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कहानीप्रेरणादायक

धैर्य और समर्पण की शिक्षा

  • Added 4 hours ago
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राजस्थान के एक छोटे से गाँव में एक बुज़ुर्ग कुम्हार रहता था, जिसका नाम रामू था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता, उन्हें बाज़ार में बेचता और सादा जीवन जीता। गाँव के बच्चे अक्सर उसके पास बैठते, उसकी कहानियाँ
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कवितालयबद्ध कविता

विजय पताका हम लहराएंगे

  • Added 4 hours ago
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विजय पताका हम लहराएंगे दुश्मन को हम मर गिराएंगे जो दुश्मन हो आंखों के सामने हम बिल्कुल भी नहीं घबराएंगे चलेंगे अपनी चाल बहुत सावधानी से इसकी खबर भी ना दुश्मन को हम लगने देंगे हम हिंदुस्तानी हैं
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कविताअन्य

मरा अंदाज

  • Added 2 days ago
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जो दिन हमारे लिए सही होगा उसे जय जयकार करों
जो वक्त हमने खुशियाँ बांटकर बिताया हो उसे जय जयकार करों
दुख और उदासी एक तरह का बीमार है
उसे पालात्कार जिओ गे तो आप का जय जयकार होगा
समयका कदर किया करो
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कवितानज़्म

किसीका इन्कार थोड़ा इसरार मांगता है

  • Added 3 weeks ago
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इन्सान का थोड़ा सब्र -ओ -क़रार मांगता है
अच्छा नतीज़ा थोड़ा -सा इंतज़ार मांगता है

जज़्बा मुश्क़िल को करने का पार मांगता है
किसीका इन्कार थोड़ा-सा इसरार मांगता है

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' bashar بشر

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लेखआलेख

जीवन में क्रोध प्रबंधन पर मेरे विचार।

  • Added 3 weeks ago
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# नमन # साहित्य अर्पण मंच
#विषय: गुस्सा (क्रोध)
#विधा: मुक्त
#दिनांक: 16 अप्रैल 2025
#शीर्षक: जीवन में क्रोध प्रबंधन पर मेरे विचार।
सबसे पहले हम दिए गए फोटो को देखते हैं। एक जोड़े को गुस्से में दिखाया
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कवितानज़्म

अकेला पुरू ही काफ़ी है सिकंदर को हराने केलिए

  • Added 3 weeks ago
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उसका अपना ही तकब्बुर काफ़ी है सितमगर को डुबाने केलिए
ग़ुरूर-ओ-गुमाँ की एक बूंद ही काफ़ी है समंदर को डुबाने केलिए

बादशाहतें और सल्तनतें सब मिलकर मुक़ाबिला करें ज़रूरी नहीं
एक अकेला सुल्तान
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कवितानज़्म

इश्क़ में फरहाद को है सब क़बूल

  • Added 1 month ago
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सऊबतें हों के सुकून बर्ग ए गुल हों के बबूल
राह - ए - इश्क़ में फरहाद को हैं सब क़बूल

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' bashar بشر

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कवितानज़्म

पाने की खुशी ना कुछ खोने की ही फिकर

  • Added 1 month ago
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मिज़ाज अपना आफताब की तरह रखा कर
ना ग़ुरूर -ओ-गुमां उगने का ना डूबने का डर

सुकून बड़ी चीज़ है मियाँ हयाते-मुस्त'आर में
ना पानेकी खुशी ना कुछ खोने की ही फिकर

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' bashar بشر

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लेखअन्य

मेरे विद्यार्थी जीवन की कुछ यादें

  • Added 1 month ago
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# नमन # साहित्य अर्पण मंच
#विषय: मेरा विद्यार्थी जीवन
#विधा: संस्मरण
#दिनांक: 10 अप्रैल 2025
#शीर्षक: मेरे विद्यार्थी जीवन की कुछ यादें
सबसे पहले हम दिए गए फोटो को देखते हैं। इसमें एक कक्षा में एक बोर्ड
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कवितानज़्म

