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कवितानज़्म
कुछ सदाएं कानों को नहीं दिल को सुनाई देती हैं कोईशय आंखों को नहीं मनको ही दिखाई देती हैं जब बाहर का सुनना और दिखना बंद हो जाता है तब वो भीतर दिखाई भी देती है सुनाई भी देती है @ डॉ.एन.आर. कस्वाँ 'बशर'