
मुर्शिद मौला पीर फ़कीर न कोई
अंजाम दोस्ती के फ़ना का न होता
राब्ते रह गए मतलब के वास्ते
अभिव्यक्ति” के शाश्वत गरिमा से....
दोज़ख से कम नहीं हुआ करता है
हालाते-हयात आदमी को ना मज़बूर करे
जात क्या पूछते हो कलंदर की
हम उसकी ही फ़रियाद करते हैं
अपने हासिल को ही खोता गया
खुद से निकलकर नहीं देखा
किसीको सहना अलग बात है
किसीसे मिलकर नहीं देखा
मां की दुआ का असर
कानों में घोला गया ज़हर ला-'इलाज है
जितना ये सफ़र मेरा है उतनाही तेरा भी है
हम अपना विश्वास लिखते हैं
हम सदा रवैय्या अपना नर्म रखते हैं
चाहने वाले ही शामिल होते हैं
बातचीत क्यों नहीं करते
ग़मख़्वार होना चाहिए
पूरी होनी चाहिए ग़रीब की हसरत
चाहत की सबर नहीं होती
नज़रिया हर कहीं बदल सकते हैं
बेरंग अपने 🥹
क्यों न खुद को तुम में बुन लूं मैं
Tumhara aana abhi baaki hai
कुछ पल 🥹
चार दीवारें रोती होगी,
रिश्ते निभाना अलग बात है
मिथ्या जगमें खो जाते हैं
खुशियाँ भी फिर मर जाता हैं
कुछ कदमों की ही हैं बात........
ना डरा था और ना ही डरूंगा
होता है स्वाभिमान
बुरे वक़्त से क्यूं घबराता है
जीत नहीं सकता है किसी केलिए
एक फूल के खिलखिलाने से
इश्क़ 💔🥀
बे-वक़्त बिछड़ने वाले
दिनरैन जगकर गर बिताए तो कोई कैसे बिताए! © 'बशर' بشر.
साफ़गोई वाले शख़्स बड़े दिलफेंक होते हैं
फुटपाथ मखमली बिस्तर हो जाता है
कभी हालत हमारी ऐसी न थी
दोस्ताना कृष्ण सुदामा जैसा किसी को आया नहीं
सबसे बड़ा सरमाया होता है
चमके सितारे नसीब के
मुक़म्मल मुराद जिंदगी की
जोशो-जज़्बे का हुनर होता है @
नाखुदा डुबो नहीं सकता
भरोसा ही शिफ़ा है किरदार का
लोग अपना रंग दिखाने लगे हैं
तेरे फैसले पे मेरा कोई सवाल नहीं
खेल-ए-सफ़र-ए-हयात
सिफ़त हज़ार अवगुणों पर भारी है
अक़्सर दिल दुखाते हैं
नागवार वहम तिरा सरासर नाहक है
बिनआग के ही आग जला देते हैं
कहने केलिए तैयार रहो
बाद मरने के क्यूं ज़माना मेरा दीवाना हुआ
भगवान भी प्रतीक्षा में घर के बाहर खड़े हैं
खुदसे किनारा होकर भगवान को प्यारा हो जाता है.
ख़बर नहीं के वो मौत की क़तार में है
दीनो-ईमान वाले यहाँपर अक़्सर नाखुश रहते हैं
फरेबियों का यहाँ इंतज़ार करते हैं
हमारे हुनर का ना कहीं पर नामोनिशान था
वक़्त मुझे बताए जा रहा है
तू भी मेरी कमज़ोरी है
तू नदिया की धार मैं किनारा सा रहता हूँ
छोटेसे नामकी शुरुआत मुश्क़िल से होती है
एक साथ सब जलें राजा रंक फ़कीर
आसमानों तक साथ चलने की दुवा करने में लगे हैं
अपने इरादे कमज़ोर ना होने दो
मेरे सबअपने मुक़म्मल हों
जूता ज्यादा साफ़ है
सारी क़ायनात बेकार लगती है
आंखें ही बेच देंगे तुमको ऐनक देने का वादा करके
कमियाँ निकाल रहे हैं हमारे किरदार में
नाकाम मोहब्बत 🥹
अहसासों की नई नई मज़ार होती हैं
बर्ताव और रवैय्या औलाद का
सुकून-ए-क़ल्ब मयकदे में आकर मिला
किसीकी जीत-हार ही नहीं
अपना पीछा करते हुए अरसा हुआ
दिले-मुज़्तर थाम लिया
पांवोंतले ज़मीन होती है
ना तो मुमकिन जुबाँ से कद -ए-औरत की सना होती है.
फटे उस नोट की तह में/विमल शर्मा 'विमल'
एक मर्तबा इन्सान बनकर तो बताओ
कौन से हुनर थे मुझमें
भैंस के आगे बीन बजाने का क्या फ़ायदा
मिट्टी डालकर किया दफ़न
मुक़म्मल किसीके इश्क़ का ख्वाब नहीं
देकर नहीं कहता किसी से
बस गया है एक उसी का नाम
बस जरा-सा रुक जाएं
कोई भी जुस्तजू बाक़ी न रहे
कभीतो ग़रीब के घर बरस जाया करो
नसीहतों पर अम्ल किया करो
चल अब दूकान अपनी बंद कर
वापस घर लौट कर भी जाना है
ख़ूबसूरत अनमोल और खास होते हैं वो लोग
खुदको आस्मान पर नहीं रखा हमने
हमको अपने घर लौटना भी होगा
हम मुंतज़िर ही बैठे रहे
हाथों की लकीरों में लिखा होता नहीं मुक़द्दर
मुक़द्दर हर-पल लिखा जाता है
ग़लती देखने वाले की भी होती है
खुद क्यूँ खुद केलिए बुरा सोचो
मां के जख़्म भरें दवा पुरानी डालकर
ना तो नाकाबिल औलाद हराम का खा खाकर शर्माती है! @"बशर"
औक़ात और गैरत का दर्जा क्या है
लिखा हुआ बदल नहीं सकते
मनसे हारकर कभी नहीं जीता जा सकता
जेरो-ज़र पर नज़र रखता है @"बशर"
अपनों की फ़िक्र से निकलें तो हाल अपना देखें © 'बशर' bashar بشر
आस्माँ में आशियाँ नहीं होता
राजी हमसे कोई था ही नहीं
थक गए हैं आराम करते करते
किसीका होना चाहता हूँ
बिन मुहब्बत गुजारा नहीं है
जज़्बात भी अपने पास रखा करो
वक़्त भी बदलेगा और ये दिन-रात भी बदलेंगे
मसाइल सारे लोगों को लड़ाने केलिए
शीरीं किसीकी हुई नहीं फ़रहाद के बग़ैर
मैं चैन की नींद सो रहा था
कांटोभरा रहगुज़र नहीं देखा
उनको याद रखना वहम नहीं था
साजन ने मन तरसाया
दफ़्तर दफ़्तर आना-जाना माथा थाम लेना
झूठ नहीं बोलूं तो गर्मी से झुलस जाऊं
साया अखबारों में नाम हुआ करते थे
जिन्हें भुलाने की कोशिश में
अच्छा चाल-चलन दिल में समा जाता है
क़ाबिलियत पर ग्रहण लग जाता है
मुश्क़िल काम में दिलचस्पी कमाल होती है
कोशिश करना ही मायने रखता है
घर के दीवारो- दर के दायरे में कैद है
साथ तन्हाई का ही बेहतर है
साथ तन्हाई का ही बेहतर है
हरगिज़ नहीं बशर बेखुदी की रहगुज़र होता
अपने-आप से जमा-खर्चे के हिसाब मांगे
मन नहीं भरता 🥰
नादानी में जिंदगी तन्हा होती है
उसके आने के बाद बरस
दुश्मनों की चढ़ छाती पर-देशभक्ति कविता
जिस्मों से इश्क़ 🥀
रैनबसेरे के मेहमानों की बात क्या करें
किसीके काम आएंगे तुने बनाए मकां ये सदन
कितने लोग वो देखते हैं जो उन से छुपाया जा रहा है! @"बशर"
बातों से तक़दीर नहीं बदला करती
चराग़ फिर भी जला करते हैं
हौसला हो तो आसमान कम पड़ जाता है
खुद में गुम भी रहा करो
संघर्ष और सफ़लता का सफर
रक़ीब ही आते रहे क़रीब हमारे
अपने वालदैन की वज़ह से हैं
न हबीब का कोई पयाम है
उस से क्या जुदा होना
आजादी गाथा लिख दे,- पहाड़ी हिन्दी शौर्य कविता
अपनी कमियों पर भी गौर करना
तू मिला हैं 🥹
शुक्रिया आपका 🥰🥰
बिरबल कुमार निषाद रचनाकार छत्तीसगढ़
शायद, अब संभलना चाहता हूं मैं ......................
