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Sahitya Arpan - Anujeet Iqbal

कविताअतुकांत कविता

उसका होना

  • Edited 2 years ago
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  • 223
  • 5 Mins Read

उसका होना

उसके नाम की प्रतिध्वनि
किसी स्पंदन की तरह
मन की घाटी में
गहरी छुपी रही
और मैं एक दारुण हिज्र जीती रही

वेदना, व्याकुलता के मनोवेगों में
त्वरित बीजुरी की तरह उसका प्रतिबिंब
हवाओं में कौंध
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उसका होना,<span>अतुकांत कविता</span>
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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 2 years ago

👌🏻

Anujeet Iqbal2 years ago

❤️

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 2 years ago

अत्यंत सुन्दर

Anujeet Iqbal2 years ago

वाजपेयी सर,आभार, शुभकामनाएं

कविताअतुकांत कविता

मां त्रिपुर सुंदरी

  • Edited 3 years ago
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  • 212
  • 3 Mins Read

माँ त्रिपुर सुंदरी


जीवन में तुम्हारी स्पर्शमणि से
परम तत्व की प्रतिच्छाया
प्रकाशित होती
और संसार चक्र के
धुँधियाले में भयविह्वल
साधनारत मैं
जीवनोत्सर्ग को आतुर
मुक्ति की सँकरी पगडंडी पर
चलने
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मां त्रिपुर सुंदरी,<span>अतुकांत कविता</span>
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

'' मां '' पर बहुत सुन्दर स्रजन..!

Pallavi Rani

Pallavi Rani 3 years ago

सुंदर शब्द संयोजन

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

2 बार पोस्ट की क्या 🤔

कहानीलघुकथा

स्वयंसिद्धा

  • Edited 3 years ago
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  • 162
  • 3 Mins Read

स्वयंसिद्धा

इतनी विषम परिस्थितियों में भी कात्यायनी अपनी सहज मुस्कान को विदा नही करती थी। अपार सहनशील, भारतीय संस्कृति की महान रक्षक, अपने रिवाजों, गृह कार्यों, जिम्मेदारियों को मजबूती से पकड़कर
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स्वयंसिद्धा,<span>लघुकथा</span>
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कविताअतुकांत कविता

उत्सव

  • Edited 3 years ago
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  • 101
  • 5 Mins Read

उत्सव

अज्ञात के जिस अंतहीन विस्तार में
तुम्हारा निवास है
मुझे वहां आना होगा
और करवाना होगा स्नान स्वयं को
तुम्हारे स्फटिकप्रभ जलाशयों में
"निर्वापण" के लिए

एकनिष्ठ दृष्टि से अवलोकन करना होगा
तुम्हारे
Read More

उत्सव,<span>अतुकांत कविता</span>
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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बेहतरीन 👌🏻

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद नेहा जी

कविताअतुकांत कविता

उत्सव

  • Edited 3 years ago
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  • 101
  • 5 Mins Read

उत्सव

अज्ञात के जिस अंतहीन विस्तार में
तुम्हारा निवास है
मुझे वहां आना होगा
और करवाना होगा स्नान स्वयं को
तुम्हारे स्फटिकप्रभ जलाशयों में
"निर्वापण" के लिए

एकनिष्ठ दृष्टि से अवलोकन करना होगा
तुम्हारे
Read More

उत्सव,<span>अतुकांत कविता</span>
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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

2 बार पोस्ट हो गयी रचना 🤔

Anujeet Iqbal3 years ago

होली प्रतियोगिता वाले लिंक पर और अपने पेज पर की थी

कविताअतुकांत कविता

वो कौन है

  • Edited 3 years ago
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  • 195
  • 5 Mins Read

वो कौन है

असीम व्यथा और अगाध पीड़ा
उच्छवास भर भर निर्मम कालचक्र
निरंतर पुकारता मेरा नाम, और मैं
आवागमन के उग्र अभियोग से तापित
छलनी आत्मा के संग अनंत यात्राओं में

