ख्वाहिशें जीने की, जो हर पल, पल रही है
बन कर ज़िन्दगी, देखो मौत साथ चल रही है.....
©✍पूनम बागड़िया "पुनीत"
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ऑनलाइन इश्क़ | Certificate | |
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Section | Genre | Rank |
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कविता | अन्य | |
कहानी | प्रेम कहानियाँ | |
कहानी | संस्मरण | |
कहानी | हास्य व्यंग्य | |
कहानी | व्यंग्य |
London is the capital city of England.
अत्यंत भावपूर्ण और ह्रदयस्पर्शी..!!
बहुत बहुत धन्यवाद सर ...🙏🏻
Wah wah kya baat h ..m bhi ek devar hu.
शुक्रिया सर...! अक्सर घर का सारा बोझ दीवार पर ही होता है...🙏🏻🌹
कहानीहास्य व्यंग्य
शीर्षक: "बीयर-पार्टी"
(हास्य-कथा)
"हैप्पी बर्थडे मेरी जान!"
सुबह सुबह आये फोन को उनींदी हालत में जैसे ही सन्नी ने रिसीव किया तो उसके कानों से अपनेपन के भाव लिए निखिल की आवाज़ टकराई!
नींद से बोझिल आँखे
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अविस्मरणीय '' बीयर '' पार्टी. 😊
जी शुक्रिया सर....😂😁🙏🏻🙏🏻
कवितालयबद्ध कविता
शीर्षक : "एक रंग प्रीत का रंग दे मुझे"
एक रंग प्रीत का रंग दे मुझे
हो जाऊँ, मैं भी तुझ जैसी।
तू नटखट कान्हा, कृष्ण- कन्हैया
मैं नार, तनिक शर्मीली सी।।
खेल प्रीत की, मुझ संग होली
चला नयन, पिचकारी सी।
एक
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कहानीसामाजिक
शीर्षक : "बुढा आत्मसम्मान"
"सुनो जी... प्राची के स्कूल बैग की चेन ठीक करा लाओ, वरना वो कल भी स्कूल नही जा पायेगी!
वाणी ने अखबार में खोये सरु की ओर बैग बढ़ाते हुऐ कहा!
यहाँ आस-पास में है कोई, जो इसे बना सके?
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अत्यंत सुन्दर और प्रेरक स्रजन ..!
हार्दिक आभार सर...!😊
कविताअन्य
शीर्षक: "पुरानी डायरी के बन्द पन्ने"
वो मेरी पुरानी डायरी के बंद पन्ने, आज पलटे तो तुम्हें उसमे पाया
तुम्हारा एहसास, तुम्हारी खुशबू, तुम्हारा साया..!
तुम ही तुम थे, फिर... क्या था?? जो मुझे नज़र नही आया..?
तुम्हारी
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अत्यंत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति..!
हार्दिक आभार सर...!🙏🏻🙏🏻
कविताअन्य
(मम्मी के जाने के बाद जब पहली बार उनके बिना ननिहाल गई ...)
शीर्षक: "काश मिले फिर तेरे आँचल का कोना"
यादों के आँचल में छिपी
माँ तेरी ममता की गरमाई
काश मिले तेरे आँचल का कोना
तेरी खुशबू फिर मुझसे टकराई
आज
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बहुत भावुक और मर्मस्पर्शी लिखा
धन्यवाद...🙏🏻
मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति..!!
हार्दिक आभार सर...!🙏🏻
बहुत सुंदर रचना पूनम दिल छू लिया
शुक्रिया...🙏🏻🌹
बहुत ख़ूबसूरत..! आजकल की वास्तविकता..!
सादर आभार आपका...! जी सर... आजकल के लव में लव तो हैं पर प्रेम नही..!
उम्दा कृति
धन्यवाद सर...!
धन्यवाद...!