मिसाल 🥀🥀
दूसरों की जान बचाने के लिए 🥹🥀
भाई बहन का प्यार सलामत
अनकही दर्द की दास्तान
क्या बहिश्त में भी भूखे रहना पड़ता है
सिवाय अच्छाइयों के बाक़ी कुछ बचा ही नहीं
बिखर जाने दो सपने बीती रात के
मैं जल्द ही समझदार हो गया
ज़िन्दगी जीने का नाम है कोई सजा नहीं
कविता
परिणीता
जिंदगी तिरा एहतराम किया
कल दिन अच्छे भी आएंगे
हम सब अपने अपने सारे ऐब निकालें
बुराई मिटाने से मतलब है
मेरे दिल में पीर न होगी
लबों से बयां नहीं होती
मुसाफ़िरखाना संसार है
उम्र-ए-तमाम शब-ए-तन्हाई है
सीना चीरकर उसको कैसे दिखाई जाए
लबोंको बंद ज्यादा रखो कम खोलो
तुम हों 💖
मरने से पहले कोई कार ए नुमाया तो कर जाते
कार ए नुमाया तो कर जाते
हमभी मर जाएंगे वो भी मर जाएंगे
हमाराअपना जहां कोई तो हो
हमको न हुआ नसीब साया-ए-सुकूने-क़ल्ब
बिनमांगे हरशय हुई मयस्सर
चांद 🌙
इत्तेफ़ाक और कहीं होता है
वही झूठ बोला जिसका झूठ कभी झूठ नही लगा हमको
तू दीवानी हैं 🥰🦋
मिले नहीं बुराई किसी सूरत जमाने से
कलम की ताक़त क्या है
उम्मीद से प्यार मर भी जाता है
कर्म के सज्दे में सर करने वाले
बच्चों की मासूमियत में हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद नुमाया करो
तक़दीर से 🦋🙌
जी-तोड़ मेहनत मशक़्क़त करता है
दिल में नहीं ठहर पाएगा
दिल में नहीं ठहर पाएगा
फासला सहा नहीं जाता
इन दूरियों का येह फासला सहा नहीं जाता
जुनूँ नहीं खोना चाहिए
जीने का हौसला जिंदा होना चाहिए
सबके सब बे-असर हुए
दम निकला हैं 🥀🥹
उम्र तमाम हुई मयखानों में नादानी से
पता ही नहीं चला कब आगया बुढापा जवानी से
कुछ गीत- कविताये हमारी,
ख़ुश रहना बेहद आसान और सरल है
दिल पर कोई गहरी बात लग जाती है
पता किसीकी औक़ात लग जाती है
हमारे बग़ैर भी आबाद थी दुनिया
कबूतर बाहर निकालना
मां से ढेरों बातें होती थी
वो घड़ी हमारे लिए किस मतलब की
गलेतक पीने के बाद
खुदा से भी नहीं डरता है
जीने लगा तो बशर मर गया
रहगुज़र ही में बशर गुज़र गया
अपनी ज़रूरत तक अपनाते हैं
सुकून-ए-क़ल्ब से रहेंगे हम
भरोसा करने की आदत नहीं छूटी
तालीम की ज़रुरत ही है!
जिंदगी के सफ़र में बशर वापस जाना है
नर्म लहजों में बात करें
हर हालात में चलते जाना
वक़्त का काम है जवाब बताना
पराये होकर भी अपने लगते हैं
हैनहीं रिहाई की रज़ा तेरी
ख़ुदा का शुक्र अदा करते हैं
मसरूफ़ियां क़ीमती हैं
सुकूनै-क़ल्ब केलिए नींद ज़रूरी
जननी
अगर हम मुस्कुराएंगे तो
मुस्कुराना औरभी ज्यादा मुश्क़िल है
बग़ैर गलतियों के तो कोई तजुर्बा ही नहीं
मख़मूर तबीअ'त लोगोंकी ऐसीही आदत होती है
निगाहे-मुहब्बत से ज़ालिम ने इशारा न किया होता
इल्मो-अदब से पुर-नूर शख़्स किस क़दर बदनीयत था
माँ की ममता,प्यार पिता का, बेटी बाबुल छोड़ चली।
बग़ैर तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के दी गई तालीम
मसर्रतों के चुरा लो अवसर थोड़े बहुत
गहराए इंतज़ार की शिद्दत
येह सितंबर की गर्मी
रखो माहौल का पूरा ध्यान
जफ़ा को वफ़ा बताई नहीं जाती हमसे
वक़्त ही नहीं मिलता
तुझे पहचानू मैं 🥹
देश के रास्तों पर शूल
आस्मां का सातवां मीज़ान हिन्दी
हमको ही है नहीं ख़बर हमारी
सूरज भी उफ़क पर उतर आता है
बंदा तक़दीर के भरोसे ही रहता है
जीना बड़ा दुश्वार और नासाज़ कर दिया
जीतीहुई बाजी कोभी हमें हार जाना आ गया
क़तरा-भर भी नहीं जान पाए हम
लानत है औलाद की आलमगीरी में
लानत ओ ज़लालत है औलाद की शौहरत और अमीरी पे
राह पे आस टिकने दे
न जाने किस तरह के ख़यालों में खोते जा रहे हैं
उड़ी हुई है नींद हमारी वस्ल-ओ-मुलाक़ात में
गाँव की गलियों से निकलकर कोईदरवेश आया @"बशर"
न पनपे भेदभाव का नासूर
शर्मसे सरझुके हमारा बेसबब सरझुके अगर किसीका
सबब बेकली और बेचैनी का
भली अपनी सब्र और समाई
आंखों में बड़े - बड़े सपने रखते हैं
बिगड़ी बात बन जाती है
कुछ हादसात भी ज़रूरी हैं
अदाकारी हमसे दिखाई नहीं जाती
भूलकर भी अपना घर ना छोडना
उड़ने की हिम्मत चाहिए
तुझ बिन दुनिया वीरान लिखते हैं
हयात ए डवाँ-डोल का मीज़ान लिखते हैं
मीर सा नहीं काबिले-बिल-क़स्द ओ कामिल हुआ
चिंतन मनन वांछित से आधा हुआ है
घर में रह कर घर ढूंढता रहता है
तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
ये ज़िन्दगी के रेले
यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
मां-बाप केलिए बेटोंसे बढ़ कर रही हैं बेटियाँ
इश्क़ हमारा 😇✌️
जगमगाता है अक़्सर घर बेटियों वाला
कोशिश की आस काम आती है
अक्ल अपने पास ज्यादा समझते हैं
'अक़्ल अपने पास ज्यादा समझते हैं
बचपन अक़्सर याद आता है
बचपन अक़्सर बहुत याद आता है
तेरे अहसास के मयकदे जाते हैं
जीना ही छोड़ दे 'बशर' ग़म-ए - रंज - ओ - मलाल में
जीनाही छोड़दे बशर ग़मे-रंजो-मलाल में
शाम क्या रुके प्रभात क्या रुके
गर्द ओ गुबार-ओ-गर्द बाक़ी है
बदल डाली अपनी तक़दीर
दिलजलों की कानाफ़ूसी और सरगोशियां खा जाती है
खाली हाथों ही आना पड़ता है
शामोसहर गरीब के घर आम होती है
आईने को ज़रूरत नहीहै आईना साबित करने की
ठहरे नहीं दिन सुनहरे रुकी नहीं सुहानी रात किसीकी @"बशर" بشر
काबे में भी वही है काशी में भी वही है
लोगों के दिलों में जगह बनाकर
रक़ीबों की दोस्ती में दम नहीं होता
गुरु एक याचना है मेरी
गृह आभारी रहेगा तेरा
औक़ात होना ज़रूरी है
"बशर" खुद फिर रोता है
प्यारा जहां में हिंदुस्ताँ हमारा है
अपनी खुदीमें ही मैं अपना कारवाँ होता जा रहा हूँ आलमी यौम ए बुज़ुर्गियत मुबारक @ "बशर" بشر
जब सच अपनी सफाई देने लगेगा
राम की शक्ति-पूजा
ठोकरें खाता है उतनी ही ज्यादा अक्ल आती है
