Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy

कवितानज़्म

खुदको धोखा देना आसान है

  • Added 31 minutes ago
Read Now
  • 1
  • 1 Mins Read

जानकर भी हम अक़्सर अनजान हैं
खुदको धोखा देना सबसे आसान है
© "बशर" بشر.

logo.jpeg
user-image

कवितानज़्म

लाख आवाजें लगाया करना

  • Added 1 hour ago
Read Now
  • 2
  • 1 Mins Read

हम से मिलना लगता है तुम्हें वक़्त जाया करना
हमारे मरने के बाद हमारी कब्र पर आया करना
हमको नहीं सुनाई देंगी फिर कोई सदाएं तुम्हारी
बेशक फिर बैठकर लाख आवाजें लगाया करना
© "बशर" بشر.

GridArt_20240222_181349662_1715192356.jpg
user-image

कवितानज़्म

सियासत कमाल है

  • Added 2 hours ago
Read Now
  • 1
  • 1 Mins Read

आज-कल एक ही सवाल है
इंतखाब है के कोई बवाल है

जनता बे-हाल थी बे-हाल है
नेतासब हरहाल खुशहाल है

होली नहीं है मग़र धमाल है
सियासत येह बड़ी कमाल है

© "बशर" بشر.

logo.jpeg
user-image

कवितानज़्म

मुश्क़िल है घरको घर करना

  • Added 4 hours ago
Read Now
  • 1
  • 1 Mins Read

आसाँ नहीं "बशर" जिंदगी बसर करना
गहरा है समंदर संभलकर सफ़र करना
आशियाँ मकाँ दीवार- ओ -दर घर नहीं
बड़ा मुश्क़िल काम है घरको घर करना
© 'बशर' بشر.

InCollage_20240316_085955678_1715180957.jpg
user-image

कवितानज़्म

जिंदगी हमको जीकर चली गई

  • Added 6 hours ago
Read Now
  • 1
  • 1 Mins Read

हम ज़हर पी पीकर मर गए वह जीवन रस पीकर चली गई
हम ख़्वाहिशों में उलझे रहे जिंदगी हमको जीकर चली गई
© 'बशर' بشر.

InCollage_20240503_135714716_1715175790.jpg
user-image

कविताअन्य

बवंडर

  • Added 6 hours ago
Read Now
  • 22
  • 1 Mins Read

एक सफ़र है अंदर का ,
मन में फ़ैले बवंडर का ।

IMG_20240503_002252_1715174075.jpg
user-image

कविताभजन

हे अवधपति हे रघुनन्दन

  • Added 8 hours ago
Read Now
  • 6
  • 3 Mins Read

हे अवधपति हे रघुनन्दन
मुझको क्यू यूं तरसते हो
दे दो मुझको भी दर्शन
इतना क्यू इतराते हो

श्यामल सूरत लट घुँघराले
कौशीलया के राजदुलारे
अवध में पलना झूल रहे
या छवि को आयो मैं देखन ||
दे दो मुझको
Read More

IMG_20240123_105340_1200_x_628_pixel_1715167100.jpg
user-image

कवितानज़्म

अगर मां नहीं

  • Added 19 hours ago
Read Now
  • 5
  • 1 Mins Read

देता सुकूँ ये जहाँ नहीं कोई दुआ दुआ नहीं
मौजूद जिसके घर में "बशर" अगर मां नहीं
© 'बशर' بشر.

InCollage_20240503_135714716_1715128481.jpg
user-image

कवितानज़्म

सुगम सरल डगर कहते हैं

  • Added 21 hours ago
Read Now
  • 3
  • 2 Mins Read

जिन्दगी की रहगुज़र को सफ़र कहते हैं
राहे-सफ़र जो साथ हो हमसफ़र कहते हैं!

सुकून -ए -जिंदगी जहांपर होसके हासिल,
उस को "बशर" हम यहाँ- पर घर कहते हैं!

चैन-ओ-अमन से हो बसर तो है येह जन्नत,
जो न हो तो दोज़ख
Read More

logo.jpeg
user-image

कवितानज़्म

सुना नहीं तुमने

  • Added 23 hours ago
Read Now
  • 3
  • 1 Mins Read

शायद
तुमसे कुछ कहा था मैने

शायद
कुछ सुना नहीं तुमने!!

