कि बन गयी हूँ मैं वही जो नही बनी थी पहले।
यूँही कुछ बदलाव मुझमें मेरी कलम ले आयी है। - नेहा शर्मा
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Section | Genre | Rank |
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कहानी | हास्य व्यंग्य | |
कविता | लयबद्ध कविता | |
कहानी | अन्य | |
कविता | हरियाणवी रागिनी | |
कहानी | उपन्यास | 4th |
कविता | भजन | 5th |
कहानी | व्यंग्य | 5th |
London is the capital city of England.
कविताबाल कविता
माँ मुझे वो चन्द्रमा ला दो
गेंद बनाकर खेलूंगा
जब थककर मैं चूर हो जाऊं
तकिया बनाकर लेटूंगा
माँ मुझे वो चन्द्रमा ला दो
गेंद बनाकर खेलूंगा
क्यों नाहक हठ करता है
चंचलता क्यों करता है
कैसे ला दुँ
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कहानीसामाजिक, हास्य व्यंग्य
आज वत सावित्री थी, शशि जल का लौटा भरकर मंदिर को निकल गयी। रस्ते में सुमन मौसी मिल गयी।
“कैसी हो शशि”
पैर छूते हुए “बढ़िया मौसी आप कैसी हो”?
“मैं भी ठीक हूँ, तू तो दिखती ही ना है, कहाँ रहवे है?”
“मौसी बस
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बहुत सुन्दर और दिलचस्प.. जिज्जी से पार पाना शशी के लिए सम्भव नहीं लगता..!! 😊
कहानीसामाजिक
जिज्जी पार्ट 13
भानु शशि अपना सा मुंह लेकर घर लौट आये। शशि का तो खून ही उबल रहा था।
“झुक गए ना एक बार फिर आप जिज्जी के सामने, उनकी बातों में आजाते हैं”।
भानु “शशि तू ही बता बहन का दिल दुखाकर मैं ट्रिप
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कहानीसामाजिक
अगले दिन भानु और शशी पैकिंग कर रिक्शा से बस स्टैंड के लिये निकल पड़ते है, शशि मन ही मन फूली नही समा रही थी। शादी के बाद यह पहली बार हुआ जब वह भानु के साथ अकेले कहीं बाहर जा रही थी। वह भी जिज्जी से दूर
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जिज्जी सर्वव्यापी हैं.. उनसे बच कर निकल पाना, मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है..! 😊.. शशी.. कितना भी कोशिश कर ले..!!
मुझे पढ़ते हुए, श्री कृष्ण याद आ गए। काश कभी मैं भी ऐसा कुछ लिख सकूं,
तुम बहुत ऊपर का लिखती हो। अगर यह विधा सीखने की बात है तो मैं सीखा दूँगी जब कहो तब
सुबह की शुरुआत एक बेहतरीन रचना से.... वाह अदभुत
धन्यवाद
कहानीहास्य व्यंग्य
भानु “शशि कल मंडे है याद है ना हम लोगों को कल ट्रिप के लिये निकलना है। मेरे दोस्त की गाड़ी है हम लोग उसी से जा रहे है, वैन है तो हम सभी को बस स्टैंड जाना है वो स ही को उधर से ही पिक करेगा। पैकिंग कर लेना
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लयबद्ध कविता
बड़ी मुद्दतों के बाद उसे देखा लगता है।
मेरे यार को मुझसे पड़ा कोई काम लगता है।
मैं भुला चुकी थी उसके सितम कबके
वक़्त मेरे पलड़े में झुका लगता है।
न बद्दुआ दी थी उसे की जी न सके मेरे बिन
पर खुदा ने बिना
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कहानीहास्य व्यंग्य
घर लौटे ही थे हम की भानु थके हारे सोफे पर बैठे थे। चप्पल निकाल हम शू रैक में रखते हुए बोले,
“जिज्जी के यहाँ गए थे, बच्चे आज खाना लेने नही आये थे, सो वही देने गए थे”
भानु ने पैर टेबल पर रखते हुए बोला,
“हम्म्म्म
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कहानीहास्य व्यंग्य
शशि गाने गाते हुए जिज्जी के घर की तरफ बढ़े चली जा रही थी। दरवाजे पर ही खड़ी थी, की कुछ लकड़ी का उसके सिर के ऊपर से होता हुआ बाहर जा गिरा। जैसे ही उस सख्त सी चीज से शशि का ध्यान हटा देखती क्या है जिज्जी हट्टी
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जिज्जी शशि से दो कदम आगे ही रहती हैं..! सरेआम पकड़ जाने पर भी '' कहानी '' बना ही दी😊👌
शानदार... 😊 😊 😊 तुलसी या संसार में भाँति भाँति के लोग, कहावत को चरितार्थ करती हुई रचना 👌 👌 👌 👌 राधे राधे 🌹 🙏 🌹
मजेदार किस्सा जिज्जी सीरीज का 😊
धन्यवाद अंकल जी
कहानीलघुकथा
हैप्पी mothers डे माँ
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"हाँ माँ कहिये"
विकास ने शर्ट का बटन बन्द करते हुए कहा।
"मैं कह रही थी कि आज मातृ दिवस....."