हे सारिपुत्र, लेकिन अब
कोई राजकुलीन
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वो कौन है,<span>अतुकांत कविता</span>
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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

वाह

Anujeet Iqbal3 years ago

प्रेम प्यारी गुड़िया

The Indian writers 11

The Indian writers 11 3 years ago

Amazing

Anujeet Iqbal3 years ago

आभार

कविताअतुकांत कविता

अवधान

  • Edited 3 years ago
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  • 185
  • 4 Mins Read

अवधान

ये प्रेम और मेरी चेतना का लय होना तुम संग
शून्य आकाश में गमन करने का पर्याय है
तुम्हारे शब्दों के आरोह अवरोह के मध्य
उस मौन घोष में प्रतिध्वनित होती है
समग्र ब्रह्मांड की नीरवता

तुम्हारे
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अवधान,<span>अतुकांत कविता</span>
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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत सुंदर

कविताअतुकांत कविता

जोगन की यात्रा

  • Edited 3 years ago
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  • 239
  • 3 Mins Read

जागरण करती है वो जोगन
गहन निद्रा में भी
निद्रागस्त होना भी चाहे तो
सजगता उसको सोने नहीं देती

हरीतिमा त्यक्त कर
लतामंडल का परित्याग कर
गमन करती है वो
धवालगिरि की ओर

देह के गिर्द है काला तमस
मानों,
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जोगन की यात्रा,<span>अतुकांत कविता</span>
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Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

धन्यवाद बहना

Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

बढ़िया

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद आँटी❤️

Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

धन्यवाद प्यारी

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

वाह! बहुत खूब

Anujeet Iqbal3 years ago

प्रेम अंकिता

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बेहतरीन ??

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद

कविताअतुकांत कविता

माँ त्रिपुर सुंदरी

  • Edited 3 years ago
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  • 219
  • 3 Mins Read

माँ त्रिपुर सुंदरी


जीवन में तुम्हारी स्पर्शमणि से
परम तत्व की प्रतिच्छाया
प्रकाशित होती
और संसार चक्र के
धुँधियाले में भयविह्वल
साधनारत मैं
जीवनोत्सर्ग को आतुर
मुक्ति की सँकरी पगडंडी पर
चलने
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माँ त्रिपुर सुंदरी,<span>अतुकांत कविता</span>
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

अत्यंत सुन्दर..!

Anujeet Iqbal2 years ago

धन्यवाद सर

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

अद्भुत

Anujeet Iqbal3 years ago

नमस्कार

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद सर

कविताअतुकांत कविता

बेटी के नाम

  • Edited 3 years ago
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  • 254
  • 6 Mins Read

तुम्हारे कोमल हाथों में देखा
एक संपूर्ण ब्रह्मांड
तब मैंने जाना
अंतस्तल तक विस्तृत होने का द्वार
यह भी है
मोक्ष का किवाड़ खुलता है
तुम्हारी छोटी हथेली में।

तुम्हारी चंचल दृष्टि में देखा
एक पूर्ण
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बेटी के नाम,<span>अतुकांत कविता</span>
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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

निःशब्द कर दिया

कहानीअन्य

धोखा

  • Edited 3 years ago
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  • 118
  • 7 Mins Read

धोखा

“तो फिर कल की तैयारी है ना ? मिशन करीमगंज में कोई भी गलती नहीं होनी चाहिए..और हाँ, अगर कोई रास्ते में आए तो सीधे गोली से उड़ा देना।“ जग्गन तेज़ आवाज़ में सबको हिदायतें दे रहा था।
इनका वर्चस्व असम
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धोखा,<span>अन्य</span>
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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत ही उम्दा ??

