जहां सुकुन है, वहां इबारत है।
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चित्राक्षरी आयोजन फरवरी 2021 | Certificate | |
बाल साहित्य | Certificate |
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Section | Genre | Rank |
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कविता | गजल | |
कहानी | सस्पेंस और थ्रिलर | |
कहानी | व्यंग्य | |
कविता | नज़्म | |
कहानी | उपन्यास | |
सुविचार | प्रेरक विचार | |
कहानी | बाल कहानी | |
कविता | लयबद्ध कविता | 5th |
कविता | दोहा | 5th |
London is the capital city of England.
सुविचारप्रेरक विचार
माता व पिता के खुशियों और उदासियों के जिम्मेदार उनकी सन्तान ही होती है। अगर कोई संतान अपने माता पिता का सम्मान करें तो उनका जीवन सन्तुष्टि से भरा होता है और यदि कोई संतान दुर्व्यवहार करे तो वह
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गजल
सुनकर कोई आवाज़ कुछ कहता भी नही।
गुमसुम सा वो आजकल हंसता भी नही।
कब से वीरान पड़ा है उसका खुला मकां,
अब तो करीब से कोई गुज़रता भी नही।
धीरे से सुना है, कभी उसे चीखते हुए,
ये ओर बात है कि वो रोता भी नही।
खुद
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कहानीसस्पेंस और थ्रिलर
शशि को सामने देख राज एक दम दंग रह जाता है वह डरकर पीछे हट जाता है और उसे घूरने लगता है ।
" तुम्हे डरने की कोई जरूरत नहीं मैं तुम्हे गिरफ्तार करने नहीं आया बल्कि तुम्हारे साथ एक डील करनी है।"
" डील करने
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कहानीसस्पेंस और थ्रिलर, उपन्यास
नए एस्कॉर्ट ग्रुप का गठन हो गया था । ऑक्सीटोसिन को अब पाउडर का रूप दे दिया गया ताकि नए ग्रुप में आने वाले अनाथ बच्चो को वो पाउडर खाने में और दूध में मिलाकर दिया जाए।
ऑक्सीटोसिन एक ऐसी दवा है जिसके
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कविताअतुकांत कविता
इच्छाएं, किसी के जीवन को ख़त्म नही करती
ये तो सबूत हैं हमारी मौजूदगी का
एक ऐसी दुनिया में
जहां कई लोग
अपनी आँखों पर पट्टी बांधे हुए
झुक रहे अपने कन्धों पर
कई तिश्नगी को लादे हुए चल रहे हैं,
वो लड़खड़ाते
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कहानीसस्पेंस और थ्रिलर, उपन्यास
शाम होते ही राज धीरज के घर पहुंचता है वह पहले से ग्रुप के तमाम मेम्बर मौजूद रहते हैं। वह सबसे मिलकर अनिल के पास जा बैठता है। अनिल धीरज के खासमखास में एक है जो राज़ की तरह उसके हर फैसले में शामिल होता
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कवितालयबद्ध कविता
कई एहसास बिन बताए ही
ख्वाबों में आकर,
गुफ्तगू करके चले गए।
थकी थकी पलकें
यूँ मुरझाई पलकें
ढक लेती हैं
जब जब आंखों को आहिस्ते से
तो ख्वाबों की दुनिया का
एक दरवाज़ा खुलता है
वो जहां अनजान लगता है
समुद्र
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कहानीसस्पेंस और थ्रिलर, उपन्यास
राज अचानक से एक घर के गलियारे में खुद को पाता है। मद्धम मद्धम रोशनी लिए वह गलियारा उसे बिल्कुल अनजान लगा। तभी एक बच्ची के रोने की आवाज आई। वह मुड़ा तो सामने बाहर बालकनी की ओर एक पालकी रखी थी। राज़
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Nice, waiting for next part
शुक्रिया सर। जरूर
कहानीसस्पेंस और थ्रिलर, उपन्यास
राज़ पैकेट लेकर अपने घर आ जाता है। वो घबराया हुआ आंगन में बैठता है और उस बच्ची के बारें में सोचना शुरू कर देता है। राज़ की वाईफ कल्याणी उसके पास आती है और पानी थमाकर परेशान होने की वजह पूछती है। पहले
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कवितागजल
बार बार ज़हन में ख्याल आता है।
कभी पास तो कभी दूर जाता है।
छूता है आकर बहुत करीब से,
और कभी यूँ ही गुज़र जाता है।
तन्हा मैं नही , तन्हा तो वो है,
आहिस्ते से जो मुझे बुलाता है।
कहता कुछ नही कभी एक लफ्ज़
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कहानीसामाजिक, लघुकथा
3 बेटियों के बावजूद ज़रीन को इस बार एक बेटे की उम्मीद थी। सुबह जल्दी उठकर ज़रीन ने इक्के दुक्के काम को निपटाया और हॉस्पिटल के लिए तैयार होने लगी। सास की ओर से घर के कामों में मदद मिलना गुड़ पे चीटीं से