कहानीलघुकथा
(लघुकथा)
शीर्षक: झूठ का दर्द
दूर ढलता हुआ सूरज अपनी लालिमा से परिपूर्ण था और यहाँ बालकनी से झांकती संध्या अपने विचारों के सागर में डूबी हुई थी
"लो कॉफी तो पी सकती हो... सुबह से अपने खाने का भी होश नही
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बेहतरीन पूनम जी
शुक्रिया विनय जी...!😊
बहुत बढ़िया 👏👍
अफ़रोज़ जी बहुत बहुत धन्यवाद..!
शुक्रिया अफरोज जी..!☺️
मर्मस्पर्शी रचना..!
आपकी टिप्पणी का सादर आभार सर...!
कहानीसंस्मरण
संस्मरण
शीर्षक: "एक अधूरा सफर"
मुझे नही मालूम था मेरी ज़िंदगी का न खत्म होने वाले इंतज़ार के सफ़र का अंत इस भीड़ से भरी लोकल ट्रेन के सफ़र पर भी खत्म हो सकता है।
वो मेरी प्रथम रेल यात्रा थी, मेरे जीवन का
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बहुत प्रवाहमय ढंग से लिखी रचना, किंतु सपना संस्मरण की श्रैणी में कैसे आ गया ?
ओह!
माफ कीजियेगा आदरणीया..! संस्मरण को सपने के रूप में लिखने की कोशिश की..!????
माफ कीजियेगा आदरणीया..!
बहुत भावपूर्ण और संवेदनाओं से भरपूर स्वप्न..!!
सादर आभार सर ..
कहानीप्रेम कहानियाँ, लघुकथा
(लघुकथा)
शीर्षक: "मीरा-समर्पण... एक निष्ठुर से प्रेम"
"तुम्हें मेरा सच जान कर दुःख तो होगा, परन्तु ये ही सच है..मैं तुमसे शादी नही कर सकता...!" केशव ने मीरा से नज़र चुराते हुए दबी जुबान से कहा।
...तो वो सब
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मर्मस्पर्शी प्रेमकथा..! आत्मिक समर्पण..!
सादर आभार सर जी ....!??
खूबसूरत कहानी , बधाई
शुक्रिया नीलिमामैम...???
कविताअन्य
शीर्षक: "काश..! एक बार तुम मेरी खामोशी सुन लेते"
तोड़े हँस कर अपने ख्वाब जो मैंने
तुम उन्हें अपने पलको पर बुन लेते
काश...! एक बार तुम मेरी खामोशी सुन लेते..!
कितना झूठ कितनी सच्चाई,
क्या, कब किसके हिस्से
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SUNDAR AUR BHAVPURNA.....!
हार्दिक धन्यवाद सर..??
मुखर मौन में सिमटा एक आहत स्वर, अद्भुत छवि चित्रण
सादर आभार सर जी..!?????
बेहतरीन
बहुत बहुत शुक्रिया मैम..! अपनी लेखनी को बेहतरीन बनाने के लिए प्रयासरत है...?????
कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक, लघुकथा
शीर्षक: "कुँवारी कन्या माँ"
यूँ तो मंदिर में हमेशा रौनक होती थी परन्तु अब नवरात्रों की चहल पहल विशेष देखते ही बनती है हर कोई माता की आराधना में लीन अपनी श्रद्धा और भक्ति को माता के जयजयकार से दर्शा
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पटकथा का सृजन बखूबी किया गया है जो दिमाग में स्थान बनाने में सफल हुआ। बढियां प्रस्तुतिकरण।
सादर आभार सर जी..!??
काबिले तारीफ रचना है।नपे- तुले शब्द असरदार अंत,पाठक से,'आह' निकलवाने में सफल हो जाते हैं।
बहुत बहुत धन्यवाद मेम.. अपना स्नेह आशीर्वाद हमेशा बनाये रखें..!??
मर्मस्पर्शी रचना
????
शुक्रिया..??
