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कवितानज़्म
जानकर भी हम अक़्सर अनजान हैं
खुदको धोखा देना सबसे आसान है
© "बशर" بشر.
कवितानज़्म
हम से मिलना लगता है तुम्हें वक़्त जाया करना
हमारे मरने के बाद हमारी कब्र पर आया करना
हमको नहीं सुनाई देंगी फिर कोई सदाएं तुम्हारी
बेशक फिर बैठकर लाख आवाजें लगाया करना
© "बशर" بشر.
कवितानज़्म
आज-कल एक ही सवाल है
इंतखाब है के कोई बवाल है
जनता बे-हाल थी बे-हाल है
नेतासब हरहाल खुशहाल है
होली नहीं है मग़र धमाल है
सियासत येह बड़ी कमाल है
© "बशर" بشر.
कवितानज़्म
आसाँ नहीं "बशर" जिंदगी बसर करना
गहरा है समंदर संभलकर सफ़र करना
आशियाँ मकाँ दीवार- ओ -दर घर नहीं
बड़ा मुश्क़िल काम है घरको घर करना
© 'बशर' بشر.
कवितानज़्म
हम ज़हर पी पीकर मर गए वह जीवन रस पीकर चली गई
हम ख़्वाहिशों में उलझे रहे जिंदगी हमको जीकर चली गई
© 'बशर' بشر.
कविताभजन
हे अवधपति हे रघुनन्दन
मुझको क्यू यूं तरसते हो
दे दो मुझको भी दर्शन
इतना क्यू इतराते हो
श्यामल सूरत लट घुँघराले
कौशीलया के राजदुलारे
अवध में पलना झूल रहे
या छवि को आयो मैं देखन ||
दे दो मुझको
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कवितानज़्म
देता सुकूँ ये जहाँ नहीं कोई दुआ दुआ नहीं
मौजूद जिसके घर में "बशर" अगर मां नहीं
© 'बशर' بشر.
कवितानज़्म
जिन्दगी की रहगुज़र को सफ़र कहते हैं
राहे-सफ़र जो साथ हो हमसफ़र कहते हैं!
सुकून -ए -जिंदगी जहांपर होसके हासिल,
उस को "बशर" हम यहाँ- पर घर कहते हैं!
चैन-ओ-अमन से हो बसर तो है येह जन्नत,
जो न हो तो दोज़ख
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कवितानज़्म
शायद
तुमसे कुछ कहा था मैने
शायद
कुछ सुना नहीं तुमने!!
© 'बशर' بشر.
कवितानज़्म
आज-कल में येह इंतिख़ाब भी हो जाएंगे
और हम फिर वही रोज़मर्रा में खो जाएंगे
© 'बशर' بشر.
कवितानज़्म
दरख्तों की छांव में,
जिन्दगी है गांव में!
भंवर हैं शहर बशर,
जिंदगी की नाव में!
©️ "बशर"
कवितानज़्म
क्या जिंदगी ऐसे गुजारी जाती है
रोता हूँ तो खुद पर हंसी आती है
©️ "बशर"
कवितानज़्म
जिन्दगी की रहगुज़र को सफ़र कहते हैं
राहे-सफ़र जो साथ हो हमसफ़र कहते हैं!
सुकून से जिंदगी जहां बसर कर सकें हम
उसे 'बशर' हम दुनियाजहाँ में घर कहते हैं!
©️ "बशर"
कवितानज़्म
उम्मीदों की कश्तियां "बशर" किनारों पर उल्टी डालकर
मन समंदर से ले गया कोई चाहतों का पानी निकालकर
©️ "बशर"
कवितानज़्म
उतारा हुआ बोझ फिर उतार रहा हूँ
गुजारा हुआ दिन फिर गुजार रहा हूँ
वही खटिया वही तकिया वही बिस्तर
संवारी हुई सिलवटें फिर संवार रहा हूँ
@ "बशर"
कवितानज़्म
इक उम्र हुआ करती है अक़्सर किसी अरमान की
वक़्त के साथ ज़रूरतें बदल जाती हैं इन्सान की!!
© "बशर" بشر.
कवितानज़्म
बे - शक समझौता करना पड़े अपनी ज़रूरत और दरकार से
समझौता मग़र बशर मत करो हयात में कभी अपने वक़ार से
© "बशर" بشر.
कवितानज़्म
कुछ भी किया करे कुछ भी कहा करे
सच ये हैके इन्सान बस खुश रहा करे
©️"बशर"
कवितानज़्म
इक दफा ऐसी सबा चली
आबो - हवा में वबा चली
गली- कूचों में क़ज़ा चली
लाशें उठाके जनाज़ा चली
©️"बशर"