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London is the capital city of England.
कवितालयबद्ध कविता
मैं चांद नहीं आफताब हूं
नहीं बनना मुझे चांद- सा,
मुझे बनना है आफताब - सा,
मैं तेज ज्वलित प्रकाश हूं,
शीतल नहीं मैं आग हूं,
हां मैं चांद नहीं आफताब हूं।
घूरती नजर देखे अगर,
जला देती ना टिकती मगर,
मैं ना
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कवितालयबद्ध कविता
वक्त से तकरार
आज वक्त के साथ,मेरी हुई तकरार,
अच्छे वक़्त का, करवाता इंतज़ार।
ठहरता नहीं कुछ पल मेरे पास,
कि रेत -सा फिसल जाता हर बार।।
बुरे वक़्त में धीमी रफ्तार,
काटे नहीं कटती काली रात।
जख्म दे जाती
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वक्त का चेहरा हमारी गफलत के लंबे कालों से ढका होता है और सिर का पिछला भाग हमारी समझ की तरह गंजा. सामने से उसे पहचान नहीं पाते और फिर हाथ से फिसल जाता है बंद मुठ्ठी से रेत सा, और हम खाली हाथ मलते रह जाते हैं
वाह बिल्कुल सही कहा आपने सर ?
लेखआलेख
सूर्योपासना का अनुपम पर्व: छठ महापर्व
कार्तिक मास में मनाया जाने वाला छठ महापर्व जो मुख्यतः प्रकृति की विशेषता को बताने वाला, साक्षात् भगवान रूपी प्रकृति की आराधना करने वाला अनुपम महापर्व
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कवितालयबद्ध कविता
छठ महापर्व
अनुपम पर्व सूर्योपासना का,
साक्षात् प्रकृति की आराधना का।
रखता विशेष महत्व महापर्व,
कार्तिक मास का छठ पर्व।।
स्वच्छता का विशेष ध्यान,
चार दिनों का ये अनुष्ठान।
ना मूर्ति पूजा, ना लिंग
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कवितालयबद्ध कविता
उम्मीद के दीप
हाथों में मिट्टी के दीप,
आंखों में लिए उम्मीद,
ढूंढ़ती वो नज़र,
मनेगी दीवाली मेरे भी घर,
कोई खरीद ले मेरे दिए अगर,
सब देख पलट जाते मगर।
दिए खरीद लो बाबू जी,
गरीब के घर भी जलेगा दीप,
मानने
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कवितालयबद्ध कविता
क़फ़स में कनेरी
जाल बिछाया छलिया अहेरी,
कहां समझी मैं नन्ही कनेरी?
देकर मुझे अधम ने प्रलोभन,
छीन लिया मेरा उन्मुक्त गगन।
हो गई कफस में कैद,
मां मैं ,झर - झर बहे मेरे नैन।
ना भर सकती ,अब स्वच्छंद उड़ान,
दफन
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बहुत सुंदर सृजन स्वाति आपने एक कनेरी चिड़ियां के बेबसी को बखूबी उकेरा है
Thank you Di ?
Thank you Di ?
कनेरी की बेबसी को बखूबी शब्दों में उकेरा है।
बहुत बहुत धन्यवाद मैम??
बहुत सटीक और सामयिक..! एक कटु सत्य..!
बहुत बहुत धन्यवाद सर ?
कवितालयबद्ध कविता
वक्त चाहे कितना भी बदल जाए लेकिन औरत को अपने हक के लिए पहले खुद को साबित ही करना पड़ा है। अभी हाल में 17 वर्षों से चल रही लंबी कानूनी लड़ाई के बाद महिलाओं को सेना में बराबरी का हक मिला है। इस कानूनी
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बहुत खूब, नारी को न समझें,अबला बेचारी
हार्दिक आभार मैम ?
कवितालयबद्ध कविता
चिड़िया पिंजड़े में कैद हो गई
फैलाकर अपने पंख जमीं से,
उड़ना अभी तो सीख रही थी।
गगन चूमने के अरमान जगाती,
कोशिशें लगातार कर रही थी।
पर निर्मोही के हाथों पकड़ी गई,
चिड़िया पिंजड़े में कैद हो गई।
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कविताअतुकांत कविता
घायल परिंदा
ओ घायल परिंदे!
तू फिर से उड़ान भर।
अपने सपनों को दे,
नए हौसलों के पर।।
टूटा नहीं है तू,
हारा नहीं है अभी तक।
अपनी कोशिशों से ,
हिम्मत कर उड़ान भर।।
गगन चूम ले तू,
अपने फैला कर पर।
लड़खड़ा
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यह हौसला और जूनून ही सब की ताकद बने , प्रेरक संदेश देती रचना
बहुत बहुत धन्यवाद मैम ?
अति अद्भुत और अतिउत्कृष्ट रचना।
धन्यवाद् सर ?
कविताभजन
माँ (प्रार्थना)
मेरा मन तो है बेचैन
कैसे बंद करूं ये नैन?
कैसे तेरा दर्शन पाऊं माँ,
तुझमें ही मैं रम जाऊं माँ।
कैसे करूं मां तेरा वंदन?
