No Info Added By Writer Yet
#Followers 33
#Posts 228
#Likes 293
#Comments 132
#Views 33510
#Competition Participated 2
#Competition Won 1
Writer Points 171130
Competition | Rank | Certificate |
---|---|---|
अलविदा 2020 | Certificate |
#Posts Read 879
#Posts Liked 3
#Comments Added 392
#Following 20
Reader Points 8330
Section | Genre | Rank |
---|---|---|
कविता | लयबद्ध कविता | |
लेख | आलेख | |
कहानी | ऐतिहासिक | 5th |
London is the capital city of England.
कवितालयबद्ध कविता
"यात्रीगण अपने सामान का
खुद ध्यान रखें
वरना आँसू बन बहने को
तैयार सब अरमान रखें "
यह अल्टीमेटम
किसी आम बस
या फिर रेल की तरह
इस पर नहीं लिखा है
पर इस बचे-खुचे
और लुटे-पिटे से
लोकतंत्र की
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हम जब जहाँ से
पहला-पहला
कदम उठा के
आगे बढ़ते हैं
एक नयी हिम्मत जुटा के
खुद को पूरा आजमा के
पग-पग डग पे
आगे चलते हैं
वो जगह और वो लमहा,
दोनों ही सबसे बडे़ हैं
पहला कदम,
फिर दूसरा,
दूसरा, फिर तीसरा..
Read More
कवितालयबद्ध कविता
कल आज और कल,
वक्त के इस काफिले में,
इनमें सिमटा हर एक पल
जीवन के इस सिलसिले में
कदम बढा़ता हर एक पल
संभावनायें अनगिनत
लाता है खुद में समेटकर
आता-जाता हर एक पल
हर संभावना में
सिमटे हैं
ना जाने
Read More
कवितालयबद्ध कविता
आज मैंने रोते हुए एक
बच्चे को हँसा दिया
एक चाकलेट का पैकेट देकर
अपने दिल में कुछ खुशनुमा से
अहसासों का साज बजा दिया
उसके लिए ये छोटा सा
एक तोहफा था
मेरे लिए खुश रहने का
एक खूबसूरत मौका था
उस
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं आज हूँ
मैँ आज हूँ
वक्त की नाजुक,
थिरकती उँगलियों पर
लमहों का बजता हुआ
एक साज हूँ
मैं आज हूँ
पिछले कल
और अगले कल,
उस जकड़ते से कल
और उस छलते से कल,
इन दो पाटों के बीच से
खुद को बाहर खींच के
खुद
Read More
कवितालयबद्ध कविता
गोरा रंग
सबका चहेता गोरा रंग
भरमाता, भटकाता सा
आँखों को चुँधियाता सा
मृगतृष्णा सा गोरा रंग
कंचन मृग बन तरसाता सा
एक तृष्णा सा गोरा रंग
मगर इसे कुछ और भी
मादक बनाने को
मोहक बनाकर
हर मन को
पल-पल
Read More
कवितालयबद्ध कविता
ऐ जिंदगी,
मुझको तुझसे प्यार है
तेरा हर एक लमहा
खुशियों से महका त्यौहार है
ऐ जिंदगी,
मुझको तुझसे प्यार है
कुछ भारी-भरकम से सपनेजो हो सके ना मेरे अपने
उनको रखकर गिरवी बरबस
आस-पास ये बिखरी-बिखरी
अहसासों
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हर एक अमावस के सीने में
नयी सुबह की नयी वजह सा
खुशनुमा अहसास जगाओ
हर पतझड़ को मधुमास बनाओ
हर लमहे को इतिहास बनाओ
हर अवसर के बीज में
अंकुर बनकर छिपी
एक संभावना को
मन की हर एक पंखुड़ी पे
बूँद-बूँद
Read More
लेखआलेख
आज के इस हाई प्रोफाइल और फ्री स्टाइल लोकतंत्र में देश और काल के अनुसार मौसम को दो श्रेणियों में बाँट सकते हैं :
चुनावी मौसम और चूना-फ्री मौसम.
चुनावी मौसम में एक आचार संहिता होती है.
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मन के आँगन में भावों की, सुन्दर सजी रंगोली है
मन के द्वारे पे उतरी, कुछ अरमानों की डोली है
मन के घनघोर अँधेरे में, क्यूँ जली चेतना की ज्योति
अद्भुत आभा से दमक रहा, मन की माला का हर मोती
ना जाने ये
Read More
कवितालयबद्ध कविता
होली के ये रंग
हाँ, होली के ये रंग
भरें सच्चे अर्थों में
जीवन में नवरंग
आयें लेकर अपने संग
अंजुलि में समेटकर
महकते अहसासों के
आँचल में लपेटकर
जीवन को धारा बनाती
अल्हड़, अलमस्त तरंग
बिखेर दे
Read More
कवितालयबद्ध कविता
आज मैंने
रोते हुए एक
बच्चे को हँसा दिया
एक चाकलेट का पैकेट देकर
अपने दिल में कुछ खुशनुमा से
अहसासों का साज बजा दिया
उसके लिए ये छोटा सा
एक तोहफा था
मेरे लिए खुश रहने का
एक खूबसूरत मौका था
उस चेहरे
Read More
कवितालयबद्ध कविता
पिछला कल तो बीत गया
अगला कल तो बस सपना है
जियो आज के हर पल को
बस एक यही तो अपना है
यह अपना सा,
यह अदना सा,
खूबसूरत सपना सा
हर आज में सिमटा ये अब
और हर अब में लिपटा ये रब,
रब जाने, ये पहचाने से
पल फिर हों
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मेरे घर आना जिंदगी
मेरे घर आना जिंदगी
पल-पल में सिमटे आज को
मन के हर अहसास को
अंतर्मन की आवाज को
जीने के हर अंदाज को
हर एक नये आगाज़ को
बनाते जाना बंदगी
मेरे घर आना जिंदगी
मेरे घर आना जिंदगी
बन ममता
Read More
कवितालयबद्ध कविता
कल आज और कल,
वक्त के इस काफिले में,
इनमें सिमटा हर एक पल
जीवन के इस सिलसिले में
कदम बढा़ता हर एक पल
संभावनायें अनगिनत
लाता है खुद में समेटकर
आता-जाता हर एक पल
हर संभावना में
सिमटे हैं
ना जाने कैसे,
Read More
कवितालयबद्ध कविता
कल आज और कल,
वक्त के इस काफिले में,
इनमें सिमटा हर एक पल
जीवन के इस सिलसिले में
कदम बढा़ता हर एक पल
संभावनायें अनगिनत
लाता है खुद में समेटकर
आता-जाता हर एक पल
हर संभावना में
सिमटे हैं
ना जाने कैसे,
Read More
कवितालयबद्ध कविता
जीवन के कोरे कागज पर
पल-पल समय के हस्ताक्षर
क्या कहे निशा के कानों में
हर नयी सुबह यूँ आ-आकर
हर एक उदासी को
कह देती अलविदा
खुश होने की एक खुशनुमा सी
नयी वजह यूँ मुस्कुराकर
घड़ी की सुइयों के संग घूमते
लमहों,
Read More
कवितालयबद्ध कविता
शहर की हर एक दीवार
जिधर देखिये, बिखरा-
बिखरा सा पडा़ है प्यार
छलका-छलका,
ढलका-ढलका,
उमड़ रहा है बनकर ज्वार
हाँ, हो रही है हर दीवार
सजकर दुल्हन सी तैयार
सबके चेहरों के दागों को
ढकने को, देखो,
चिपक गये
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हौले-हौले आकर दस्तक देती सी
मन को बरबस हर लेती सी
भूली बिसरी कोई याद
करती सी मन को आबाद
बीते कल की
टेढी़-मेढी़ सी गलियों में
तितरी-बितरी,
बिखरी-बिखरी कोई याद
भूली बिसरी कोई याद
भरती हर खालीपन को
हरती
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं उमा, रमा,
मैं शारदा
मैं विधि, हरि,
हर की शक्ति हूँ
मैं लड़की हूँ,
लड़ सकती हूँ
मैं मीरा की भक्ति हूँ
मैं राधा की अनुरक्ति हूँ
मैं अन्नपूर्णा की गरिमा,
मैं अनसूया की शक्ति हूँ
मैं लड़की हूँ
लड़
Read More
कवितालयबद्ध कविता
( दिन में रैलियों में भीड़ जुटाने की अंधाधुंध कवायद
और फिर रात में कर्फ्यू. इस दोगलेपन पर प्रस्तुत है,
" ओ मित्रों " बनाम " ओमिक्रोन " )
काली अँधेरी रातों में
अनजान और सुनसान राहों पे
चमगादड़ का कुलदीपक
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं एक सोयी चेतना हूँ
जड़ता के इस तमस में
मानव की हर बहक में
स्वयं का अस्तित्व खोजती
इन काले मेघों के बीच
कभी-कभी यूँ यहीं-कहीं
बिजली सी बन कौंधती
मानव की खोयी चेतना हूँ
हाँ, मैं एक संवेदना हूँ,
एक
Read More
कहानीव्यंग्य, प्रेरणादायक, लघुकथा
( श्रीमद्भागवत की यह कथा तो हम सबने पढी़ या सुनी ही होगी कि कलि ने परीक्षित से स्वयं के लिए पाँच स्थान माँगे और देखते ही देखते उस युग का नया स्वामी बन बैठा. अब कल्पना करें कि कलियुग अपने चरम पर है और
Read More
कवितालयबद्ध कविता
आ, जिंदगी, पास आ
तू इतनी क्यूँ उदास, आ
क्यूँ अनबुझी हर प्यास, आ
क्यूँ ठंडी सी हर साँस, आ
क्यूँ बिखरी हर एक आस, आ
आ, जिंदगी, पास आ
आ, तुझ पे एक गजल लिख दूँ
एक बिंदास हंँसी से तेरे
हर तनाव का हल लिख दूँ
इस ठहरी-ठहरी
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं अकेला ही चला था
मैं तो अकेला ही चला था
अनायास ही
बिन प्रयास ही
डग-मग पग-पग
जब-तब,
ना जाने कब-कब
अकस्मात यूँ संग-संग
अहसासों के साये में ढल
पग-पग कारवाँ सा बन
लमहों का मेला भी चला था
यादों का रेला
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं व्यवस्था हूँ
मैं आज की व्यवस्था हूँ
कंचनमृग से सम्मोहित इस देश के,
मृगतृष्णा से दिग्भ्रमित,
मन की अवस्था हूँ
मैं आज की व्यवस्था हूँ
मैं आज की व्यवस्था हूँ
मैं सर्वशक्तिसंपन्न
मैं संप्रभुतासंपन्न
मैं
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं व्यवस्था हूँ
मैं आज की व्यवस्था हूँ
कंचनमृग से सम्मोहित इस देश के,
मृगतृष्णा से दिग्भ्रमित,
मन की अवस्था हूँ
मैं आज की व्यवस्था हूँ
मैं आज की व्यवस्था हूँ
मैं सर्वशक्तिसंपन्न
मैं संप्रभुतासंपन्न
मैं
Read More
कवितालयबद्ध कविता
"यात्रीगण
अपने सामान का
खुद ध्यान रखें
वरना आँसू बन बहने को
तैयार सब अरमान रखें "
यह अल्टीमेटम
किसी आम बस
या फिर रेल की तरह
इस पर नहीं लिखा है
पर इस बचे-खुचे
और लुटे-पिटे से
लोकतंत्र की पटरियों
Read More
कवितालयबद्ध कविता
पिछला कल
अतीत की जमी गर्द से
लिपटा कल
बस उसके ही दर्द में
सिमटा कल
बस उसके ही साये में
जीता पल-पल
ठहरावों की जड़ता के
निष्ठुर धागे से
पल-पल खुद को सीता कल
बासी पानी को बूँद-बूँद कर
पल-पल पीता कल
सिर्फ
Read More
कवितालयबद्ध कविता
किस लिए,
किसके लिए ?
