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अदृश्य प्यार - Lakshmi Mittal (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकप्रेरणादायक

अदृश्य प्यार

  • 488
  • 11 Min Read

‘अदृश्य प्यार'

‘इतनी सुविधाओं के बावजूद भी इतने कम मार्क्स! मैं तुम्हारी जगह होता तो चुल्लू भर पानी में डूब मरता।’ पिता की कठोर वाणी से निकले कठोर शब्द प्रशांत को किसी कंटीले बाण से कम न लगे थे और बेतहाशा आहत मन के साथ वह, अपने गाँव के सबसे ऊँचे टीले पर चढ़ा खड़ा था।
आग़ोश में समा लेने को आतुर, नीचे बहती गहरी नदी, मानो, खुला आमंत्रण दे रही थी।
सहसा उसका फ़ोन घनघना उठा।
फोन पर 'माँ' लिखा फ्लैश हुआ। 'पिता' लफ्ज़ फ्लैश होता तो अवश्य आज वह फोन नहीं उठाता।

"हेलो" उसने धीमे से बोला।
उसकी आशा के विपरीत, दूसरी ओर पिता की आवाज थी। उनके सांसो की गति सामान्य नहीं थी।

“माँ बेहोश हो गई है.. शीघ्र 'मानव' अस्पताल पहुँच।“
वह अभी संभलकर कुछ पूछता, उससे पूर्व ही फोन कट चुका था।

उसे लगा मानो उसके पैरों तले ज़मीन खिसकती जा रही है। जितनी अधिक बेपरवाही से वह टीले पर चढ़ा था उससे अधिक संभलकर वह टीले पर से उतरने लगा।
‘अवश्य सुबह, माँ ने उसके और पिता जी के मध्य हुई बहस को सुन लिया होगा और फिर पहले से ही उच्च-रक्तचाप से पीड़ित माँ के रक्तचाप को और उच्च होने में कोई मशक़्क़त नहीं करनी पड़ी होगी ।‘
'क्यों हुआ, कैसे हुआ' जैसे प्रश्नों में उलझा सा वह, अस्पताल के भीतर खड़ा था।
पिता को देखते ही वह उनकी ओर दौड़ा।

“सुरेन्द्र ने फाँसी खाने का प्रयास किया और जब यह खबर तेरी माँ को पता लगी तो वह सुनते ही संभल न पाई और शायद यह सुनकर..” उसने अपने कठोर पिता को, अपने आंसुओं को छिपाने की नाकाम कोशिश करते देखा।

'मगर सुरेंद्र के मार्क्स तो अधिक आए थे.. फिर उसने, क्यों.. 'वह अभी विचारों में ही उलझा हुआ था कि नर्स ने भीतर आने का इशारा किया।


“कहाँ गया था?” बेटे को देखते ही माँ भावुक हो गई।
“कहीं नहीं माँ..यहीं था।"

“झूठ मत बोल!.. मोहन ने तुझे टीले की तरफ़ जाते देखा था और फिर सुबह तेरे पिता जी ने भी तुझे इतनी डांट लगा दी थी.. तो मैं समझी...!”माँ के चेहरे पर भय साफ़ नज़र आ रहा था।
"देख माँ, मैं तो चुल्लू भर पानी में डूबने से रहा। सोचा, पिता की डांट को ही डुबो आऊं। मगर पिता की डांट इतनी अधिक थी कि चुल्लू भर पानी कम पड़ रहा था और इसीलिए उस डांट को डुबोने के लिए मुझे, टीले वाली नदी तक जाना पड़ा।" कहते- कहते वह धीमे से हँसा और अगले ही क्षण, पिता भांति अपने आंसुओं को छुपाता हुआ,कसकर माँ के गले लग गया।

लक्ष्मी मित्तल

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

मां की ममता

Lakshmi Mittal3 years ago

ji हार्दिक आभार आपका आदरणीय ?

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बस एक बात मन में रह गयी सुरेंद्र वाली कहानी बीच में आई और अदृश्य हो गयी। वह थोड़ा स्पष्ट हो जाती यह सही रहता। क्योंकि जिक्र हुआ और फिर पता नही लगा कि क्या हुआ

Lakshmi Mittal3 years ago

सुरेन्द्र के मार्क्स अधिक आने पर भी वह संतुष्ट नहीं था इसीलिए उसने आत्महत्या जैसा कदम उठाया उसका मैंने हल्का सा जिक्र किया ताकि मुख्य पात्र जिसके मार्क्स कम आए, की कहानी को पूर्णतया उजागर किया जा सके। हार्दिक आभार नेहा जी आपका

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत सुंदर। आत्महत्या से बड़ा पाप कुछ नही। कहानी बहुत सुंदर बन पड़ी है।

Lakshmi Mittal3 years ago

सराहना हेतु हार्दिक आभार

दादी की परी
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