कविताघनाक्षरीअन्य
काजल*
❤❤❤❤
सजल नयन में स्वप्न घनेरे,
कितनी बातें कितने गहरे
कह दें आंखें जब भी देखा
वो चंचल काजल की रेखा।।
गहरी- गहरी कमल की पांखें,
मौन तुम्हारा मुखरित कर दें
जब भी मैंने उनको परखा
भेद हृदय के कह जाती हैं
वो चंचल काजल की रेखा ।।
लाज ओढ़ झुक जाती पलकें,
हृदय के तल को छू जाती हैं
मेरे प्रीत की सुगढ़ सी लेखा
वो चंचल काजल की रेखा ।।
सहज सजीली तेरी आंखें,
जब रातों को नींद ना आए
मुझसे हर पल बतियाती हैं
इनमे डूबा जीना सीखा
वो चंचल काजल की रेखा।।
पल्लवी रानी
मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
कल्याण, महाराष्ट्र