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कवितालयबद्ध कविता
हाथ चल उठे और लिखा गया एक ख्वाब
बिना कलम के बिना किताब
ख्वाबों का पन्ना था वो बेहिसाब।
कुरेदना चाहता था हर लकीरों का नकाब
चेहरा था उसका मानों
एक शब्दकोश का सैलाब
चुरा लिये कुछ शब्द
और खाली कर दिया
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कहानीलघुकथा, बाल कहानी
‘ बाल मजदूरी एक अपराध है’
पहले इस कथन के बारे में सोचें और फिर ऐसी स्थिति की कल्पना करें जहां एक छोटे से बच्चे के ऊपर भी घर के खर्चों की जिम्मेदारी आ सकती है।
लोकडाउन से महीने भर पहले की बात है जब
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मर्मस्पर्शी..! आज की वास्तविकता
शुक्रिया सर
उफ्फ सत्य के करीब। कोई समझता भी नही बच्चों से कम करवाना अपराध है। उन्हें अच्छी शिक्षा देने का जिम्मा कोई क्यों नही उठाता है
जी बिलकुल सही कहा, ऐसी मानसिकता को समझना बहुत ही मुश्किल है
कवितालयबद्ध कविता
चित्त को अपने लोह बनाकर
भय की शिला को तोड़ दे आज।
खुलने दे वो गिरह
जो कब से है मन के भीतर
कश्मकश सी, कलह सी
जो डराती है, रुलाती भी है
जो गैरत लम्हों को जिंदा रखे है
अतीत की यादों को इकठ्ठा किये है
जहां
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कवितागजल
है ऐसा कोई।
तुम जैसा कोई।
नींदों में जैसे ,
सुकून रँवा कोई।
आंखों की नजरें ,
तुम जरिया कोई।
लफ़्ज़ों की गलती,
तुम लहजा कोई।
सवेरे की बातें ,
मन पहला कोई।
ज़िन्दगी की हलचल,
तुम दरिया कोई।
ढेरों है कद्रदान,
तुम
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कहानीसस्पेंस और थ्रिलर
ठेकेदार के फोन रखते ही सामने से सुक्खी की मां एक महिला को लेकर आ धमकती है।
‘ जी कहिये’
‘ जी मेरे पति सुबह से गायब हैं। उनका फोन भी नही लग रहा है।’
‘ जी देखिये अभी 12 बजने वाले है, इंतजार करिये , क्या पता
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कहानीसस्पेंस और थ्रिलर
22 march एक ऐसा दिन जब भारत के किसी भी पुलिस स्टेशन में एक भी रिपोर्ट दर्ज नही हुई लेकिन कनकड़खाता ऐसा गांव जहां के पुलिस स्टेशन जितनी जल्दी रिपोर्ट दर्ज हुई उसे उतनी ही जल्दी मिटा भी दिया गया।
3 दोस्त
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बहुत महत्वपूर्ण विषय आपने उठाया है.
धन्यवाद आपका
ऑटिज़्म से पीड़ित बच्चे को स्पेशल अटेंशन की जरूरत होती है ।यही उसका इलाज है।बहुत खूब। शिवम जी कल आपने मेरी स्टोरी 'नकारा' में प्रतिक्रिया दी थी गलती से वो डिलीट जो गई निवेदन गई पुनः अपने विचार प्रेषित करें।
शुक्रिया आपका
कवितालयबद्ध कविता
तुम, यानी मैं
कुछ कहना
तो आहिस्ते से कहना
खुद से कभी दो लफ्ज़ भी।
कोई नही मगर खुदा सुनता है
हर वो ख्याल
जो मन ही मन बुदबुदाते हो तुम
किसी से ज़ाहिर नही करते
मगर फुसफुसाते हो तुम
कभी घुटते हो अंदर ही
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बहुत खूब प्रिय सर,आपकी रचनाओं को पढ़कर सुकून मिलता है।
मनोबल बढ़ाने के लिए आपका शुक्रिया
कवितालयबद्ध कविता
ज़िन्दगी भी क्या है
जरा से फासलों में कई रंग लिए है
एक पल महरूम है
तो दूसरे ही पल बहती नीर है
पानियों सी बेरंग है
जिस ओर बहलाओ
उस ओर की तस्वीर है
वादियों में कभी बंजर
कभी बंजर में ताबीर है
ज़िन्दगी भी
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कवितालयबद्ध कविता
कभी बेशक जिये होते आकाश में
तो खुलकर जिये होते
जीने की आरज़ू पर पहली बून्द लिए होते
तो भीग जाते खुशियों की झामझोर में
उन्हें बादलों से छीन लिए होते
काली घटाओं का गुरूर तोड़
उनसे भी गरज छीन लिए होते
फिर
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सुविचारप्रेरक विचार
भेदभाव चाहें वो लड़की-लड़के में हो, जाती धर्म में हो, ऊंच-नीच में हो, रहन-सहन में हो या रंग-रूप में हो, ये कभी खत्म नही हो सकते। और अगर मान लो ये खत्म हो भी गए, तो जहां एक भेदभाव खत्म होता है, वहीं एक और भेदभाव,
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कवितालयबद्ध कविता