© 'बशर' بشر.

logo.jpeg
user-image

कवितानज़्म

हम फिर रोज़मर्रा में खो जाएंगे

  • Added 1 day ago
Read Now
  • 3
  • 1 Mins Read

आज-कल में येह इंतिख़ाब भी हो जाएंगे
और हम फिर वही रोज़मर्रा में खो जाएंगे
© 'बशर' بشر.

InCollage_20240503_135714716_1715111318.jpg
user-image

कवितानज़्म

दरख्तों की छांव में

  • Added 1 day ago
Read Now
  • 3
  • 1 Mins Read

दरख्तों की छांव में,
जिन्दगी है गांव में!

भंवर हैं शहर बशर,
जिंदगी की नाव में!

©️ "बशर"

InCollage_20240503_135714716_1715101061.jpg
user-image

कवितानज़्म

जिंदगी ऐसे गुजारी जाती है

  • Added 1 day ago
Read Now
  • 3
  • 1 Mins Read

क्या जिंदगी ऐसे गुजारी जाती है
रोता हूँ तो खुद पर हंसी आती है
©️ "बशर"

logo.jpeg
user-image

कवितानज़्म

रहगुज़र को सफ़र कहते हैं

  • Added 1 day ago
Read Now
  • 3
  • 1 Mins Read

जिन्दगी की रहगुज़र को सफ़र कहते हैं
राहे-सफ़र जो साथ हो हमसफ़र कहते हैं!

सुकून से जिंदगी जहां बसर कर सकें हम
उसे 'बशर' हम दुनियाजहाँ में घर कहते हैं!

©️ "बशर"

logo.jpeg
user-image

कवितानज़्म

उम्मीदों की कश्तियां

  • Added 1 day ago
Read Now
  • 4
  • 1 Mins Read

उम्मीदों की कश्तियां "बशर" किनारों पर उल्टी डालकर
मन समंदर से ले गया कोई चाहतों का पानी निकालकर
©️ "बशर"

logo.jpeg
user-image

कवितानज़्म

सिलवटें फिर संवार रहा हूँ

  • Added 1 day ago
Read Now
  • 4
  • 1 Mins Read

उतारा हुआ बोझ फिर उतार रहा हूँ
गुजारा हुआ दिन फिर गुजार रहा हूँ
वही खटिया वही तकिया वही बिस्तर
संवारी हुई सिलवटें फिर संवार रहा हूँ
@ "बशर"

logo.jpeg
user-image

कवितानज़्म

ज़रूरतें बदल जाती हैं इन्सान की

  • Added 2 days ago
Read Now
  • 4
  • 1 Mins Read

इक उम्र हुआ करती है अक़्सर किसी अरमान की
वक़्त के साथ ज़रूरतें बदल जाती हैं इन्सान की!!
© "बशर" بشر.

InCollage_20240503_135714716_1715024594.jpg
user-image

कवितानज़्म

समझौता मत करो अपने वक़ार से

  • Added 2 days ago
Read Now
  • 4
  • 1 Mins Read

बे - शक समझौता करना पड़े अपनी ज़रूरत और दरकार से
समझौता मग़र बशर मत करो हयात में कभी अपने वक़ार से
© "बशर" بشر.

InCollage_20240503_135714716_1715022394.jpg
user-image

कवितानज़्म

इन्सान बस खुश रहा करे

  • Added 2 days ago
Read Now
  • 4
  • 1 Mins Read

कुछ भी किया करे कुछ भी कहा करे
सच ये हैके इन्सान बस खुश रहा करे
©️"बशर"

logo.jpeg
user-image

कवितानज़्म

लाशें उठाके जनाज़ा चली

  • Added 2 days ago
Read Now
  • 3
  • 1 Mins Read

इक दफा ऐसी सबा चली
आबो - हवा में वबा चली

गली- कूचों में क़ज़ा चली
लाशें उठाके जनाज़ा चली

©️"बशर"

logo.jpeg
user-image