"माँ मैं ऑफिस से आकर आपकी पूरी बात सुनता हूँ, अभी देर हो रही है"
विकास ने माँ की
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कहानीहास्य व्यंग्य
हमें खाना बनाते बनाते 2 या 3 दिन गुजर गए। रोज टिफिन पैक कर सुबह शाम जिज्जी के घर पहुंचाते पहुंचाते हम बेस्ट टिफ़िन डिलीवरी वोमन बन गए थे। आज भी खाना बना बच्चों की राह देख रहे थे। पर बच्चे नही आये। खैर
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जब जिज्जी के घर शशी जी पहुंचेगी कोई नया नाटक निश्चित ही आरम्भ हो जाना है..!!
कहानीहास्य व्यंग्य
अगले दिन डोर बेल पर डोर बेल बजे जा रही थी। हम बड़े कंफ्यूजीयाये हुए से हड़बड़ाकर दरवाजे की तरफ भागे। देखा तो जिज्जी पर गुस्से के लाल पिले नीले हरे सब रंग चढ़े हुए थे। हमने तुरन्त से दरवाजा खोल दिया।
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फिर भी कुछ सस्ते में छोड़ दिया, जिज्जी ने जो रात भर सिर पे सवार रहतीं, बात बढिय़ा डिनर तक ही रही..!! 😊
कहानीहास्य व्यंग्य
अब हम जिज्जी के इन सुतली बमों से परेशान हो चुके थे। हम दिन रात सोचते कि जिज्जी को हमारी निजी जिंदगी से दूर कैसे रखा जाए। आजकल जिज्जी की एक और बात से हम बहुत ज्यादा परेशान होगये थे। वह हम पर जाने अनजाने
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कहानीहास्य व्यंग्य
जिज्जी जोर जोर से दरवाजा पीट रही थी, हमें लगा पता नही कौन सा भूकम्प आगया है, जैसे ही दरवाजा खोला, जिज्जी सब पिछली शॉपिंग के साथ दरवज्जे पर खड़ी थी,
इससे पहले कुछ बोलते या मुँह खोलते भानु कमरे से निकल
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कहानीहास्य व्यंग्य
एक बार फिर से हम मुसीबत में फँस चुके थे। वो भी इन जिज्जी की वजह से। वो इसलिये की जिज्जी ने फोन कर भानु को सब बता दिया था। कसम से बता रहे हैं, बहुत पहुंची हुई चीज है, ये जिज्जी....। हमारे तन- बदन में तो जैसे
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कहानीहास्य व्यंग्य
अब क्या बतायें!!!! जिज्जी हमारा एटीएम हल्का करवा कर निकल ली अपने घर को। अब हम घर पहुँचकर सोच रहे थे। भानु को क्या जवाब देंगे!!!! क्योंकि जो 3 महीने के राशन के पैसे भानु ने हमारे एटीएम में जमा किये थे.....
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जिज्जी ने भी आपको खूब ' मजबूत' 'कर दिया है. अपने दांव पेंच से..! आपके दिमाग़ में' 'कोई प्लानिंग' 'हो गयी है..!! प्रतीक्षा है..! 👌👍
जी धन्यबाद कल अगला एपिसोड प्रस्तुत करती हूं।
कविताबाल कविता
यदि मैं होती चमक चांदनी।
पूरे अंगना में झिलमिल करती।
तारे मुझसे जलते रहते
रोशनी संग भी खेला करती।
चंदा मुझसे खूब बतियाता
तारों जैसे टिमटिम करती।
यदि मैं होती चमक चांदनी।
संसार भर में दमाका करती
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कवितालयबद्ध कविता
उसे छेड़ने में मजा भी बहुत आता है।
रूठ जाता है तो मनाने में मजा भी बहुत आता है।
आदत सी हो गयी है उसकी मुझे इस मोबाइल की तरह
उसकी फोटो कॉन्टेक्ट में सेव करने में मजा बहुत आता है।
उसकी जुल्फों की कसम
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ख़ूबसूरत..!
धन्यवाद आदरणीय आप सदैव हिम्मत बढ़ाते हैं।
सच लिखा, तस्वीरें अक्सर ही झूठ दिखाती हैं... सुंदर कविता
धन्यबाद आदरणीया।
कवितालयबद्ध कविता
जेड़ा आज वी निभाउना नी
जेड़ा कल की तो छड़ दित्ता
तैनू दिल विच रक्खा मैं
तू होर का तो होना नी
चल वादा कर बलिए
मैनूं कदी छड़ जाना नी
दिल नु यूं कहना नी
गल किसी होर दी बनाना नी
वो होर आशिक होवांगे
आपा मुड़
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कहानीलघुकथा
"तुमने उस वीडियो के कैप्शन पर इतना बव्वाल क्यों मचाया?"
