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अश्आर बनते रहें बेहतर से बेहतर - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

अश्आर बनते रहें बेहतर से बेहतर

  • 8
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ये दिल मेरा यूँही मुसलसल टूटता रहे रोजो-शब शामो-सहर
हर -दिन हर -पल हर-सू हर -सम्त आधी रात बीच दोपहर

तनिक नहीं मलालो - रंजो - ग़म मुझको इस टूटन से "बशर"
बस इसीतरह निरंतर अश्आर मेरे बनतेरहें बेहतर से बेहतर

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' بشر

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