कहानीहास्य व्यंग्य
फेसबुक ने न जाने कितने जाने अनजाने लोगों को मिला दिया। अचानक से फेसबुक मैसेंजर पर आप होम पेज पर स्क्रोल कर रहे हों। और फ्रेंड suggetion वाले ऑप्शन पर नज़र जाए और एक प्रोफाइल को देखकर नज़र ठिठक जाए। और फिर घण्टो सोचे.... अरे यार ये देखा - देखा या देखी - देखी सी लग रही है।
पूरा दिन सोचने में निकल जाता है। प्रोफाइल पूरा छान मारते है। मैसेंजर पर जैसे ही उसे मैसेज करने के लिए हाथ बढाते है तो हाथ रुक जाते है।
हर रोज कहें न कहें वही दिमाग में घूमता रहता है। सच कहें तो हर किसी का दुश्मन ये दिमाग ही तो है। अगर एक कीड़ा घुस गया तो घुस गया जब तक समाधान नही निकलता पीछा नही छोड़ेगा। और साथ में कशमकश भी बनाये रखेगा। हो न हो यह चैन रहने भी कहाँ देता है। और हर कोई कितना भी कहे पर दिमाग की जिद तो हर कोई झेलता है।
खैर दिमाग में जद्दोजहद चल ही पड़ती है। अब वह प्रोफाइल हर रोज सामने से निकलती है पर हिम्मत नही पडती कि इनबॉक्स में पूछ तो लें कि फलां आदमी है कौन... पर नही वह भी नही करेंगे मतलब दिमाग के सारे बटन ढीले कर लेंगे सोच सोचकर पर पूछेंगे तब भी नही और तब भी दिमाग में कैसी कैसी बात चलती रहेंगीं देखिये।
अरे ये कहीं ये स्कूल में तो साथ नही पढ़ता था, या पढ़ती थी। सर के बैच में साथ जाते थे, पर यार वो तो बहुत पतला था चश्मा भी लगाता था ये वो कैसे हो सकता है!
ये कहीं वो चुप चुप सा रहने वाला तो नही है जो हमेशा स्कूल में पीछे बैठता था, नही यार वो तो गुटखा सा था ये वो कैसे हो सकता है।
कहीं ये वो तो नही मेरी सबसे पुराना क्रश जिसके पीछे स्कूल में बैठा करते थे उसका भाई, अरे नही ये वैसा कैसे हो सकता है उसे तो पहलवानी का शौंक था ये तो मरियल सा है।
अब हो जाएंगे 10 या 15 दिन वो चेहरा भी फ्रेंड suggestion में रहेगा ही अब at लास्ट रहा नही जाएगा तो हिम्मत करके यह सोचकर कि जो होगा देखा जाएगा अगर कोई और निकला तो ब्लॉक कर देंगे सोचकर मैसेज कर ही देते हैं।
कंपकपाती धड़कन के साथ hi भेज देते है। अब कोई किस्मत वाला ही होगा जिसको रिप्लाय तुरंत मिल जाये वरना तो बार बार नज़र मैसेंजर पर ही रहती है इतने मैसेज नही आता। खैर बेसब्री वाले इंतज़ार के बाद फोन की लाइट ब्लिंक होती है। उधर से मैसेज बस इतना आता है हैलो कैसे हो आप। बस इतने मैसेज से थोड़ा अंदाजा हो जाता है कि आपका दिमाग सही दिशा में सोच रहा था यह कोई जान पहचान वाला ही है। अब रहा नही जाता तो पूछ ही लेते है।
हेलो सॉरी आपको डिस्टर्ब किया लेकिन आप मुझे जानते हो क्या क्योंकि मुझे आप देखे देखे लग रहे हो।
बहुत समय बाद फिर से फोन की लाइट ब्लिंक होती है।
भैया या दीदी आप मुझे भूल गए लेकिन मैं आपको नही भूला। पहला झटका तो भैया या दीदी सुनकर ही लगता है। खैर दिल को संभालते हुए पूछते है।
नही मैं तुम्हे नही पहचान पा रहा हूँ plz बताओ तुम कौन हो।
संतोष मेरी मम्मी का नाम है वो आपके यहाँ आती जाती थी।
अच्छा नही याद आ रहा है नाम तो सुना सुना लग रहा है।
जी मैं उन्ही के साथ आपके यहां आया करता था।
हां मम्मी की बहुत सारी सहेलियां थी हो सकता है वैसे मैं सबके नाम नही जानता।
नही भैया मम्मी आपके यहाँ झाड़ू पोछे के लिए आती थी।
अब याद आ जाता है कि यह भी आता था। खैर सब बात छोड़ उससे पूछ लेते है।
तुम क्या कर रहे हो आजकल
भैया झाड़ू पोछा कर रहा हूँ
फेसबुक पर काम ढूंढता हूँ
आप भी बताना अगर आपके यहाँ झाड़ू पोछे की जरूरत हो
मैं बहुत अच्छा घर क्लीन करता हूँ।
आपके सब मित्रों को मैसेज कर दिया हूँ कोई न कोई रिप्लाय करके काम पर बुला लेगा।
भैया
भैया
भैया
भैया
और भैया निकल लेते है दिमाग की तो संतुष्टि हो गयी पहचानकर पर अब न ब्लॉक करते बनता है और न मित्र सूची में.......। - नेहा शर्मा
भैया अब ना करेंगे msg उसे
बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत दिलचस्प.. नेहा जी.. ऎसा वास्तव में होता है, बहुत से पूर्व परिचित मिल जाते हैं, पुरानी यादें ताज़ा हो जाती हैं..! और भी बहुत सी ' वैराइटी' मिलती हैं. कुछ लोगों की वर्तमान गतिविधियों की जानकारी हो जाती है.
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय आपकी। अनमोल टिप्पणी हेतु
Hahahaha वाह नेहा जी..! बहुत बारीकी से व्याख्यान किया अजनबी चेहरा पहचानने के लिये...! मज़ेदार है..
शुक्रिया पूनम जी