लेखआलेख
कितना ही आँधी तूफान क्यों न आये पर वो अपने मरीजों को देखने के लिये क्षण भर की भी देरी नही किया करते थे। अपनी साइकिल लेकर निकल पड़ते थे दूर दूर गाँव में उन्हें देखने के लिये। उनकी वजह से लोगो को अब राहत मिल गयी थी। अब छोटी छोटी बीमारी के लिये न तो वो खुद के स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही करते थे और न ही शहर में भागते थे। अब नानाजी के इलाज की चर्चा दूर दूर तक गाँव में होने लगी थी। सभी उनका बड़ा आदर सत्कार किया करते थे। साथ ही साथ 30 साल उन्होंने पोस्ट आफिस में डाक मैनेजर के रूप में भी कार्य क़िया। मरीजों की सेवा वो निशुल्क करते थे। उन्होंने कभी उनसे पैसा नही लिया। सिर्फ यहीं तक नही उन्होंने पैसा लगाकर गरीब लोगों के घर की लड़कियों की शादी भी करवाई। उनके हिस्से की जमीन बहुत अधिक न होते हुए भी उन्होने जमीन के छोटे छोटे टुकड़े गरीबों और जरूरतमंदों को दे दिए। उनका कार्य अच्छा चलने के पश्चात एवम बच्चों के सफल होने के पश्चात उन्होंने अपने बच्चों के लिए थोड़ी जमीन खरीदी। तब तक देश कब का आजाद हो चुका था। उनकी असली स्तम्भ उनकी पत्नी विद्या देवी थी। विद्या देवी हर परिस्तिथि में उनका आधार बनी एवम उनके हर सुख - दुख में उनके साथ खड़ी रही। विद्या देवी ने 80 साल जीवन के पूर्ण किये एवम पति के हर सुख दुख में साझेदार रही। उन्होंने अपनी सास शीशों देवी के साथ खेती के कार्य में पूरा हाथ बंटाया। लक्षमण स्वरूप शर्मा जी सुबह 10 बजे तक घर में मरीज देखते फिर 2 घण्टे डाक का काम देखते और फिर साइकिल उठा चल पड़ते आस पास के गांव में मरीजों को देखने।