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"ले"
कविता
"आ अब लौट चलें "
ले आना
भींगे-भींगे बारिश वाले प्यार
बारीश वाला प्यार
बारिश वाला प्यार
बारिश वाला प्यार
पिता
मैं और बनारस के पथरीले घाट
इतना हँसो कि रोने का वक्त ना मिलो
मौसम का मिजाज
पहले के जैसे
उनको
आशावादी मन
गृहस्थी
बादल
हास्य की तीन चुटकियां
झरोखे से
बिन बोले
दिले अहसास हमारे
एक नज़रबंद कैदी
काँटों के बीहड़ में खिले गुलाब
चित्रलेखन
जोगन की यात्रा
जब भी छुओगे मिलेगी नमी मुझमे
Kya neend aati hai tumhe
इतना हँसें कि रोने का वक्त ना मिले
काश ! मुड़कर देख लेते
मत करो जीवन नष्ट ये अद्भुत वरदान है
मेरे गले में
काश ! मृत्यु से पहले जाग जाते
जोगन की यात्रा
मुझे तू अपना सा लगता है
निराले निराला
एक नन्हीं परी
काश..एक बार तुम मेरी खामोशी सुन लेते
मेरी नन्हीं परी
आह!
एक और रामधुन
मैं क्या चाहता हूँ
जोगन की यात्रा
कैसे तूफां होगा शांत
प्रेम
जब जन्म लेती है "बेटी"
मिले खुदसे हुए ज़माना सा लगता है
दीप वह फिर से जलेगा
ग़ज़ल
तुम मिले
रोष
मीत -मेरे
कोरोना से डरो ना
इक उजाले का नयन में आस होना चाहिए
लेखनी....
दिप जैसे चमकते रहो तुम ...
अन्नदाता
जयहिंद की सेना
यूँ ही बस बैठे ठाले
चलो आज फिर.....
पढ़े चलो, पढ़े चलो.....
कुछ तीर तुक्के
बेटी की पाँती पापा को
इश्क मोहब्बत
#अलविदा 2020
अलविदा ऐ जाने वाले
2021
इकरार
एक नन्हीं परी
देख ये कौन चलें हैं
सपने में पापा आए
आम सी ज़िन्दगी
मुझे कुछ कहना है
कल मिलोगी जब तुम मुझसे...
आज मिलेगी वो मुझसे...
बसंती छोले
एक चॉकलेट उनके लिए
भारतीय वेलेंटाइन डे
संवेदना
वैलेंटाइन तड़का (हास्य)
बसंती चोले
वैलेंटाइन याद रह गया उनको याद करेगा कौन
बसंती चोले
तन ही कमजोर था
अनार
एक करवट की दूरी
मुस्कुरा कर वह कह के चले गए।।
दो कदम तुम भी चलो
बया के घोंसले सी
काजल
हमसफ़र/दोस्त
खेल खेल में
"काश मिले फिर तेरे आँचल का कोना"
धागे पहले उलझते हैं
भूले-बिसरे चंद लम्हों के हवाले
मेरे दिल की मंजिल
छलिया
ऐ फूल
तुम जो मिले
कैसे गुल खिलेंगे ?
बूढ़ा भगत
सूरज
कविता जन्म लेती है तब,जब
सपनों को उड़ान मिले
सूखते हुए दो पत्ते हम
होली खेले
मतवाले होली के *
एक नारंगी रंग के फूल सा
फूल के चेहरे पर
"खेले खेल हवा से डाली"
चॉकलेट का घर 🍬🍭
खुले आसमानों से जिंदगी को देखना, बहुत ही खूबसूरत सा दिखाई देता है।।
धड़कनें
तुम
काँटों के बीहड़ में खिले गुलाब
माँ तू बहोत याद आती
चंद लम्हों के हवाले
एक नन्ही परी
मन की रफ्तार
मैं तन्हा हूं
उम्मीद से सजे ज़िन्दगी
मंज़िल
मन की आंख से
नव - प्राण हुआ
फिर तू मुस्कुराएगा
अकेले हम
आशाएं
आशा एक किरण *
एक खुले आसमान की हवाओं की तलाश में
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
दवा देनेवाले ने दर्द और बढ़ा दिया
" बयार फागुन की "
पंछी निराले रंगीले।
सिले होंठ
छपाक छप छप
मेहँदी
✍️गम भी जिंदगी को कितना कुछ सिखा देता है।।
बप्पा, तुम जल्दी चले गये
तुम मिले ऐसे...