आखिर किसके लिए?
हमने कल जलाये थे लाखों दिये
किसलिए, किसके लिए,
आखिर किसके लिए ?
राम की चरणरजकण से
होते क्षण-क्षण पावन
सरयू जल को स्वर्णिम
करते से मनभावन
आस्था पल-पल जगाते से
अनगिन
Read More
कवितालयबद्ध कविता
( मेरी यह रचना किसी व्यक्ति पर नहीं, एक मानसिकता पर कटाक्ष करती है. एक ऐसी मानसिकता पर जो अपनी विफलताओं का ठीकरा दूसरों पर फोड़ती है. ये सब भाव कुछ उदाहरण हैं. संभवतः मैंने भी ऐसा अनेक बार किया हो. यदि
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं महालक्ष्मी, धन की शक्ति
पालनकर्त्ता हरि की शक्ति
मैं ही हूँ सम्पूर्ण प्रकृति
जल-थल, जड़-चेतन की शक्ति
तुम खूब करो मेरी भक्ति
भक्ति में ही सिमटी शक्ति
बने दीपमाला जन-जन की
भावना की अभिव्यक्ति
प्राकट्य
Read More
लेखआलेख
( आप सबको छोटी दीपावली या नरकचतुर्दशी की शुभकामनायें. दीपावली के शुभ नाम के साथ नरक शब्द जोड़ना कुछ अटपटा नहीं लगता आपको ? आइये आज हम सब इस विरोधाभास के मूल कारण को जानते और समझते हैं )
इस दिन
Read More
कवितालयबद्ध कविता
जिंदगी कुछ इस तरह
साथ मेरे चलती रही
हर लमहे की सीपी में
अहसासों का मोती बन
ढलती रही
जिंदगी कुछ इस तरह
साथ-साथ चलती रही
कुछ डगर
बन हमसफर,
कुछ लमहों में ढल
कुछ जज़बात
ले, कुछ लमहों की,
संग सौगात
साथ-साथ
Read More
लेखआलेख
" साडी़ बिच नारी है किनारी बिच साडी़ है
साडी़ ही की नारी है कि
नारी ही की साडी़ है "
द्रौपदी-चीरहरण के संदर्भ में महाकवि भूषण की ये पंक्तियाँ आज के इस भ्रष्टयुग, मतलब कष्टयुग, मतलब कलयुग, मतलब
Read More
कवितालयबद्ध कविता
आज है शुभ करवा चौथ
आज रखने को प्रज्ज्वलित
दांपत्य-प्रेम की महाजोत
सुबह से ही भूखा है
अपना चाँद का टुकडा़
और हम मशगूल हैं
या यह कहो, मजबूर हैं
या फिर समझो,
हम बने हुए मजदूर हैं
बेगारी के
बेचारी से
लाचारी
Read More
कवितालयबद्ध कविता
आज मैं एक बार फिर
भरमाते और उलझाते से
ख्यालों और सवालों से घिर
अनायास यूँ असमय
और बनकर एक विस्मय,
अपनी ही मदहोशी में
बोलती सी खामोशी में
गया नींद से जाग
मेरा अपना आप उठ के
चोरी-चोरी चुपके-चुपके
दबे
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मुस्कुराइये कि आप आज
सिर्फ अपने आप में हैं
मुस्कुराइये कि आज आप
सिर्फ अपने आज में हैं
मुस्कुराइये कि आप बस
खुद के ही आस-पास में हैं
खिलखिलाइये कि आप सबसे
खुशनुमा अंदाज में हैं
खिलखिलाइये कि आप
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हम भजन करें तो कहते "राम" ,अभिवादन में "राम-राम"
अनहोनी कुछ हो तो सहसा, मुख से निकले "राम-राम-राम"
संसार एक परिवार बने ,आकाश पिता धरती माता
हे राम, कभी न टूटे जग में, "राम-राम" का ये नाता
हो रामराज्य चहुँ
Read More
कवितालयबद्ध कविता
( शिव परमपुरुष है और माँ शैलजा जगदंबस्वरूपा प्रकृति.
प्रकृति माँ है और हम सब उसके बच्चे. हमारा बचपन हमें केवल दूध पीने का अधिकार देता है, खून पीने का नहीं मगर हमने तो दुग्धपान के साथ-साथ रक्तपान भी
Read More
कवितालयबद्ध कविता
( धन्य है इस देश की नारी
जो पूजा और उपवास भी
दूसरों के लिए करती है
करवाचौथ पति के लिए
होई अष्टमी पुत्र के लिए
भैया दूज भाई के लिए
आइये करें नमन,
नवरात्र की नवमी संध्या पर
इस मातृशक्ति को )
नारी, तू
Read More
कवितालयबद्ध कविता
[हम सब देवी के उपासक हैं. नवरात्र में माँ का कन्या- रूप में आवाहन करके पूजन, अर्चन और हलवा पूरी के नैवेद्य से संतृप्त करते हैं. किंतु वही माँ जब बेटी बनकर घर आती है तो उसके स्वागत में हम बुझे-बुझे से
Read More
कवितालयबद्ध कविता
अब में ही सब लिपटा है
अब में ही रब सिमटा है
सब में ही रब लिपटा है
रब में ही सब सिमटा है
रब से ही सब प्रकटा है
रब से ही सब पलता है
सब रब में ही ढलता है
रब से ही सब निपटा है
देर बस टटोलने की है
मन की आँखें
Read More
कवितालयबद्ध कविता
जो चला गया,
जो चला गया,
जो आँखों को
छलछला गया
जिसके हाथों
मन छला गया
जो लूट गया,
जो छूट गया,
मुझसे जाने क्यूँ
रूठ गया
मुझसे वो
क्या-क्या
लूट गया
मन में कुछ,
जाने कैसे, कब,
क्यूँ टूट गया
एक शीशे सा
मन
Read More
कवितालयबद्ध कविता
गाडी़ के चलते, कुचलते पहियों से
लिपटता इंसानी खून
टायरों के दायरों के
तले सिसकता,
सिमटता, निपटता कानून
कानून का खून हुआ है
या कानून बनाने वालों
और चलाने वालों ने
मिलकर यह खून किया है ?
सड़क पर खून
Read More
कवितालयबद्ध कविता
( नवरात्र की दिव्य ज्योति के अलौकिक आलोक में प्रस्तुत की जीवन का एक अद्भुत, चैतन्यपूर्ण परिचय )
दुनिया के इस मेले में
अद्भुत से इस खेले में
बूँद-बूँद
घटती रहती,
पर कदम-कदम
बढ़ती रहती
उम्र के इस रेले
Read More
कवितालयबद्ध कविता
माँ अंबे,
माँ जगदंबे,
माँ चंद्रघंटे,
कूष्मांडे,
माँ शैलपुत्रि,
कालरात्रि,
सिद्धिदात्रि,
माँ ब्रह्चारिणि,
हे माता कात्यायिनि,
जय जय माँ ,
महागौरी, स्कंदमाता,
भूल गई क्यों
तू तो है सबकी ही माता
क्यों
Read More
कवितालयबद्ध कविता
दो कदम तुम भी चलो,
दो कदम हम भी चलें
देहों के धरातल से परे,
विदेह से होते हुए,
अहसास के साये तले,
दो कदम तुम भी चलो,
दो कदम हम भी चलें
चुपके-चुपके, दबे पाँव से
आते-जाते हर एक मोड़,
हर एक पडा़व पे,
हर एक धूप
Read More
कहानीलघुकथा
मेहनत- मजदूरी करके आजीविका चलाती वह मजबूर माँ दिन भर से भूखे अपने बच्चे को सुलाने का असफल प्रयास कर रही थी. खाली पेट नींद कैसे आती ? अंत में माँ को एक उपाय सूझा. उसे याद आया कि उसके बेटे को कहानी सुनते
Read More
कवितालयबद्ध कविता
सामंजस्य, सहअस्तित्व
और समन्वय
सच पूछो तो बस यही हैं
जीवन का सच्चा परिचय
ये इंद्रधनुष के
सात रंग
रहते हिल-मिल,
करते झिलमिल,
साथ संग
एक छवि में
रंग अनेक
जब भी मिलकर
होते एक
बनता मिलकर
श्वेत सत्य
सच
Read More
कहानीप्रेरणादायक, लघुकथा
एक व्यक्ति की काल से मित्रता थी. एक दिन बातों ही बातों में उसने काल से बहुत निश्चिंत होकर कहा,
" अब तेरे रहते तो मुझे कोई भय नहीं. तू तो मुझसे कभी धोखा नहीं करेगा ना ? "
"मैं तेरा मतलब नहीं समझा. तू कहना
Read More
कवितालयबद्ध कविता
कभी शोला, कभी शबनम
सन्नाटा कभी, कभी सरगम
जिंदगी लमहा-लमहा,
बूँद-बूँद तनहा-तनहा
कभी खुशी है
और कभी है गम
कभी एक भीड़,
कभी तनहाई
कभी मिलन तो
कभी जुदाई
कभी हमदम
और कभी पराई
कभी धूप और
कभी सिर्फ एक परछाई
कभी
Read More
कवितालयबद्ध कविता
आसान होता है कितना
ये कहना कि भूल जाओ
यादों के झरोखे बंद कर
विस्मृति की भूलभुलैया में
खोकर सब कुछ भूल जाओ
मदहोशी के झूले में
आँख मूँदकर झूल जाओ
मगर क्या यह सब कुछ
इतना आसान होता है
पल-पल मन का पीछा
Read More
कवितालयबद्ध कविता
बप्पा, तुम जल्दी चले गये
करके अनाथ यूँ हम सबको
बप्पा, तुम जल्दी चले
शुभ मंगल का शंखनाद करता
दस दिन का ये गणपति उत्सव
शुभ चिंतन नवचेतना का
लगता था एक अद्भुत उद्भव
श्रद्धा की वंशी ने छोड़ी मधुर तरंगें
यह
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हर एक गोधूलिवेला में
सिर छुपाती सी हर साँझ
रात की पलकों तले
एक सपना बो जाती है
और उसकी गोदी में
दुबककर सो जाती है
और सूरज के इंतजार में
खो जाती है
फिर प्राची से एक नयी किरण
एक नयी आशा सी बन,
हर नयी
Read More
कवितालयबद्ध कविता
( मेरे बाबू जी की पुण्यतिथि पर )
घर में पाँव रखते ही
आती है नजर सबसे पहले
सामने वाली दीवार
इस दीवार के बीचो-बीच
लटका है एक फोटो फ्रेम
जिसमें सिमटा है
मेरा पूरा परिवार
मेरा पूरा परिवार ?
