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सपनों की दीवार - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

सपनों की दीवार

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  • 6 Min Read

वक्त के साथ साथ सपनों को भूला देना शायद खुद को भूला देना होता है। कब से ना देखा, ना छुआ था, अपने सपनों की उस दीवार को जो बेरंग हो चुकी थी। बस याद था तो परिवार और उससे जुड़ी जिम्मेदारीयाँ। हर दिन की उठा पठक में, बेचैन करता रहा अपनों का ख्याल, उनकी फिक्र,उनकी परवाह, मुझे कहीं दूर ले गई मेरे सपनों से।
लेकिन एक दिन, जब एक रोज; अपने बच्चों को निर्भरता से आत्म निर्भरता की ओर जाते देखा तो, लगा कि किसी ने बिना कहे ही मेरे कंधों से एक वज़न उतार दिया। तब एक सर्द हवा ने पीछे से दस्तक दी, मुड़कर झाँका तो वही मेरी सपनों की दीवार अभी भी वैसे ही खड़ी है। लेकिन वह जर्जर हो चुकी ,मेरे उम्र की तरह बिलकुल बूढ़ी, मेरी नज़रों के हुबहु मेरे सपनों का सूरज धीरे धीरे अपना रंग खो चुका था। तब मैं मायूस हुआ और जैसे ही वापस मुड़ा तो वो तुम ही थी; जिसने मुझे अपने सपनों को फिर से जीने के लिए कहा, अपने विश्वास से भरा रंग थमाकर उनमें रंग भरने के लिए कहा।

लेकिन आज तुम खामोश हो । एकदम चुप।
काफी देर हो गई कुछ कहा भी नहीं। लेकिन तुम्हारी आवाज बार बार सुनाई दे रही है।जो मुझे वापस मुड़ने को कहती है।उसी विश्वास से भरे सुनहरे रंग के साथ।उस दीवार को फिर दोबारा रंगने के लिए।

शिवम राव मणि

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बढ़िया

शिवम राव मणि3 years ago

जी शुक्रिया

दादी की परी
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