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Sahitya Arpan - Lakshmi Mittal

कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक

अदृश्य प्यार

  • Edited 3 years ago
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  • 487
  • 11 Mins Read

‘अदृश्य प्यार'

‘इतनी सुविधाओं के बावजूद भी इतने कम मार्क्स! मैं तुम्हारी जगह होता तो चुल्लू भर पानी में डूब मरता।’ पिता की कठोर वाणी से निकले कठोर शब्द प्रशांत को किसी कंटीले बाण से कम न लगे थे
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अदृश्य प्यार,<span>सामाजिक</span>, <span>प्रेरणादायक</span>
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

मां की ममता

Lakshmi Mittal3 years ago

ji हार्दिक आभार आपका आदरणीय ?

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बस एक बात मन में रह गयी सुरेंद्र वाली कहानी बीच में आई और अदृश्य हो गयी। वह थोड़ा स्पष्ट हो जाती यह सही रहता। क्योंकि जिक्र हुआ और फिर पता नही लगा कि क्या हुआ

Lakshmi Mittal3 years ago

सुरेन्द्र के मार्क्स अधिक आने पर भी वह संतुष्ट नहीं था इसीलिए उसने आत्महत्या जैसा कदम उठाया उसका मैंने हल्का सा जिक्र किया ताकि मुख्य पात्र जिसके मार्क्स कम आए, की कहानी को पूर्णतया उजागर किया जा सके। हार्दिक आभार नेहा जी आपका

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत सुंदर। आत्महत्या से बड़ा पाप कुछ नही। कहानी बहुत सुंदर बन पड़ी है।

Lakshmi Mittal3 years ago

सराहना हेतु हार्दिक आभार

कविताअतुकांत कविता

प्रवासी मजदूर

  • Edited 3 years ago
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  • 248
  • 7 Mins Read

प्रवासी मजदूर

जिस आदमी के बदन से
कोसों दूर से दुर्गंध आती हो
जिसके वस्त्र फटे, मैले कुचैले हों
कई दिनों से नहाया न हो
चिलचिलाती धूप में सिककर,
जिसका रंग तवे सा स्याह हो गया हो
होठों पर सुर्ख, रक्त-पपड़िया
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प्रवासी मजदूर,<span>अतुकांत कविता</span>
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Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

सुंदर

Lakshmi Mittal3 years ago

जी हार्दिक आभार आपका

कहानीप्रेरणादायक

मातृभाषा

  • Edited 3 years ago
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  • 204
  • 5 Mins Read

मातृभाषा (लघुकथा)

"गुड मॉर्निंग मैडम। आई.. एम.. आशी मदर।"

"गुड मॉर्निंग मिसेज सक्सेना..प्लीज़ कम।
हैव अ सीट प्लीज़... हाउ आर यू?"
"फाइन मैडम।"
"येस मिसेज सक्सेना.."
"मैडम, माई डाटर नोट कम स्कूल.. है..हैप्पी।"
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मातृभाषा,<span>प्रेरणादायक</span>
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Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

सुंदर

लेखआलेख

वैसा भय अब क्योें नहीं

  • Edited 3 years ago
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  • 300
  • 6 Mins Read

बालक को चींटी मारते देख दादी ने उसे टोका और बताया कि चींटी में भी हम इंसानों की भांति जान होती है,, उसे मारना पाप है।
बालक हंसा और फिर उसने दादी की बात की परवाह किए बिना, अपनी नन्ही हथेली से दो बार और
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वैसा भय अब क्योें नहीं,<span>आलेख</span>
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कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक

विजय गाथा

  • Edited 3 years ago
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  • 149
  • 7 Mins Read

विजय गाथा

ध्वजारोहण के लिए आगे बढ़ते शर्मा जी के उत्साही कदमों को, असलम खान ने झटके से, उनके आगे आकर, रोक दिया।

"शर्मा जी, आज यह शुभ कार्य मेरे अब्बू के हाथों होना चाहिए।" उसके स्वर में निवेदन तो
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विजय गाथा,<span>सामाजिक</span>, <span>प्रेरणादायक</span>
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Ajay Goyal

Ajay Goyal 3 years ago

सचमुच राष्ट्रीय गान हमारी एकता का प्रतीक है। उम्दा प्रस्तुति

कहानीसामाजिक, व्यंग्य

सत्ता हस्तांतरण

  • Edited 3 years ago
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  • 344
  • 5 Mins Read

लघुकथा

सत्ता हस्तांतरण

"क्या किटी-पार्टी अगले महीने नहीं रख सकते?"
"पार्टी तो फिक्स हो गई है। पिछले महीने भी मुझे, ऑफिस में आवश्यक काम के चलते पार्टी कैंसिल करनी पड़ी थी और अब.. फिर से डेट फिक्स कर,
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सत्ता हस्तांतरण,<span>सामाजिक</span>, <span>व्यंग्य</span>
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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

पति पत्नी का रिश्ता समझदारी का रिश्ता होता है, पति के स्वाभिमान को आहत कर के एक पत्नी खुश नहीं रह सकती।

Neelima Tigga

Neelima Tigga 3 years ago

संवेदनशील कहानी. लेकिन हदे तब पार होती जब शुरुआत से ही आप किसी के वश में ऐसे रहते हो. इतना पति गैर गुजरा हो गया जो नौकर बन गया.

teena suman

teena suman 3 years ago

इस सत्ता का भी अपना ही मजा है.....