हाँ, पूरे परिवार
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैंने पछा चाँद से,
हाँ, मैंने पूछा चाँद से,
एक सुहानी साँझ की
खुलती जुल्फों पे ढलकी,
छलकी बनकर चाँदनी,
कुछ हल्की-हल्की,
मन को बरबस आकर छलती
एक पूनम की रात में
मैंने पूछा चाँद से,
" क्या तुम आज भी वही
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं आज हूँ
मैँ आज हूँ
वक्त की नाजुक,
थिरकती उँगलियों पर
लमहों का बजता हुआ
एक साज हूँ
मैं आज हूँ
पिछले कल
और अगले कल,
उस जकड़ते से कल
और उस छलते से कल,
इन दो पाटों के बीच से
खुद को बाहर खींच के
खुद के वजू़द
Read More
कवितालयबद्ध कविता
कर लो जीवन के
हर लमहे से
मासूम सा और
अल्हड़ सा यूँ प्यार
हो प्यार में ऐसा बुखार,
इस बुखार में हो जाये
छाकर, आकर यूँ शुमार,
हर गुरूर को
चूर-चूर करता सा,
हर कुंठा को
दूर-दूर करता सा
मन का एक ऐसा खुमार,
उमंगों
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं मौन हूँ,
जानता हूँ पर
नहीं समझता हूँ,
मैं कौन हूँ,
जाने क्यूँ उलझता हूँ
मैं कहाँ से आया हूँ
किस लिए और
फिर कहाँ पर
वापस जाना है ?
मैं जानता हूँ,
जानकर भी मौन हूँ,
मैं कौन हूँ
जाना है और वापस फिर से
बार-बार
Read More
कवितालयबद्ध कविता
चलो सँभलकर इन राहों पर
सचमुच फिसलन बहुत है
टेढ़ी-मेढ़ी सँकरी सड़कें
पल-पल पग अटके-भटके
है जमी जोखिमों की काई
दोनों ओर पतन की खाई
पाँव फिसलने को यहाँ पर
क्षणिक प्रमादों की छोटी सी
रपटन बहुत है
सचमुच
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हाँ, यही तो जीवन है,
हाँ, बस यही तो जीवन है,
हर रात के काले घूँघट से झलकती
प्राची की पहली किरण हैं
हाँ, यही तो जीवन है
हाँ, बस यही तो जीवन है
संक्रमण की पीडा़ है
और फिर सृजन-सुख है
विरह-वेदना का
लावा सा
Read More
कवितालयबद्ध कविता
राधा की पायल बोल उठी
मन के भेदों को खोल उठी
आकर मोहन की मुरली में
अद्भुत सा रस घोल उठी
मोहन-मन के वृंदावन में
शीतल बयार सी बह गई
चैतन्यपुरुष की चेतना
यूँ भौचक्की सी रह गई
यूँ ढाई अक्षर में समेटकर
कौन
Read More
कवितालयबद्ध कविता
सब कुछ पाकर भी
जो कुछ लगते नाकाफी से,
ज्यादा और ज्यादा उनको
पाने की आपाधापी में
मृगतृष्णा की पटरियों पर,
मन का आनंद रौंद के
कंचनमृग की चकाचौंध से
चममचमाती, दमदमामाती
बुलेट ट्रेन सी एक ताबड़तोड़
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं अकेला ही चला था
मैं तो अकेला ही चला था
अनायास ही
बिन प्रयास ही
डग-मग पग-पग
जब-तब, ना जाने कब-कब
अकस्मात यूँ संग-संग
अहसासों के साये में ढल
पग-पग कारवाँ सा बन
लमहों का मेला भी चला था
यादों का रेला भी
Read More
लेखआलेख
रक्षाबंधन की अनेकानेक शुभकामनाएं. भ्रातृभगिनीस्नेह की अद्भुत अनुभूतियों से लिपटे इस रक्षासूत्र का स्मरण ही मन को परमानंद से रससिक्त कर देता है. इस विलक्षण परंपरा से जुडी़ कुछ कथायें आप सबके
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैंने कहीं पढा़ है,
एक सुंदर विचार ने
मेरे मन को यूँ गढा़ है,
"जब हम प्रार्थना करते हैं
भगवान हमको सुनता है
मगर ध्यान में हम सबका
मन ईश्वर को सुनता है"
इस मौन प्रार्थना में डूबा मन
चैतन्य के आलोक में,
जड़ता
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं व्यवस्था हूँ
मैं आज की व्यवस्था हूँ
कंचनमृग से सम्मोहित इस देश के,
मृगतृष्णा से दिग्भ्रमित,
मन की अवस्था हूँ
मैं आज की व्यवस्था हूँ
मैं आज की व्यवस्था हूँ
मैं सर्वशक्तिसंपन्न
मैं संप्रभुतासंपन्न
मैं
Read More
कवितालयबद्ध कविता
खडे़ हुए हैं आज हम,
कोरोना के साये में
एक ऐसे मोड़ पे
मृत्यु की आहट सुनते
जीवन के इस छोर पे
जाते हैं इस मोड़ से
कुछ कदम, कुछ डगर
देखते हैं, कहाँ-कहाँ,
कैसे-कैसे, किधर-किधर
यदि मास्क बिना घर से निकले
और
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मेरे घर आना जिंदगी
मेरे घर आना जिंदगी
पल-पल में सिमटे आज को
मन के हर अहसास को
अंतर्मन की आवाज को
जीने के हर अंदाज को
हर एक नये आगाज़ को
बनाते जाना बंदगी
मेरे घर आना जिंदगी
मेरे घर आना जिंदगी
बन ममता
Read More
लेखआलेख
मुफ्तलाल, फोकटमल, उधारीचंद्र, खैरातीराम... जी हाँ, ऐसे स्वनामधन्यों की यह सूची अनंत है. शायद द्रौपदी के चीर जितनी लंबी जिसका दूसरा छोर तो बस केशव के हाथ में ही है. इसके पीछे इनकी शक्ति बनकर खडे़ रहते
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मानवता और चेतना पर जमती गर्दसं
सद की अंधी और बहरी सी
दीवारों से टकराकर,
बेरुखी सी एक चुप्पी से घबराकर,
अनदेखा और अनसुना सा
रह गया सड़क का दर्द
रिश्तों की वो गर्मजोशी होती सर्द
सड़क से मुँह मोड़ती,
नजरें
Read More
कवितालयबद्ध कविता
सब कुछ पाकर भी
जो कुछ लगते नाकाफी से,
ज्यादा और ज्यादा उनको
पाने की आपाधापी में
मृगतृष्णा की पटरियों पर,
मन का आनंद रौंद के
कंचनमृग की चकाचौंध से
चममचमाती, दमदमामाती
बुलेट ट्रेन सी एक ताबड़तोड़
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हँसो कुछ इस तरह,
हाँ, हँसो कुछ इस तरह,
कि बिखेर दो बिंदास,
कहीं अपने ही आस-पास,
खुश होने की छोटी सी,
मासूम सी कोई वजह
और पा जाओ इस
जिंदगी के दामन में
हँसते-हँसते ही,
आनन फानन में,
खुशनुमा सी, जीने की
एक
Read More
कवितालयबद्ध कविता
धुँधलाई सी, भरमाई सी
अजीब सी एक शाम,
पगलाई सी, शरमाई सी
अजी़ज सी एक शाम,
कुछ खामोश सी होती,
पल-पल रोशनी खोती,
यूँ होती जाती खुदबखुद
गरीब सी एक शाम,
जाने या फिर अनजाने,
कुछ पहचाने, कुछ बिन पहचाने,
होती हुई
Read More
कवितालयबद्ध कविता
चोरी चोरी, चुपके-चुपके
खुद से ही लुकते-छुपते
कुछ गुमसुम से,
कुछ चुप-चुप से
कुछ चहकते, कुछ महकते
कुछ बहकते, कुछ दहकते,
कुछ उमंगते, कुछ सुलगते,
हालातों से लुटते-लुटते
हो धुआँ-धुआँ घुटते-घुटते
दबे-ढके
Read More
कवितालयबद्ध कविता
शहर की उस उजडी़ सी
आखिरी बस्ती की,
आबादी को तरसती सी
उस आखिरी गली का
वो बंद आखिरी मकान
जिंदगी की हर हलचल से
रहता था बिल्कुल अनजान
पडा़ हुआ बिल्कुल सुनसान
कोई भी जिंदा जिंदगी
उससे बस दूर भागती थी
पास
Read More
कवितालयबद्ध कविता
( हँसी भी एक योग है. योगदिवस पर करिये हास्य-योग इसे पढ़कर )
बस में खडी़ दो देवियाँ
बनकर बिल्कुल रणचंडियाँ
एक सीट के वास्ते
आपस में झगड़ रही थी
नहले पे दहला मारती
दोनों यूँ अकड़ रही थी
" बस को हाथ दिखाकर
Read More
कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक, लघुकथा
