कहानीप्रेरणादायक
राजस्थान के एक छोटे से गाँव में एक बुज़ुर्ग कुम्हार रहता था, जिसका नाम रामू था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता, उन्हें बाज़ार में बेचता और सादा जीवन जीता। गाँव के बच्चे अक्सर उसके पास बैठते, उसकी कहानियाँ
Read More
कवितालयबद्ध कविता
विजय पताका हम लहराएंगे दुश्मन को हम मर गिराएंगे जो दुश्मन हो आंखों के सामने हम बिल्कुल भी नहीं घबराएंगे चलेंगे अपनी चाल बहुत सावधानी से इसकी खबर भी ना दुश्मन को हम लगने देंगे हम हिंदुस्तानी हैं
Read More
कवितानज़्म
इन्सान का थोड़ा सब्र -ओ -क़रार मांगता है
अच्छा नतीज़ा थोड़ा -सा इंतज़ार मांगता है
जज़्बा मुश्क़िल को करने का पार मांगता है
किसीका इन्कार थोड़ा-सा इसरार मांगता है
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' bashar بشر
लेखआलेख
# नमन # साहित्य अर्पण मंच
#विषय: गुस्सा (क्रोध)
#विधा: मुक्त
#दिनांक: 16 अप्रैल 2025
#शीर्षक: जीवन में क्रोध प्रबंधन पर मेरे विचार।
सबसे पहले हम दिए गए फोटो को देखते हैं। एक जोड़े को गुस्से में दिखाया
Read More
कवितानज़्म
उसका अपना ही तकब्बुर काफ़ी है सितमगर को डुबाने केलिए
ग़ुरूर-ओ-गुमाँ की एक बूंद ही काफ़ी है समंदर को डुबाने केलिए
बादशाहतें और सल्तनतें सब मिलकर मुक़ाबिला करें ज़रूरी नहीं
एक अकेला सुल्तान
Read More
कवितानज़्म
सऊबतें हों के सुकून बर्ग ए गुल हों के बबूल
राह - ए - इश्क़ में फरहाद को हैं सब क़बूल
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' bashar بشر
कवितानज़्म
मिज़ाज अपना आफताब की तरह रखा कर
ना ग़ुरूर -ओ-गुमां उगने का ना डूबने का डर
सुकून बड़ी चीज़ है मियाँ हयाते-मुस्त'आर में
ना पानेकी खुशी ना कुछ खोने की ही फिकर
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' bashar بشر
लेखअन्य
# नमन # साहित्य अर्पण मंच
#विषय: मेरा विद्यार्थी जीवन
#विधा: संस्मरण
#दिनांक: 10 अप्रैल 2025
#शीर्षक: मेरे विद्यार्थी जीवन की कुछ यादें
सबसे पहले हम दिए गए फोटो को देखते हैं। इसमें एक कक्षा में एक बोर्ड
Read More
कवितानज़्म
किसीसे आशाएं अपेक्षाएं उम्मीदें इसक़दर भी न रखोकि मायूस होना पड़े
भरोसा यक़ीन एतमाद किसीपर इतना भी न रखो कि टूटेतो रोना पड़े
बंदे को इतना तो ख़ुद-एतमाद होना ही चाहिए कि मुश्क़िल वक़्त की घड़ी
Read More
कवितानज़्म
जुल्मतें नफ़रतें मिट जाए मुश्किलें आसान हो जाए
मग़र इक शर्त ये है के आदमी बस इन्सान हो जाए
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' bashar بشر
लेखआलेख
# नमन # साहित्य अर्पण मंच
#विषय: "माँ की महिमा"
#विधा: मुक्त
#दिनांक: 3 अप्रैल 2025
#शीर्षक: देवी दुर्गा माता के बारे में मेरे भाव
सबसे पहले हम दिए गए फोटो को देखते हैं। यह देवी दुर्गा माता की एक तस्वीर
Read More
कवितानज़्म
इन्सान मर जाता है किरदार जिंदा रहता है
अपने फन के ज़रिए फनकार जिंदा रहता है
किस्से कहानी सदियों पुराने हो जाते हैं मग़र
सदा उनका असर ओ असरार जिंदा रहता है
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' bashar بشر
कवितानज़्म
ज़माना अनजान हमारे लिए
हम अनजान जमाने के लिए !
आते हैं सब इस ज़माने में
जान - पहचान बनाने केलिए !
जमाने के रंगढंग जानेही नहीं
लग गए अपने रंग दिखाने में!
जमाने को पहचान पाए नहीं
मर गए पहचान बनाने
Read More
कवितानज़्म
इक वस्ले - हबीब हमको जब से हुआ है
हम को तो हमारा सब-कुछ मिल गया है,
तुमको मुबारक ये दौलत दुनिया जहाँ की
हम को तो हमारा खुदा मिल गया है!
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' بشر
लेखअन्य
# नमन # साहित्य अर्पण मंच
#विषय: मुक्त
#विधा: नाटक
#दिनांक: मार्च 27,2025
#शीर्षक: संगठनात्मक नेतृत्व
दृश्य 1:
निर्धारित बैठक के तुरंत बाद की स्थिति:
A. हम कुछ जरूरी मामलों पर चर्चा करना चाहते हैं, इसलिए
Read More
कवितानज़्म
मुझसे फुर्क़तकी तलबमें वो
खुद को आधा छोड़ गया मुझमें
तबसे संभाले हुए हूँ उस को
है आधा बचा हुआ पिन्हाँ मुझमें
इक अरसा गुज़र गया बिछड़े
वो है बरक़रार अभी जवां मुझमें
ग़मे -फ़िराक़े-हबीब नहीं
Read More
कवितानज़्म
ये दिल मेरा यूँही मुसलसल टूटता रहे रोजो-शब शामो-सहर
हर -दिन हर -पल हर-सू हर -सम्त आधी रात बीच दोपहर
तनिक नहीं मलालो - रंजो - ग़म मुझको इस टूटन से "बशर"
बस इसीतरह निरंतर अश्आर मेरे बनतेरहें बेहतर से
Read More
कवितानज़्म
मर मर कर जीते हैं डर डर कर बे -बात के
फैसले लोग ही लेते हैं कायर की हयात के
© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' بشر