दिल की जो बाते हैं,
दिल ही तो जाने हैं।
उरूज़ पे चाहत है-
अफ़साने अफ़साने हैं।
ख्वाबों में, यादों में,
अधूरे ज़ज़्बातों में।
हम तुम्हे ढूंढते हैं-
अनजानी राहों में।
आंखों की कनखी से,
मोहब्बत की खिड़की
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कवितालयबद्ध कविता
कहाँ याद कर पाते हैं
उन भूले बिसरे दिनों को
शैतानियों से भरी अटखेलियों को
मां के दुलार को
सुबह के आलस को
बैठे बैठे, जहां दिन गुज़ारते थे
उस आंगन को
भाई बहनों के संग हंसते खेलते
और फिर लड़ जाने को
दूसरे
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सच है!बचपन की यादें कभी भुलाए नहीं जाती।
बिल्कुल, शुक्रिया
कहानीलघुकथा
जब एक नादां दिल ने बुजुर्ग दिल से पूछा कि एक मां का दर्ज़ा इतना ऊंचा क्यों होता है, तो उस बुजुर्ग दिल ने वक्त का पहिया थामकर अपनी गति को रोक लिया और अतीत के धड़कनों में से कुछ धड़कनों को जिंदा करके , उस
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कवितालयबद्ध कविता
कोई तो खास है
जिसके सामने ज़ुबान नही खुलती।
पल पल में रूठना
और पल भर में मानना,
जिसके इज्जत के खातिर
खुद नीलाम हो जाना,
उसके कहे के सामने
खुद का चुप रह जाना,
बात तन्हाई की हो
या अलविदा होता ज़माना,
इन
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वाह वाह
शुक्रिया
शुक्रिया
लेखआलेख
दहेज लेने और देने का रिवाज़ बहुत पेचीदा है। वेसे दहेज लेना और देना दोनों ही कानूनन जुर्म हैं लेकिन आज के दौर में ये जुर्म तब तक जुर्म नही कहलाता, जब तक की कोई जाकर ना बताये। मेने दहेज प्रथा को लेकर
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कवितालयबद्ध कविता, गीत
पास आये हो तुम दोस्ती बनकर,
दूर ना जाना अजनबी बनकर।
परेशां दिल के अधरों पे कभी
मुस्काये नही जहां लफ्ज़ एक भी
ठहर गये वहां तुम हंसी बनकर।
तन्हा राह में कितने तन्हा थे
गुज़रा ना कोई जब हैरां थे
मिल गए
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कहानीप्रेम कहानियाँ, प्रेरणादायक
‘एक मिनट नानी, आप बताते-बताते ज़रा आगे चली गयी।’
‘अच्छा! हां शायद मैं मुलाकात तक चली गयी थी। वैसे मैं थी कहां?’
‘ परफॉर्मंस वाले दिन।’
‘ हाँ … कॉलेज का सेकंड ईयर। मेरी नृत्य कला के उन दिनों खूब चर्चे
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कवितागीत
कर रहें हैं गुफ्तगू अब्सार
दरमियान तेरे मेरे
इजहार हो रहा है प्यार
दरमियान तेरे मेरे।
राज़ ए दिल मेरे सभी
ज़ाहिर होने को है,
ये सावन न मद्धम
ना अब सम्भलने को है।
बहने लगी है एक बयार
दरमियान तेरे मेरे,
इजहार
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कविताअन्य
धीरे धीरे ये जग महक दे
में इतना मानूं, ये जाने कौन ?
फिर बार बार कोई खेरियत रंग दे
कई रंगों से, ये कौन रंग दे
ना जाने कौन?
चुपके से कोई दस्तक दे
मौसम को बदले, हवाओं में बहे
छुपकर भी कोई आवाज़ दे
दिल कहे के
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कविताअतुकांत कविता
एक फूल जो खूब पनपा
पनपने की चाहत में ऊंचा उठा
ऊंचे उठने के हौसले थे उसमे
वही हौसले उसकी पहचान बने
लेकिन एक दिन ढहा
ज़मीन पर यूँ गिरा
की पत्ते पत्ते सारे बिखर गए
हौसले भी दम तोड़ गए
ऋतुएँ बदलती गयी
और
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कवितागजल
शायद अभी भी एक कसर बाकी है।
इस सफर में कोई शहर बाकी है।
देख चुके हैं कई मोहल्ले-गली,
बस अनजान अपना घर बाकी है।
कई इंसा मिले कई फरेब भी,
अभी तो ज़माना बदतर बाकी है।
ढूंढते हैं पाकीज़ा रहनुमा हम,
और खोजने
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कहानीव्यंग्य
देखिये हम बहुत ही सौहार्द दिल के है। ना ही किसी का बुरा चाहतें है और न ही किसी का बुरा कर पाते हैं, इसलिए हम किसी से बुरे की अपेक्षा भी नही करते। लेकिन एक दिन जब किसी का उपहास हमारे संकुचित दिल को छुआ
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कवितालयबद्ध कविता
एक संवेदना, जो हर किसी को महसूस तो हुई
पर जेहन में से, क्या हमने उसे
धीरे-धीरे मिटा भी दिया?