सोशल मीडिया पर वायरल हुई वीडियो के कैप्शन पर कॉमेंट पढ़ रजनीश सीधे सिद्धार्थ के इनबॉक्स में दाखिल हुआ। दोनो बेहतरीन दोस्त हैं। एक दूसरे से
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कविताअतुकांत कविता
थोड़ी सी खट्टी,
थोड़ी सी मीठी,
थोड़ी चटपटी,
हाँ ज़िन्दगी ही तो है,
थोड़ी खिली-खिली,
थोड़ी बासी,
थोड़ी नयी,
कुछ खुशियों से मिली,
कुछ उदासी भरी,
तो शिकवा क्यों करे!!!
क्यों आँखे भिगोयी!!!!
क्यो करे अनदेखी!!!!
क्यों
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कहानीहास्य व्यंग्य
हम फिर से आ गये..... जिज्जी की कहानी लेकर। कुछ भी कहो, पहले अध्याय में हमारी जिज्जी बड़ी फेमस हो गयी। धमाका भी गजब का ही कर दिया था। कुछ भी कहो हम तो गऊ है गऊ जिज्जी की हर बात सुन लेते है। नहीं तो भूकम्प
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वाह..!! जिज्जी तो बड़ी स्नेहशीला निकलीं...!! बड़े दिनों बाद तो आयीं हैं.. बेचारी..!! 😊
कहानीसामाजिक, उपन्यास, हास्य व्यंग्य
“अभी तो लिखने बैठे है, हम देखना बेटा बहुत लम्बा लिखेंगे और ऐसा लिखेंगे की लोगो की आंखों में आंसू आजायेंगे”
हमने खुद से बात करते हुए पेन पेपर उठाया, एक लाइन ही लिखी थी कि डोर बेल बज गयीं। हम दरवाजे
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जिज्जी का आना तो वैसे ही भारी होता है.....खुद आईं सो आईं,पूरी पलटन भी साथ लाईं😅
जी अभी जिज्जी शुरू हुई है अभी बहुत से कारनामे होंगे 😂
स्वागत है..!। हम लोगों की फर्माइश पर.. अन्ततोगत्वा.. जिज्जी प्रकट ही हो गयीं..! 👌🙏
धन्यवाद आदरणीय
कहानीसंस्मरण, हास्य व्यंग्य
अब यही किस्सा ले लीजिये।
फेसबुक देवता की कृपा से हम पहुंचे गोरे लोगों के समूह में अब भारतीय हैं जहां जाने को मना किया जाता है वहां जरूर जाते हैं। विदेशी समूह था तो पहुंच गए। अब हमें हाथों में खुजली
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बहुत मज़ेदार..! आपने कुछ गलत नहीं किया, केवल कर्तव्य का पालन उचित प्रकार से किया श🙏😊👌
कहानीलघुकथा
(लघुकथा)
"उठ माँ तू सोई है देख मैं तुझसे मिलने आया हूँ"
"बेटा तू तो कल ही छुट्टी लेकर गया था ना फिर इतनी जल्दी कैसे?"
"बस माँ तूने आंखे गीली करके विदा किया था ना तो मन नही माना सोचा एक बार और मिल लूँ तुझसे"
"अच्छा
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कवितालयबद्ध कविता
सास बहू के झगड़े से
नागिन के इस पचड़े से
अब सीरियल उभर रहे।
घर घर टीवी बदल रहे।
हो रहा अत्याचार भयंकर
अब तो न मिले शिव शंकर
टी आर पी अब घटने लगी
क्योंकि
क्योंकि
मोबाइल की घण्टी बजने लगी
प्राइम अब ट्रेंड
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कहानीहास्य व्यंग्य
हुआ यूँ की रुकिए रुकिए जल्दी क्या है आराम से बताएंगे। उ का है ना कि चटपटी बातों में थोड़ा मजा ले लेकर बिल्कुल मिडिल क्लास फैमिली वाला लुक लेकर बताना चाहिये। आखिर हम भी तो मिडिल क्लास फैमिली से ही
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बहुत ही खूबसूरत पोस्ट..! पढ़ने पर हंसी रोकना मुश्किल है.. आपकी सीरीज़ '' जिज्जी '' याद आ गयी 😊👌
कहानीलघुकथा
"हैलो , हैलो, शुभ्रा, मैं अदिति बोल रही हूँ जल्दी से टीवी खोल"
"क्यों क्या हुआ?"