Lakshmi Mittal3 years ago

धन्यवाद आपका☺️

Anju Gahlot

Anju Gahlot 3 years ago

लक्ष्मी!बेहतरीन लिखती हो ....शुभाशीष

Lakshmi Mittal3 years ago

मैम, दिल से आभार आपका

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

भावपूर्ण रचना..!

Lakshmi Mittal3 years ago

जी हार्दिक आभार आपका आदरणीय।

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

अद्भुत

Lakshmi Mittal3 years ago

ji हार्दिक आभार आपका

Nidhi Gharti Bhandari

Nidhi Gharti Bhandari 3 years ago

कड़वा है लेकिन आज का सत्य है यह। उम्दा लेखन

Lakshmi Mittal3 years ago

बहुत धन्यवाद ☺️

कहानीप्रेम कहानियाँ, अन्य

बस नंबर 703 (अंतिम भाग)

  • Edited 3 years ago
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  • 461
  • 19 Mins Read

बस नंबर 703 दूसरा (अंतिम भाग)

"चलो भई, अब कितनी सवारी और भरोगे?" भीड़ में से बुजुर्ग आवाज़ से मैं दुनियादारी में वापस लौटा।
'अभी तलक आई क्यों नहीं??.. अगर यह बस चल पड़ी तो!!..'
"अरे भाई साहब! सीट पर बैठ जाइए..
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बस नंबर 703 (अंतिम भाग),<span>प्रेम कहानियाँ</span>, <span>अन्य</span>
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Manpreet Makhija

Manpreet Makhija 3 years ago

उफ़्फ़, कंडक्टर साहब की तो बस छूट गई। ख़ैर मजाक एक तरफ़ लेकिन वाकई बहुत अच्छे से बाँधे रखे थी आपकी कहानी मुझे इसके अंत तक।

Lakshmi Mittal3 years ago

उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक धन्यवाद सखी ❤️

Nidhi Gharti Bhandari

Nidhi Gharti Bhandari 3 years ago

मज़ेदार लगी कहानी अनजानी का नाम भी न जान सके बेचारे कंडक्टर साहब...।

Lakshmi Mittal3 years ago

सराहना हेतु धन्यवाद सखी

Anil Makariya

Anil Makariya 3 years ago

बढ़िया कहानी

Lakshmi Mittal3 years ago

जी हार्दिक आभार आपका

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

प्यारी सी कहानी

Lakshmi Mittal3 years ago

धन्यवाद अंकिता

कहानीप्रेम कहानियाँ, अन्य

बस नंबर 703 (भाग 1)

  • Edited 3 years ago
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  • 450
  • 12 Mins Read

बस नंबर 703 (भाग 1)

जिंदगी की कच्ची-पक्की सड़कों पर कभी-कभी कई ऐसे अनजाने मिल जाते हैं जिनसे आपको एक अनजाना सा लगाव हो जाता है और वे अनजाने, अनजाने होकर भी, अनजाने नहीं रहते ।
वो भी, उन्हीं में से थी.. ' अनजानी
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बस नंबर 703 (भाग 1),<span>प्रेम कहानियाँ</span>, <span>अन्य</span>
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कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक

पेट यूं ही नहीं भरता अंतिम भाग

  • Edited 3 years ago
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  • 162
  • 10 Mins Read

क्रोधित होती नीलिमा को देख, स्त्री कभी गोद में उठाए बच्चे को अपने सीने से चिपका लेती तो कभी तीनों लड़कियों को अपने आंचल में ढांपने की नाकाम कोशिश करने लगी।

कुछ क्षण पश्चात, नीलिमा की प्रश्नसूचक
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पेट यूं ही नहीं भरता अंतिम भाग,<span>सामाजिक</span>, <span>प्रेरणादायक</span>
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कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक

पेट यूं ही नहीं भरता

  • Edited 3 years ago
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  • 98
  • 14 Mins Read

कुर्सी के चारों ओर बेतरतीबी से फैले, मुड़े-तुड़े, अधलिखे पन्नों को देख कोई भी बता सकता था कि अपनी किताब के लिए कहानी लिखने बैठी नीलिमा का ध्यान, कहानी लिखने में केंद्रित नहीं हो पा रहा है।

"न जाने
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पेट यूं ही नहीं भरता,<span>सामाजिक</span>, <span>प्रेरणादायक</span>
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

Sunder..

Lakshmi Mittal3 years ago

जी हार्दिक आभार आपका।

कहानीसामाजिक, प्रेम कहानियाँ, अन्य, प्रेरणादायक

'जिएंगे शान से.. मरेगें शान से'

  • Edited 3 years ago
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  • 277
  • 20 Mins Read

"मैडम , एक कप चाय और मिलेगी क्या?" अखबार के पन्ने पलटते हुए राधेश्याम जी ने अपनी पत्नी नीलिमा को आवाज लगाई और फिर से पेपर पढ़ने में व्यस्त हो गए।

नीलिमा जी ने तनिक गुस्साई नजरों से अपने पति की ओर देखा
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'जिएंगे शान से.. मरेगें शान से',<span>सामाजिक</span>, <span>प्रेम कहानियाँ</span>, <span>अन्य</span>, <span>प्रेरणादायक</span>
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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत बढ़िया

Nidhi Gharti Bhandari

Nidhi Gharti Bhandari 3 years ago

बहुत सुंदर

Lakshmi Mittal3 years ago

धन्यवाद सखी