बहुत.. ही...मार्मिक... रचना ..।
धन्यवाद ... वर्तमान स्थिति को शब्दों में उतारने की कोशिश मात्र की..!????
marmsparshee .. samaj kaa Vastvic chehra Dikhatee huee Rachna..!!
शुक्रिया सर.
कहानीसामाजिक, प्रेम कहानियाँ
शीर्षक : "चरित्रहीन कौन..??"
"स्टेशन आने ही वाला था, प्रिया ने सोचा "जनाब को बता दिया जाये कि उनके जन्मदिन को विशेष बनाने के लिये, उनकी होने वाली पत्नी उनके पास आ रही है....
ये सोच कर प्रिया ने फिर से विनय
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'नजरों' और 'शख्सियत ' कर दें ।आपने 'नजरो' और 'शख्शियत' लिखा है। रचना अच्छी है।
जी शुक्रिया मेम..!?
विनय के '' चरित्र 'की सच्चाई सामने आ गयी..! सुन्दर रचना.
जी सर.. शुक्रिया..! सच्चाई ज्यादा दिन छिपती नही एक न एक दिन तो आनी ही थी सामने..!??
बहुत बेहतरीन लिखती हो तुम ।
शुक्रिया..!
बहुत खूब चाभी को चाबी कर लेना। ?
जी..! माफ कीजियेगा..! अभी करती हूँ
कविताअन्य
शीर्षक: "मोहोब्बतें"
मोहोब्बत की मीठी सी मुस्कान ले कर, छाया था,
दिल की ज़मी, पर इश्क़ का आसमान हो कर!
खामोश नज़रो से सुना गया मोहोब्बतें,
धड़कनों को मेरी, अपनी जुबान दे कर!
ढल गया, ज़िन्दगी में वो मेरी, ज़िन्दगी
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कहानीसंस्मरण
शीर्षक: 'वो प्यारा डर"
बचपन मे अंधेरे से डर लगता था, क्योंकि बहुत सी कहानीयो में पढ़ा व सुना था अंधेरे में भूत आ जाते है!
किशोरावस्था में आने के बाद जाना भूत अंधेरों के ही गुलाम नही वो दिन के उजालो में
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बढ़िया मैंने पढा था वह संस्मरण। वाकई बहुत सी बातें खभी भुलाए नही भूल सकते
जी नेहा जी...चाहे तो भी नही भूल पाते..!
अत्यंत विलक्षण और अविस्मरणीय अनुभव..!!
जी सर कुछ अनुभव अविस्मरणीय हो ही जाते हैं
कहानीसंस्मरण, हास्य व्यंग्य, व्यंग्य, प्रेरणादायक
शीर्षक: वो भारतीय अंग्रेज
एक बहुत ही मजेदार क्षणिक घटना का संस्मरण, आज अधरों पर मद्धिम मुस्कान संग मस्तिष्क पटल पर उभर आया!
वही आप से साँझा कर रही हूँ!
दो वर्ष पूर्व मेरे पुराने चलंत दूरभाष यन्त्र
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अत्यंत सुन्दर.. एक वास्तविकता
जी... शुक्रिया सर...!🙏🏻
बहुत सुन्दर और मनोरंजक..! ??
सादर धन्यवाद सर जी..!
बहुत मज़ेदार संस्मरण..! बच्चों की बातचीत चुपचाप सुनने में बड़ा मजा
बहुत मज़ेदार संस्मरण..! बच्चों की बातचीत चुपचाप सुनने में बड़ा मजा
जी सर ! सादर आभार
बहुत मज़ेदार संस्मरण..! बच्चों की बातचीत चुपचाप सुनने में बड़ा मजा
कविताअन्य
शीर्षक: "ज़िन्दगी के पल"
हाँ.. मुझे याद है, ज़िन्दगी से मैंने, दो पल चुराये थे
एक पल, जी भर हँसी, दूजे पल आँसू बहायें थे
वक़्त के पेड़ से लटका है, हर एक पल
जो टूट कर गिरा, बस उसी के साये थे
राहतें सुकूँ है, मेरे
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कविताबाल कविता
शीर्षक: "कॉमिक्स की दुनिया" (बाल-रचना)
बचपन की उस दुनिया में, "एलिस" भरमाई थी
कार्टूनिस्ट प्राण की "पिंकी" भी मन मेरे मुस्काई थी
नही भूले "चाचा चौधरी" के किस्से अब तक
हर किस्से में एक नई सीख समाई थी
"चंपक"
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अत्यंत सुन्दर..! सभी मनोहारी और आकर्षक बाल साहित्य..!