उधर से अदिति की आवाज से अजीब सी शंका महसूस हो रही थी।
"सुन आजतक चैनल लगा जरा"
शुभ्रा टीवी खोलकर आजतक टीवी लगाकर देखती है
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बहुत ही अच्छा संदेश दिया है आपने अपने लेख के माध्यम से, माना कि प्यार अंधा होता है, परन्तु जिससे हम प्यार करते हैं उसके बारे में अच्छे से जान लेना चाहिए। क्योंकि आज के समय में ऐसा होता है इसमें कोई शक नहीं।
जी धन्यवाद 🙏🏻
कवितालयबद्ध कविता
पिया बनी हुई इस बात को बोलो तुम कब बोलोगे
शहद अपनी बातों का बोलो तुम कब घोलोगे
पति बड़ा ही हैरान पूछे
प्रिये हुआ तुमको है क्या
जहर उगलती बीवी से तुम बन गयी कैसे दयावान
बीवी बोली आप इतने प्यारे हो रुक
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कहानीअन्य
पति : खाने में क्या बना है?
पत्नी : टिंडे की सब्जी और रोटी
पति : रोज यही बना देती हो।
पति खाने में क्या बना है?
पत्नी : भिंडी की सब्जी और रोटी
पति : कभी कुछ ढंग का भी बना लिया करो
पति : खाने में क्या बना है?
पत्नी
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बहुत सही बात कही नेहा जी लाजवाब व्यंग
धन्यवाद आदरणीया
कवितालयबद्ध कविता
पुलवामा अटैक में शहीद हुए उन सभी शहीदों को नमन जिनके जाने का जख्म आज भी उनके परिवार वालों के आंखों में दिखता है। हमें गर्व है अपने भारत देश पर जहां हमारे वीर सैनिक दिन रात हमारी ही सेवा में रहते
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कहानीलघुकथा
"अच्छा हम कब शादी कर रहें है"।
"जल्द ही"
"तुमसे जब भी पूछती हूँ यही उत्तर मिलता है, तुम्हे शादी करनी भी है या नही?"
"जानू तुम तो गुस्सा हो गयी शादी करनी है पर इतनी जल्दी नही, अभी मैं कमाता ही कितना हूँ बस
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कवितालयबद्ध कविता
एक और कविता प्रेम पर। अब तो दो ही दिन बचे हैं बीच में।
तुम रूठना मैं मनाऊंगी।
तुम मान जाओगे जब
मैं रूठ जाऊंगी।
कुछ इस तरह पिया मैं।
भारतीय वेलेंटाइन डे
तुम्हारे संग मनाऊंगी।
तुम दोगे जब रोज मुझे
मुंह
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कवितालयबद्ध कविता
मोहब्बत का तीसरा दिन यानी चॉकलेट डे। एक और प्रेम कविता 😘
◆◆◆◆◆◆◆◆◆
ज़िन्दगी की राह में अब,
हाथ में तुम्हारा हाथ लिया।
दिल में अपनी चाहत का,
दिया भी देखो जला दिया।
तुम बूंद समंदर की बन जाओ,
मैंने
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बहुत अच्छी पोस्ट. ट्रेकिंग बहुत मनोरंजक होती है. मैंने एक बार करीब 20 दिन की ट्रेकिंग की थी. बहुत पहले. पैर ना फिसले, उसके लिए उस समय बाटा के हंटर बूट आवश्यक थे. वे पत्थर पर अपनी ग्रिप बना लेते थे. अब तो बहुत विकल्प हो गये होंगे.
बहुत अच्छी पोस्ट. ट्रेकिंग बहुत मनोरंजक होती है. मैंने एक बार करीब 20 दिन की ट्रेकिंग की थी. बहुत पहले. पैर ना फिसले, उसके लिए उस समय बाटा के हंटर बूट आवश्यक थे. वे पत्थर पर अपनी ग्रिप बना लेते थे. अब तो बहुत विकल्प हो गये होंगे.