भूल गई,
एक रोटी, किसी की थाल को
एक चादर, किसी की ठिठुरन को
एक उम्मीद, किसी की मायूसी को
और एक लाज, किसी के दामन
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कहानीलघुकथा
दादी तिलमिलाते हुए अपने घर के बरामदे में आई और कोने में पड़ा एक लाठी उठाकर, बाहर लगे पेड़ पर चढ़े बच्चों पर चिल्ला उठी
' अरे ओ नालायकों अभी के अभी मेरे पैड़ पर से नीचे उतरो नहीं तो किसी की खैर नहीं
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कवितागजल
जब कभी किसी परिवार में दुर्भाग्य पूर्ण जायदाद को लेकर बहस होती है। तो अक्सर भाई , बहन और रिश्ते दारों के बीच विरोध की भावना पैदा हो जाती है।बस उसी को ध्यान में रखकर यह गज़ल लिखी गयी है, जिसे थोड़ा
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कवितालयबद्ध कविता
बाजुएँ फैलाये अपनी, देख ये कौन चलें हैं।
बदन पे तिरंगा लपेटे जिनके लहु बहें हैं।
शान में वतन की जो जान गँवा रहे।
भूलाकर गाँव अपना वो वतन बचा रहे।
क्या बेटी, क्या बेटा, क्या जात, क्या विजात
सब धूमिल
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कवितालयबद्ध कविता
जान बैठे हैं,
हाँ ,
जान बैठे हैं
अब हर कड़ियां,
और तल्ख़ियां
जान बैठे हैं
कि गिरकर अब नीचे
ऊपर देखा नहीं जाता
आंखों में दर्द है
पलकें झुकाए बैठें है।
शिवम राव मणि
कहानीलघुकथा
वक्त के साथ साथ सपनों को भूला देना शायद खुद को भूला देना होता है। कब से ना देखा, ना छुआ था, अपने सपनों की उस दीवार को जो बेरंग हो चुकी थी। बस याद था तो परिवार और उससे जुड़ी जिम्मेदारीयाँ। हर दिन की
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कवितानज़्म
*******"""नज़्म"""*******
सोचता हूँ जब
अपनी खताओं को
तो दिल की धड़कनों के साथ साथ
कुछ खोने का मलाल होता है।
जब, सब भूलने की कोशिश करता हूँ
तो एक बीता लम्हा
सामने आकर
कई बेचैनियां उठा देता है।
या फिर कभी,
छोटी
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कविताअतुकांत कविता
किसी से घृणा का भाव
सदेव उस मार्ग की ओर ले जाता है
जहां एक छोटी, परंतु तीक्ष्ण किरण
हमारे उस विचार को उजागर करती है
जो क्रोध में आकर उपज तो गया है
लेकिन वास्तविकता के सरीखी है भी या नहीं
यह मालूम नहीं
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शिवम जी क्या आप साहित्य अर्पण पर आपका फोन नम्बर इनबॉक्स कर सकते हैं।
जी बिलकुल मेम
कहानीव्यंग्य
लोक डाउन का वक्त और दुकान की हालत गंभीर हो चली थी। वैसे लालाजी का सुपुत्र होने के नाते उनके ना रहने पर, मैं दुकान में बैठे जाया करता था। लोक डाउन के वक्त वैसे तो भिखारियों का आना जाना नहीं था लेकिन
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कवितालयबद्ध कविता
ऐसा एक ख़्याल है
कि कभी रोज जब ये सूरज नहीं दिखेगा
बादलों के सहारे जब उजा़ला बिखरेगा
मन में इश्रत की चाह भी फीकी सी होगी
तब राहें तो दिखेंगी
जहाँ जाना है वो मंजिलें भी होंगी
ईर्द गिर्द की हलचल भी
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कवितानज़्म
मेरे अंदर में कैद हूं
जिसका चेहरा बिल्कुल अलग है।
वो बेड़ियों से बंधा है
अंधेरे में, सन्नाटे में पड़ा है
बदन उसका,
सुकून के लिए तड़प उठा है।
आंखों में उसके दरारें हैं
चेहरे पर सूखा पड़ा है।
उसकी
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कवितानज़्म
अरे! उसे ऐसे ना कहो
वो अनजान है।
वो अपनी ही दुनिया में है
या फिर परेशान है
वो खोया है अपने ही रंग में
या खोया है गहरी सुरंग में
वो चल रहा है कोई नई राह
या भटक गया है यहां वहां
बुन रहा है कोई सपना हक़ीक़त
या
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कवितालयबद्ध कविता
मैं बाहर निकलूंगा
तो कोई ना कोई तो छेड़ेगा।
कोई पूछेगा, कोई कहेगा
या कोई तो सिर्फ देखेगा
कोई दूर खड़ा
मन ही मन कहानियां बुनेगा
तो कोई हालात को मेरे पूछेगा
कोई मदद की चाह भी जताएगा
तो कोई देखते ही
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कवितागजल
बीते वक्त को नज़र कर रहा हूं।
क्या ग़म है, ज़रा जीकर कर रहा हूं।
हाल पर कुछ कहने दिया सभी को,
बस सुनकर वही ख़बर कर रहा हूं।
इतना भी कभी दर्द ये रहा के,
अब हर ज़ख्म पे फिकर कर रहा हूं।
एक एहसास होता नहीं
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कवितानज़्म
एक आग सुलगने भर
मेरी जिंदगी रही
बाकी बुझ गई।
मेहराब ए अज़ाब से
यह क्या देखा,
कब बारिश हुई
कब थम गई।
मैं भीगना चाहता था
उन मेले बदन में,
बादलों से नफरत हुई
जितने भी हुई
बाकी बरस गई।
कांटो भरी रात
वह
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कवितानज़्म, लयबद्ध कविता
मै तो हूँ ही बेवकूफ
इन सब मामलों में,
प्यार के मामलों में,
लुभाने के मामलों में,
कोई रूठ जाए
तो उसे मनाने के मामलों में।
आए अजनबी कोई सामने
तो दो शब्द कहने में,
कोई पूछ ले कैसे हो भला
तो अपना हाल बताने
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अन्तर्मुखी व्यक्तित्व की उलझनें.