( श्रीमद्भागवत की यह कथा तो हम सबने पढी़ या सुनी ही होगी कि कलि ने परीक्षित से स्वयं के लिए पाँच स्थान माँगे और देखते ही देखते उस युग का नया स्वामी बन बैठा. अब कल्पना करें कि कलियुग अपने चरम पर है और
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हौले-हौले आकर दस्तक देती सी
मन को बरबस हर लेती सी
भूली बिसरी कोई याद
करती सी मन को आबाद
बीते कल की
टेढी़-मेढी़ सी गलियों में
तितरी-बितरी, बिखरी-बिखरी कोई याद
भूली बिसरी कोई याद
भरती हर खालीपन को
हरती
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हालातों के कीचड़ में
धँसते-फँसते से, सनते से
पाँवों के ये अमिट निशान
बनने से पहले बिगड़ते,
उखड़ते, उजड़ते से
खोते वजू़द, गुम होते से
अपना सब कुछ खोते से
कुछ बदनसीब जहान
मिलने से पहले बिछुड़ते,
दम
Read More
कवितालयबद्ध कविता
एक कड़वे सच के आईने में
देखती सी खुद को असली मायने में
जिंदगी खडी़ है आज खुद के सामने
बन गयी है आज
एक उल्टी गिनती,
सिर्फ एक आँकडा़
बस इकाई या दहाई या सैंकडा़,
हजार या फिर लाख पर
आकर खडी़
मौत की काली
Read More
लेखआलेख
जी हाँ, " पहला सुख आलसी काया ". मुझसे असहमत होने वाले शायद आलसी काया की माया से जन्मे परम आरामसुख के मूलभूत सार तत्व को नहीं समझते. आलस्य मन-प्राण के परमानंदरस में आकंठ लसलसाने की एक चरम सीमा को पार
Read More
आपने बहुत सुन्दर और मोहक शब्दों में आराम की महत्ता का वर्णन किया..! सच है. आराम हमारा नैसर्गिक गुण है.. यदि आराम वैश्विक रूप में अपनाया जाये तो बहुत सी राष्ट्रीय, अन्तरराष्ट्रीय समस्याएं हल की जा सकती हैं..! विश्व शान्ति के लिए बहुत अच्छा टूल है..! 😊🙏🙏🙏🙏
कवितालयबद्ध कविता
हम सभी आज लाचार से हैं
बँटे आज हम जाने क्यूँ
दो अलग-अलग कतार में हैं
जिंदा हैं, फिर भी सभी
बेजान से हैं
जानते हैं सब मगर
खुद से ही अनजान से हैं
पहली कतार,
घर की लक्ष्मण-रेखा में
होकर कैद सी
कर रही जहाँ
डरावनी
Read More
कवितालयबद्ध कविता
एक बडे़ आग के गोले से
टपके हौले-हौले से
पिघले सोने की बूँद सी
यह प्यारी धरती
सचमुच सबसे न्यारी धरती
माँ की गोदी सी बन
ममता की एक मूरत
एक दुआ सी पाक-साफ सी,
हरी-भरी और खूबसूरत
सबका लालन-पालन करती
हम
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हर दिन, हर सुबह
एक नया आगाज जिंदगी
लेकर आती है जीने की
वजह एक खास जिंदगी
देती है सबको जीने की
जगह एक खास जिंदगी
कभी हकीकत की धरती,
सपनों का कभी आकाश जिंदगी
कभी सुनहरी आस, कभी
बनकर रह जाती है बस
एक "काश"
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हम सबके अपराध शायद
इतने बढ़ गये हैं
कि मास्क की इन
दोहरी, तिहरी परतों में
चेहरे छुपाने पड़ रहे हैं
हाँ, पाप किये हैं हमने इतने
कुदरत के खिलाफ
इंसानियत के खिलाफ
हम सब की इस माई की
मासूमियत के खिलाफ
खुदा
Read More
कवितालयबद्ध कविता
कोई मजहब नहीं होता
भूखे पेट की भूख का
हर अँधियारे में खोजती
खुद का वजू़द,
जिंदगी की धूप का
वक्त की पाबंद रहकर
अनायास ही आ धमकती,
बिन बुलाये से मेहमान सी
मौत की इस छाँव का
और कब्र में लटके से
दो बूढे़
Read More
कवितालयबद्ध कविता
यूँ ही बस बैठे ठाले
करके मन को अनायास ही
बीते कल के चंद लमहों के हवाले
यूँ ही बस बैठे ठाले
वो लमहे कुछ मतवाले
बडे़ सहज से, फिर भी लगते
जाने क्यूँ सबसे निराले
जटिल और बोझिल से
बंद, घुटते से एक दायरे
Read More
कवितालयबद्ध कविता
जीवन का वो
सतरंगी सा इंद्रधनुष
हो गया आज बदरंग,
हाँ, जीवन के इस चित्र के
गड्डमड्ड से हो गये हैं, सभी रंग
अभी महीना पहले ही
निखर रहे थे, इन हवाओं
और फिजा़ओं में
होली के अद्भुत रंग,
रंग रहा था अंग-अंग
तन-मन
Read More
कवितालयबद्ध कविता
एक नन्ही-मुन्नी अभिलाषा
एक कौतूहल, एक जिज्ञासा ने
अधजगी,अधखुली आँखों से
एक दृश्य सुनहरा देखा है
इस दुनिया में सबसे पहले
माँ का चेहरा देखा है
दो नन्हे होंठों से जन्मी
सबसे पहली तुतली सी भाषा
ममता
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मन गाँव की डगर पे,
बस साँसें ही चल रही
अब शहर में,
जाने क्या अब और
देखना बाकी है,
अनायास ही टूट पडे़
इस कोरोना के कहर में
रोटी, कपडा़, मकान खो गया
इस पत्थर के नगर में,
पाँव भाग्य की टेढी़-मेढी़
पगडंडी
Read More
कहानीसामाजिक, लघुकथा
दोराहे पर खडी़ जिंदगो
आज मैं एक आवश्यक कार्यवश कहीं जा रहा था. अचानक एक दृश्य देखकर मेरे कदम ठिठक गये.
एक महिला और उसकी बेटी जो देखने में किसी विपन्न वर्ग से संबंद्ध लग रही थी, सड़क पर बिखरे
Read More
लेखआलेख
" आया है मुझे फिर याद वो जालिम,
गुजरा जमाना बचपन का
हाये रे अकेले छोड़ के जाना,
और ना बचपन का "
स्व. मुकेश का यह कालजयी गीत आज मैं, कोरोना के मनहूस साये से बाहर निकलने के लिए, सुन रहा था. इस
Read More
आपने सही कहा..! गुजरे जमाने का एक एक लम्हा बड़ी शिद्दत से याद आता है.
कवितालयबद्ध कविता
(आज हम कोवैक्सीन सी दूसरी डोज लेकर आये हैं. एक लंबे इंतजार के बाद मन की चौखट पर ठिठककर दस्तक देती हुई सी इस सुखद अनुभूति को छंदों में पिरोने का एक प्रयास आप सबके साथ साझा करना चाहता हूँ,
" एक अहसास
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं चल रहा था,
मैं चल रहा था,
खुद को ही जैसे
छल रहा था,
डूबती सी, ऊँघती सी
हर फिजा़ में ढल रहा था,
हालातों की आँच से यूँ
तिल-तिल जल रहा था,
जाने क्यूँ मेरा वजू़द
बूँद-बूद सा
पिघल रहा था
अपनी ही धुन में खोया
Read More
कवितालयबद्ध कविता
यह बात तब की है जब कोरोना ने हमारे पाँवों को जंजीरों में जकड़कर घर की चारदीवारी में कैद नहीं किया था. मैं स्वास्थ्य की दृष्टि से शाम को एक-डेढ़ घंटे घूमता था. अगर बाहर कोई काम होता तो पाँच-छः किलो
Read More
कवितालयबद्ध कविता
काल की आँधी प्रचंडहो रहा विश्वास
अब तो जीवन का
पल छिन,
पल छिन
खंड-खंड
मानव की अक्षय लिप्सा का,
माँ प्रकृति के आँचल में सिमटे
कण-कण की क्षण-क्षण हिंसा का
मिल रहा है आज दंड
हमने माँ को
सोने का अंडा
Read More
कवितालयबद्ध कविता
क्या गजब ढा रहा आज यह
सन्नाटे में तैरता सा कोलाहल
चारों ओर धूम मचाता,
यह चोर हरदम शोर मचाता,
सबसे निंदनीय पेय यह अल्कोहल
यह नाकरा, यह आवारा
सचमुच एक धीमा हलाहल
अनायास ही बन बैठा
अपनी ही अकड़ मे ऐंठा
आकर
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हिचकियाँ अब बंद हैं
मन के सभी झरोखे
और यादों की
खिड़कियाँ सब बंद हैं
ये खिड़कियाँ अब
