कवितालयबद्ध कविता
आम सी ज़िन्दगी
आज जरा खुली हवा में साँस लेने दो।
बड़े दिन से आजादी ढूंढी आज आजाद रहने दो।
बह रही थी मन में घाव के समंदर में कबसे
मरी हुई सी ज़िन्दगी को अब तुम ज़िंदा बहने दो।
वो ले गया था सुकून मेरा मुझसे ही दूर भले
मुझे भी अब कुछ कंकर पत्थर की जगह लेने दो।
न बन सकी मैं वो कोहिनूर हिरा तो क्या हुआ।
बनकर मुस्कान लोगो के होंठों पर रहने दो।
लो चल दी हूँ छोड़कर मैं भी अब घर ये अपना।मेरी तस्वीर को घर के कोने में पड़ा रहने दो।
नही मतलब की याद करोगे तुम मुझे कभी भी।
मेरी यादों को इक कमरे में दफन रहने दो। - नेहा शर्मा