धन्यवाद आपका
कवितालयबद्ध कविता
कैसी ये शिकायतें?
जरा आज कहिए
दागी उतनी ही लगेगी
जितनी पहले मिली थी
कानाफूसियों का कहना
जरा आज समझिए
दिल पर उतनी ही बितेगी
जितनी पहले सुनी थी
शरीर का यूँ कराहना
जरा आज सहिए
पीड़ा उतनी ही होगी
जितनी
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कवितानज़्म
यह वो शाम है,
जब आफताब उफ्क़ के पीछे छुपता जाता है
तो फलक के कई राज़ खोल देता है।
जब नज़र के सामने, फलक का एक टुकड़ा
हल्के नीले आसमानी रंग से
गहरे अंधेरे की ओर बढ़ता है,
तब ढलता हुआ वो दिन का पहरेदार
धीरे-धीरे
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कवितागजल
चाहें सारा जहां छान लो,ये तजुर्बा कुछ और है।
सामने ख़ुदा है,मगर दिल ने कहा, कुछ और है।
ये नोबत ही तो है,जो चेहरे बदल देती है,
कल के किसी खूब की,आज अदा, कुछ और है।
क्यूं ढकते हैं वो? हिजाब से अपने ज़ख्मों
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कहानीव्यंग्य
बहुत मीठे स्वर में उसने लालाजी से तीन पेंसील के लिए कहा।कहा कि मुझे 3 रुपए की दो पेंसिल दे दो ,लेकिन लाला जी ने इमानदारी दिखाते हुए तीन रूपए की जगह दो रूपए की ही पेंसील के होने की बात कही। इस पर बच्ची
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कवितालयबद्ध कविता
बिखर गए अहसास जैसे
कागज़ों के ढेर थे
बिखर गए अहसास जैसे
किताबों के बगैर थे
बिखर गए है अहसास जैसे
अतीत के दरपन थे
बिखर गए अहसास जैसे
रुकी हुई धड़कन थे
बिखरते रहे हर नौबत में ऐसे
कि शाख से फूल अलग थे
बिखरते
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कवितालयबद्ध कविता
~~~~एक चेहरा नजर आया~~~~
हदों की हद लकीरें, लाँघनी कितनी आसान थी
लाँघकर देखा, तो एक चेहरा नजर आया
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कोई टोके मुझे इस तरह, कोई रोके मुझे इस तरह
कि जुबान भी खुली और मैं खुद भरमाया
किसी के साथ दो टूक
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कविताअतुकांत कविता
पता है….
बीती रात एक सुकून का एहसास हुआ
जब खुद को रजाई के भीतर समेटे हुए
बचना चाहा एक ठिठुरती ठंड से
लगा कि महफूज़ हूँ इन दो चादरों में
काफी है ये ओढ़ते कम्बल
और इनमें सिमटा मैं..
समझा कि ये दिवारें
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वाह वाह, ठंडक में लफ़्जों की ऐसी गर्मजोशी लाजवाब
धन्यवाद सर
कवितागजल
बहुत हुआ कि अब कुछ कहा नहीं जाता।
यहां अब और देर रहा नहीं जाता।
उठती है आवाज़ें, दबती है नफ़्स,
इस हवा में पल भर जिया नहीं जाता।
आज कुछ नहीं मगर उम्मीदें साथ है,
इतना भी ज़फा खुदा सहा नहीं जाता।
एक
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कवितालयबद्ध कविता
मुझे वो नज़रें बदलनी हैं,
जो मेरी तरफ अचानक से मुड़ी हैं।
अपने आप को भींचती हुई
जो मुझे अचम्भे से देख रही हैं;
दया का भाव लिए
जो मुझे कमजोर बतलाती हैं,
मुझ तक पहुंचने के लिए
जो तरस की सीढ़ियां चढ़ती
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कवितानज़्म
जहां तक उम्मीद है,
मुझे वहां तक जाना है।
रोजमर्रा की आपाधापी से
बोझिल हो चुकी,
मन की संवेदना भी
जहां गुम हो जाए,
उस नितांत गुप्त अंधेरे में
एक बुझी आस का दिया जला कर
सामने कहीं दूर,
दिप्त होती खुली
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कवितागजल
ना अधूरा एक भी श्वास रहे।
मुझमें अब यही विश्वास रहे।
दुख रहे चाहें जितने भी मगर,
हमेशा सुख का अहसास रहे।
जीवन यूं ही हंसता रहे और,
गम का न कहीं भी वास रहे।
बैर-लाग-औ-क्रोध आदि,
कभी भी ना मेरे पास रहे।
सुबह
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कवितालयबद्ध कविता
डर रहा हूं मैं
अंधकार को देखकर
,उजाला खो जाने से डर रहा हूँ मैं
एक आहट हो जाने पर
सिसकियाँ भर ले रहा हूँ मैं
जरा-सी चोट लग जाने पर
गुमचोट का इंतजार कर रहा हूँ मैं
थोडा-सा प्यार पाने के लिए
अपने आप को
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कहानीसामाजिक
स्कूल से आते हुए हर्ष काफी खुश दिखा। वह दौड़ते हुए आया और अपने पापा को गले लगा लिया। हर्ष के पापा ने भी उसे प्यार किया और खुशी जाहिर करते हुए कहा
,"तू ऐसे ही अच्छे से स्कूल आया जाया कर, मन खुश
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मर्मस्पर्शी..! ऐसी घटनाओं का प्रभाव '' बाल - मन पर बहुत बुरा पड़ता है..
