Or
Create Account l Forgot Password?
कवितानज़्म
ये दिल मेरा यूँही मुसलसल टूटता रहे रोजो-शब शामो-सहर हर -दिन हर -पल हर-सू हर -सम्त आधी रात बीच दोपहर तनिक नहीं मलालो - रंजो - ग़म मुझको इस टूटन से "बशर" बस इसीतरह निरंतर अश्आर मेरे बनतेरहें बेहतर से बेहतर © डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' بشر
मरहबा