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद

Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

प्रतियोगिता हेतु

कहानीअन्य

स्वयंसिद्धा

  • Edited 3 years ago
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  • 163
  • 3 Mins Read

#5line_story

स्वयंसिद्धा

इतनी विषम परिस्थितियों में भी कात्यायनी अपनी सहज मुस्कान को विदा नही करती थी। अपार सहनशील, भारतीय संस्कृति की महान रक्षक, अपने रिवाजों, गृह कार्यों, जिम्मेदारियों को मजबूती
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स्वयंसिद्धा,<span>अन्य</span>
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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

बहुत सुंदर

Anju Gahlot

Anju Gahlot 3 years ago

सुंदर सोच

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद प्रिय अंजू maam

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

अत्यंत सुन्दर

Anujeet Iqbal3 years ago

आभार

Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

बहुत..... सुन्दर

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद चंपा जी

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

awsome ??

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद नेहा जी

कविताअतुकांत कविता

जोगन की यात्रा

  • Edited 3 years ago
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  • 108
  • 3 Mins Read

जागरण करती है वो जोगन
गहन निद्रा में भी
निद्रागस्त होना भी चाहे तो
सजगता उसको सोने नहीं देती

हरीतिमा त्यक्त कर
लतामंडल का परित्याग कर
गमन करती है वो
धवालगिरि की ओर

देह के गिर्द है काला तमस
मानों,
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जोगन की यात्रा,<span>अतुकांत कविता</span>
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कवितालयबद्ध कविता

स्वयं को जानो

  • Edited 3 years ago
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  • 108
  • 2 Mins Read

● स्वयं को जानो ●


स्वज्ञान से अनभिज्ञ होकर
सत्य की खोज असार है

अर्थशून्य मीमांसा त्यक्त करो
यही परम क्रांति की पुकार है

विद्यमान अवस्थान से खुलता
अगाध पात्रता का द्वार है

सृष्टि को स्वीकृत नहीं
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स्वयं को जानो,<span>लयबद्ध कविता</span>
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कविताअतुकांत कविता

जोगन की यात्रा

  • Edited 3 years ago
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  • 123
  • 3 Mins Read

जागरण करती है वो जोगन
गहन निद्रा में भी
निद्रागस्त होना भी चाहे तो
सजगता उसको सोने नहीं देती

हरीतिमा त्यक्त कर
लतामंडल का परित्याग कर
गमन करती है वो
धवालगिरि की ओर

देह के गिर्द है काला तमस
मानों,
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जोगन की यात्रा,<span>अतुकांत कविता</span>
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कवितालयबद्ध कविता

शरद पूर्णिमा में रास

  • Edited 3 years ago
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  • 140
  • 5 Mins Read

शरद पूर्णिमा में रास

शरद यामिनी प्रगटे निधिवन
परमानंद गुण अद्वैत गोपाला
शीश मुकुट श्रवण मीन कुंडल
कंठ विभूषित वैजयंती माला


पीतांबर धारे आभूषण सजीले
कटि पर मधुर किंकिणि चंगी
नख से शिख सब अति
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शरद पूर्णिमा में रास,<span>लयबद्ध कविता</span>
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Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

चिंतन वाली रचना जल्द ही❤️

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बेहद उम्दा। परन्तु मुझे इससे थोड़ा ज्यादा गहन शोध वाली रचना का इंतज़ार है। कृष्ण प्रेम में और ज्यादा रची बसी रचना ???? यह भी सुंदर है।

Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

प्रिय गोपिका नेहा के नाम❤️

कविताअतुकांत कविता

ब्रजमंडल में ग्रीष्म

  • Edited 3 years ago
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  • 158
  • 7 Mins Read

कविता- ब्रजमंडल में ग्रीष्म

उग्र तापक ग्रीष्म हाय, अग्नि बरसाए ब्रजमंडल पर,
श्याम सुंदर नित धेनु चराए, उष्णता का त्याग कर डर।
कुंज वाटिका घोर तप्त है, व्याकुल है संतापित समीर,
क्षोभित अभिघातिन
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ब्रजमंडल में ग्रीष्म,<span>अतुकांत कविता</span>
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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

इतनी गहन सोच इतना मगन होकर लिखना सबकी बस की बात नही। मैं तुम्हारी प्रत्येक रचना पर नतमस्तक हो जाती हूँ। और जो मेरे प्रिय हैं उन पर तुमने इतना विस्तारपूर्वक लिखा कि मैं पढ़ते पढ़ते खो गईं एक एक शब्द एक एक पंक्ति बहुत गहन है। नमन तुम्हारी लेखनी को। ??