सादर आभार सर जी... जी सर मेरी प्रिय बाल साहित्य पुस्तकें है...
कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक
शीर्षक :"एक अधूरा सपना"
(अंतिम-भाग)
विनय ने पिताजी की इच्छा उनके सपनों को सम्मान तो दिया, मगर अंदर ही अंदर घुटता रहा!
अपने सपनों को पलकों पर लाया तो पर आँसुओ के साथ बहा कर पिताजी के सपने को अपनी आँखो
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कहानीसामाजिक, प्रेरणादायक
शीर्षक :"एक अधूरा सपना"
(भाग 1)
"आत्म प्रतिभा निखारने के लिए आदमी बचपन से ही संघर्ष करता है, तब जा कर वो इस काबिल होता है कि अपनी और अपने परिवार की जिम्मेदारी उठा सके.!!"
ऐसे शब्द यदा-कदा विनय के कानों
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कहानीसामाजिक, अन्य
शीर्षक: "चरित्रहीनता"
समीर सुचि का हाथ थामे जैसे ही कॉफी हाउस में दाखिल हुआ उसके चेहरे का रंग सा उड़ गया!
सामने टेबल पर, पड़ोस में रहने वाली अनु भाभी बैठी थी!
समीर अपना मुँह छिपाने लगा, परन्तु सुचि उत्साह
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सुंदर रचना। आज का इंसान स्वयं की तरफ नही देख पाता कि खुद कैसा है औऱ दूसरे व्यक्ति पर उंगली उठाने लगता है खासकर महिलाओं पर की।
जी शुक्रिया..! ममता जी गलती महिलाओं की न भी हो तो भी उसी पर उंगली उठाने से नही चूकते लोग यही सच्चाई और विडंबना है नारी की....
अच्छी कहानी लिखी है पूनम इसे थोड़ा और तराशने की जरूरत है ।
जी नेहा जी... धन्यवाद! प्रतियोगिता की समयसीमा अनुसार लिखा अगर थोड़ा समय और मिलता तो शायद काफी अच्छे तरीके से अंत कर लिख पाती.. यदि आपकी इज़ाज़त हो तो क्या इसे अडिड कर सकते है..?
कविताअतुकांत कविता
शीर्षक : "तेरे महलों को छू कर आती धूप"
तेरे महलों को छू कर आती धूप
मेरी झोपड़ी के आंगन सोती है
एक शुकुन भरी नीद ले कर
अलसाई सी अंगड़ाई लेती है
तू महल से, कभी झाँक तो जरा
झोपड़ी में रौनक कितना जगाती है
तेरे
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बहुत ख़ूबसूरत कोमल एहसास..!!
बहुत बहुत शुक्रिया सर...
बहुत बढ़िया लिखा है आपने
शुक्रिया अफ़रोज़ जी...
कविताअन्य
शीर्षक: "अपना इंडिया अब भारत बनने लगा"
कुछ टूटा है, पर कुछ तो संवरने लगा,
अपना इंडिया अब भारत बनने लगा !
बन्द है, डी जे की थपकी
राम भजन, जन-जन में जगने लगा !