देती हैं बस झिड़कियाँ,
और बाकी सब बंद हैं
मन की किसी सुरंग में
जाकर दुबके वो ख़्वाब
वहीं पर जाकर ठहरे
और पलकों
Read More
कवितालयबद्ध कविता
आपदा में ढूँढते रहिये अवसर
क्योंकि आपदा ही देती है
अवसर अक्सर
अवसर के लिए आजकल
आपदा होना बहुत जरूरी है
एक आपदा को तलाशना
हर अवसर की मजबूरी है
वरना यह जिंदगी
अवसर कहाँ देती है
अवसर भी देती है तो
आपदा
Read More
कवितालयबद्ध कविता
कर लो जीवन के
हर लमहे से
मासूम सा और
अल्हड़ सा यूँ प्यार
हो प्यार में ऐसा बुखार,
इस बुखार में हो जाये
छाकर, आकर यूँ शुमार,
हर गुरूर को
चूर-चूर करता सा,
हर कुंठा को
दूर-दूर करता सा
मन का एक ऐसा खुमार,
उमंगों
Read More
लेखआलेख
कभी पढा़ था, " आषाढ़ का एक दिन ", मगर वह आषाढ़ सावन लेकर आता था. आज सावन की बात करूँ तो आप कहेंगे कि सावन के अंधे को सब हरा-हरा सूझता है. आज तो सब डरा-डरा ही सूझता है. सावन का अंधा होने से अच्छा है, इस अमावस
Read More
कवितालयबद्ध कविता
आज मैंने
रोते हुए एक
बच्चे को हँसा दिया
एक चाकलेट का पैकेट देकर
अपने दिल में कुछ खुशनुमा से
अहसासों का साज बजा दिया
उसके लिए ये छोटा सा
एक तोहफा था
मेरे लिए खुश रहने का
एक खूबसूरत मौका था
उस चेहरे
Read More
कवितालयबद्ध कविता
खडे़ हुए हैं आज हम,
कोरोना के साये में
एक ऐसे मोड़ पे
मृत्यु की आहट सुनते
जीवन के इस छोर पे
जाते हैं इस मोड़ से
कुछ कदम, कुछ डगर
देखते हैं, कहाँ-कहाँ,
कैसे-कैसे, किधर-किधर
यदि मास्क बिना घर से निकले
और
Read More
कवितालयबद्ध कविता
अतिथि, तुम कब जाओगे
" मान ना मान, मैं तेरा मेहमान "
बिन बुलाये, अनचाहे से
आ धमके मेहमान,
तुमसे हर एक मेजबान है परेशान
चेहरा यह आपका देख-देखकर,
जाने की बाट देख-देखकर,
सब हथियार फेंक-फेंककर
तन-मन-धन सब
Read More
कवितालयबद्ध कविता
आयी चिड़िया, आयी चिड़िया
दाना चुगने आयी चिड़िया
सबके मन को भायी चिड़िया
सबके मन पर छायी चिड़िया
किस्मत की झोली से
बिखरा एक-एक दाना
बाबुल के घर-आँगन
चुगने आयी चिड़िया
घर की बंद कोठरी को
एक हरा-भरा और खुला-खुला
एक
Read More
कवितालयबद्ध कविता
कतरा-कतरा,
बूँद-बूँद,
हर लमहे में
खुद को ढूँढ-ढूँढ,
पीकर इसको घूँट-घूँट,
जीवन को बहने दो
हर लमहे में सिमटकर,
इसके हर अहसास से
लिपटकर-लिपटकर
इस जीवन को रहने दो
जीवन-धारा के
हर लमहे को,
पलकों पर बिखरी-बिखरी,
मोती
Read More
कवितालयबद्ध कविता
शहर की हर एक दीवार
जिधर देखिये, बिखरा-
बिखरा सा पडा़ है प्यार
छलका-छलका,
ढलका-ढलका,
उमड़ रहा है बनकर ज्वार
हाँ, हो रही है हर दीवार
सजकर दुल्हन सी तैयार
सबके चेहरों के दागों को
ढकने को, देखो,
चिपक गये
Read More
लेखआलेख
( बुरा मत मानो होली है )
यश चोपड़ा की फिल्म " सिलसिला " जब आयी थी तब मेरी आयु उतनी ही थी जितनी हमारे इस कालजयी आंदोलनजीवी सत्याग्रही की तब थी जब उन्होंने इस फिल्म का मौलिक संस्करण बनाकर जनमन को मुक्तिवाहिनी
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मानवता और चेतना पर जमती गर्द
संसद की अंधी और बहरी सी
दीवारों से टकराकर,
बेरुखी सी एक चुप्पी से घबराकर,
अनदेखा और अनसुना सा
रह गया सड़क का दर्द
रिश्तों की वो गर्मजोशी होती सर्द
सड़क से मुँह मोड़ती,
नजरें
Read More
कवितालयबद्ध कविता
धुँधलाई सी, भरमाई सी,
बौराई सी एक शाम,
पगलाई सी, शरमाई सी
अजी़ज सी एक शाम,
कुछ खामोश सी होती,
पल-पल रोशनी खोती,
यूँ होती जाती खुदबखुद
गरीब सी एक शाम,
जाने या फिर अनजाने,
कुछ पहचाने, कुछ बिन पहचाने,
होती
Read More
कवितालयबद्ध कविता
आज एक
बडी़ बहन
"निर्मला" ने
अपनी मासूम सी बहन
"उज्ज्वला" को
ना जाने क्यूँ रुला दिया
सेंटाक्लाज बनकर आये
सबको भाये, सब पर छाये
"नमो" फकीर काका के इस
"रसोई-रसोई" खेलने को,
बख़्शे एक खिलौने को
उधार की उस
Read More
कवितालयबद्ध कविता
वक्त की पटरी पर चलती,
हर मोड़ के साँचे में ढलती
रेलगाड़ी जिंदगी की
फटफट, झटपट, सरपट चलती,
बीते कल को पल-पल छलती,
अगले कल में बरबस ढलती
एक आता, फिर दूजा आता,
पिछला जाता करके टाटा,
लमहा-लमहा मिलता
और बिछुड़ता
Read More
कवितालयबद्ध कविता
( ना जाने क्यूँ मुझे लगता है कि दिल्ली, मेरी दिल्ली ऐसी नहीं होनी चाहिए जैसी आज दिखती है. दोषी कौन है, ये या वो, या फिर थोडा़ ये और थोडा़ वो और साथ में काफी हद तक हम सब भी ? यह फैसला मैं आप सब पर छोड़ता हूँ.
Read More
कवितालयबद्ध कविता
जिंदगी है कभी- कभी
एक सफर सुहाना
मगर कभी कुछ मुश्किलों से,
भटकाता सा मंजिलों से,
बन जाता है
*"सफर"* कराता
एक अजीब सा अफसाना
कुछ पथरीली और
कुछ टेढी़-मेढी़ सी,
कुछ उजली सी
और कुछ अँधेरी सी,
कदम-कदम पर
मोड़
Read More
कवितालयबद्ध कविता
दबे पाँव आ,
दस्तक देकर,
सतरंगी सी यादें लेकर
चोरी-चोरी, चुपके-चुपके,
खुद से ही जैसे छुप-छुप के,
साया सा बन छाता कौन
मन को यूँ रंग जाता कौन
पचपन में मन खोजे बचपन,
कानों में रस घोलता
एक मुखर सा मौन
यह आँखमिचोली,
Read More
कवितालयबद्ध कविता
यूँ ही बस बैठे ठाले
करके मन को अनायास ही
भूले-बिसरे चंद लमहों के हवाले
यूँ ही बस बैठे ठाले
वो लमहे कुछ मतवाले
बडे़ सहज से, फिर भी लगते
जाने क्यूँ सबसे निराले
जटिल और बोझिल से
बंद, घुटते से एक दायरे
Read More
कवितालयबद्ध कविता
सब कुछ पाकर भी जो
कुछ लगते नाकाफी से,
ज्यादा और ज्यादा उनको
पाने की आपाधापी में
मृगतृष्णा की पटरियों पर,
मन का आनंद रौंद के
कंचनमृग की चकाचौंध से
चममचमाती, दमदमामाती
बुलेट ट्रेन सी एक ताबड़तोड़
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हर रोज नये जुमलों की
बौछार देखते रहे
कारवाँ गुजर गया
गुबार देखते रहे
नोटबंदी के नाम पर
अर्थतंत्र की नाकेबंदी
फिर जीएसटी से छोटे-मोटे
धंधों की तालाबंदी
हम खुली आँख से
सपनों में ही
हर साल दो करोड़
रोजगार
Read More
कवितालयबद्ध कविता
नार
( धन्य है इस देश की नारी
जो पूजा और उपवास भी
दूसरों के लिए करती है
करवाचौथ पति के लिए
होई अष्टमी पुत्र के लिए
भैया दूज भाई के लिए
आइये करें नमन मातृशक्ति को )
नारी, तू नारायणी
नारी, तू नारायणी
इस
Read More
लेखआलेख
जी हाँ, टीवी बनाम बीवी. क्या खूब राइमिंग है दोनों के बीच और इस खूबसूरत राइमिंग की परफैक्ट टाइमिंग और ट्यूनिंग का सूत्रधार होता है, एक हाईटेक रिमोट जो हमेशा ही हाईकमान, मतलब, बीवी के हाईटेक हाथों
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं और मेरे अच्छे दिन
अक्सर ये बातें करते हैं.
तुम ना ही आते तो
कितना अच्छा होता.