दो कदम तुम भी चलो
ये हुनर दिखाने का
प्रीत में कुछ ना शेष
ले कान्हा मैं आय गयी रे
एक और रामधुन
मेरी प्यारी मां
मंजिलें मिल जाएगी
तुम हमसे मिलें ऐसे
दिये तले अँधेरे
एक दौर था जब मां जिंदा थी
वक्त के इस काफिले में
वक्त के इस काफिले में
फ़कीर
जीवन
वसंत
वक्त के इस काफिले में
आस में हूं
बचपन की बातें
मेरा हौसला
याद
किसी को ये ज़मी दे दो किसी को आसमाँ दे दो
मां
पुस्तक समीक्षा
शीशा सच ही बोलेगा
भरोसा हौसले पे रखो
ख़ुद को मना लेना बेहतर है
सावन के महीने में कोई बड़ी शिद्दत से याद आता है
और बशर इस जहां में क्या रखा है
बशर सब -कुछ जान लेता है
दर्द किसानों के वो क्या जाने
ख़ामोश रहकर बशर वो अश्आर हज़ार कह देते हैं
किस्तों में अदा होती है
सु पंथ पर चले जो
फासले राब्तोंकी असलियत बता देते हैं
तादाद-ए-अहबाब तेरे भले ही कम हों
उसी की रहगुज़र हो गए
विसाले-हबीब की बशर सदा हमको रहती आस है
क्यूं उतावले होते हो
हवाले किसी के ना अपनी औक़ात कर
फुलवारी
किसी को चाहने से पहले ख़ुदको आजमा लेना
लेखक की कलम
गैरों की खूबियां ढूंढ लेता है
कमाल तो है मग़र बुलंदियों पर टिके रहने
जन पक्ष में लेखनी चले
मुकम्मल कर सफ़र बशर हम आते हैं
अहबाब फ़िक्र-ए-मुसबत वाले क़िस्मत से मिला करते है
चलो चांद पे बसते हैं
अपनी पहचान को भूल गए
थोड़ी-सी जरुरतों वाले घर की रहगुज़र पर
लोग खुदा बदल लेते हैं
चले आए हम सवाली की तरह
सब शिक्षकों को प्रणाम
पीछे रहबर के क्यूं चलें बशर जब हम अपनी ही डगर चलें
धूप में जले हम छांव के होते हुए
चलो मोहब्बत का एक घराना बना लें
अच्छे -भले लोग बशर बीमार हो जाते हैं
*काबिले-बिल-क़स्द बने*
बुलन्दियों को छू लेना बड़ी बात नहीं है
याद का नहीं है असर तो और क्या है
हौसले से जग जीतता रहा
सबको अपना बना लेते
*लोग किरदार समझ लेते हैं*
गुरु वंदना
प्रभु राम नाम का अवलंब
जरुर अन्त होना है संसार का
राम जैसा मनोभाव
आस उस की मन में विश्वास जगाती है
बृज भाषा में सवैया
इससे उजले प्रतीक नहीं
विष बो रहे समाज में सरेआम
तबीब करने लगे शिफ़ा वबा से
हमसफ़र
*मक्कारी नहीं चलगी*
खुशियों से ज्यादा ग़म निकले
सरपर ले लिया पत्थर उछालके
मरनाभी था गवारा गर एकबार होता
*पहलेसा हिंदुस्तां हो जाए*
*शाद रहने की वज़ह ढूंढ लेने का नाम हयात है*
ऊन के गोले और मां ककी सलाइयां