संकट में ही सही, भारत फिर
संस्कारों में बंधने
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कविताअन्य
शीर्षक: "फुर्सत के दो पल"
मैं भी अब फुर्सत के कुछ पल चाहता हूँ
बैठूँ दो घड़ी साथ तेरे,बस ये ही आज- कल चाहता हूँ
हुआ मैं भी अब साँझ का सूरज
संग तेरे एक नई सुबह का पल चाहता हूँ
उलझा ज़िन्दगी के लफड़ों में
अब
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कहानीप्रेम कहानियाँ
शीर्षक: "समय की रेत पर पलता प्रेम"
आज सुबह से ही एक अनजान नम्बर से बार बार फोन आ रहा था, जैसे ही काम छोड़ कर फोन उठाने को भागती, तभी फोन कट जाता...
ये सिलसिला चलते शाम हो गई थी।
उस अनजाने नम्बर को देख कर
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कहानीप्रेरणादायक
शीर्षक: "बातों के परिंदे"
साँझ का सूरज जब भी अपनी तपिस खुद में समेट कर, पश्चिम की ओर अग्रसर होता था, तब सभी बच्चे अपने -अपने घरों से निकल कर, खेलने के उद्देश्य से गली में एकत्रित हो जाते !
बच्चों के साथ
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कहानीप्रेम कहानियाँ
शीर्षक : " एक बूंद प्यार की बरसात" (भाग -3)
प्लीज आप घबराइये नही... मेरी मदद कीजिये !
शायद वो मेरी हृदय गति सुन कर ये बोली थी!
मैंने काँपते हाथो से अपनी जैकेट की चैन से उसके बालो को आज़ाद किया!
उसने सबसे
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कहानीप्रेम कहानियाँ
शीर्षक : " एक बूंद प्यार की बरसात" (भाग -2)
आसमान पर छाये काले मेघों और वातावरण में फैली ठंडक के एहसास ने, मन मे भौंदू राम की प्रेम कहानी के लिए असीम जिज्ञासा उत्पन्न कर दी!
मैं न चाहते हुये भी सरु की
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कहानीप्रेम कहानियाँ
शीर्षक : "एक बूंद प्यार की बरसात" (भाग 1)
हैल्लो सरु..!
मैंने उसके कॉल रिसीव करते ही बोला
जी..! वहाँ से असमंजस स्वर फूटा
अरे भोन्दू राम मैं बोल रही हूँ ... आकांक्षा..!
मेरा नाम सुनते ही उसकी आवाज़ में खुशी
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कहानीप्रेरणादायक
आज सुबह फिर वो माँ की डांट सुनकर गुस्से में, घर से बाहर निकल आया, आज फिर उसने सोच लिया कि अब कुछ भी हो घर नही जाऊगा। भला ऐसा कोई करता है ? मेरे सभी दोस्तों को आज़ादी है पर मुझे ही नही है सब अपनी ज़िंदगी
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मर्मस्पर्शी रचना.. मां का प्रेम सदैव निश्छल और शाश्वत है.
जी सर.... सादर आभार..!
कविताअन्य
शीर्षक : "तेरी- मेरी दोस्ती"
ओए... सुन प्याज के छिलके
भूल गया, क्या वो दिन कल के
फर्स्ट बेंच पर भी जिगरा था, अपना
बातें करना, वो लिख के
सब्ज़ी के नामों की, वो बौछारें
"अबे... गोभी के फूल, याद आती है, होठों पे
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कविताअन्य
शीर्षक : "हाँ....ज़िद है"
आज फिर एक ज़िद की है,
सोई ज़िद जगाने की!
आंख से गिरे सपने को फिर से, सजाने की!
थम गई थी जो, उस जिन्दगी को चलाने की !
हाँ... ज़िद की है मैंने, आसमां अपना बनाने की!
ज़र्रे से खुद को आफ़ताब कराने
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कविताअतुकांत कविता
शीर्षक: "इस बार जब बरसा सावन"
इस बार, जब बरसा सावन
प्रीत सोई जगा गया !
बन बूँद यादों की,
इन आँखो को भिगा गया !
धुंधली सी बातों को फिर
अपनी बातों में उलझा गया !
लिपटी सी बूंदों में जब
हँसी उसकी सुना गया
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