लेखअन्य
आज सोचा कुछ खुराफात की जाए। एक समूह में घुस गई। वहां लिखा था घर बैठे कमाए। मैंने सोचा शुरुआत यही से की जाए। मैंने मैसेज कर दिया इंटरेस्टेड, मैडम इनबॉक्स में आई और कहा कि आप मुझे व्हाट्सअप करें मैं
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कवितालयबद्ध कविता, अन्य
किसी ने बड़े प्यार से इनबॉक्स में शायरी भेजी
हमने प्रेम से पढ़कर पतिदेव को सुना दी।
ऊपर से कहा कि देखिये हमारे बारे में कितना सुंदर लिखा है।
एक आप हो जिसने कभी शायरी में मुझे कुछ नही कहा है।
कहकर पतिदेव
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कवितालयबद्ध कविता
आम सी ज़िन्दगी
आज जरा खुली हवा में साँस लेने दो।
बड़े दिन से आजादी ढूंढी आज आजाद रहने दो।
बह रही थी मन में घाव के समंदर में कबसे
मरी हुई सी ज़िन्दगी को अब तुम ज़िंदा बहने दो।
वो ले गया था सुकून मेरा मुझसे
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लेखअन्य
कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जिनसे हम हमेशा सोचते हैं कि पीछा छूट जाए और हम आगे बढ़ जाएं पर सच्चाई कुछ और ही होती है। जिस चीज़ को छोड़कर हम आगे बढ़ते हैं वह खत्म नही होती। बल्कि घूम फिरकर हमारे सामने आ जाती
Read More
कवितालयबद्ध कविता
कुर्बानी सैनिकों की याद आती तो होगी
टीस दिल को जलाती तो होगी।
यूँही नही बने हैं हम हिंदुस्तानी
धरती माँ जंजीरों में जकड़ी नजर आती तो होगी।
देश की मिट्टी जो उगलती है सोना
सैनिकों के लहु से गुजर जाती
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कविताअतुकांत कविता, अन्य
मायके से सिर्फ बेटियाँ नही लौटती हैं।
लौटता है उनके साथ मान सम्मान
मायके के यादों की पोटली
घर आंगन में उछलता कूदता बचपन
पिता के आशीर्वाद में जताई गई चिंता
माँ के आंचल से निकली सीख
भाई के प्यार से
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सही.. कहा... बेटियाँ होती है बहुत समझदार उसे कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ती...🙎
मुजे उम्मीद है आप गजल के छंद को आत्मसात कर बहेतर गजल लेखन कर उम्दा रचना लिखोगी /
बहुत कुछ सोचने को विवश करती हुई रचना,वाह!
धन्यवाद 🙏🏻
ह्रदयस्पर्शी कहानी, आज के बच्चों का मोबाइल दीवानापन दर्शाती।
धन्यवाद
कविताअतुकांत कविता
हाँ हम सब आम हैं।
हम सभी उन गलियों से निकले हैं
जहां आम की गुठलियों को सफेद होने तक खाया जाता
जहां गर्मियों की छुट्टियों में नानी के घर जाने की शिकायत लगाई जाती।
सर्दियों में बड़े स्वेटर को मोड़कर
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कवितालयबद्ध कविता
वो अनमोल नगीना साँसों का उनके छल्ले में था।
आज इश्क़ बदनाम उनके मोहल्ले में था।
वो बेख्याली में गुजर रहे थे दिल की गलियों से।
मेरे प्यार का निशान उनके गले में था।
खिलाफत की जमाने ने बड़ी हिमाकत थी
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सुविचारप्रेरक विचार
जीवन की बत्ती तभी तक प्रकाश से भरी रहती है जब अपनों का साथ प्रकाश बनकर चमकता रहता है। अकेलेपन में दिए का प्रकाशहीन होना बिल्कुल सत्य है
- नेहा शर्मा
हमें प्रकाश की जरूरत तभी पड़ती है जब अंधेरा हो।
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बहुत.. ही...बढ़िया...शादी... की..शालगिरा...की शुभकामनाएं....
बहुत बहुत धन्यवाद
विवाह की वर्षगांठ की बहुत बधाई और शुभकामनाएं ??????
बहुत बहुत धन्यवाद
कहानीप्रेरणादायक, अन्य
मुझे आज भी याद है जब भी देव उठनी एकादशी आती माँ हमेशा सफेद रंग के कत्थई और चाक से जमीन पर देवता बनाया करती थी। गेरू से घर की सभी देहरी पर डिजाइन बनाया करती थी। और भी बहुत कुछ करती थी। फिर छलनी को जमीन
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किसी के यादों का एहसास हनेशा बहुत कुछ कहला जाता है, और आपकी भी कविता बहुत कुछ कहती हैं। मेम अगर मेरे कहने कोई गलती हो तो माफ करना लेकिन आपकी रचना पढ़ने में थोड़ी असहज लग रही है। अगर विराम चिन्हों का प्रयोग हो तो सहजता होगी ।
जी बेहद शुक्रिया आपका मुझे भी लगा कि रचना अभी थोडा कच्ची है और मैंने पोस्ट करने में जल्दी कर दी। बहुत अच्छा लगा कि आपने नोट किया। ??
बहुत ही खूबसूरत.. मर्मस्पर्शी एहसास.. जीवनसाथी के बिना जीवन निष्प्रांण. सा हो जाता है..!
कविताहरियाणवी रागिनी, लयबद्ध कविता, अन्य
ज्यारे जा
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ज्यारे जा ज्यारे कागा
मेरी अरदास तू लैजा
उस कुम्हारण न जाके कह दिए
ज्यारे जा....
मेरी माई सै भूक्खी
मिले ना रोटी सुक्खी
कुक्कर खावेंगे बेटी कह दिए
ज्यारे जा......