अंग्रेजों को ही नहीं अंग्रेजियत को भो निकालना चाहते थे
नया रिश्वतखोर आएगा
साये में उसके कभी बैठा नहीं कोई बशर
तौर-तरीके तर्ज़ेअमल उस्लूब-ए-वफ़ा-ए-वतन हम नहीं समझे
वफ़ा-ए-मुहब्बत ना समझ लेना
तहज़ीबो-तमद्दुन सारी रख
रेगज़ारों की हमने भी खाक छानी है
मुझको मुझमें रहने ही नहीं दिया आख़िरी तक
किसी और दरगाह पर जा कर करें दुआ
बिगड़ी क़िस्मत संवारी है
अपने आपसे भी रहता है नाराज़ आदमी
आदमी जिंदा कहाँ है आज आदमी
मंज़िल भी दूर है और वक़्त बहोत कम
उस्ताद-ओ-मोअल्लिम हमारे मां-बाप के बाद है
तिश्नगी बुझती नहीं सामने समंदर है
अपना हमदर्द समझते हैं
अक़्सर परेशान रहा करते हैं
मशक़्क़त इन्सान की
रंजीदा हर शख़्स के सूरते-हाल पर संजीदा हो जाना हरदम उनका
क्या अबकभी कोई न बसेगा सूनीपड़ी जमींपर
मुहब्बत का हक़दार नहीं मिलता
अधूरा ख़्वाब किसीका पूरा नहीं होता
हर जख़्म का शिफ़ा नहीं होता
अपने अंदर सैलाब समेटे बहता होगा
धरती का मिलन गगन से होना चाहिए
आज में गुज़रा हुआ कल ढूंढते हो
मलामतें बड़े-बड़ों को बेपर्दा बेनक़ाब कर देती हैं
खा ले हवा दो दिन इस फ़ानी संसार की
मुफ़लिस का सुकून तो देखो सड़कों पर जाकर
आदमी आवारा और मक्कार
सिरे चढाना अलग बात है
मंहगा पड़ता है उल्टी नाव खेना
किनारे पर खड़े- खड़े दरिया पार नहीं होता
कमाने के लिए घर से निकलना पड़ता है
वाबस्ता होता नहीं किसीभी मज़हब से ख़ुदा
कोई पराया कोई अपना नहीं रहता
दिलचस्पी बाक़ी कोई मुझ को रही नहीं हयात में
हरशय फ़ानी है इस क़ायनात में
लाईलाज वबा से बेमौत ही मर गए
राजे-दिल हमने बहोत छुपाया
लबों पर नहीं तबस्सुम की लकीर
काबू अपनी जुबाँ पर हर-सूरत रखिए
खाना-पीना सब हराम हो गया
बाहर की दुनिया सारी खारा समंदर है
मौत न जाने कहाँ मर गई
जान चली जाती है निभाते निभाते
तन्हा और दोस्तों संग वक़्त बिताने में फ़र्क होता है
किये जा रहे थे बसर कर के ख़सारा
गांव आजभी है दिल में मेरे बसा हुआ
मसर्रतें जीत के दीदार की
बिन चले मुसाफ़िर की पहचान क्या
दरिया के संग बहते हुए किनारें हैं हम
उसकी कलम का लोहा मानने लगे बड़े बड़े शायर
बबूलके पेड़ बोकर बशर आम कहाँसे खाएगा
तुरबत में आराम फर्माना अच्छा
गैर लाज़िम को भूल जाओ
बच्चा बातें सारी आज समझता है
दावते-अदावत क्यूं करें हम
बज़्म-ए-सुख़न सूनी कर गया
भीतर दिखाई भी देती है सुनाई भी देती है
भीतर दिखाई भी देती है सुनाई भी देती है
वक़्त अपना बेकार जाया कर दिया
बे-खुदी में खुदसे ही हो गए बेगाने
थोड़ी दौलत और जुड़ जाए
दर्दे-दिल ने बड़ा आघात भी सहा है
क़िस्मत पर किसीका नाम नहीं लिखा होता
अपने पराये का पता लग जाता है
ऐसा करके दिखाएं कि निंदक शर्मिन्दा हो जाएं @"बशर"
हज़ार किन्तु लगाये हैं इक हां के साथ
फोन पर बात होगई मान लियाकि मुलाक़ात होगई
मुस्तक़िल नहीं किसीका मुस्तक़बिल
उम्मीद-ए-वस्ले-यार भी
तराना-ए-हयात हमने गा लिया
फ़ानी दुनिया में रखा क्या है
सुनने वाले को सब्र- ओ- क़रार आ जाए
सफ़र में किसीका कहाँ घर "बशर"
जाहिल ही रहे जज़्बातों के फ़लसफ़े पढ़ने में
फूल झड़ना तो दूर पत्थर से बरसते हैं
लाजवाब लगता हूं 🔥🔥
सुकरात ज़हर नहीं पीता तो मर जाता
अपनी रातें काली करनी पड़ती हैं
हम सब कैसे होगए इक दूजे से जुदा
किसी बशर पर यक़ीन नहीं रहा
बंद कलियाँ खिलती हैं
अब जी चाहता हैं मेरा 🤐🤐
सुकूनदायक ज़हन नहीं बनाते
धनत्रयोदशी का मिले वरदान बुलन्द हो नाम आपका
उनकी हैं मुंतज़िर कबसे हमारी आंखें
मुहब्बत के चराग़ जलाते चलें! @ डॉ.एन.आर. कस्वाँ"बशर"
भीतर बाहर उजियारा बिखर जाएगा
घर आंगन के हर इक कोने कोने महका दिए
काम केलिए निकल जाया करो
आशिक़ी अक़्ल के बोझतले दम तोड़ जाती है
आते हैं कैसे जाते है कैसे चांद सूरज और दिन-रात
सुकून और सब्र की डगर
पहचान अपनी बनानी पड़ती है
बेसबब जिंदगी बीती जाती है
अहबाब की रक़ाबतें पहचानने का इल्म कहाँ से लाईए
ज़ौक़-ए-परवाज़ केलिए खुला आसमान है
मज़हब ही में मज़हब हो गया है
रंज-ओ-ग़म क्यूँ करें हम
फ़साना-ए-सफ़र अपना क्यूं बेदम लिखें
शराबी से शराबी कहे चल कोई शराबी ढूंढें
भोली सूरत के चेहरों पे मासूमियत ऐसी है
रुस्वाई की किस को फ़िक्र है
रहबर की नहीं ज़रूरत उनको
उजाला हो भी नहीं सकता दीपक में अगर आग नहीं
डूबेंगे सभी साहिल पर आकर
मिरा ही साया निकला मैं जिसके पीछे चला
दूसरे भी पसंद करने लगेंगे
असामान्य काम को अंजाम देने के लिए तैयार करती है
शाद मिज़ाज मा-बाप में निशानी विषाद की
आबो-हवा हमने दुनिया-भर की देखी
हमेशा शिकायतों के समाधान ढूंढते रहें
बेवज़ह लोगों केलिए दुनियामें कोईजगह नहीं है
हमारे लिए दुआ मांगने वाले ही हमारे क़ातिल निकले
सुकूंन से बसर करना हमारे बस में है
आ गया मौसम बहार का
इन्सान कभी वालदैन से बड़ा हो नहीं सकता
पहले किसी ज़माने में इन्सान था
अपनी क़ाबिलियत पर भरोसा किया करो
जो सुनी न गई वो बातें उसने सुनी
हरजगह गुड़ी पड़वा हो ज़रूरी नहीं
आपके नाप के नहीं रहे हैं
हम इंसान भी न हुए वो खुदा हो गए
उससे न जा सकाहै आजतलक कहीं कोई बचकर
खुश रहोगे तो दुश्वारियां मिट जाएंगी
क़ामयाबी केलिए तुम्हारा यक़ीन ज़रूरी है
ज़माना क्या कम है रक़ाबत केलिए
मरहम-शिफ़ा इसका क्या कराए कोई
फ़साना तौहीने-वफ़ा का सुनाना क्या बाक़ी रह गया
कोई किसीका आसक्त नहीं होता
सारी दुनिया को भुला देते
कोई गैर क्या समझेगा
मसर्रतें मेरी तलाश में भटकती रहीं
ख़ुलूस से दुश्मन को भी अपना बनाया जा सकता है
कुछ वक़्त केवल अपने साथ बिताना चाहिऐ
माटी से शुरू माटी पर ख़त्म बात हयात की
दौराने-हिज्रे-ए-यार की बेपनाह याद आती है