नतमस्तक होना पड़े

  • Added 1 month ago
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किसीसे आशाएं अपेक्षाएं उम्मीदें इसक़दर भी न रखोकि मायूस होना पड़े
भरोसा यक़ीन एतमाद किसीपर इतना भी न रखो कि टूटेतो रोना पड़े

बंदे को इतना तो ख़ुद-एतमाद होना ही चाहिए कि मुश्क़िल वक़्त की घड़ी
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कवितानज़्म

आदमी इन्सान हो जाए

  • Added 1 month ago
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जुल्मतें नफ़रतें मिट जाए मुश्किलें आसान हो जाए
मग़र इक शर्त ये है के आदमी बस इन्सान हो जाए

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' bashar بشر

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लेखआलेख

देवी दुर्गा माता के बारे में मेरे भाव

  • Added 1 month ago
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# नमन # साहित्य अर्पण मंच
#विषय: "माँ की महिमा"
#विधा: मुक्त
#दिनांक: 3 अप्रैल 2025
#शीर्षक: देवी दुर्गा माता के बारे में मेरे भाव
सबसे पहले हम दिए गए फोटो को देखते हैं। यह देवी दुर्गा माता की एक तस्वीर
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कवितानज़्म

किरदार जिंदा रहता है

  • Added 1 month ago
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इन्सान मर जाता है किरदार जिंदा रहता है
अपने फन के ज़रिए फनकार जिंदा रहता है

किस्से कहानी सदियों पुराने हो जाते हैं मग़र
सदा उनका असर ओ असरार जिंदा रहता है

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' bashar بشر

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कवितानज़्म

मर गए पहचान बनाने में

  • Added 1 month ago
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ज़माना अनजान हमारे लिए
हम अनजान जमाने के लिए !

आते हैं सब इस ज़माने में
जान - पहचान बनाने केलिए !

जमाने के रंगढंग जानेही नहीं
लग गए अपने रंग दिखाने में!

जमाने को पहचान पाए नहीं
मर गए पहचान बनाने
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कवितानज़्म

हमको हमारा खुदा मिल गया है

  • Added 1 month ago
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इक वस्ले - हबीब हमको जब से हुआ है
हम को तो हमारा सब-कुछ मिल गया है,

तुमको मुबारक ये दौलत दुनिया जहाँ की
हम को तो हमारा खुदा मिल गया है!

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' بشر

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लेखअन्य

संगठनात्मक नेतृत्व

  • Added 1 month ago
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# नमन # साहित्य अर्पण मंच
#विषय: मुक्त
#विधा: नाटक
#दिनांक: मार्च 27,2025
#शीर्षक: संगठनात्मक नेतृत्व
दृश्य 1:
निर्धारित बैठक के तुरंत बाद की स्थिति:
A. हम कुछ जरूरी मामलों पर चर्चा करना चाहते हैं, इसलिए
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कवितानज़्म

बनगया ग़मकी वो दवा मुझमें

  • Added 1 month ago
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मुझसे फुर्क़तकी तलबमें वो
खुद को आधा छोड़ गया मुझमें

तबसे संभाले हुए हूँ उस को
है आधा बचा हुआ पिन्हाँ मुझमें

इक अरसा गुज़र गया बिछड़े
वो है बरक़रार अभी जवां मुझमें

ग़मे -फ़िराक़े-हबीब नहीं
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कवितानज़्म

अश्आर बनते रहें बेहतर से बेहतर

  • Added 1 month ago
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ये दिल मेरा यूँही मुसलसल टूटता रहे रोजो-शब शामो-सहर
हर -दिन हर -पल हर-सू हर -सम्त आधी रात बीच दोपहर

तनिक नहीं मलालो - रंजो - ग़म मुझको इस टूटन से "बशर"
बस इसीतरह निरंतर अश्आर मेरे बनतेरहें बेहतर से
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Dr. N. R. Kaswan

Dr. N. R. Kaswan 1 month ago

मरहबा

Dr. N. R. Kaswan

Dr. N. R. Kaswan 1 month ago

मरहबा

कवितानज़्म

फैसले लोग ही लेते हैं कायर की हयात के

  • Added 1 month ago
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मर मर कर जीते हैं डर डर कर बे -बात के
फैसले लोग ही लेते हैं कायर की हयात के

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' بشر

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