मैं मन के भाव लिखती हूं
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Section | Genre | Rank |
---|---|---|
कहानी | सामाजिक | |
कविता | गजल | 4th |
London is the capital city of England.
अभी दुबारा पढा..! आंखें अनायास नम हो गयीं. अपनी दिवंगत मां की याद आ गयी..! बहुत अच्छा लिखा है 🙏
मैंने आज दोबारा पढ़ा, मुझे अंकिता याद आ गयी। 😭
jindagi ka kadva sach hai. bahut acchi kahani Ankita Ji. Congratulations.
आभार सर
बहुत मार्मिक और ह्रदयस्पर्शी..!!
आभार सर
कविताअतुकांत कविता, अन्य
खूंटी पर टंगी वर्दियां
डोल रही हैं हौले हौले
खूंटी पर टंगी वर्दियां
मद्धिम सी हवाएं
भर रही हैं उनमें प्राण
कि लग रही है चैतन्य ,
हैं सजने को आतुर
फिर उन बांकुरों के तन पर
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कविताअतुकांत कविता
खूंटी पर टंगी वर्दियां
डोल रही हैं हौले हौले
खूंटी पर टंगी वर्दियां
मद्धिम सी हवाएं
भर रही हैं उनमें प्राण
कि लग रही है चैतन्य ,
हैं सजने को आतुर
फिर उन बांकुरों के तन पर
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माँ की ममता होती ऐसी ही होती है..!बच्चों का कोमल स्पर्श..!
शुक्रिया
कहानीसामाजिक
सागर जैसी आंखों वाली
जब से कॉलेज से रीयूनियन का मेल आया था रोशनी का मन कैसा कैसा हो रहा था। जाने क्या क्या तो याद आ गया था। कॉलेज कैंपस की सारी मस्तियां याद आ गई। वो क्लास रूम में दोस्तों से इशारों
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कवितागजल
पत्ते डाली से टूट जाते हैं
हिज्र में हाथ छूट जाते हैं
मोती शबनम के कैसे नाज़ुक से
फूल पर गिर के फूट जाते हैं
ख़्वाब यूं तो हसीन है लेकिन
टूट कर चैन लूट जाते हैं
जब भी कोशिश करूं कहूं मैं कुछ
वक्त पर
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कवितालयबद्ध कविता
जाते जाते दे गई वो मेरी आंखों में पानी
बरसों बाद, एक रोज़...
फिर आई मुझसे मिलने को चिड़िया
न उतरी उस आंगन में,
जहां करती थी दिन भर अठखेलियां
बस बैठी रही मुंडेर पर, गरदन घुमाए
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चिंतन करने को मजबूर करती रचना; बहुत बढ़िया
जी शुक्रिया
बच्चों पर जब तक मां की छत्रछाया रहती है तब तक वे चाहकर भी जिम्मेदार नहीं बनते. मां के जाने के बाद एक जिम्मेदारी खुद ब खुद बच्चों में आ जाती है. बहुत बढ़िया लघुकथा है. अंत में बच्चों की उम्र के बारें में थोड़ा सा स्पष्टीकरण हो जाता तो रचना और ज्यादा मर्मस्पर्शी बन सकती है.
आभार सर
'सिबलिंग रायवलरी' से' जिम्मेदार बहन' बहुत अच्छी रचना है।'
जी शुक्रिया
बाल सुलभ क्रीड़ाओं की उम्दा प्रस्तुति
शुक्रिया मैम
कहानीसामाजिक
अमृत-रस-धार
अस्पताल के प्रसूती कक्ष के बगल में स्थित वार्ड में बिस्तर पर मां की बगल में लेटा नवजात शिशु। गीली माटी के लोंदे सा अनगढ़, सेमल रुई के फाहे सा नर्म। रंग ऐसा गुलाबी कि मानो दूध की मलाई
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इस रचना को पढ़कर मन में उत्पन्न विचार को शब्दों के माध्यम से पीरो पाने में असमर्थ हूँ। अभी-अभी जन्मे नन्हे बालक के मन की व्यथा माँ के प्रति प्यार के भाव का क्या खूब वर्णन किया गया है इस रचना में। पाठक के मन में एक अप्रतिम एहसास जागृत करने वाली यह रचना वाकई में उत्कृष्ट है।✍️??