सपनों के सौदागर बनकर
झूठी-मूठी आशाओं का
एक सुनहरा आँचल बनकर
नजरों पर ना ही छाते तो
कितना अच्छा होता
मैं और मेरे अच्छे
Read More
लेखआलेख
मुफ्तलाल, फोकटमल, उधारीचंद्र, खैरातीराम... जी हाँ, ऐसे सवनामधन्यों की यह सूची अनंत है. शायद द्रौपदी के चीर जितनी लंबी जिसका दूसरा छोर तो बस केशव के हाथ में ही है. इसके पीछे इनकी शक्ति बनकर खडे़ रहते
Read More
कवितालयबद्ध कविता
दो कदम तुम भी चलो,
दो कदम हम भी चलें
देहों के धरातल से परे,
विदेह से होते हुए,
अहसास के साये तले,
दो कदम तुम भी चलो,
दो कदम हम भी चलें
चुपके-चुपके, दबे पाँव से
आते-जाते हर एक मोड़,
हर एक पडा़व पे,
हर एक धूप
Read More
कवितालयबद्ध कविता
माँ सरस्वती को माल्यार्पण
वीणावादिनी को माल्यार्पण
इस भावपुष्पमाला से
विद्यादायिनी को माल्यार्पण
माँ सरस्वती को माल्यार्पण
वीणावादिनी को माल्यार्पण
मन की दिव्य तरंगों का
अधरों के तट पर सहज
Read More
कवितालयबद्ध कविता
रोबोट बनाता यह इंसान
खोकर खुद की ही पहचान
धीरे-धीरे एक दिन
खुद-ब-खुद
एक रोबोट ना बन जाये
बनकर भस्मासुर
खुद के ही वजूद पर
जानलेवा सी
एक चोट ना कर जाये
इसके लिए जरूरी है,
हर इंसान में सोया हुआ
इंसान
Read More
लेखआलेख
" आया है मुझे फिर याद वो जालिम,
गुजरा जमाना बचपन का
हाये रे अकेले छोड़ के जाना,
और ना बचपन का "
स्व. मुकेश का यह कालजयी गीत आज मैं, कोरोना के मनहूस साये से बाहर निकलने के लिए, सुन रहा था. इस
Read More
कवितालयबद्ध कविता
इस चकाचौंध के बीच
कहीं भरमे मन के इस
पर्दे के बीचो-बीच,
कुछ काली सी रेखायें खींच
आकर जबरन खडा़ हुआ
चुभता सा एक प्रश्न लगता है
ना जाने क्यूँ आज अधूरा
हर एक जश्न लगता है
अनुत्तरित यूँ आजकल
इंसानियत
Read More
कवितालयबद्ध कविता
आओ हम माँ के तिरंगे आँचल को सँवार दें
रच बलिदानों की रंगोली, "काषाय" को निखार दें
बापू के आदर्श समेटे "श्वेत" को मन में धार लें
शस्यश्यामला के आँचल में "हरित" को नव आकार दें
इतिहास बनाये सीमा पर अर्जुन
Read More
कवितालयबद्ध कविता
यह तिरंगा कैनवास,
भारत के जन गण मन की
चेतना का यह आकाश
वही जिसके बीचो बीच,
इस सफेद रंग में सिमटी थी
बूढे़ बापू की आत्मा,
मन को हरा-भरा सा करता
वह हरा रंग
जिसमें लिपटा था
किसान का पसीना,
मेहनत का नगीना,
माँ
Read More
कवितालयबद्ध कविता
आँसू, खून, पसीना
ये आँसू, खून, पसीना
जीवंतता के ये प्रतिमान,
जिंदा रहने के तीन प्रमाण,
देह के ये तीन
सरल, तरल और विरल पदार्थ
रहते शरीर में साथ-साथ
ये आँसू, खून, पसीना
इनमें से हर एक है
सचमुच एक नगीना
ये
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं अक्सर खुदबखुद
जिंदगी की भँवर में
फँस सा जाता हूँ
उसकी हर एक
पेचीदगी की दलदल में
बस धँस सा जाता हूँ
अतिमहत्वाकांक्षा के मरुस्थल में,
सुख की मृगतृष्णा के पीछे-पीछे
सिर्फ दौड़ता-भागता हूँ
बस
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैंने कहीं पढा़ है,
एक सुंदर विचार ने
मेरे मन को यूँ गढा़ है,
"जब हम प्रार्थना करते हैं
भगवान हमको सुनता है
मगर ध्यान में हम सबका
मन ईश्वर को सुनता है"
इस मौन प्रार्थना में डूबा मन
चैतन्य के आलोक में,
जड़ता
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हमने, बिनबुलाये,
अपने घर आये
मेहमान को
आते ही एक शेर परोसा
उन्होंने भूखी नजरों से
हमको कुछ ताककर
इधर उधर कुछ झाँककर
फिर अचानक अपने
मन में कुछ सोचा
और देखते ही देखते
लगा दिया मौके पर चौका,
" वाह वाह
Read More
कवितालयबद्ध कविता
एक पुरानी खिड़की
जैसा ही तो होता है
हर साल के आखिरी दिन का
हर बेशकीमती लमहा
जो लगता कुछ तनहा-तनहा
बिखरता, छिटकता सा
ठिठकता, झिझकता सा
रुकता-चलता,
हँसता और सिसकता सा
मन की नाजुक पंखुडियों पर
ढलकता
Read More
कवितालयबद्ध कविता
सब कुछ पाकर भी
जो कुछ लगते नाकाफी से,
ज्यादा और ज्यादा उनको
पाने की आपाधापी में
मृगतृष्णा की पटरियों पर,
मन का आनंद रौंद के
कंचनमृग की चकाचौंध से
चममचमाती, दमदमामाती
बुलेट ट्रेन सी एक ताबड़तोड़
Read More
कवितालयबद्ध कविता
जीवन का एक दिन ऐसा भी
मन में शुभ चिंतन ऐसा भी
अद्भुत परिवर्तन ऐसा भी
जीवन का एक दिन ऐसा भी
इस चकाचौंध से दूर कहीं
देखूँ कड़वी सच्चाई को
रूठा उजियारा जिस पथ से
केवल दुःख की परछाई हो
सच का एक दर्पण
Read More
कवितालयबद्ध कविता
अलविदा, दो हजार बीस
अलविदा, दो हजार बीस
लेकर जाओ साथ अपने
अपनी सारी टीस,
अपनी सारी बंदिशें,
मानव जति के साथ की
तुमने जितनी भी रंजिशें
अब तो आने दो जीवन में इक्कीस
अलविदा, दो हजार बीस
लाल पडौ़सी से
Read More
कवितालयबद्ध कविता
ना जाने क्यूँ
आज भी पीछा करती हैं
जाने या फिर
कुछ अनजाने ही सही
आ भरती हैं
मन का ये सूना आँगन
पल-पल बूँद-बूँद रिसता सा
मन का ये झीना दामन
भूली-बिसरी सी कुछ यादें
यादों की गालियों में बिखरी,
चाही या
Read More
कवितालयबद्ध कविता
स्वप्न होते रहते हैं ऐसे दफन
अभिलाषा ओढ़ लेती है जैसे कफन
किंतु मेरे अंतर्मन में बैठा कोई
देता रहता है जाने कैसे, कहाँ से
एक मनभावन सा अपनापन
सूक्ष्म में सिमटा हुआ विराट बनकर
तमस को ललकारता प्रभात
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हम कुछ पाना चाहते हैं
फिर कुछ ज्यादा
फिर उससे ज्यादा
क्यूँ अंतहीन
सुख की मृगतृष्णा
शिथिल मूल्यों की मर्यादा
क्या समृद्धि ही परम लक्ष्य
और मापदंड है सिर्फ फायदा
लगने लगता है बोझ हमें
क्यूँ गलत-सही
Read More
कवितालयबद्ध कविता
( लाकडाउन के समय एक कटु सत्य को उजागर करती एक रचना )
मन गाँव की डगर पे,
बस साँसें ही चल रही
अब शहर में,
जाने क्या अब और
देखना बाकी है,
अनायास ही टूट पडे़
इस कोरोना के कहर में
रोटी, कपडा़, मकान खो गया
इस पत्थर
Read More
कवितालयबद्ध कविता
अधकचरे से ये रिश्ते,
कुछ अधमरे से ये रिश्ते
अधकचरे, अधमरे से ये रिश्ते
हाँ अधकचरे, अधमरे ही तो
होते जा रहे हैं रिश्ते,
हम सब चुका रहे, जिसकी,
एक साथ ना जाने कितनी,
अब सब की सब,
अनचुकी सारी किश्तें,
अधकचरे,
Read More
कवितालयबद्ध कविता
यूँ ही बस बैठे ठाले
करके मन को अनायास ही
बीते कल के चंद लमहों के हवाले
यूँ ही बस बैठे ठाले
वो लमहे कुछ मतवाले
बडे़ सहज से, फिर भी लगते
जाने क्यूँ सबसे निराले
जटिल और बोझिल से
बंद, घुटते से एक दायरे
Read More
लेखआलेख
एक व्यक्ति आम के पेड़ की छाँव में बैठकर विश्राम कर रहा था. पास के खेत में तरबूज की बेल थी. खाली दिमाग तो शैतान का घर होता ही है. एक अहंभाव मन में उपजा, " भगवान भी कभी-कभी कितने अजीबोगरीब काम करता है. इस
Read More
कवितालयबद्ध कविता
कितनी जल्दी भूल जाते हैं
आखिर क्यूँ इतनी जल्दी भूल जाते हैं
क्यूँ मद के झूले में इतना झूल जाते हैं
कि इतनी जल्दी भूल जाते हैं
कितनी जल्दी भूल जाते हैं
नेता चुनावी वादों को
जनसेवा के इरादों को
जनता
Read More
कहानीसामाजिक, लघुकथा
मेहनत-मजदूरी करके आजीविका चलाती वह मजबूर माँ दिन भर से भूखे अपने बच्चे को सुलाने का असफल प्रयास कर रही थी. खाली पेट नींद कैसे आती ? अंत में माँ को एक उपाय सूझा. उसे याद आया कि उसके बेटे को कहानी सुनते
Read More
कवितालयबद्ध कविता
( लाॅकडाउन में सड़क पर धूल फाँकता खोखले और दोगले विकास का एक कटु सत्य )
पाल रखी थी अब तक जो
कुछ भी खुशफहमियाँ
दिले नादान की जाने कितनी
परतों के दरमियाँ
कुछ मसीहाओं के हाथों
मन की कटी पतंग पे
लिखी
Read More
कवितालयबद्ध कविता
एक धानी सी चुनरी से दबी-ढकी माँ,
यह हरी-भरी सी धरती माँ,
मातृत्व-संपदा से परिपूरित,
हरीतिमा की निधि से यूँ लदी-फदी सी माँ,
समेटकर जीवन-सृजन की अद्भुत शक्ति,
जगदंबरूपिणी, अन्नपूर्णा, माँ प्रकृति
इसके
Read More
कवितालयबद्ध कविता
धूल-धक्कड़ की मोटी सी
एक चादर ओढ़कर
इस बेरुखी के दौर में
खुद के वजू़द को सिकोड़कर,
अपने ही बस, अपने ही
ओर यूँ मुँह मोड़कर
अलमारी की बंद
कोठरी की घुटन में
घुटते से
