कविताअन्यबाल कवितागीत
"जननी"
इसी मिट्टी के थे लाल गोखले।
गांधी भी जिनके चेले थे।।
कुछ वीरों के थे,गुरु लाजपत।
शिष्य किसी के,भगत अलबेले थे।।
अब अपने लहू से लिख,वीरों की शहादत गिननी है।
ये भारत की मिट्टी है,वीरों की जननी है।।
वीरों का सीना डरता नहीं,कायर की वानी से।
लहू जलता है अपनों के,धोखों की कहानी से।।
मंगल जैसे वीरों ने फांसी खाकर,क्रांति याद दिलाई थी।
भारत की बेटी मनुबाई ने,हंसते हुए जान गवाईं थी।।
अपनी ही आवाज,शहीदों के गीत बननी है।
ये भारत की मिट्टी है,वीरों की जननी है।।
आजादी वह गाथा है,वीरों के लहू की भाषा है।
बिस्मिल अशफाक चंद्रशेखर,के संघर्ष की आशा है।।
विद्रोही कांडों में कितने,सराभा सिन्हा ने अमरता पाई है।
फांसी खाकर कितनों ने,रस्सी की प्यास बुझाई है।।
वीरों को है पानी जो,बलिदान ही वो सजनी है।
ये भारत की मिट्टी है,वीरों की जननी है।।
पीकर लहू वीरों का,मिट्टी हुई अभिमानी है।
जिस मां ने लाल दिए उसकी,यही अमर निशानी है।।
केसरिया में रंगा तिरंगा,उसे याद दिलाता है।
हवा बनकर बेटा आजादी की,तिरंगा फहराता है।।
कहानी तिरंगे की अब,लहू में रचनी है।
ये भारत की मिट्टी है,वीरों की जननी है।।
रचियता:-हेमंत।