सुकूने-क़ल्ब हवा हुए के इतने ग़रीब हुए
शक्ल ओ सूरत उधार की ली हुई है
मुमकिन नहीं बिन चले मंज़िल पाना
मु'आफी मांगने में मत शरमाओ
मोहतरमा 🤩
ख़ुद-दारी को अपना ईमान समझता है
हसरतें कहीं जाती नहीं हैं
रास्ते निकल जाते हैं
भीड़ में खोने की बजाय अकेले चलने का हुनर रखो
मुझ से मुझ तक का फासला ना मुझसे तय हुआ
मायूसियां उदासियां छाई इस क़दर नहीं होती
अपनी हदमें इंसान मग़र अहद होना चाहिए
शर्बत ए सुकूँ भीतर है बाहर खारा समंदर है
रंग ला रही है मेहनत इन्सान की
आपके अलावा आपके साथ कोई नहीं
मै भी किसीको याद आना चाहता हूँ
किसीको याद आना चाहता हूँ
गुमाँ ओ ग़ुरूर मत कर बशर
आप मुक़म्मल दुनिया हो अपने घर केलिए
फ़जूल की उम्मीदमें अपनाही तमाशा क्यूंकरें हम
आईना सदा हक़ीक़त अयाँ करता है
अमीरों की न हमें सोहबत चाहिए
मसर्रतों का गुल खिला नहीं
अक़्ल के अंधों को कुछ नहीं दिखाई देता है
सपनों से दूर रहता हूँ
हम जीतकर भी हार जाते हैं
अजूबा यहाँ पर नहीं 'बशर' कोई इकलौते हैं
दोस्त हमेशा दोस्ती निभाने के फ़र्ज़ के लिए होने चाहिए
वोह तबीब ओ हबीब तेरे हर मर्ज की दवा जानता है
बीता मानव जनम बेकार
अहबाब भी कम नहीं बदले
अपना ही तमाशा फिर क्यूँ बनाएं हम
अपना ही तमाशा क्यूँ बनाएं हम
दुनिया सारी हमारी आनी-जानी लगती है
माटी के पुतले को बनाने वाला कूज़ा-गर स्वयं भगवान है
चंद रोज की मेहमान है
वो जान मिरी हयात मिरा जहान थी
मुफ़लिस की सल्तनत में धनदौलत आसपास नहीं आती
तीरगी को उजालों के हवाले कर दो
सिर्फ़ दुआएं काम आएँगी
बेज़ारी में कितना ही वक़्त गुजारा है
इस जहाँसे आगे जहाँ औरभी है
मेरे नुक़सान से तुझको नफा क्या है
जुदाई से हरसूरत वस्ले-यार बेहतर है
मुफ़लिसी से ही रहती है कुर्बत ग़रीब की
ज्यादा देर तक टिका नहीं सुरूर किसीका बशर
क्या मर्द अपने प्यार केलिए मर सकता है
इन्सान क्यूँ इतना परेशान रहता है
कहीं पहूँच नहीं पाता है
जीना सियासत की बिसात है तो है
होती नहीं खुद ही से खुदकी मुलाक़ात
ना शोहरत पाने का गुमान
प्यार में हम हर हद से गुज़र जाएंगे
जा ही रहा है उसे भूल जाइए और जाने दीजिए
ये शेरो-सुख़न उसे बुलाने केलिए है
जगना पड़ताहै सुब्ह फिरसे उड़ने केलिए
मरनेपे पता लगताहै क्या फ़र्क पड़ता है
शिफ़ा मिरी कर या रब
कमाल के जां- ओ- जिगर रखते हैं
ऐतबार हमारा हम पर हो
ज़िंदगी को हांकना पड़ेगा उसके हालपर
डूबने के डरसे कश्ति में सवार नहीं होता
खुद को भी जरा बदल सकते हो
गुज़र गए मीलके पत्थर मरहले मकाम राहे-सफ़र
दाख़िल घर में ठंडक लेकर दिसम्बर हुआ
ठंडा हरेक मंज़र हुआ
मुसीबतें खुशियों पर तारी रहती हैं
किरायेदार उस के मकान में है
गैरों से उम्मीद का दिन देखना पड़े
तूफ़ान जिसने देखा वो नाख़ुदा लहरों से हारा
आईने के समने सबको खुदका दीदार होगा
इजाज़त नहीं किसीको तौहीन की
रंजोग़म का नदीम बनकर जीना हमें मंज़ूर नहीं
खुद केलिए सच्चा रहने वाला दूसरों केलिए झूठा नहीं हो सकता
याद आते हैं सिर्फ़ भुलाने केलिए
हमारी उनसे वस्लो-मुलाक़ात ही दवा है
पता ही नहीं लगने देते इस्तेमाल करते हैं के चाहते हैं
खुदसे मिलनाभी उतनाही ज़रूरी है
दिल की अनसुनी करकेअक़्ल का निकला दिवाला
कहीं और कुछ और हो जाएगा
हमें इंतज़ार है इकत्तीस दिसम्बर आने की
खुशीकैसी कुछ पाने से गमकैसा कुछ खोने से
हरबार हरजगह एकजैसे रहते नहीं हैं लोग
बच्चों की ज़िम्मेदारी है
मुस्कुराना छूट जाता है
फ़रियाद बाक़ी रहे जाती है
हरगिज़ किसीसे कम नहीं
तुमसे जो प्यार कर बैठे हैं 😍
जिंदगी में जिंदगी से न हुई मुलाक़ात
तस्लीम करनाही मुश्क़िल है
वो देखने की कोशिश नहीं की जो उससे छुपाया गया है
बेहतर मुस्तक़बिल केलिए
सदाओं में है ख़ामोशी
सदाओं में है ख़ामोशी
बचपन कहीं कभी किसीका वापस नहीं लौटा
जो हमारे ख़्यालों में है हमारी तक़दीर में नहीं
कल था न आज है 'बशर' ये ज़माना आपका
तेरा भगवान राजी है
खाते-पीते उम्मीद-ए-दिलासा क्यूँ करें हम
ज़िंदगी गुज़रतीभी नहीं किसीके बिना
सजने संवरने की उनको नौबत ही नहीं आती है
सजने संवरने की उनको नौबत ही नहीं आती है
हम तपती रेतपर ही बैठेहुए देखते रह गए
ख़ून-ए-जिगर चाहिए फ़न केलिए
हुनर महज़ लफ़्ज़ों का नाकाफ़ी है
वो ना आने पर अड़ी हैं
हमको मालूम है जात-ओ-औक़ात हमारी
झूठ के पांव नहीं होते मग़र चलता खूब है
रक़ीब दूसरों के घर की रौशनाई से जलता खूब है
बनीहुई है हालत हमारी कंगाल की
वो समझते हैं कि दुनिया बपौती है उनकी
तन को निखारने से क्या होगा
नहीं है मसला दाना-पानी दो जून का
मु'आफ़ी मांग लेना ही तहज़ीब की निशानी नहीं होती
मनोरथ जिनके कमज़ोर होते हैं
सोच और कर्म से हासिल की जाती है
उसके चाहे बग़ैर कहींपर पत्ता नहीं हिल सकता
ध्यान सब पर रहता है बड़े सरकार का
ज़िम्मेदार है आदमी खुद अपने हाल का
अदावतों पर उतारू हो रहे हैं
वाना निकल पड़ा आगके दरिया की जानिब
उम्र गुज़रगई मनको बहलाने में
हमारी भी चाह की कोई राह निकले
सुनहरी हरशाम रुपहली हरसहर देखते हैं
बुरे का ख़्याल गुजर गया
अपने तुम्हारे कितने अपने हैं
हम किसीकी फ़ितरत को नहीं बदल पाएंगे
ख़ामुशी मेरी उड़ाकर रखदेगी नींद तुम्हारी रातों में
विसाल-ए-हक़ीक़त से "बशर" फ़रेब से तुम हिज्र करो
इन्सां ने अपनी ज़मीं और घर बदला है
जनवरी आएगी तो माहे दिसम्बर जाएगा
आदमी के भेस में मिलते शैतान यहाँ हैं
जानेवाले साल तुझे विदाई का पयाम आख़री
तेरी अदाएं 💕
मुफ़लिस का कुछ हाल बदले
क्या उम्मत का हाल बदल गया
अपने खुदके ज़मीर से ठुकराए हुए लोग
जिसके हाथमें जो था उसने दिया उछाल