बदले हुए जमाने के
निर्मम हाथों
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं महालक्ष्मी, धन की शक
मैं महालक्ष्मी, धन की शक्ति
पालनकर्त्ता हरि की शक्ति
मैं ही हूँ सम्पूर्ण प्रकृति
जल-थल, जड़-चेतन की शक्ति
तुम खूब करो मेरी भक्ति
भक्ति में ही सिमटी शक्ति
बने दीपमाला जन-जन
Read More
कवितालयबद्ध कविता
( इस वर्ष जहाँ महाव्याधि ने मानव की खुशियों को किसी न किसी रूप में निगला हे, एक अद्भुत संयोग भी बना है कि दीपावली और बालदिवस एक साथ आये है. इन दोनों को एक साथ समेटकर मैंने अपने मनोभावों को बिखेरा है,
Read More
कवितालयबद्ध कविता
धुँधलाई सी, भरमाई सी
अजीब सी एक शाम,
पगलाई सी, शरमाई सी
अजी़ज सी एक शाम,
कुछ खामोश सी होती,
पल-पल रोशनी खोती,
यूँ होती जाती खुदबखुद
गरीब सी एक शाम,
जाने या फिर अनजाने,
कुछ पहचाने, कुछ बिन पहचाने,
होती दिल
Read More
कवितालयबद्ध कविता
सड़कों पर यूँ पानी जैसा
बहता दिखता खून
उन रोटियों पर लाल रंग से
भूख और बेकारी का
यूँ लिखता मजमून
बेबसी के आँसू बनकर
आँखों से यूँ रिसता खून
व्यवस्था की इस चक्की में
घुन सा फँस निचुड़ता खून
इन सबका
Read More
लेखअन्य
( आइये आज पढि़ये लाॅकडाउन में लिखा एक व्यंग्य )
कभी पढा़ था, " आषाढ़ का एक दिन ", मगर वह आषाढ़ सावन लेकर आता था. आज सावन की बात करूँ तो आप कहेंगे कि सावन के अंधे को सब हरा-हरा सूझता है. आज तो सब डरा-डरा ही
Read More
लेखअन्य
संस्कृत के एक नीति-श्लोक का अर्थ है,
" दुष्ट की मित्रता और शत्रुता दोनों घातक हैं. कोयला गर्म होने से हाथ को जला देता है और ठंडा होने पर हाथ काले कर देता है. "
अब हाथ काले करने के लिए कोयले की दलाली
Read More
कवितालयबद्ध कविता
( हमारी लिपि के अभिन्न अंग हैं कुछ प्रतीक जैसे चंद्रबिंदु(ं), पूर्ण विराम (.), रिक्त स्थान (....) जो भाषा को परिपूर्ण बनाकर एक अर्थ देते हैं.इनके द्वारा मैने जीवन को परिभाषित करने का प्रयास किया है )
वक्त
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हँसो कुछ इस तरह,
हाँ, हँसो कुछ इस तरह,
कि बिखेर दो बिंदास,
कहीं अपने ही आस-पास,
खुश होने की छोटी सी,
मासूम सी कोई वजह
और पा जाओ इस
जिंदगी के दामन में
हँसते-हँसते ही,
आनन फानन में,
खुशनुमा सी, जीने की
एक
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हम भजन करें तो कह्ते "राम" ,अभिवादन में "राम-राम"
अनहोनी कुछ हो तो सहसा, मुख से निकले "राम-राम-राम"
संसार एक परिवार बने ,आकाश पिता धरती माता
हे राम, कभी न टूटे जग में, "राम-राम" का ये नाता
हो रामराज्य चहुँ
Read More
कवितालयबद्ध कविता
चलो सँभलकर इन राहों पर
सचमुच फिसलन बहुत है
टेढ़ी-मेढ़ी सँकरी सड़कें
पल-पल पग अटके-भटके
है जमी जोखिमों की काई
दोनों ओर पतन की खाई
पाँव फिसलने को यहाँ पर
क्षणिक प्रमादों की छोटी सी
रपटन बहुत है
सचमुच
Read More
कवितालयबद्ध कविता
यह आदि है या अंत,
जीवन है या है मृत्यु,
धूप है या छाँव,
पतझड़ है या फिर वसंत,
इस निरंतर घूमते से
जीवन-चक्र का
यह आदि है या फिर अंत
हर पल है एक सूक्ष्म बिंदु
हर बिंदु में सिमटा सिंधु
हर बिंदु कडी़ है
अद्भुत
Read More
कवितालयबद्ध कविता
वो चली जा रही थी
हाँ, वो चली जा रही थी
लमहों से लुकाछुपी सी करती
जिंदगी
कभी उनको छलती
और कभी खुद ही
उनसे छली जा रही थी
हाँ, वो चली जा रही थी
हर मोड़, हर पडा़व पर,
हर उतार पर, हर चढा़व पर,
बारी-बारी से मिलती
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हम सभी आज लाचार से हैं
बँटे आज हम जाने क्यूँ
दो अलग-अलग कतार में हैं
जिंदा हैं, फिर भी सभी
बेजान से हैं
जानते हैं सब मगर
खुद से ही अनजान से हैं
पहली कतार,
घर की लक्ष्मण-रेखा में
होकर कैद सी
कर रही जहाँ
Read More
कवितालयबद्ध कविता
एक टुकडा़ धूप,
यह एक टुकडा़ धूप
जिंदगी का एक छोटा सा,
एक उजला रूप,
यह एक टुकडा़ धूप
पल-पल, ना जाने कैसे
होता हुआ सा,
खुद का ही
एक धुँधला रूप
यह एक टुकडा़ धूप
हाँ, बिखर रही जैसे मन से
बनकर, यूँ जड़ता, धुआँ-धुआँ
पल-पल,
Read More
कहानीप्रेरणादायक, लघुकथा
कहते हैं, सागर-मंथन से जिस प्रकार अमृत के साथ मदिरा प्रकट हुई,
उसी प्रकार लक्ष्मी के साथ-साथ दरिद्रता भी प्रकट हुई. लक्ष्मी ने नारायण का वरण किया तो दरिद्रता भी अपने बहन-बहनोई के पीछे-पीछे उनके धाम
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मेरे बालों की सफेदी
यह, मेरे बालों के सफेदी
अनुभव की शुद्ध चाँदी जो
मुक्तहस्त से कुदरत ने,
बिन माँगे ही मुझको दे दी
यह मेरे बालों की सफेदी
हाँ, मेरी उम्र की यह भेदी
बजा रही है चारों ओर
मेरी उम्र का
Read More
कवितालयबद्ध कविता
ना जाने किस वेश म
फूल जैसी छुअन भी
लगती है अब चुभन सी
अखरता है आज वो
पुराना शिष्टाचार
लगता है, गले मिलना भी
आजकल गले पड़ना सा
क्या करें, हम आज तो
हर प्यार लगे
कोरोनाकार
प्रेम रूप भगवान का है,
सबसे
Read More
लेखआलेख
कल ही एक समाचार पढा़, " कोर्ट-परिसर में तीन कौवे मरे. हड़कंप मचा ". सुनते ही एक शंका ने मेरे मन में हड़कंप मचाया. कुछ समय पहले, " झूठ बोले तो कौआ काटता था " मगर आज झूठ की शक्ति से डरकर वह खुद मर जाता है. मुझे
Read More
कवितालयबद्ध कविता
आँखों का हर एक
अधूरा स्वप्न
बूँद-बूँद कर रिसता,
हर प्रश्न, है जिसका
इस पापी पेट से
एक सीधा रिश्ता
कड़वे सच की चक्की में
फँसा आज घुन बनकर पिसता
हाँ, इस पापी पेट का
हर एक सवाल
धधक रहा
बनकर बवाल
मन में
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मानवता और चेतना पर जमती गर्द
संसद की अंधी और बहरी सी
दीवारों से टकराकर,
बेरुखी सी एक चुप्पी से घबराकर,
अनदेखा और अनसुना सा
रह गया सड़क का दर्द
रिश्तों की वो गर्मजोशी होती सर्द
सड़क से मुँह मोड़ती,
नजरें
Read More
लेखआलेख
यह एक कल्पना है हमारे सबसे अंतिम कल की और दुर्भाग्य देखिये यह कोई सुखद कल्पना नहीं है. सुखद तो श्रीगणेश ही होता है, अंत तो दुःखद ही लगता है. अब हमारी मानवी सृष्टि का प्रथम अध्याय भले ही मनु-शतरूपा
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हम पास तो हैं पर साथ नहीं
हम जिस्म तो हैं, जज्बात नहीं
हाथों में हाध तो है
पर साझा अहसास नहीं
पंख तो हैं, परवाज नहीं
जिंदगी की ताक पर
साज तो हैं,आवाज नहीं
जिंदगी बेसुरा सा एक बाजा,
चूँ-चूँ का बेवक्त
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं छाँव तेरे आँगन की,
एक ठंडी सी और घनी सी
ठाँव तेरे आँगन की
आती हूँ बन साँझ,
शर्माती सी, दबे पाँव
एक खामोश आहट सी
मैं छाँव तेरे आँगन की
बनकर धरती की चहेती,
लाड़ली सी, साँवली सी,
एक छोटी सी,
एक खोटी सी
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मन के वे खेल-खिलौने
जो जिंदा हैं यादों के
एक घने से साये में,
एक खूबसूरत सरमाये से
भरते मन के सब कोने
मन के वे खेल-खिलौने
लगते से बिल्कुल अपने,
हाँ, वे अपने, सिर्फ अपने,
वो अनगिन अनमोल सपने,
नन्हे-मुन्ने,
Read More
कवितालयबद्ध कविता
शुक्रिया, शुक्रिया, शुक्रिया
नवभारत के कर्णधारों, शुक्रिया
"वंदे भारत" के नाम पर
"वंदे इंडिया" शुरु किया
नवभारत के कर्णधारों, शुक्रिया
शुक्रिया, शुक्रिया, शुक्रिया
ये भारत और वो इंडिया
एक नहीं बल्कि
Read More
बहुत खूब ??
धन्यवाद
धन्यवाद !
कवितालयबद्ध कविता
इस चकाचौंध के बीच कहीं
भरमाये से मन के इस
पर्दे के बीचो-बीच,
कुछ काली सी रेखायें खींच
आकर जबरन खडा़ हुआ
चुभता सा एक प्रश्न लगता है
ना जाने क्यूँ आज अधूरा
हर एक जश्न लगता है
अनुत्तरित यूँ आजकल
इंसानियत
Read More
कवितालयबद्ध कविता
दिल्ली से उन्नाव तक
उन्नाव से उधर कठुआ तक
कठुआ से हैदराबाद
और फिर उन्नाव तक
दानवता ने इस बार, देखो,
किया कलंकित हाथरस
बहुत हो चुका, जालिमों,
बस करो अब बस
क्यों दोहराई जा रही है
सिर्फ एक ही कहानी
फूट
Read More
वर्तमान परिस्थिति को दर्शाती रचना..
धन्यवाद
लेखअन्य
मुफ्तलाल, फोकटमल, उधारीचंद्र, खैरातीराम... जी हाँ, ऐसे सवनामधन्यों की यह सूची अनंत है. शायद द्रौपदी के चीर जितनी लंबी जिसका दूसरा छोर तो बस केशव के हाथ में ही है. इसके पीछे इनकी शक्ति बनकर खडे़ रहते
Read More
लेखअन्य
जी हाँ, " पहला सुख आलसी काया ". मुझसे असहमत होने वाले शायद आलसी काया की माया से जन्मे परम आरामसुख के मूलभूत सार तत्व को नहीं समझते. आलस्य मन-प्राण के परमानंदरस में आकंठ लसलसाने की एक चरम सीमा को पार
Read More
लेखअन्य
हमारी महान संस्कृति के एक अमूल्य आभूषण, " अतिथि देवो भव " का यह विलक्षण भाव जो देश, काल और मन की दशा-दिशा के साथ नये-नये अर्थ पाता रहता है. कहते हैं कि कोई किसी के घर इन चार भावों के कारण जाता है- भाव, अभाव,
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं जिंदगी हूँ,
हँस-हँस कर
मुझको जियो
तो दिल्लगी हूँ
वरना खुश्क आँसुओं के
मौन में सिमटी पीडा़ की
मनहूस सी एक मुँहलगी हूँ
मैं जिंदगी हूँ
कभी फूलों की ताजगी हूँ
ओस जैसी पाक सी हूँ
हवा सी आजाद सी हूँ
आकाश
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हे भगवान,
हो सके तो
कुछ समय के लिए सही
अपनी इस सृष्टि को एक
क्रांतिकारी मोड़ दे
कुछ बरसों के लिए सही
बेटी बनाना छोड़ दे
तब देखना एक अजब तमाशा
हाँ, तभी लगेगा एक तमाचा
इस सडी़-गली सी बूढ़ी सोच पर
जो रखती
Read More
कवितालयबद्ध कविता
( बचपन में हम लोग एक खेल खेलते थे, "बोल मेरी मछली, कितना पानी". पिछले कुछ सालों के जादुई वातावरण से मन इस पचपन में फिर से वही बचपन खोजता हुआ, बार-बार पूछता है,
" बोल मेरी मछली, कितना पानी " )
उठा बवंडर,
जगा
Read More
कवितालयबद्ध कविता
आयी चिड़िया, आयी चिड़िया
दाना चुगने आयी चिड़िया
सबके मन को भायी चिड़िया
सबके मन पर छायी चिड़िया
किस्मत की झोली से
बिखरा एक-एक दाना
बाबुल के घर-आँगन
चुगने आयी चिड़िया
घर की बंद कोठरी को
एक हरा-भरा और खुला-खुला
एक
Read More
कवितालयबद्ध कविता
उपेक्षा से आहत होती अपेक्षाएं
अकालमृत्यु के मुँह में जाती
जन-जन की आकांक्षाएं
आज आँसू बहा रही हैं
कुछ प्रश्न लिये भीगी पलकों पर
अपनी शब्दहीन भाषा में
आज पूछती जा रही हैं
उन्मादों के झंझावातों
Read More
कवितालयबद्ध कविता
क्या गजब ढा रहा आज यह
सन्नाटे में तैरता सा कोलाहल
चारों ओर धूम मचाता,
यह चोर हरदम शोर मचाता,
सबसे निंदनीय पेय यह अल्कोहल
यह नाकरा, यह आवारा
सचमुच एक धीमा हलाहल
अनायास ही बन बैठा
अपनी ही अकड़ मे ऐंठा
आकर
Read More
कवितालयबद्ध कविता
अतिथि, तुम कब जाओगे
" मान ना मान, मैं तेरा मेहमान "
बिन बुलाये, अनचाहे से
आ धमके मेहमान,
तुमसे हर एक मेजबान है परेशान
चेहरा यह आपका देख-देखकर,
जाने की बाट देख-देखकर,
सब हथियार फेंक-फेंककर
तन-मन-धन सब
Read More
कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक
यह बात तब की है जब कोरोना ने हमारे पाँवों को जंजीरों में जकड़कर घर की चारदीवारी में कैद नहीं किया था. मैं स्वास्थ्य की दृष्टि से शाम को एक-डेढ़ घंटे घूमता था. अगर बाहर कोई काम होता तो पाँच-छः किलो
Read More
कवितालयबद्ध कविता
इतना हँसें कि
रोने का वक्त ना मिले
ख्वाहिशों का गला घोटती
सख्तियाँ, पाबंदियाँ
कर ले चाहे कितनी भी
दिल की नजरबंदियाँ
होंठों पर आती हँसी को
उदासियों की सुइयों से
यूँ ना सिलें
इतना हँसें कि
रोने
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैं चल रहा था,
मैं चल रहा था,
खुद को ही जैसे
छल रहा था,
डूबती सी, ऊँघती सी
हर फिजा़ में ढल रहा था,
हालातों की आँच से यूँ
तिल-तिल जल रहा था,
जाने क्यूँ मेरा वजू़द
बूँद-बूद सा
पिघल रहा था
अपनी ही धुन में खोया
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हर एक जगह,
हर एक सुबह,
सूरज का यह सुनहरा खत
लेकर आता है एक पैगाम,
अपनी प्रिया धरा के नाम
धरकर तेजस्वी विश्वरूप,
बनकर उजली-उजली धूप,
बनकर स्वर्णिम रश्मिरथ,
बिछती बनकर एक अग्निपथ,
हर एक जगह,
हर एक सुबह,
सूरज
Read More
कवितालयबद्ध कविता
वक्त की पटरी पर चलती,
हर मोड़ के साँचे में ढलती
रेलगाड़ी जिंदगी की
फटफट, झटपट, सरपट चलती,
बीते कल को पल-पल छलती,
अगले कल में बरबस ढलती
एक आता, फिर दूजा आता,
पिछला जाता करके टाटा,
लमहा-लमहा मिलता
और बिछुड़ता
Read More
कवितालयबद्ध कविता
कुछ सुस्त कदम से सरकती,
कुछ तेज कदम आगे बढ़ती,
कुछ बेबसी से सिसकती,
कुछ अट्टहास बन उमड़ती,
कुछ तड़कती, कुछ फड़कती,
जीवन-हृदय का स्पंदन बन धड़कती,
पल-पल बढ़ती-चढ़ती राहें
कुछ गर्जन-तर्जन सी करती,
कुछ
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हर एक गोधूलिवेला में
सिर छुपाती सी हर साँझ
रात की पलकों तले
एक सपना बो जाती है
और उसकी गोदी में
दुबककर सो जाती है
और सूरज के इंतजार में
खो जाती है
फिर प्राची से एक नयी किरण
एक नयी आशा सी बन,
हर नयी
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मेरे बाबू जी
घर में पाँव रखते ही
आती है नजर सबसे पहले
सामने वाली दीवार
इस दीवार के बीचो-बीच
लटका है एक फोटो फ्रेम
जिसमें सिमटा है
मेरा पूरा परिवार
मेरा पूरा परिवार ?
हाँ, पूरे परिवार की
मानो संपूर्ण
Read More
कवितालयबद्ध कविता
मैंने पूछा चाँद से
मैंने पूछा चाँद से,
हाँ, मैंने पूछा चाँद से,
एक सुहानी साँझ की
खुलती जुल्फों पे ढलकी,
छलकी बनकर चाँदनी,
कुछ हल्की-हल्की,
मन को बरबस आकर छलती
एक पूनम की रात में
मैंने पूछा चाँद से,
"
Read More
बहुत खूब
धन्यवाद
धन्यवाद
कवितालयबद्ध कविता
आज मैंने
रोते हुए एक
बच्चे को हँसा दिया
एक चाकलेट का पैकेट देकर
अपने दिल में कुछ खुशनुमा से
अहसासों का साज बजा दिया
उसके लिए ये छोटा सा
एक तोहफा था
मेरे लिए खुश रहने का
एक खूबसूरत मौका था
उस चेहरे
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हिचकियाँ अब बंद हैं
मन के सभी झरोखे
और यादों की
खिड़कियाँ सब बंद हैं
ये खिड़कियाँ अब
देती हैं बस झिड़कियाँ,
और बाकी सब बंद हैं
मन की किसी सुरंग में
जाकर दुबके वो ख़्वाब
वहीं पर जाकर ठहरे
और पलकों
Read More
कवितालयबद्ध कविता
इतना हँसें कि
रोने का वक्त ना मिले
ख्वाहिशों का गला घोटती
सख्तियाँ, पाबंदियाँ
कर ले चाहे कितनी भी
दिल की नजरबंदियाँ
होंठों पर आती हँसी को
उदासियों की सुइयों से
यूँ ना सिलें
इतना हँसें कि
रोने
Read More
लेखअन्य
गोस्वामी जी की प्रसिद्ध चौपाई है,
" सकल पदारथ हैं जग माहीं
कर्महीन नर पावत नाहीं "
मैंने इसकी दूसरी पंक्ति का रूपान्तरण करके व्यंग्य के साँचे में ढालने का प्रयास किया है, कुछ इस तरह,
" सकल पदारथ
Read More
कवितालयबद्ध कविता
लमहा-लमहा, बूँद-बूँद,
जीवन-नदिया में ढूँढ-ढूँढ,
इसके इस तेज बहाव में,
जीवन-पथ के हर उतार
और हर चढा़व में,
करता रहा ना जाने क्यूँ,
खुद से ही अनजाने यूँ,
एक चमचमाते-झिलमिलाते से
अप्राप्त सुख की तलाश
खोती
Read More
कवितालयबद्ध कविता
हँसो कुछ इस तरह,
हाँ, हँसो कुछ इस तरह,
कि बिखेर दो बिंदास,
कहीं अपने ही आस-पास,
खुश होने की छोटी सी,
मासूम सी कोई वजह
और पा जाओ इस
जिंदगी के दामन में
हँसते-हँसते ही,
आनन फानन में,
खुशनुमा सी, जीने की
एक
Read More
कवितालयबद्ध कविता
यह तिरंगा कैनवास,
भारत के जन गण मन की
चेतना का यह आकाश
वही जिसके बीचो बीच,
इस सफेद रंग में सिमटी थी
बूढे़ बापू की आत्मा,
मन को हरा-भरा सा करता
वह हरा रंग
जिसमें लिपटा था
किसान का पसीना,
मेहनत का नगीना,
माँ
Read More
कवितालयबद्ध कविता
( भारत परंपराओं का देश है. हर सुंदर परंपरा के पीछे एक दिव्य आस्था और हर आस्था के पीछे एक अद्भुत, अलौकिक चेतना छिपी रहती है. प्रस्तुत है चेतना के धरातल पर आस्था और परंपरा का एक तुलनात्मक चित्रण )
परंपरा
Read More
कविताअन्य
हाँ, यही तो जीवन है
हाँ, यही तो जीवन है,
हाँ, बस यही तो जीवन है,
हर रात के काले घूँघट से झलकती
प्राची की पहली किरण हैं
हाँ, यही तो जीवन है
हाँ, बस यही तो जीवन है
संक्रमण की पीडा़ है
और फिर सृजन-सुख है
विरह-वेदना
Read More