दिन यो इब ढलता जावै
कमाई
Read More
रचना अच्छी है पर कुक्कर वाली पंक्ति समझ नहीं आई दीदी
कुक्कर मतलब कैसे
बहुत सुदंर पंजाबी मे कवीता। कुक्रर खावेगी का मतलव
जी हरियाणवी में कुक्कर को कैसे कहते हैं। खावेगी मतलब खाएगी।
जी मुझे हरयाणवी लग रही है ?♀️
कविताछंद
अरिल्ल छंद
बंसी मधुर बजाये मोहन
सुनकर सब बन जाये जोगन
चलो श्याम की बने सुहागन
पंथ निहारे बनकर दुल्हन
बरस रहे हैं मुझ पर बादल
प्रेम मग्न मैं बह गयी पागल
होश कहाँ है तुमको पाकर
अब तो गले लगाओ आकर
पी
Read More
तुम मेरे ख्वाबों की तस्वीर ही बनाते हो ,बहुत सुन्दर
बहुत बहुत धन्यवाद
कवितालयबद्ध कविता
बड़ा नुकसान कर देता है।
मेरा दिल बदनाम कर देता है।
मैं तरसती हूँ एक छाँव को
वो सुबह को शाम कर देता है।
पगला है वो नही समझता है।
किस्सा सरेआम कर देता है।
मेरी है ये कहता फिरता है।
झगड़े जैसे काम कर देता
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ये मेरे बारे में क्या लिख दिया??
सभी के साथ है क्या करें। हर जगह हर तरह के लोग मिलते हैं।
कविताअतुकांत कविता
हिस्सा तुम ही तो थे मेरा
फिर क्यों बंटने की बात की।
देखा है कभी
जमीन और आसमान को
दोनों अलग - अलग दिखते हैं।
दिखते हैं ओर - छोर मिलते हुए
पर मिलकर भी मिलते नही।
तुम्हे क्या चाहिये यह तो सब जानते हैं।
मुझसे
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वाह बहुत सुंदर ...! सही कहा आपने इस दुख से उस दुख के बीच क्षण भर का सुख भी आता है...!
कवितालयबद्ध कविता
दिल दरिया और हम समंदर हो गए।
गली के लड़के बड़े छछुंदर हो गए।
परेशान करने लगे है आते जाते गली से।
एक रिपोर्ट की सब अंदर हो गए।
क्या बताये नेहा जमाना खराब है।
एक देखा था लगा सब बंदर हो गए।
उतर गए मन से
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लेखआलेख
आप सभी को मैं नेहा शर्मा दुबई से सादर प्रणाम करती हूँ। अच्छा यह देखकर लगता है। कि हम भारतीय संसार के लगभग हर कोने में है। और उससे अच्छा यह लगता है कि हमारे देश की जो सुगंध है हम सभी ने मिलकर कायम रखी
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कहानीसंस्मरण, हास्य व्यंग्य, व्यंग्य
उस दिन हम जबरदस्त तैयार होकर बाहर निकले दरवाजे पर खड़े थे कि एक महिला फोन में भी लगी हुई थी और पड़ोस घर की घण्टी दनादन बजाए जा रही थी। हम भी पतिदेव और बेटी के जूते पहनकर बाहर आने का इंतज़ार करने लगे।
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हाहाहा मजा आ गया। मेरे हाथ में मोबाइल न भी हो तो ऐसी हरकतें यदाकदा मेरे से हो जाती हैं ?
बहुत ही मजेदार वाकया..! वास्तव में फोन में कभी कभी लोग इतना खो जाते हैं कि दिमाग़ चलाना ही बन्द कर देते हैं..!,???
कवितालयबद्ध कविता
खेल मौत का देखकर, हर दिल आज घबराया है।
देखो देखो इंसान आज जमी पर आया है।
सोच रहा एक दूजे को, हाथ पकड़ इठलाया है।
देखो देखो इंसान आज जमी पर आया है।
मार डर को देखो ये आज आगे बढ़ पाया है।
देकर हिम्मत डॉक्टर
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सही.. कहा... यूं.. होता.. हैं.. अक्सर.. आप बहुत अच्छा लिखती हो...
बहुत बहुत शुक्रिया ??
मीठी बात बम के गोले
शुक्रिया
कहानीसंस्मरण
जब भी शिक्षण की बात उठती है अक्सर कुछ प्यारी सी बातें मस्तिष्क पटल पर उभर आती हैं। प्यारी इसलिये की नन्हे मुन्ने से बच्चो से जो जुड़ी हुई है। मेरा शिक्षण का यह पहला अनुभव ही था। इंटरव्यू दिया और मैं
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कवितालयबद्ध कविता
अच्छा सुनो एक बूढ़ी सी जवानी देख रही हूँ तुम्हारे साथ।
लड़खड़ाते हुए बेंत लेकर चलना।
एक दूसरे का सहारा बनकर हंसी ठिठोली करना।
आपके चश्मे को मेरे स्कार्फ़ से साफ करके आपकी नाक पर रखना।
बच्चे की तरह
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बहुत ही सुन्दर और भावनाओं से ओत-प्रोत रचना है साधुवाद और बधाई।
शुक्रिया आदरणीय
बहुत ही सुंदर। हसरतें पूरी हो जाना ज़िंदगी का सुखी हो जाना
????