मरने से ज्यादा ज़िंदगी सताती है
एक वज़ह ने मज़बूर कर दिया रुक जाने केलिए
साबित करो कि तुम हमसे नाराज़ हो
मुझे प्यार आता है तो बेशुमार आता है
कहीं भटक न जाएं हमारे क़दम
सारी क़ायनात की तस्वीर बदल जाएगी खुद बदलो तुम्हारी तक़दीर बदल जाएगी सुकून -ए-क़ल्ब अपना कायम रखो बशर बाहरके रंजो-ग़म की तासीर बदल जाएगी
जमानेभर के अमीरों का पीर हो गया
बांटनेसे और बढेंगी मसर्रतें कम न बांटा करो
इक कसक सी हयात में रह जाती है
बहाना है इबादत
जिंदगीसे भागकर आगे निकलने की न होड़कर
नजरों से समझाकर देखेंगे ©
मर मर कर जीना सरासर बेमानी है
हर किसीको मौसमे-बहार ख़ुशनुमा मिले
सब्र और शुक्र कीजिए
पतंग हौसले की "बशर" रख सदा परवाज़ पर
गांव खो दिया शहर के हो न सके
बाप-बेटे से बढ़कर दादू-पोते का प्यार
झूठ बन जाता वज़ह तकरार का
मिलें कैसे दो किनारे
हम लौटकर नहीं आएंगे
झूठी शानो -शौकत की भूलभुलैया में खोकर रह जाएंगे
जिंदगी तुझसे क्या गिला करें
हम नहीं दिखा रहे होते हैं अक़्सर वो हम होते हैं
अपनी कोई ख़्वाहिश नहीं
अपने दांत भी जीभ को काट देते हैं
हरदिन करिश्मा नहीं होता
दुश्मन के वार से पहले होशियार हो जाओ
तुम्हारी दुनिया से निकलकर ही चला गया
गांवके होकर अगर रहे होते
सब शौक़ ही मरने लगे हैं
एक निहायत अच्छा इंसान है
प्यार का मिलन
चालाकचतुर बावलागेला आदमी
अपनी अहमियत बनाए रखिए
इन्सान का इम्तिहान हालात लेते हैं
चांद को महताब क्या देंगे
परवरिश में ऐहतियात भी ज़रूरी है
आसान नहीं दिलों का खेल यारों
मौसम के मिज़ाज बदल रहे हैं
उजाले उनको सताने लगे हैं
किरदार रहे जिंदा बेशक मर जाएं हम
वक़्त को बुरा बताएंगे
किसी केलिए धड़कना भी ज़रूरी है
सनम 💓
तहज़ीब-ओ-तमद्दुन माननेवालों का शुक्रिया
बच्चे आजकल कब किसीको सजदा करते है
प्यार आया हैं 💓
तेरी सोच तिरे ख़्याल बेलिबास बे-हिजाब आए
ऐब ओ हुनर का पता नहीं चलता
अपने ही दगा दे जाते हैं
किन्नर – एक अनकहा सच
वस्लो-गुफ़्तगू से करें दूरियाँ ये कम
जीवन तेरा बशर बस इक सफ़र लगता है
ज़ायका मीर-ओ-ग़ालिब के फ़न का
मेरा भी संसार यही
लोग दिल वाले नहीं हैं
बोझ खाली जेबका इस क़दर भारी होता है
वक़्त बुरा लगना अब शुरू हो गया
इन्सान ग़लत रस्तेपर चल पड़ता है अक़्सर
इन्सान को इन्सान से मिलाये तालीम
आपकी हयात को आपसे मुहब्बत हो जाएगी
हयात मौका देती हैकि आप खुदको नया जन्म दे पायें
छोटी-सी है मुसाफ़िरत इन्सान की
चैन-ओ-अमन किस भाव में मिला
उसी जगह के होकर रह जाते हैं
अपना हो के न हो पल आने वाला
इन्सान सच्चा बिगड़ रहा है
बादल कभी टिकसका है आस्मानों में
फैसले लोग ही लेते हैं कायर की हयात के
अश्आर बनते रहें बेहतर से बेहतर
बनगया ग़मकी वो दवा मुझमें
हमको हमारा खुदा मिल गया है
मर गए पहचान बनाने में
किरदार जिंदा रहता है
दोस्ती सिर्फ़ मसरूफ ओ मुबतिल से करता हूँ
पाने की खुशी ना कुछ खोने की ही फिकर
इश्क़ में फरहाद को है सब क़बूल
अकेला पुरू ही काफ़ी है सिकंदर को हराने केलिए
किसीका इन्कार थोड़ा इसरार मांगता है
मरा अंदाज
विजय पताका हम लहराएंगे
कहानी
मुझे सुसाइड नहीं करना था
पिता "नसमझ हूँ मगर प्यार समझता हूँ"
बरसात की लास्ट लोकल (भाग - 1)
बरसात की लास्ट लोकल (भाग - 2)
बरसात की लास्ट लोकल (अंतिम भाग)
चिट्टी चुड़ैल (भाग 1)
चिट्टी चुड़ैल (भाग-2 अंतिम भाग)
'जिएंगे शान से.. मरेगें शान से'
कहानी
रुकी हुई ज़िंदगी भाग -१
रुकी हुई ज़िंदगी भाग-२
रुकी हुई ज़िंदगी भाग-३
दिल की बात शब्दो के साथ #बारिश वाला प्यार
पेट यूं ही नहीं भरता
पेट यूं ही नहीं भरता अंतिम भाग
बस नंबर 703 (भाग 1)
बस नंबर 703 (अंतिम भाग)
"एक बूंद प्यार की बरसात" (भाग-1)
"एक बूंद प्यार की बरसात" (भाग-2)
"एक बूंद प्यार की बरसात" (भाग-3अंतिम)
"समय की रेत पर पलता प्रेम"
पीतांबर बालम
प्रेम की बूँदे भाग 1
प्रेम की बूँदे भाग 2
कन्या पूजन (पहला भाग)
कन्या पूजन दूसरा भाग
कन्या पूजन तीसरा भाग
कन्या पूजन( चौथा भाग)
कन्या पूजन( पांचवा भाग)
कन्या पूजन( छटा और आखिरी भाग)
यह आजकल की छोरियां (दूसरा और आखिरी भाग)
बोलते हुए ख़्वाब (पार्ट-1)
"चरित्रहीनता"
"एक अधुरा सपना" (भाग- प्रथम)
"एक अधूरा सपना" (अंतिम-भाग)
दोहरे मापदंड
रस्सी जल गई पर बल नहीं गया
परी और टूटू की दोस्ती
कोरोना की कहानी दादी माँ की ज़ुबानी
तितलियां औ वितलियाँ...
लेखन और गुरु चेला संवाद
पाप और पुण्य
अनजान चेहरे
बेलजियम की चॉक्लेट...
तू तो पैदा ही मनहूस हुई थी
लाल सफेद बस एंड द लास्ट सीट
साइड इफेक्ट
लालाजी की दुकान (मोक्स या मास्क)
"बाबा यहाँ ना छोड़ो मुझे..अपने साथ ले चलो।
प्रथम ग्रासे मूषक पातः (भाग-1)
प्रथम ग्रासे मूषक पातः (भाग-2)
प्रथम ग्रासे मूषक पात: (अंतिम भाग-3)
सारे पुरुष एक से नहीं
पगली
हिंदी दिवस-हिंदी का महत्व
अकेली लड़की मौका.. या जिम्मेदारी..
गृहस्थ आश्रम (लघुकथा)
मातृभाषा
सौतन ( फॉर वैथ)
हां मुझे बहुत डर लगता है..
शीर्षक- बरसात की एक रात
*शीर्षक- नाच न जाने आँगन टेढ़ा*
फर्क मिटाने की तैयारी
छोरी भी छोरा ते कम नहीं
अहमियत रिश्तों की डोर
Lockdown ki pops story
समय
विद्वान और विद्यावान
काश!रावण जिंदा होता
माँ की सीख
बोए पेड़ बबुल के आम कहाँ से पाए
द स्टोरी ऑफ माई थर्ड बर्थ पार्ट १
सागर जैसी आंखों वाली
मीरा समर्पण... एक निष्ठुर से प्रेम
द स्टोरी ऑफ माई थर्ड बर्थ पार्ट 2
बेटे बेटियां उधार के
आखिर क्यूँ ? कब तक ?
मुनिया का जवाब नहीं
लोकल ट्रेन के डिब्बे के अनुभव
भगवान ने मिलाई कुंडली
प्यार से बढ़कर कुछ नहीं
किस्सा ए अंधविश्वास हास्य स्पेशल
क्यूँ बुलाते चाय पर ?