सब तेरा करूं क्या अर्पण?
क्या तुझे भोग लगाऊं माँ ?
ये उलझन
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अद्भुत साहित्यसृजन । प्रार्थना में अद्भुत भक्तिभाव।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका सर ?
कवितालयबद्ध कविता
मेरे जीवन की चाह
पैर हो जमीं पर,पर छू लूं आसमां,
अपनी कलम से लिखूं अपना कारवां।
सितारों की जहां में हो मेरा भी नाम
भीड़ से अलग हो मेरी पहचान।
सफर हो मुश्किलें तो करूं सामना,
हौसलों से हमेशा भरूं
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कवितालयबद्ध कविता
मां के नव- रूप
नवरात्रि में मां नव- रूप धरे,
हर रूप के अपने महत्व बड़े।
प्रथम रूप बनी हिमालय पुत्री,
मां कहलाई तुम शैलपुत्री।
हुई मां तुम वृषभ पर आरूढ़,
दाहिने हाथ में धरा त्रिशूल।
मूलाधार चक्र
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कवितालयबद्ध कविता
मैंने जीवन जीना सीखा है
है नहीं अभिमान मुझमें,
स्वाभिमान से जीना सीखा है।
देती हूं सम्मान सभी को,
पर ना अपमान सहना सीखा है।
झुकती नहीं कभी गलत के आगे,
ना गलत का साथ देना सीखा है।
जिन्दगी जीती हूं
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उत्साह और आत्मविश्वास से लबरेज रचना है।
Thank you maim ?
साहसपूर्ण और सम्मान से जीने की कला..!!
शुक्रिया सर ?
कवितालयबद्ध कविता
मासूम कलियां
हम तो हैं मासूम-सीं कलियां,
मत तोड़ो हमारी पंखुड़ियां।
देखने दो हमें भी दुनियां,
नाज़ुक हैं हम अभी बच्चियां।
खिलकर जरा निखर जाने दो,
ना टूट कर अभी से बिखर जाने दो।
हंसने दो हमें खिलखिलाकर,
ना
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बच्चे वाकई कोमल और प्यारे होते हैं। अभिव्यक्ति बहुत प्यारी की है आपने
हार्दिक आभार मैम
कवितालयबद्ध कविता
बचपन हमें जीने दो
किताबों की बोझ तले,ना बचपन हमारा दबने दो
कागज की कश्ती से ही,विचारों की धारा में बहने दो
भीगने दो बारिश की बूंदों में, बुलबुले बनाकर उड़ाने दो
सजाने दो अपनी सोच से दुनिया को,दीवारों
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कविताअन्य
चुनावी मुद्दा(हास्य व्यंग)
पांच साल बितने के बाद,
आ रही जनता की याद।
नेता जी घर- घर घूम रहे हैं,
चुनावी मुद्दा ढूंढ़ रहे हैं।।
सज गई वादों की दुकान,
सब बता रहे खुद को महान।
कोई देगा बेरोजगारों को
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बेहतरीन व्यंग्य लिखा आपने मजा आया पढ़कर बस बीतने को ठीक कर लीजिए।
शुक्रिया मैम ?
कविताअतुकांत कविता
स्वच्छ भारत अभियान
स्वच्छ, सुंदर भारत हो अपना,
पूरा करें गांधी जी का सपना।
जन जन तक पहुंचे स्वच्छता का संदेश;
बनाएं स्वच्छ और सुंदर अपना देश।।
यहां वहां गर कोई देता थूक,
ना चुभाएं शब्दों के शूल।
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कविताअन्य
बेटी हूं मैं:पराया धन ना कहना
एक ही मां की कोख से जन्में बेटा बेटी,
तो कैसे केवल बेटा अपना ,पराई है बेटी?
बचपन बिताया इसी आंगन में,हमेशा घर में खुशियां लाई।
बन कर रही पिता की लाडली,मां
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कविताअतुकांत कविता
मैं हिन्दी हूं
मैं हिन्दी हूं,
थोड़ी घबराई हुई- सी हूं।
अपने अस्तित्व के खो जाने के डर से।
कहीं मैं भी सिर्फ किताबों की ,
भाषा बनकर ही ना रह जाऊं।
संस्कृत भाषा की तरह
स्कूलों में सिर्फ ना पढ़ाई जाऊं।
जिस
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कविताबाल कविता
आज का विषय है बच्चों पर आधारित रचना, मै एक रचना प्रकाशित कर रही हूं जल की बूंदें ,जो शिक्षाप्रद भी है
जल की बूंदे
मचल रही थी जमीं से ही,उठने के लिए ऊपर की ओर,
राह देख रही थी सूरज का, ले जाएगा आसमां की
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कविताअतुकांत कविता
कन्यादान क्यों?
त्याग कर पिता बेटी को,
ये कैसी रस्म निभाता है!
दान देते हैं सब खुश हो,पिता
आंख से दरिया बहाता है।।
जिगर के टुकड़े को,
पिता प्यार से संभालता है।
कन्यादान कर वही,बेटी
को पराया धन बताता
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kahte hai kanyadaan sabse bada punya hota hai shayad isiliye kanyadaan jaruri hai