ऊन के गोले और मां की सलाइयां
जिन्दगी की जुस्तजू ही जां ले गई
अपनी पसंद की रहगुज़र हम निकलें
*वक़्त वस्ले-यार में गजारा हुआ*
किस्मत से ❤️
हयात में मिले हर फ़रेब से वाकिफ़ हूँ
कुरबत मिले तो जीकर देखें
ख़ूबसूरत मुस्तक्बिल
हौंसले को समेट कर मेघ बन
एक और साल गया
विसाले-यार न हुआ
हयात-ए-मुस्त'आर की सदाक़त जानले
न इन्सान बदलेगा न दहर बदलेगी
कहीं कोई ऐब नहीं
आमाले-कमाल तेरा तुझपर है
साल ये बेमिसाल बदले
मजनू बनजायें गर हमको लैला मिले
चले जाएं रंजो-मलाल भी
शब्दशिल्पी कोईभी नहीं हो जता
तन्हाइयों की हैं बशर मजबूरियाँ बहुत
फिर क्या चले ?
हौसलें बुलंद हैं
हौसलें बुलंद हैं
जिंन्दगी हमें कहाँ कहाँ ले गई
मंज़िलें दूर नहीं हो जाया करतीं
तुमजो चाहोतो फ़ासले और बढा लो
रिश्तों के मरने से पहले
यौमे-जम्हूरियत मुबारक
काफ़िले किसीके वास्ते रूकते नहीं है
इबादत करने आना
किनारों को मिलाने चले हो
वक़्त को मनाने में जमाने निकले
रंजो-मलाल नहीं
मुंतज़िर दोनों तरफ़ अहबाब मुलाक़ात के
जो झुक गए तो कुछ नहीं
फ़ासले और दूरियां
भीड़ है जिसमें सभी अकेले हैं
उतने ग़म न मिले
अपने बैठेहैं अपनों से दूर
बनालेना उम्रेतमाम का तख़मीना
साथ रहने को मकीं घर समझ लेते हैं
किताब पुरानी पढ़ो ख़्यालात नये मिलेंगे
सभी अकेले बेइंतिहा बेशुमार होते हैं
हम में उनमें फ़र्क ही क्या
बुज़ुर्ग सयाने गुज़र गए
बड़ी जंग अकेले में लड़ी जाती है
मुद्दत हुई जिसे खुदसे मिले
राह-ए-सफ़र मिलने वाले रहबर नहीं हुआ करते
हरबात जबानी पूछने लगे हैं
हौसला मग़र है
बन गए किस्से-कहानी अफ़्साने लोग
चमन के हालात बदले
सब्र सहने वाले की
सब्र सहने वाले की
बोले कब
होली मं
इन्सानियत पर सबका अधिकार होता है
गैरों से ज्यादा अपनों के ग़म मिले
इन्तेहा भी भ्रम से हुई
न रही किसीसे उम्मीद
हौंसले काम आते हैं
खुद को देते हो
अकेले कैसे जिया जाता है
तहरीर ए किताब ए हयात
बशर किताबी बातें कहता है
हासिले-सुकूने-क़ल्ब
सामने वाले का कद छोटा दिखता है
मेरे दिल में रहने वाले तुम दरार भी नहीं देते
जब रखवाला ही जुआरी था
लौटेगा यकीन है वो जिद्द पे अड़ा हो, बेशक
20 साल पहले
मुकाम का पता नहीं
जीना सिखाकर ही दम लेगी
ख़राब वक़्त में हमने अकेले ही दिन बिताए
जिन्दगी इम्तिहान लेती है
अपना बेगाना पहचान लेती है.