जिन्दगी की डायरी के पन्ने
नामुमकिन कुछ भी नहीं
हिन्दी में बिंदी का महत्व
आओ अपने गौरवशाली इतिहास को जाने
महंगी भूल
नामुमकिन कुछ भी नहीं
" वो नीला स्वेटर "
" वो तिराहा "
" किलकारी "
नामुमकिन कुछ भी नहीं
नामुमकिन कुछ भी नहीं
नामुमकिन कुछ भी नहीं
बता, कौन सी कहानी सुनेगा
वह ज़माना (यह 2080 की बात है)
भारत की सबसे लंबी दीवार
एक और भारतीय वीरांगना
भीड़ में कुछ ऐसे भी
अब मायके नहीं जाऊँगी
मिट्टी से तकदीर संवारी
सुनहरी यादों का सफर
क्योंकि लड़के रोते नहीं
मास्क वाली रजिया दर्जी
वीर बाबूराव पुलेश्वर शेडमाके
सपनों की दीवार
उजाला
पैसे पेड़ पर नहीं उगते
यूके ०८ डी २०४२ :- एक अनसुलझा रहस्य
#इकरार शीर्षक : अपने अपने दायरे
हमारा गौरवशाली इतिहास
शक्ति रूपेण संस्थिता
बन्धन पवित्र प्यार का
किलकारी
संकल्प
हरे हरे नोट
वह वृक्ष
समाज के दिखावटी मुखौटे
कारवां गुजर गया
नारी में समाई हां माँ
बसंती सपने
अहम सबूत
अहम सबूत
हमारी साइकिल
महल
इस घर में मां की ममता बसी है...
चूक
मन के भाव
संकल्प
एहसासों की तस्वीर
सुन्दर सपना
नृत्यांगना
सिंदूरी शाम ... समापन अंक
समर्पण
ब्यूटी विथ ब्रेन
काजल
प्रेम-पत्र
Indian हर जगह rock करते हैं।
बेटीयों की बलि कब तक?????
सौतेली माँ
लाँग कोट
मां की हँसी
मेरे साजन हैं उस पार
मां शब्द की महिमा
मां की स्मृतियाँ
माँ की ममता
माई की कत्थई साड़ी
वह खत....!!
लौटते कदम
कम्बल
पिता की सीख
भूली बिसरी यादें
एहसास
दरकते रिश्ते
धरोहर
"नारी के सोलह श्रींगार "
उम्मीदों का बोझ
संवेदनशून्य दुनिया
आ घर लौट चलें...
होली के रंग
सुनहरी मनु
जिम्मेदारी
विस्थापन
क्या बताऊँ
स्वार्थी रिश्ते
चाँद छुट्टी पर चला गया
खिड़की
मां से ही मायका
अन्धविश्वास
अनाथ
डायरी में रखे मोरपंख
#"फर्ज"
कईएक पहलू जीवन के.....!!
स्टैटस- एक और लौकडाउन *
दोस्ती
गुब्बारे वाला बच्चा
अंतर्द्वंद
काकी
बूढ़ा आत्मसम्मान
महादरबार
टिप टिप बरसे पानी
भूलक्कड़ परी
पहले गुस्सा फिर प्यार
"बियर-पार्टी"
मुझमें संस्कार है पर आप मैं नहीं???
अनोखा दशहरा
हस्तिनापुर की कहानी
ब्रह्म नाद ऊं
पत्नी की चालाकी
अंतर
नकारा
नकारा
लोकडाउन के वीर भाग -1
लोकडाउन के वीर भाग -2
अभी नहीं तो कभी नहीं
अभी नहीं तो कभी नहीं
:महामारी से मुक्त होने हेतु ईश्वर को पत्र
:महामारी से मुक्त होने हेतु ईश्वर को पत्र
दोराहे पर खडी़ जिँदगी
#गो करोना गो
सच्ची तस्वीर
चिरकुमारी ... कल्याणी राए 💐
चिरकुमारी ... कल्याणी राए 💐
हम होंगे कामयाब
चिरकुमारी ... कल्याणी राए 💐
कच्चे रास्ते (साप्ताहिक धारावाहिक)
चिरकुमारी ... कल्याणी राए 💐
चिरकुमारी ... कल्याणी राए 💐💐
चिरकुमारी ... कल्याणी राए 💐
कच्चे रास्ते - भाग १ (साप्ताहिक धारावाहिक)
हार जीत
जुड़वाँ फूल
जिंदगी की मुस्कान 💐💐
कच्चे रास्ते - (भाग २) साप्ताहिक धारावाहिक
काश बुद्ध सा कुछ करता
कच्चे रास्ते (भाग - ३) साप्ताहिक धारावाहिक
शिवा और उसका जादुई जाम्ब नगर
कच्चे रास्ते (भाग ४) साप्ताहिक धारावाहिक
"आशा की किरण"
दुआ
छोटु चाय वाला
कच्चे रास्ते (भाग ५) साप्ताहिक धारावाहिक
वैलेंटाइन डे स्पेशल अवरोध 💐💐
कड़ी धूप में घना साया 💐💐
कड़ी धूप में घना साया 💐💐
"समय के काले बिंदु "
"लक्ष्मी एक अनोखा उपहार "
" बादलों से घिरा आसमान "
कच्चे रास्ते (भाग ६) साप्ताहिक धारावाहिक
गजानन के यादों का शहर 💐💐
कच्चे रास्ते (भाग ७) साप्ताहिक धारावाहिक
" रैम्बो बन गया रामादीन "
" एक कप कौफी और तुम"
पराई होती हैं बेटियां
" तुम्ही से शुरू तुम्ही पर खत्म"
मोहताज नहीं होती कला
"इन्द्रधनुष के रँग "💐💐
कच्चे रास्ते (भाग ८) साप्ताहिक धारावाहिक
" मिट गई दूरियां "💐💐
" महज बता रही हूँ "💐💐
कच्चे रास्ते (भाग ९) साप्ताहिक धारावाहिक
" छोटी-छोटी खुशी "💐💐
" नन्ही मिनी की दुनिया " 💐💐
" मिनी की ईको फ्रेंडली होली " 💐💐
" अभी देर नहीं हुई है " 💐💐
" संध्या का उजाला " 💐💐
"बरसात की वो रात "💐💐
कच्चे रास्ते (भाग १०) साप्ताहिक धारावाहिक
नयी जिन्दगी
" बरसता सावन-मचलता मन "💐💐
" कृष्ण दीवानी ताज बीबी " 💐💐
कच्चे रास्ते (भाग ११ ) साप्ताहिक धारावाहिक
"हिप-हिप हुर्रे " 💐💐
"मैं गलत तो नहीं "💐💐
" वक्त के अनुसार " 💐💐
कच्चे रास्ते (भाग १२ ) साप्ताहिक धारावाहिक
" नाऊ वी आर फ्रेंड " 💐💐
" राह अपनी-अपनी " 💐💐
" अच्छे रास्ते का चयन " 💐💐
कच्चे रास्ते (भाग १3 ) साप्ताहिक धारावाहिक
" दो बेटों वाली मा " 💐💐
"अतीत के गलियारे से "💐💐
कच्चे रास्ते (भाग १४) साप्ताहिक धारावाहिक
" रंग-बिरंगे अनुभव '💐💐
लगे सनिमा में काम करे
" जाति - भेद " 💐💐 भाग 1
कच्चे रास्ते (भाग १५ ) साप्ताहिक धारावाहिक
रिश्ते बन भी सकते हैं
"खौली पास "डायरी के कुछ अंश
कच्चे रास्ते (भाग १६ ) साप्ताहिक धारावाहिक
" यादें खट्टी-मीठी " 💐💐
कच्चे रास्ते (भाग १७) साप्ताहिक धारावाहिक
" डॉक्टर -अनुभा " 💐💐
काश बुद्ध से कुछ करके जाट
" ऐक्सेंट वाली हिंदी " 💐💐
कच्चे रास्ते (भाग 18) साप्ताहिक धारावाहिक
"सिरीज़ , 'नन्हीं मिनी 'की हसीन दुनिया 💐💐
कच्चे रास्ते (भाग १९ ) साप्ताहिक धारावाहिक
"टूटती -दीवारें " 💐💐
बता, कौन सी कहानी सुनेगा
" सासु वही जो बहू मन भाए " 💐💐
"फ्रेंडशिप -डे "💐💐" सिरीज नन्हीं मिनी "
कच्चे रास्ते (भाग २० ) साप्ताहिक धारावाहिक
रिश्ते बन भी सकते हैं
खो गया है मेरा प्यार
कच्चे रास्ते (भाग २१ ) साप्ताहिक धारावाहिक
काश बुद्ध सा कुछ कर जाता
जिन्दगी का दर्दीला पन्ना
कच्चे रास्ते (भाग २२) साप्ताहिक धारावाहिक
कच्चे रास्ते (भाग २३ ) साप्ताहिक धारावाहिक
" मिनी की रुमानी दुनिया " 💐💐
"मिनी की रुमानी दुनिया " 💐😁
