कवितानज़्म
उम्र - ए - तमाम कुछ बेहतर ढूंढता रहता है
मकां में रह कर यहाँ मकीं घर ढूंढता रहता है
इक मुद्दत हुई उस को उधर का हुवे हुए मग़र
मुस्तक्बिल आजभी अपना इधर ढूंढता रहता है
काफ़िले के साथ चला जा रहा है मुसलसल
मग़र हरेक मुसाफ़िर है कि रहबर ढूंढता रहता है
राह-ए-सफ़र हर-इक मोड़ हर-इक मरहले पर
रहगुज़र में राहगीर अपनी ही कोई डगर ढूंढता है
है कुंडली में कस्तुरी मृग बनमें अक़्सर ढूंढता है
जमाने में "बशर" घर में रह कर घर ढूंढता रहता है
© "bashar" بشر