Anujeet Iqbal3 years ago

प्रिय नेहा जी, साधुवाद। लेकिन, मैं यह सोच रही हूं कि आप को रचना पसंद आने की वजह यह है कि आप स्वयं कृष्ण प्रेम से सराबोर हैं और कोई भक्त ही ऐसी रचनाओं का आनंद ले पाता है। ऐसे ही कृष्णमय रहिए

कविताअतुकांत कविता

माँ सीता

  • Edited 3 years ago
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  • 87
  • 4 Mins Read

दीपावली, मात्र सीता का
अयोध्या आगमन नहीं
वो सारी समसूत्र यात्रा
महल से वनगमन और
धरती का समालंबन
सब रूपक हैं
आत्मा का बाहर से भीतर
व्यवस्थित होने का
सब प्रयाण हैं

अस्तित्व की वेदिका पर
जब साधना
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माँ सीता,<span>अतुकांत कविता</span>
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Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

प्रिय नामदेव सर को यह कविता विशेष रूप से पसंद थी। उनको याद करते हुए, उनके चरणों में समर्पित

कविताअतुकांत कविता

चैतन्य महाप्रभु और विष्णुप्रिया

  • Edited 3 years ago
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  • 621
  • 7 Mins Read

चैतन्य महाप्रभु और विष्णुप्रिया

रात्रि रास की बेला में
स्वामी आ बैठे मेरे पास
और भगवान के विग्रह से उतरी तुलसीदल माल
दे दी मुझे उपहार
मैंने परिहास में कमल पुष्प से
उनकी पीठ पर ताड़न किया
“मछली
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चैतन्य महाप्रभु और विष्णुप्रिया,<span>अतुकांत कविता</span>
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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

चैतन्यपूर्ण

Anujeet Iqbal3 years ago

नमस्कारं आदरणीय, धन्यवाद???

Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

उत्कृष्ट

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद, आभार, शुभकामनाएं आंटी

Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

चैतन्य महाप्रभु और विष्णुप्रिया के प्रेम को समर्पित रचना को स्थान देने के लिए साहित्य अर्पण को साधुवाद

Vinay Kumar Gautam

Vinay Kumar Gautam 3 years ago

खूबसूरत सृजन.. बधाई.. बेहद भावपूर्ण

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद गौतम जी

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बहुत ही बंधी हुई कविता सुंदर

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना सच कहूं कई बार पढ़ी और जितनी बार पढ़ी मन जीत लिया रचना ने ❣️

Anujeet Iqbal3 years ago

अहोभाग्य। अब देखिए

कविताअतुकांत कविता

गुरु के नाम

  • Edited 3 years ago
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  • 172
  • 5 Mins Read

गुरु के नाम

छद्मवेशी संसार में
असंख्य कल्पों से तुमको ढूंढ रही हूं
और तुम स्वप्न संकेतों से
इस पथभ्रष्ट स्त्री को
अपने पास बुलाते

अनंत जन्म, अनंत वेश, अनंत खेल
पांव पड़ते रहे मेरे सदैव
नित्य नए
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गुरु के नाम,<span>अतुकांत कविता</span>
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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

क्या कहूँ निशब्द हूँ रचना पढ़कर इतना गहन इतना सुंदर लिखा है मैं मंत्रमुग्ध। हो गयी रचना पढ़कर।

