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London is the capital city of England.
कविताअतुकांत कविता
चालीस की देहरी पर
मेरे कान के पीछे लटों में
अब घिरने लगी है चाँदनी,
मगर केश के सिरों पर यौवन
अलहड़ बालक सा झूल रहा है अब भी।
चेहरे पर मेरे उभरने लगी हैं
जीवन के अनुभवों की रेखायें,
लेकिन दमकती हूँ अब
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कविताअतुकांत कविता
ये ज़िंदगी कहने को तो हमारी है
पर हर बार कहाँ चलती हैं हमारे मुताबिक़!
कभी सरपट दौड़ती है बुलेट ट्रेन सी
कि साँस तक लेने की फुर्सत नहीं
और कभी ये रेंगती है धीमे-धीमे
घिस रहे होते हैं इसके साथ हम भी
कभी
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shirshak itna jabardast hai ki padhne se koi rok hi nahi sakta bahut badhiya rchna
शुक्रिया
कहानीअन्य
एक सड़क हादसे में सरपंच जी के शरीर का निचला हिस्सा बेकार हो गया और पत्नी व इकलौता बेटा काल का ग्रास बन गये।
अब नाते-रिश्तेदार उनके स्वघोषित उत्तराधिकारी बने फिर रहे थे। पत्ते खेलते हुये आज सरपंच
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कविताअतुकांत कविता
तारों को आंचल तक आना होगा
क्यों बैठी है सर को झुकाए, कमरे की बत्ती बुझाए?
आंखें क्यों चुराए ज़माने से, क्यों शरमाए क्यों घबराए?
दिल के खिड़की दरवाज़ों को, तू खोल दे हवा सरसराने दे,
कुछ गीत खुशी के गुनगुना,
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