धन्यवाद आपका
मर्मस्पर्शी..! ऐसी घटनाओं का प्रभाव '' बाल - मन पर बहुत बुरा पड़ता है..
कवितानज़्म, लयबद्ध कविता
उछलती-झूमती उस भीड़ को
आनन्द लेते उस वक्त को
सीमाओं को लांघकर
इन आंखो से देख लूँ, तो आखिरी बार
🥀🥀🥀
किसी तरह बात ना मानकर
दहलीज का चोगा उतारकर
उल्लासो-उत्सव को लपेट
खुशियाँ जोरों से मना लूँ, तो आखिरी
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कवितालयबद्ध कविता
मेरे घर पर आज छत है
इसे में देव की देन समझूँ,
जिसके ऊपर उपकार नहीं
उसके आज हर एहसास को समझूँ।
कोई तन पर बिखरे पसीने को पोछें ,
कोई तन पर मेहनत का रंग चढ़ाता है।
भीषण तप मेँ रहकर भी कोई,
मुस्कराना दर्द
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कवितालयबद्ध कविता
फूलों में भी कीड़े होते हैं।
पत्थरों में भी दरारे होती हैं।
जैसा चरित्र होता है।
वैसा ही मित्र होता है।
शुद्धता तो वाणी में होती है,
शरीर कहां पवित्र होता है।
बुराइयां भी कभी सुहाने लगती हैं।
इंसानियत
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कविताअतुकांत कविता
एक खंडहर में मेरा ख्याल बसा है।
उजड़ी हुई आत्मा में ,
वह सच्चा-सा, भ्रम और मिथ सब लगा है।
फिसलते देख ऐसे मेरा घर आंगन
कि बिखर गए है चोखट पर तेरे
मेरी आस की अश्रुधारा
रखा तुम्हारी दहलीज़ पर
वो दिया
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कवितानज़्म, लयबद्ध कविता
नादान हथेलियों की उलझी राहें,
नादान हथेली में तुमको ढूंढते हैं।
किसी के आने की ना खबर है ना खबर थी।
पहाड़ों से आकर छूती हवा जो कयास भर थी।
सूरज की किरणें भी हैं जो मद्धम हो चली
और एक आस को रात भर,
मझधार
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कविताअतुकांत कविता
लौटकर,
द्विज उडा़न से
मैं जीती हूँ पल पल
एक नया जीवन।
जब जब रहती हूँ
बादलों के बीच
तो लगता है,
मैं दूर हूँ उन नज़रों से
जो मुझे रोकती हैं,
मुझे बाँधे रखती हैं।
मैं दूर हूँ उस समाज
और कूरितियों की बांह
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कवितागजल
आते आते एक ख़्याल कहीं रह गया ।
कुछ ना कहने का मलाल कहीं रह गया।
ढूंढती है निगाहें उसे अब भी वहीं,
आने वाला फिलहाल कहीं रह गया।
पूछेंगे कई हाल बदहाल तुम्हारा,
मेरा भी एक सवाल कहीं रह गया।
दिए हैं
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भावनाओ को शब्दो में तब्दील कर देना ही एक अच्छे लेखक की निशानी होती है
शुक्रिया
बहुत सुंदर रचना ...?? परन्तु कुछ एक पंक्ति थोड़ा असमंजस वाली प्रतीत होती हैं
आपका कहना सराहनीय है। आपने बिल्कुल सही कहा कि थोड़ा अटपटा लग रहा है, क्यों कि तुम ठहर जाओ के दो मतलब, विश्राम करना या बिल्कुल ही थम जाना ( यानी की कुछ ना कर पाना) , निकल सकते हैं। धन्यवाद आपका,; अगली बार से ध्यान रखूंगा।
सर माँ के आने से चैन ही छीन जाना या ठहर जाने से सबकुछ बिखर जाना थोड़ा अटपटा लगा .. माँ शब्द में ही शुकुन होता हैं और माँ तो खुद निर्माता है तो ये बिखराव कैसे हो सकता है...?????
शुक्रिया; त्रुटि कहां हो रही कृपया मार्गदर्शन करें
कवितागजल
कुछ अच्छे में, कुछ अजीब भी था ,
धुंधला-धुंधला वो करीब भी था ।
ना फहम हुआ, ना ही याद आया,
ख्वाब था कोई या नसीब भी था ।
एक लौ उठी, तो अन्धेरा जला,
यूँ रहबर मेरा नजीब भी था।
दुनिया कभी गैर है, कभी अपनी,
दरारो
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कवितानज़्म, लयबद्ध कविता
जो असलियत है अगर उनमें उतरे,
तो गहराईयां नापी नहीं जाती।
जो ख्याल है अगर उनको कहें,
तो कहावतें कहीं नहीं जाती।
अगर देखूं आज़ और खुद को
तो यादें छुपायी नहीं जाती।
साहिल है,वो भी धुंधला है,
तों पगडण्डियाँ
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कवितागजल
मैं इसे इशारे समझूं या क्या समझूं?
वक़्त के किनारे समझूं या क्या समझूं?