लिख दे दो जून के निवाले
बिछड़ते हैं फितरते-अना और सवाले नाक से
तल्ख़ियाँ बढने से पहले
तजरबात मिले
हवा शीतल सर्द
शब -ए-ग़म बदनाम हो गई है
विदाई की रात में
खुद के साये से भी हैं महरूम
अपनी शेख़ी बघारने वाले लोग
खुले आसमान में जीना चाहता हूँ
सच खड़ा अकेले में
भीतर से कितने रीते हैं हम
बवंडर
अल्फ़ाज ऐसे न निकल पड़े कि वापस लेने पड़े
बंदे हम काम आने वाले हैं
मुझको आंखों में बसाने वाले
मुझे नहीं फ़िक्र कोई हाले-दिल बताने में
पता लगा कि लापता निकले
उसके नहले पे दहले हैं
इस जमाने से विदा लेकर ......
कहानी
"एक बूंद प्यार की बरसात" (भाग-1)
लेखन और गुरु चेला संवाद
अनजान चेहरे
धर्म
बेलजियम की चॉक्लेट...
लेखक की मुर्गी
"बाबा यहाँ ना छोड़ो मुझे..अपने साथ ले चलो।
अदृश्य प्यार
*शीर्षक- नाच न जाने आँगन टेढ़ा*
खारी लेकिन खरी
सागर जैसी आंखों वाली
एक रोटी और ले लो
हम कितना बदलें
पहला प्यार
वह ज़माना (यह 2080 की बात है)
भारत की सबसे लंबी दीवार
खो गया मेरा प्यार
बुलबुल
दोसा
न्याय
वो झूला
तालियाँ
अब्बू का ख़याल
ऐसा क्यों ???
वीर बाबूराव पुलेश्वर शेडमाके
मेले में मिलाप
वेलेंटाइन डे
वेलेंटाइन डे
वेलेंटाइन डे
अहम सबूत
अहम सबूत
मां की हँसी
वह खत....!!
दो सितारों का मिलन
तालियाँ
आ घर लौट चलें...
हवेली की ठकुराइन
पहले गुस्सा फिर प्यार
चिरकुमारी ... कल्याणी राए 💐
आस्था श्रम में 💐💐
कच्चे रास्ते (भाग ४) साप्ताहिक धारावाहिक
बरगद का पेड़
"आशा की किरण"
दुआ
कच्चे रास्ते (भाग ५) साप्ताहिक धारावाहिक
वैलेंटाइन डे स्पेशल अवरोध 💐💐
"समय के काले बिंदु "
खोखले रिश्ते 💐💐
"नन्ही मिनी " 💐💐
जुगनू
झूले वाला बरगद
अनजाने रिश्ते
आ अब लौट चले
फंड का सदुपयोग
सब्जियों की अदालत
"आ अब लौट चलें " 💐💐
एक सुप्त स्वप्न की पूर्ति
लेख
हौसला हो यदि बुलंद तो मुश्किल नहीं करेगी तंग
शायद तुनक मिज़ाज
वासना-प्रधान बनते चले जा रहे हैं विवाह
समाधान की ओर चलें श्मशान की ओर नहीं
आलेख
झूठ बोले, कौआ काटे ?
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः
संस्मरण-"काश ! होली खेल ,लेती"
" चाय भी क्या चीज़ है "
आ अब लौट चलें
भारत की सबसे लंबी दीवार
पुस्तक परिचर्चा:कुंवर नारायण सिंह
नव संवत्सर
पिछले लाॅकडाउन का एक दिन
अनुपम कृति है ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा
कुंभलगढ़ की दीवार
आइए, मन के सूरज को जगाएं।
नाद से संवाद
मैंडी का ढाबा
दिल की दुनिया के फैंसले
विश्व पुस्तक दिवस
बेटी एक पंछी
हम भी चले परदेस
साक्षात्कार- पीयूष गोयल(दर्पण छवि लेखक).
" लहरें नेह की "
चंद्रयान मिशन
“कोई भी अमर नहीं है लेकिन संघर्ष हमेशा चलता है”
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