कविताअतुकांत कविता
पिता
पिता तब भी दुखी नहीं होता है,जब
ज़िंदगी लेती है उसकी कठिन परीक्षा
पिता ज़िंदगी की हर परीक्षा का
सामना करता है डटकर।।
पिता
आँखों से उस वक्त आँसू तनिक भी
नहीं बहाता है, जब
उसकी बेटी विदा होकर जाती है
ससुराल।।
पिता
उस वक्त भी तनिक भी नहीं रोता है
जब, उसे सहना पड़ता है तन पर कष्ट
हर परिस्थिति में करता है कड़ी मेहनत।।
पिता
तब भी नहीं होता है तनिक मायूस
जब, नहीं खरीद पाता है
स्वयं के लिए ज़रूरत के चंद सामान।।
पिता
तब टूट जाता है पूरी तरह
बिखर जाता है टूटे शीशे के मानिंद
छोटे-छोटे टुकड़ों में
जब उसका बेटा
करता है ऊंची आवाज़ में बात
बेटे द्वारा उपेक्षित व्यवहार पाकर
पिता तब बहुत रोता है
हाँ,पिता तब बहुत रोता है।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित