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सिकंदर को हराते कलंदर नहीं देखा - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

सिकंदर को हराते कलंदर नहीं देखा

  • 33
  • 1 Min Read

समंदर में अगर उतर कर नहीं देखा
अंदर का "बशर" ने मंज़र नहीं देखा

दुनिया पे फतेह करते सिकंदर देखा
सिकंदर को हराते कलंदर नहीं देखा

© 'बशर' بشر.

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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वो चांद आज आना
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