रुककर अब तो बैठे है,सुकून भर कहीं
राह पर मजारे समझूं या क्या समझूं ?
सोचता हूं ऐसा होता तो क्या होता?
जिंदगी दीवारें समझूं या
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भावपूर्ण है। नुक्ता लगाने से और भी संवर जाती।माफ़ करना शीर्षक में इसे इशारा या इन्हें इशारे ।ह
जी धन्यवाद आपका। जरूर ध्यान दूंगा
आपकी हर रचना को रस धारें समझूँ, और अगर नहीं तो क्या समझूँ तो
जी शुक्रिया आपका
आप नाम से दक्षिण भारतीय लगते हैं, फिर भी आपकी हिंदी रचना अद्भुत है. वैसे मैं भी चालीस वर्षों से आंध्र प्रदेश के राजमंद्री में रह रहा हूँ
जी नहीं सर , दरअसल मैं उत्तर भारत से हूं। मेरा आखिरी नाम ' मनी' , मेरे पापा ने रखा है, लेकिन क्यूं रखा था मुझे यह नहीं मालूम
आपकी अब तक की पोस्ट सभी रचनाओं में सर्वोत्तम कृती
जी सही कहा, शुक्रिया आपका
कवितानज़्म
क्या तुम्हें याद है?
कि तुमने उस दौरान क्या कहा था?
जब तुम खीजता से भरे हुए थे
तब तुम्हारे कहने का वो अंदाज़
क्या तुम्हें महसूस हुआ
कि तुम किस किरदार में थे।
तुम्हारा कहा,
हर एक लफ्ज़ कितना वज़्नी
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कवितागजल
मै सिमटकर रहूँगा कब तक ?
यूँ रात भर जगूँगा कब तक ?
बदन दुखता है बैठे- बैठे
मै चाँद को घुरूँगा कब तक ?
एक दर्द उठता है रोजाना
अहजान संग जियूँगा कब तक ?
ज़ख्म-ए-जबीं तस्वीर बनी है
रंग चुन चुन भरूँगा कब तक
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कवितानज़्म, लयबद्ध कविता
एक पुकार उस मनस्वी को
जो दौड़ रहा है
और दौड़ते जा रहा है।
निराशा हो या डर
कमजोरी हो या ताकत
खुशी को पाने की जिद हो
या दुख से भागने की आदत;
यह वह निर्णय हैं
जो सच से झूठ की ओर ले जाते हैं।
लेकिन हां, कभी-कभी
सच
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कवितादोहा
होकर अधीर आदमी, चित्त संतुलन खोए
भांति अग्नि दहक उठे, ज्ञान विस्मृत होए।
आतुर हैं असुर भय अपि, दुष्ट असत् कुविचार
करने को प्रलय जगत, यत्न हो सौ हजार।
क्रोध के उच्च कोटि से, जब शान्ति ढुलक जाए
नीचे
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कविताअतुकांत कविता
निरन्तर गहरे,
एक अन्धक सफर में
मैंने एक रोशनी को पहचाना है
जो झिलमिलाती हुई
बहुत दूर, या नज़दीक मेरे
कहां है?
मुझे यह मालूम नहीं
मगर मेरे और उसके बीच की दूरी
महज़ कुछ अंको का हिसाब नहीं है
बल्कि ,
मैं
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कवितादोहा
ठीक ठीक ही बोलिये, बोलिये ना अशुद्ध,
हिंदी के अस्तित्व पर, चलो छेड़ें युद्ध।
ऊपर को बिंदी एकल, ह-द के मध्य लगाए,
मात्रा भी ई स्वर की, इधर उधर इठलाए।
हिस्सा है संस्कृत का, यह पाठ ना भूलिए,
मिलाकर शब्द
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कहानीव्यंग्य
शिवम राव मणि
कहानी
मेरे ज्ञान चक्षु उस वक्त डगमगा गए जब मैंने एक शब्द सुना ‘ मोक्स’।यह मास्क से मिलता-जुलता तो है लेकिन लगा नहीं। मुझे लगा मास्क और मोक्स में अन्तर तो होगा ही।
एक बेढंगा
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कवितागजल
बहर-122 22 122 22
कहीं आदत वो, कभी आफत हो
कि तुम्हें देंखे, कि ये शरारत हो
फ़ज़ल थी शामें, डुबे अर्क जैसे
चल और कहीं फिर कहीं नौबत हो
दिल के तासीर पर क्या फर्क क्या है
तबाह-सी यूं ही, रखी मूरत हो
बढ़े थे जब सुर्ख
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कवितालयबद्ध कविता
कलियो से जो फूल खिले
उसे तोड़ने के लिए, लालायित हूँ मै
पन्ने उधेड़ दिए है जो किताबो से मैने
उसमे कुछ छिपाकर लिखने के लिए , लालायित हूँ मै
ख्वाबों की मिट्टी जो खोदी है मैने
उसमे कुछ यादे बोने के लिए,
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सुन्दर रचना..! वैसे शायद' लालायित और आलिंगन' '' सही शब्द हैं
जी शुक्रिया
कहानीहास्य व्यंग्य, व्यंग्य
बीच जंगल में यात्रियों से भरी बस अचानक रुक जाती है। थोड़ा वक्त गुजरने पर भी बस नहीं चल पाती। सभी यात्री परेशान होकर धीरे-धीरे बस से उतरने लगे। कुछ देर और इंतजार के बाद भी बस स्टार्ट नहीं हुई। सभी
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हाहा बस ने अच्छी exversize कर दी सबकी
जी बिल्कुल सही
कविताअतुकांत कविता
कभी गौर से देखा नहीं
उन सड़कों पे वापस लौटकर
जहां से रोज गुजरते थे
घरौंदे से तालीम को लेने
और तालीम को बोझा में भर
जब वापिस लौटते
तो कभी – कभार अकेले हुआ करते थे
तब आंखे खोलकर चलते हुए ख्वाबों को देखना
और
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कवितालयबद्ध कविता
थमी-थमी सी ज़िन्दगी में
सब कुछ थम जाता है
चाहे वो दरिया हो,
वो भी ठहर जाता है
सांसें धड़कनों के साथ होकर भी, थम जाती है
धड़कने खूब धड़क कर भी,
अनजान रह जाती है
आंखें सब कुछ देखती हुई जमी रहती है
ज़ुबां
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बहुत खूब सुबह की सुरुआत एक पॉजिटिव रचना के साथ होना वाकई अच्छा है।
जी बिल्कुल
कवितानज़्म, छंद
सोचता हूं कि क्या लिखूं?