Anujeet Iqbal3 years ago

इस तरह की प्रतिक्रिया लेखन को सार्थकता देती है। धन्यवाद आपका

कविताअतुकांत कविता

बाबा कबीर

  • Edited 3 years ago
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  • 201
  • 4 Mins Read

बाबा कबीर

संन्यासिनी के अंतस में
सन्निपात हुआ है
संसार के तिरोभाव के विस्फोटन से भी
तीक्ष्ण और प्रचंड है
विकृत घावों की पीड़ा
स्वस्थ करने के लिए
बाबा वैद्य बन जाते हैं

संन्यासिनी ज्ञान, ज्ञेय
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बाबा कबीर,<span>अतुकांत कविता</span>
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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

अरे वाह बेहतरीन

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

एक एक लाइन बेहतरीन

Anujeet Iqbal3 years ago

प्रेम आपको

कविताअतुकांत कविता

पाप और पुण्य से परे

  • Edited 3 years ago
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  • 167
  • 5 Mins Read

पाप और पुण्य से परे

हे महायोगी
जैसे बारिश की बूंदें
बादलों का वस्त्र चीरकर
पृथ्वी का स्पर्श करती हैं
वैसे ही, मैं निर्वसन होकर
अपना कलंकित अंतःकरण
तुमसे स्पर्श करवाना चाहती हूं

तुम्हारा तीव्र
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पाप और पुण्य से परे,<span>अतुकांत कविता</span>
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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

अद्भुत..!

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद आदरणीय

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

शानदार

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

behtreen awsome

Anujeet Iqbal3 years ago

यह प्रतियोगिता के लिए थी।

कविताअतुकांत कविता

वियोगिनी का प्रेम

  • Edited 3 years ago
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  • 281
  • 5 Mins Read

वियोगिनी का प्रेम


चंद्रपुष्प सघन केशों में सजाकर
रति को हृदय में बैठा कर
कंठ पर धारण करके वाग्देवी
एक वियोगिनी तीक्ष्ण आसक्ति में
प्रियतम को बुलाती है

वैरागी प्रियतम ने हृदय गूंथ लिया था
सुई
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वियोगिनी का प्रेम,<span>अतुकांत कविता</span>
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Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

उत्कृष्ट शब्दावलि

Anujeet Iqbal3 years ago

सरला आँटी, अनंत प्रेम आपको

Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

धन्यवाद नेहा जी

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत खूब

कविताअतुकांत कविता

होली

  • Edited 3 years ago
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  • 161
  • 3 Mins Read

होली


होली खेलूंगी उस औघड़ संग
जो भस्म से धूसरित हो
सर्प का जनेऊ पहन
लोटता है मणिकर्णिका घाट पर
और उड़ाता है रक्त का गुलाल
मांस मज्जा का अबीर

माया के झीने धागे से बनी देह
होलिकानल में भीग जाने पर
करती
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होली,<span>अतुकांत कविता</span>
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Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

सुंदर कार्य एरोन जी

नेहा शर्मा3 years ago

शुक्रिया अनुजीत जी इसका सारा श्रेय वेब डेवलोपेर्स को जाता है उन सबकी मेहनत है

कविताअतुकांत कविता

शाक्य की तलाश

  • Edited 3 years ago
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  • 215
  • 3 Mins Read

शाक्य की तलाश

कितनी यायावरी, कितनी दीवानगी और कितना ध्यान, तप
"शाक्य" की तलाश में
भस्मीभूत हुआ ये मुख

धारणाओं के विफल अनुष्ठान
विचारों की अवांछनीय खरपतवार
विकारों की बहती प्रचंड धार
अव्यक्त संवाद
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शाक्य की तलाश,<span>अतुकांत कविता</span>
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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बेहद उम्दा रचना आपकी रचना बहुत गहन होती है और बेहतरीन भी

Anujeet Iqbal3 years ago

आपका प्रेम है

Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

धन्यवाद साहित्य अर्पण

नेहा शर्मा3 years ago

शुक्रिया