"नन्ही मिनी की रूमानी दुनिया " 💐💐
" "नन्ही मिनी की रुमानी दुनिया " 💐💐
" नन्ही मिनी की रुमानी दुनिया " 💐💐
" नन्हीं मिनी की रुमानी दुनियां 💐💐
" "नन्ही मिनी की रुमानी दुनिया " 💐💐
"अपराधिनी " 🍁🍁 अंक ... 2
"रामरती चाची " 🍁🍁 अंक ... १
"रामरती चाची " 🍁🍁 समापन भाग
' मिलन की बेला ' 🍁🍁
"मिलन की बेला " भाग २ 🍁🍁
" मन का मिलन " भाग ...३ 🍁🍁
" मिलन की बेला " 🍁🍁
" अपना गाँव अपना देश " 🍁🍁
"मृग-मारीचिका " 🍁🍁 भाग एक
" मृग मारीचिका " भाग ... २ 🍁🍁
" मृग-मरीचिका " भाग ...३ 🍁🍁
" मृग मारीचिका " भाग ... ४ 🍁🍁
" मृग-मरीचिका " भाग ... 5 🍁🍁
"मृग-मरीचिका " भाग ६ ... 🍁🍁
," शहर अच्छे हैं " 🍁 🍁
" गुलाबी -स्कूटी " 🍁🍁
"मैंने जो कुछ अपने दादाजी से सीखा " 🍁🍁
" बेबी - चांदनी " 🍁🍁
" बेबी--चांदनी " अंक ३ 🍁🍁
" एक पिता ऐसा भी " 🍁🍁
बम्बई ट्रेनिंग सेंटर की स्मृतियाँ
" गोरा-चिट्टा दूल्हा " 🍁🍁
"बोल्ड ऐन्ड ब्यूटीफुल " भाग ...एक 🍁🍁
" बोल्ड ऐन्ड ब्यूटीफुल "🍁🍁
"बोल्ड ऐन्ड ब्यूटीफुल " भाग ...३ 🍁🍁
"बोल्ड ऐन्ड ब्यूटी फुल " 🍁🍁
"बोल्ड ऐन्ड ब्यूटीफुल " भाग ... 5 🍁🍁
सच्चाई लक्ष्मण रेखा की
भगवान श्रीकृष्ण के ऐतिहासिक प्रमाण
रावण, परशुराम और सीता स्वयंवर
"मां की कृपा बरसती रहे" 🌺🌺
"वह मुझको छोड़ गया मां" 🌺🌺
एकलव्य:महाभारत का महाउपेक्षित महायोद्धा
दूसरी सुर्पनखा:राक्षसी अधोमुखी
पीयूष गोयल द्वारा लिखित “सेठ का पत्र ….”
मरा मरा से राम राम ….. मोह मोह से ॐ ॐ
गुरु जी आशीर्वाद बनाये रखना
और वो एक कम्पनी का “COO” बन गया.
माँ के चरणों में बहुत रोएँ…
कहानी, कविता व व्यंग्य रचनाएं
मिलन
एक संस्मरण- मम्मी का ग़ुस्सा ….
“पंजाब से आये हैं..”
एक नए सवेरे की किताब ( एक ज़िद्द एक जीत )
एक दिन सफलता मेरे सपनें में आई
अरेंज मैरिज पार्ट 2
असफलता से सफलता की ओर
युवाओं में नशीली पदार्थो की लत
Unknowns connection
बिन मौसम की बरसात....
मैं और वो लड़की ( भाग - 1 )
" बीस डॉलर की कहानी”:
एक सुप्त स्वप्न की पूर्ति
होली की मधुर स्मृतियाँ
अजनबी भाषा में भी अपनी सी मुस्कुराहट
अजनबी भाषा में भी अपनी सी मुस्कुराहट
लिंसा-चिकोरी
नानावती मर्डर केस 1959
रक्षाबंधन का अनमोल उपहार
मेरे संस्मरण - किशोर
सावधानी के साथ रोमांच
धैर्य और समर्पण की शिक्षा
लेख
वृद्धावस्था में बड़ों का रखिये विशेष ख़्याल
बारिश वाला प्यार
हौसला हो यदि बुलंद तो मुश्किल नहीं करेगी तंग
लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जीवन परिचय (1)
लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जीवन परिचय (2)
लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जीवन परिचय (3)
लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जीवन परिचय (4)
लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जीवन परिचय अंतिम भाग
वासना-प्रधान बनते चले जा रहे हैं विवाह
फेंकवीर जन पावत ताही
#Stage of life and #experiences
जानें कहाँ गए वो दिन
वैसा भय अब क्योें नहीं
शिक्षक का खत विद्यार्थी के नाम
मेरे नगपति मेरे विशाल
समाधान की ओर चलें श्मशान की ओर नहीं
हिंदी भाषा की महत्ता
हिंदी सिर्फ भाषा नहीं.....
हिंदी: विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली अंतरराष्ट्रीय भाषा
विदेश में हिंदी हिंदी का विदेश
भारत व विश्व शान्ति
किसी का कभी ना दिल दुखाउँ
अंधेरे में तीर चलाते लोग
दुनिया का आखिरी इंसान
किसान के बिना हम कुछ भी नहीं
क्या 1 लीटर पानी से पेड़ उगाया जा सकता है ?
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः
लोकतंत्र का चतुर्थ स्तंभ-मीडिया
वर्तमान समय में कन्या पूजन की सार्थकता
यह राष्ट्रविरोध नहीं तो और क्या है ?
गुरु
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस
बिहार चुनाव :मुद्दे तो बहाना हैं असली बात छुपाना है
विजयादशमी का सामाजिक महत्व
ताजमहल के कलश का रहस्य
आस्था और विश्वास : मानव चेतना के बँधक
यै शायर नहीं शोषक हैं
लुप्त होती सामान्य लोगों की न्याय की आस
ट्रेन के लोकल डिब्बे का एक्सपीरियंस
लोकल ट्रेन के एक्सपीरिएंस
बच्चों की यादगार यादें
ट्रैन के लोकल डिब्बे का एक्सपीरियंस
संताड़ी/संताल/सांथाल जनजाति
भाई के ससुराल का पहला नेवता
राजनीति के जलते प्रश्न
पुरुष दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
सूर्योपासना का अनुपम पर्व: छठ महापर्व
काँटो के बीहड़ में कुछ महकते गुलाब
संस्मरण-"काश ! होली खेल ,लेती"
होई सोई जो राम रची राखा
याद करने का हुनर सीख लिया
मेरे द्वारा की गई पुस्तक समीक्षा
सतर्कता की अति भी अच्छी नहीं
जल्दी का काम शैतान का
" चाय भी क्या चीज़ है "
" चाय भी क्या चीज़ है "
खौफ जीवन बचाने का....
बेचारे अन्नदाता किसान
बस्तर के आदिवासी खेल
विद्यार्थियों को पत्र
भारत की सबसे लंबी दीवार
पुस्तक परिचर्चा:कुंवर नारायण सिंह
बच्चो की सहजता छीन ली
मैं तुम्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहता हूं
सैनिकों के नाम एक खत
किसानों के नाम एक खत
महान वैज्ञानिक नंबी नारायणन
मेरा राज्य मध्य प्रदेश
भारतीय किसान की व्यथा गाथा
सांता क्लॉज के नाम खत
नायिका ही संस्कृति की वाहिका है
यात्रा वृतांत माउंट आबू
ढूंढा करते हैं तुम्हें
नव वर्ष पर मेरे संकल्प
तेरी साड़ी सफ़ेद क्यों ?
मकरसंक्रांति का महत्व
कुमाऊं का उत्तरायण पर्व
आयुर्वेद की ओर दुनिया के बढ़ते कदम
हमारे तीन अचूक अस्त्र -आस, प्रयास और विश्वास
राष्ट्रीय बालिका दिवस
राष्ट्रीय बालिका दिवस
जागरूक मतदाता कैसा हो?
जागरूक मतदाता कैसा हो ?