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां। वाकई, दिल की हसरत इतनी ही तो है
??
वाह,बेहद ही भावनात्मक
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय
बहुत भावपूर्ण और सत्य पर आधारित कविता लिखी आपने। उम्र का ये पडाव सभी के साथ आना है
जी होंसला अफजाई हेतु आपका बेहद शुक्रिया मैं भी बेसब्री से आपकी रचना का इंतज़ार कर रही हूं।
लेखअन्य
हम औरतों के ऊपर भी न कितना भार होता है। इस ड्रेस पर क्या अच्छा लगेगा। इस साड़ी पर क्या जमेगा। इस इस इयरिंग के साथ क्या ये दुपट्टा मैच होगा। आदमियों का क्या है। एक कंघा सिर में घुमाया जूते पहने शर्ट
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कवितालयबद्ध कविता
जिसने राह दिखलाई वो हर एक गुरु है पास।
मैं दूँ किसको बधाई बतलाओ गुरु को हमसे आस
पीने के पानी ने हमको जीवन देकर सिखलाया।
कैसे किसी को अपनाए हमको यह बतलाया।
हवा ने हमको सांसे देकर कर्ज से आजाद किया।
बिना
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कवितालयबद्ध कविता
जूझ रहा हूँ आज यहाँ मैं
अपनी कथनी करनी से
किये हुए सब पाप पुण्य
बह रहे समय की झरनी से
अपना पराया कुछ मत पूछो।
पूछो उस झूठी बरनी से
भरती गयी जो धीरे धीरे
अब समझ आया करनी से।
पड़ा हुआ है शरीर यहां पर
तज
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कहानीहास्य व्यंग्य
फेसबुक ने न जाने कितने जाने अनजाने लोगों को मिला दिया। अचानक से फेसबुक मैसेंजर पर आप होम पेज पर स्क्रोल कर रहे हों। और फ्रेंड suggetion वाले ऑप्शन पर नज़र जाए और एक प्रोफाइल को देखकर नज़र ठिठक जाए। और फिर
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भैया अब ना करेंगे msg उसे
बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत दिलचस्प.. नेहा जी.. ऎसा वास्तव में होता है, बहुत से पूर्व परिचित मिल जाते हैं, पुरानी यादें ताज़ा हो जाती हैं..! और भी बहुत सी ' वैराइटी' मिलती हैं. कुछ लोगों की वर्तमान गतिविधियों की जानकारी हो जाती है.
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय आपकी। अनमोल टिप्पणी हेतु
Hahahaha वाह नेहा जी..! बहुत बारीकी से व्याख्यान किया अजनबी चेहरा पहचानने के लिये...! मज़ेदार है..
शुक्रिया पूनम जी
Bhut hi sunder rachna mam
thank you so much sir.
सुंदर
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय आप भी बहुत अच्छा लिखते हैं। आशा है जल्दी ही आपकी और भी रचनाएँ पढने को मिलेंगी यहां
कवितालयबद्ध कविता
कहीं घी के दिये तो कहीं मातम पसरा होता है।
ज़िंदगी में कौन किसका अपना सगा होता है।
एक जगह लड्डू खुशी के बंटते तो एक में आंसू की झलक होती है।
जिंदगी और मौत की कभी आपस में कहाँ बनती है।
माँ के गर्भ में
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बढ़िया
shukriya aadarniy aap bhi bahut badhiya likhte h likhte rahe post karte rahe mai aksar aapki rachnaye padhti hu.
