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अब बस!! - Nidhi Gharti Bhandari (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

अब बस!!

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  • 5 Min Read

शहर में आये प्रलयंकारी भूकंप से जान माल का काफी नुकसान हुआ था। मलबे से निकाले गये जीवित लोगों को ऐम्बुलेंस द्वारा अस्पताल लाया जा रहा था। कुछ तो रास्ते में ही दम तोड़ चुके थे और जो बचे थे उनकी हालत भी बेहद खराब थी।
क्षत-विक्षत शरीरों को देख कमज़ोर पड़ते मन को कर्तव्य की मोटी जंजीर से बाँध रखा था मैने मगर भावुक होने का वक्त ही कहाँ था मेरे पास...!!
आखिरी ऐम्बुलेंस से लाये गये पांचों घायल भी दर्द से बेहाल हो रहे थे। ड्राइवर ने बताया कि रोजाना ये लड़के गर्ल्स कॉलेज के सामने खड़े होकर लड़कियों से छेड़छाड़ किया करते थे। आज लड़कियों ने मिलकर इनकी बुरी तरह धुनाई कर दी थी।
"उफ्फ... क्रूर प्रकृति, निर्दयी स्त्री!" मेरे सहकर्मी के शब्द मेरे कानों पर पड़े।
" लंबे अर्से से चला आ रहा मौन जब अचानक टूटता है तो प्रलय आना लाज़मी है। आखिरकार सहनशक्ति की भी एक सीमा होती है न....फिर चाहे वह प्रकृति की हो या फिर स्री की" कहकर मैं दोबारा काम में लग गया।
निधि घर्ती भंडारी
हरिद्वार उत्तराखंड

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत बढ़िया लघुकथा

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बेहतरीन कुटाई कर दी लड़कियों ने लड़को की

दादी की परी
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