सार्थक टिप्पणी के लिए शुक्रिया संदीप जी
बालरूप चित्रण ने मानो अमृत रस धार भर दी र्
शुक्रिया मैम
मेरी आँखों मे आँसू और चेहरे पर मुस्कान आ गई। एक एक शब्द को जी लिया मैंने। बहुत बहुत बहुत खूब
आपकी टिप्पणी ने मेरा लिखना सार्थक कर दिया
बहुत अच्छी पोस्ट किताबें अब ई-लाइब्रेरी में सीमित होती जा रही है, लेकिन पुस्तकों का महत्व कम नहीँ होगा. पुस्तकों के स्वरूप, उसका मूर्त रूप अपने आप में सदैव आकर्षित करेगा..!
शुक्रिया सर
कहानीअन्य
एक था सोनू सियार। वह सुंदर वन में रहता था। सोनू बहुत महत्वाकांक्षी था वह अपनी वर्तमान स्थिति से खुश नहीं था। वह जंगल का राजा बनना चाहता था मगर उसमें जंगल के राजा वनराज से टकराने की हिम्मत न थी। उसे
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बहुत प्यारी रचना .! बचपन याद दिला दिया आपने...
शुक्रिया
बहुत सुन्दर, मनोरंजक रचना और सुन्दर सन्देश..!
शुक्रिया सर
कविताअतुकांत कविता
नहीं तुम ईश्वर नहीं
हां पिता तुम ईश्वर नहीं
क्योंकि साकार हो तुम निराकार नहीं
तुम मेरे हो बस मेरे
मेरे ही तो हो
मैं कृति हूं तुम्हारी
और तुम रचनकार मेरे
तभी तो पिता
तुम बसते हो अंतर्मन में मेरे
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कहानीप्रेम कहानियाँ
जब भी बारिश की बूंदें धरती पर सरगम की तरह बजती हैं। रिया अपने प्यार से मिलने को बेचैन हो उठती है। आज भी मेघराग बजते ही रिया का दिल धड़कने लगा है। जब उसकी बेकरारी बरदाश्त के बाहर हो जाती है तो स्कूटी
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सहज, सरल प्रवाही रचना । मजा आया पढ़कर ।
आभार सर
वाह, बहुत ही प्यारी रचना.. भीगी बारिश की सोंधी खुशबु लिए हुए
शुक्रिया
बहुत सुन्दर स्रजन..! जिन्दगी बहुत कुछ सिखा देती है. बस कौन जल्दी सीखता है..!
कविताअतुकांत कविता
अंखुआते हैं, कुछ ख्वाब...
हर नए रोज़,
आंखों की क्यारी में....
क्योंकि बो देती हूं,
कुछ बीज ख्वाहिशों के....
हर गुज़रती रात ....
नींद के गमलों में,
निकलते हैं उनमें....
पत्ते, उम्मीदों के ,
नाज़ुक - नाज़ुक हरे -हरे
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बेहद खूबसूरत और प्रभावशाली कथा! वैसे भी जब मैं सुनती हूं चूड़ियों के नाजुक कलाइयों का प्रतीक के रूप में तो जरूर सोच में पड़ जाती हूं क्या चूड़ियां सचमुच सिर्फ कमजोरी का प्रतीक है। लेकिन इस कथा के माध्यम से लेखिका ने उन कलाइयों पर सजी चूड़ियों को भी सम्मान दिया है जो मेहनतकश होने की प्रतीक है। मुझे इस कथा को पढ़ने के बाद कई स्मृतियां याद आती हैं मेरी दादी, यहां तक कि मेरी सासू मां भी जब चूड़ियां लेती है तो ऐसे ही मोटी मोटी मजबूत देख कर लेती थी उनका मानना था कि जब हम मेहनत का काम करते हैं तो यह नाजुक चूड़ियां बीच में आती है। मजबूत चूड़ियां ढाल की तरह काम करती हैं यह उन मेहनतकश स्त्रियों की मेहनत का प्रतीक बन जाती हैं
सार्थक प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद
कहानीसामाजिक
"आज क्या उठा लाई?" उर्मी के हाथ में पकड़ा बॉक्स देख कर मां ने पूछा। "अभी कूरियर वाला दे कर गया है। किसी बृजेश नाम के आदमी ने आपके लिए गिफ्ट भेजा है।" उर्मी ने बॉक्स मां को पकड़ा उनके साथ ठिठोली सी की मगर
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बहुत ही सुन्दर कहानी..! उद्देश्य परक..!
शुक्रिया सर
सुन्दर.. मर्मस्पर्शी रचना..!! स्मृतिशेष.. लेखिका को सादर सविनय नमन..! ॐ शान्ति🙏🙏🙏🙏🙏🙏
शानदार लघुकथा। समाज की सोच पर करारी चोट की है
शुक्रिया