कवितागजल
इल्म की हर किताब ले आना
लिख के सारा हिसाब ले आना
ज़िंदगी के सवाल मुश्किल हैं
ढूंढ लेंगे जवाब ले आना
वक्त लगता है घर बनाने में
सब्र तू बेहिसाब ले आना
आज सहरा में गुल खिलाने को
तुम कहीं से चिनाब ले आना
अश्क जाए छलक न पलकों से
साथ अपने हिजाब ले आना
दर्द आंखों में इक बसाने को
खूबसूरत सा ख़्वाब ले आना
अंकिता अब्र के दुशाले से
ख़्वाहिशें लाजवाब ले आना