"हुनर की अहमियत आज भी"
आखिर आप कर सकते हैं तो हम क्यों नही।
युवाा शक्ति का रचनात्मक कार्यों में नियोजन
अपने पापा के नाम एक ख़त
आज की जरूरत महात्मा गांधी
आज़ाद भारत में एक राजा की फर्जी मुठभेड़
ऐ कलम मेरी, मेरे अल्फाज़ लिख दो।
दिल की लिखूं तो क्या-क्या लिखूं ?
अब तो कुछ काम करने लगे हैं..
मैं ग़लत हूं, कुछ की नज़रों में..
ख़ामोश ही रहना अच्छा है।
संवेदना के बदलते रूप
#6-2-2021 संवेदनशीलता
क्रोध, गुस्सा,नफरत, अहंकार है... मीठे जहर
बसंत ऋतु के नाम पत्र
क्या ये कलम का अपमान नहीं?
आया है मुझे फिर याद वो जालिम
आस्था कि प्रतीक हमारी नदियां
लोकतंत्र में व्यक्ति कहाँ है ?
क्या स्कूल अभी खुलने चाहिए?
मजबूर या बेपरवाह इश्क
सामाजिक मूल्यों का पतन, जिम्मेदार कौन?
दहेज देना है तो देना है
विश्व महिला दिवस के बहाने
भूली बिसरी यादें
जीवंतता के पर्याय हमारे लोक पर्व
मेरा दसवीं का परीक्षाफल
भारत को ईश्वर नहीं ऐश्वर्य चाहिए
अभाव और मुश्किल ने सदैव बेहतर कल का निर्माण किया है
विघ्नहर्ता मंगल कर्ता
कुछ तीर कुछ तुक्के
सकारात्मक विचार बदलते हैं जीवन का रास्ता
गाँठें हैं बन्धन प्यार के
नवरात्रि का महत्व और तैयारी
पिछले लाॅकडाउन का एक दिन
पाठक के दिलोदिमाग पर अमिट छाप छोड़ने में सफल है "डियर ज़िंदगी"
अनुपम कृति है ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा
बूढ़ी काकी
भारत के वीर : एक परिचय
ये अनजाने
सकारात्मकता की नमी
जीवन के अद्भुत रहस्य
चौरंगी
पाप पुण्य से परे
पुस्तक समीक्षा ( मृत्युंजय )
कविवर नरेन्द्र सिंह नीहार का कोरोना कालीन साहित्य:सन्दर्भ एवं विमर्श एक समीक्षा
दस प्रतिनिधि कहानियां
साहित्य समाज की पुनर्सृष्टी है
एक इडियट के डायरी नोट्स
आइए, मन के सूरज को जगाएं।
विवाह कहीं आह ना बन जाए
धरती का आवरण है पर्यावरण
एक दूजे के लिए
" बैलगाड़ी की यात्रा"
नशामुक्ति एक प्रयास
बचपन की मधुर स्मृतियाँ
मैं तो नहीं कर पाऊँगी
"श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष " 💐💐
आदर्श गुरु मेरी नज़र में
मेरी जुबान में रची बसी हिंदी
शिक्षक इस प्रकार बच्चों के मन से करें गणित विषय का डर दूर
बच्चे छोड़ देंगे फोन की लत अपनाएं ये टिप्स
महिलाओ की सुरक्षा के लिए समाज को सजग होना पड़ेगा।
बेस्ट इंग्लिश लर्निंग एप्लिकेशन के विषय में जानिये
शिक्षक बच्चों के भविष्य के लिए अपना आज और कल कुर्बान करते हैं
जिंदगी थी जो पन्नों पे उतार दी
मालगुडी डेज (समीक्षा)
साडी़ बिच नारी है कि....
" पत्नी वामांगी क्यों कहलाती है " 💐💐
बच्चों को कैसे स्यकारित करें
रश्मिरथी : रामधारी सिंह'दिनकर'
चुनावी मौसम बनाम चूना फ्री मौसम
साहित्य संगीत कला विहीन साक्षात पशु पुच्छ विषाणहीन
दिल की दुनिया के फैंसले
किसी की मुस्कुराहों पे हो निसार
परफेक्ट के फ्रेम में फिट नहीं बैठती मैं
पीयूष गोयल ने दर्पण छवि में हाथ से लिखी १७ पुस्तकें.
पीयूष गोयल द्वारा लिखित पुस्तक “सोचना तो पड़ेगा ही” के लिए साक्षात्कार..
अनपढ़ होना एक अभिशाप
आज से आप मेरी माँ हैं.
११ मोतियों की माला …..
तू मुझे अपना बेटा सा लगता हैं….
शिक्षा
जनरल जोरावर सिंह की जयंती
सागरपूजा और अन्य कहानियाँ
कहावते
योगा होगा ….नहीं होगा ..?
दार्जिलिंग गैंगटोक यात्रा -१,संस्मरण
तरीक़े आपने ख़ुद ढूँढने हैं …..
आचार्य रामानंदाचार्य जी
दार्जीलिंग गैंगटोक यात्रा (2)
दार्जीलिंग गैंगटोक यात्रा (2)
आत्महत्या - एक बहुत बड़ी समस्या
दार्जिलिंग गैंगटोक यात्रा
दो हज़ार का नोट (व्यंग्य)
ईमानदारी से सिर्फ़ १०० के आगे तीन जीरो ही लगा पाया .
साक्षात्कार- पीयूष गोयल(दर्पण छवि लेखक).
Health with Multigrain-1
पिता
श्रद्धापूर्वक श्राद्ध
A fresh Morning
वचन या एक मात्र शब्द ?
एक यात्रा, थोड़ा मनोजागरण और ढेर सारा मलाल
इश्क़
कभी भी अपने लक्षय को छोड़ना बिलकुल भी नहीं चाहिए
बुजुर्गों का सम्मान करना:
मेरे जीवन में होली उत्सव
आशा की किरण के रूप में, प्रकाश की किरण
मौन के साथ मेरा अनुभव
“कोई भी अमर नहीं है लेकिन संघर्ष हमेशा चलता है”
"जय बोलो हनुमान की"
पुस्तक विमर्श - साये में धूप
पर्यावरण जीवन जीने की कुंजी है
बच्चों के संस्कारों के विकास पर कुछ विचार
"फ़िल्म समीक्षा के बारे में कुछ विचार "
फिल्म “आर्टिकल (अनुच्छेद)-370” समीक्षा
My father's Last Letter
विद्यालय शिक्षा का मंदिर है।
हास्य और व्यंग्य से जीवन को जीवंत बनाएं।
वर्षा ऋतु पर मेरे विचार और भावनाएँ
How to built a healthy relationship
Why Doesn't mind listen
“बड़े भाई साहब" (लेखक: मुंशी प्रेमचंद) पर मेरे विचार
योग और योग दिवस पर मेरे विचार
किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका
सुनसान इलाके में एक रहस्यमय मुसाफिर
हम सब भगवान शिव और देवी पार्वती की भक्ति करें
महिलाओं की महानता
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिला स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका
बैक्टीरिया को मेथेन पसंद है
ईश्वर के प्रति निस्वार्थ प्रेम
इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश की प्रतीक्षा
शिक्षक दिवस पर मेरे विचार
भगवान गणेश अद्वितीय हैं।
मेरे जीवन में ड्राइंग की भूमिका
पितृ पक्ष पर हमारे विचार।
मेरी दृष्टि में महात्मा गांधी
मेरी दृष्टि में दशहरा त्यौहार
Sonnets in Sunlight
गुलाबी सर्दी में हमारी भावनाएँ
परिवार में भावों का अध्ययन
मेरी यह तस्वीर भी बहुत कुछ कहती है
नये साल के जश्न का मेरा अनुभव
एक चार्जर कुछ कह रहा है.
हम भी महाकुंभ मेले में जा रहे हैं।
मेरे लिए बसंत का विशेष महत्व है।
प्रेम कोई खेल नहीं
चित्र को समझने का मेरा नजरिया।
रोचक और लाभ दायक सफर
किन्नरों के बारे में मेरे विचार
अपने पुत्र के साथ रिश्ता
होली के दौरान रंगों के साथ मेरा अनुभव
नौकरानियों की सेवाओं के बारे में वास्तविकता
देवी दुर्गा माता के बारे में मेरे भाव
मेरे विद्यार्थी जीवन की कुछ यादें
जीवन में क्रोध प्रबंधन पर मेरे विचार।
सुंदरता के मायने क्या है
गलत भरोसा
हमारी संवेदना और श्रद्धांजलि
बच्चे मानव जाति के लिए वरदान हैं
हमारे सैनिकों को हमारी श्रद्धांजलि
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