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Sahitya Arpan - Nidhi Gharti Bhandari
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Nidhi Gharti Bhandari

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  • कविताअतुकांत कविता

    चालीस की देहरी पर

    • Edited 3 years ago
    Read Now
    • 360
    • 6 Mins Read

    चालीस की देहरी पर

    मेरे कान के पीछे लटों में
    अब घिरने लगी है चाँदनी,
    मगर केश के सिरों पर यौवन
    अलहड़ बालक सा झूल रहा है अब भी।
    चेहरे पर मेरे उभरने लगी हैं
    जीवन के अनुभवों की रेखायें,
    लेकिन दमकती हूँ अब
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    चालीस की देहरी पर,<span>अतुकांत कविता</span>
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    कहानीसामाजिक

    अब बस!!

    • Edited 3 years ago
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    • 283
    • 5 Mins Read

    शहर में आये प्रलयंकारी भूकंप से जान माल का काफी नुकसान हुआ था। मलबे से निकाले गये जीवित लोगों को ऐम्बुलेंस द्वारा अस्पताल लाया जा रहा था। कुछ तो रास्ते में ही दम तोड़ चुके थे और जो बचे थे उनकी हालत
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    अब बस!!,<span>सामाजिक</span>
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    Ankita Bhargava

    Ankita Bhargava 3 years ago

    बहुत बढ़िया लघुकथा

    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    बेहतरीन कुटाई कर दी लड़कियों ने लड़को की

    कविताअतुकांत कविता

    चीटिंगखोर ज़िंदगी

    • Edited 3 years ago
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    • 89
    • 4 Mins Read

    ये ज़िंदगी कहने को तो हमारी है
    पर हर बार कहाँ चलती हैं हमारे मुताबिक़!
    कभी सरपट दौड़ती है बुलेट ट्रेन सी
    कि साँस तक लेने की फुर्सत नहीं
    और कभी ये रेंगती है धीमे-धीमे
    घिस रहे होते हैं इसके साथ हम भी
    कभी
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    चीटिंगखोर ज़िंदगी,<span>अतुकांत कविता</span>
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    नेहा शर्मा

    नेहा शर्मा 3 years ago

    shirshak itna jabardast hai ki padhne se koi rok hi nahi sakta bahut badhiya rchna

    Nidhi Gharti Bhandari3 years ago

    शुक्रिया

    कहानीअन्य

    उत्तराधिकारी

    • Edited 3 years ago
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    • 163
    • 4 Mins Read

    एक सड़क हादसे में सरपंच जी के शरीर का निचला हिस्सा बेकार हो गया और पत्नी व इकलौता बेटा काल का ग्रास बन गये।
    अब नाते-रिश्तेदार उनके स्वघोषित उत्तराधिकारी बने फिर रहे थे। पत्ते खेलते हुये आज सरपंच
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    उत्तराधिकारी,<span>अन्य</span>
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    कविताअतुकांत कविता

    तारों को आंचल तक आना होगा

    • Edited 3 years ago
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    • 194
    • 7 Mins Read

    तारों को आंचल तक आना होगा

    क्यों बैठी है सर को झुकाए, कमरे की बत्ती बुझाए?
    आंखें क्यों चुराए ज़माने से, क्यों शरमाए क्यों घबराए?
    दिल के खिड़की दरवाज़ों को, तू खोल दे हवा सरसराने दे,
    कुछ गीत खुशी के गुनगुना,
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    तारों को आंचल तक आना होगा,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Ankita Bhargava

    Ankita Bhargava 3 years ago

    बहुत सुंदर

    Lakshmi Mittal

    Lakshmi Mittal 3 years ago

    सुंदर

    Nidhi Gharti Bhandari3 years ago

    शुक्रिया दी।