कवितालयबद्ध कविता
तोड़ इन जंजीरों को हवा की तरह बह जाऊं।
मेरा भी एक मन है कभी उस मन को ये बतलाऊँ।
बातें करूँ खुद से घन्टो बैठकर कभी।
उलझनों को दूर रख खुद को भी तो सुलझाऊँ।
एक गाना जो अरसे से दिमाग में ठहरा था
उसे खुलकर
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कविताअन्य
तुस्सी जाणदे भी नही पहचाणदे भी नही।
मेरे कोल आके तुस्सी माणदे भी नही।
हूण दस दिए इरादा है ये क्या
वखरा नु वादा है ये क्या।
गुस्ताखियों नु तू छड़ जाण दे भी नही।
मेरे कोल आके तुस्सी माणदे भी नही।
लड़की
वे
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कवितालयबद्ध कविता
बन जायेगा मंदिर भी पर राम कहाँ से लाओगे।
पत्थर की इन मूरत को क्या फिर से जिंदा कर पाओगे।
कहते फिरते हो हम सब एक है क्या एक तुम बन पाओगे।
पूजोगे क्या इनको भी क्या पापों से बच पाओगे।
मर्यादा में पले
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कविताअतुकांत कविता
एक किताब ऐसी लिखना
कुछ बात कुछ सौगात लिखना।
एक किताब ऐसी लिखना
कुछ बातें छोड़ना
कुछ चित्रों की औकात लिखना।
कुछ मुद्दे उठाना
कुछ गिराने की बात लिखना
एक किताब ऐसी लिखना
एक बचपन की याद लिखना
एक माँ
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लेखआलेख
एक दिन का किस्सा है। लक्ष्मण स्वरूप शर्मा एक मरीज को देखकर दूसरे गाँव से अपने गाँव जाने के लिये एक बड़ी नदी को पार करके दूसरे किनारे पर आए। पास में ही नल था वह अपना थैला जिसमें दवाइयां एवम उनकी जांच
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लेखआलेख
कितना ही आँधी तूफान क्यों न आये पर वो अपने मरीजों को देखने के लिये क्षण भर की भी देरी नही किया करते थे। अपनी साइकिल लेकर निकल पड़ते थे दूर दूर गाँव में उन्हें देखने के लिये। उनकी वजह से लोगो को अब राहत
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लेखआलेख
न जाने प्रभु ने कौन से दुख का पहाड़ उनके घर पर गिराया था कि धीरे – धीरे इनके सभी भाई किसी न किसी कारणवश युवावस्था में ही मृत्यु का ग्रास बन गए। शीशों देवी अकेली ही इन सभी दुखो से जूझती रही। न जाने क्या
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लेखआलेख
रात दिन मेहनत से लग्न से कार्य करती। इतना कार्य करने के पश्चात भी उतना मेहनताना नही मिल पाता था। परन्तु शीशों देवी बिल्कुल भी नही घबराती थी। पति के जाने के बाद खेतों मे जुताई बुवाई पानी देना फसल
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लेखआलेख
(नोट : यह एक सत्य कथा है। इसमें उपस्तिथ सभी पात्र एवम घटनाएं पूर्णतया सत्य पर आधारित है।)
आज मैं आपको बहुत ही साधारण से इंसान के बारे में बहुत कुछ जाना अनजाना सा बताने जा रही हूँ। बहुत ही अनोखी और
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कवितालयबद्ध कविता
मेरी बेटी मेरी माँ हो गयी।
हाँ सच में आज वो बड़ी हो गयी।
मुझे फुर्सत नही होती जब भी।
सोचती है वह मेरे बारे में तब भी।
मुझे अपने हाथों से खाना जो खिला गयी
मेरी बेटी मेरी माँ हो गयी।
हाँ सच में आज वो बड़ी
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कविताअतुकांत कविता
जब लगे ज़िंदगी गजल हो गयी है।
सुनो तुम कवि हो जाना।
खाली बोतलों में जब भरना हो नशा
बहकर जब हवाओं के पार जाना हो।
जब भर गया हो मर्तबान चाहतों का
सुनो तुम कवि हो जाना
लोग चलने लगे अंधकार में दिया बन
गरीबी
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निःशब्द कर दिया
शुक्रिया आदरणीय। यह रचना मेरडी पसन्दीदा रचनाओं में से एक है ?
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी.. एक कटु सत्य.. हम छोटे दूकानदारों,रोज़ कमाने खाने वालों से आदतन मोलभाव करते हैं. वही माल्स, बड़ी दुकानों, पर हम उदार हो जाते हैं
बहुत बढ़िया... मेरी एक रचना बुढा आत्मसम्मान ..! वो भी कुछ इसी कथानक पर आधारित है पढ़ियेगा स्टोरी मिरर पर..
जी शुक्रिया
कवितालयबद्ध कविता
बजे बंसी आगे आगे
मैं पीछे पीछे चलूँ
ऐ श्री कृष्णा तेरी याद में
धुन न बजे तो भी सुनूं
होश न रहे खाने पीने की
ऐसे रस में तेरे रचूं
जिधर देखूं नजारा तेरा हो
तेरे लिए हर रोज सजूँ
चूड़ा तेरे नाम का
बिंदी
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सुन्दर तड़प कृष्ण के लिए ।शायद पृथ्वी पर आत्मा प्रियतम कृष्ण से मिलने को तड़प रही है कान्हा जी आप पर दयालु रहे
Bahut badiya...mam app to hamari inspiration ho....aapke Sabad bahut achhe lagte hai.....sachhe pyaar Mai ESA hi hota.....har koi...aapne bade achhe se unkera hai us feel Ko... I'M always your fan mam....
जी , मैं भी सहमत हूँ
Thank you so much aapke shabdo ne mera likhne ka hosla badha diya aap bhi behtrin likhti hai mai hamesha aapko pdhti hu trending list me pahle no. par hone ke liye aapko congratulations
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
bahut bahut shukriya vandana ji
उम्दा रचना। बहुत बहुत शुभकामनाएं।
शुक्रिया