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अभिव्यक्ति” के शाश्वत गरिमा से.... - मदन मोहन" मैत्रेय (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

अभिव्यक्ति” के शाश्वत गरिमा से....

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अभिव्यक्ति" के शाश्वत गरिमा से,
कह दूं, बिल्कुल' अंजान नहीं हूं।
आज-कल चर्चा का बाजार तेज है,
सत्य कहूं' किंचित हैरान नहीं हूं।।


बीते का बनता हुआ वह विषम लेख,
कब से, अपना उत्तर दाई खोज रहा है।
भ्रम का बनता जा रहा वृहत आवरण,
दूश्चिंता के इस बादल से, अंजान नहीं हूं।।


आज जो' बनते जा रहे सवालों का समूह,
रिक्तता भरने को आतुर प्रतीत होता।
सुविधाओं के अनुसार' ढ़़लने का गुण,
विषमता के धुंध से, वे-ध्यान नहीं हूं मैं।।


आज जो, समय केंद्र पर हलचल होता है,
भावनाएँ भड़काने का खेल चलाने को।
इच्छित को ही पाने का, जो बने धारणा'
सत्यनिष्ठ हो लिख दूंगा, परेशान नहीं हूं मैं।।


अभिव्यक्ति की आजादी के बजते गुंज में,
सत्य को' लिख ही दूं, निर्णायक होने को।
आज दुविधाओं का जो बिछ रहा जाल,
लिख ही दूंगा पन्नों पर' निष्प्राण नहीं हूं मैं।।

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