कोई अल्फ़ाज़ या दास्तान लिखूं।
पढ़ा कोई किस्सा लिखूं
या सुना हुआ फरिश्ता लिखूं
कि महसूस होता हर एहसास लिखूं
या पल पल का अंदाज़ लिखूं
लिखूं के जमाने से कोई तजुर्बा
या अपना
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कविताअतुकांत कविता
ऐ! मेरे साए
तू किसको साया देता है?
कभी तन को छोड़
कभी मुझसे लिपट
खोए मुझमे इस तरह
सन्ध्या की ललित
एहसास भी है अब कुछ छुअन का
किरणें झलकाती मेरी आकृति
आकृति की विवश मायूसी
छोड़े जब जग का मोह
प्राण का
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कवितागजल
एक बात मैं ओर कहूं क्या ?
मन मैं गूंजा शोर कहूं क्या ?
चुपके से बैठा वो अन्दर
हाल उसका कमजोर कहूं क्या?
कितनी ही बात छुपाये है
दिल का उसे चोर कहूं क्या?
हालात पे रोया करता है
क्या ये भी जोर जोर कहूं क्या?
बेदम
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bahut khub
धन्यवाद आपका मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए तहे दिल से शुक्रिया
कविताअतुकांत कविता
मन को संकुचित कर,
अपनी आवश्यकताओं को
एक बीज की भाँती
ह्रदय में दबाकर
स्वार्थभाव से विहीन होते हुए,
प्रकाश के समरूप
एक उद्धृत स्वभाव
जब विपदाओं में घिरकर
प्रगति के अवसर ढूंढता है,
तो एक उम्मीद,
बदलाव
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बहुत अच्छी रचना है सूंदर प्रेरणा......ओ आघात हुए मन utho
आभार आपका
कवितागजल
हैरत नहीं की अब जान बेहतर है
मुझसे हुआ यह गुमान बेहतर है
अदा की है ज़नाब कीमतें बहुत ही
यूं ही नही आज ईमान बेहतर है
जो हुआ तो हुआ अब कहकर भी क्या
खामोश है मगर दास्तान बेहतर है
ठहर कर उदासी फिर चली
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कवितागजल
है खोफ मंजर फैला हुआ
डर का साया बिखरा हुआ
सूनी पड़ी सड़कें और गालियां
मातम ये कैसा छाया हुआ
जीने की ये क्या रीत हुई
नकाब ओढ़े चेहरा हुआ
रहने लगे है अब दूर-दूर
किनारो की तरह दायरा हुआ
बेबस हुआ है
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कविताअतुकांत कविता
निश्छलता को जन्म देती हुई
जब एक आस
मन में ठहरती है
तो चिंताओं के उष्ण में जलते हुए
वह धूं-धूं करती
दुविधाओं में तपकर
तामस की तरह अभेद हो जाती है।
तब एक अद्वितीय व ईश्वरीय तरंग
कृष्ण रूपी चित्त को
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आपकी सभी रचना हृदय को छू लेती हैं। बहुत सुंदर लिखते हैं आप 👌🏻
शुक्रिया मेम
'तमस की तरह अभेद्य','उस जगह पहुंचना जहां किसी तरह का भेदभाव न रह जाए' बहुत सुंदर पंक्तियां!
शुक्रिया आपका
कवितागजल
वो जो रह गई उन बातों का क्या ?
कहे कुछ और कुछ ख्यालों का क्या ?
वजह वो न थी जो बस कह गये
जो अभी भी है उन वजहों का क्या?
दूर है एहसास और पास भी
कभी-कभी मगर इन यादों का क्या?
ढूढ़ेगे ज़रूर अपनी भी ग़लतियाँ
गलत-सही
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कविताअतुकांत कविता
चरित्र का व्याख्यान
ना तो व्यग्र, ना ही सूझ-बूझ
और ना ही ह्रदय की कोमलता कर सकती हैं
जबकि व्यवहारिक तौर पर
अस्तित्व का ज्ञान
किसी के स्वभाव को अधूरा ही समझा पाता है।
फलतः एक ऐसी स्थिति
जब मन अन्धक
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