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"होकर"
कविता
यथार्थ रूप
गुरु के नाम
जुगुनू
बँटे आज हम जाने क्यूँ
रो पड़ता हूं ये सोच-सोच...
तन्हा मैं नही
बँटे आज हम जाने क्यूँ
एक कड़वे सच के आईने में
नज़दीक होकर भी
तन्हा होकर रह गई जिंदगी
अमन का रास्ता बातचीत के द्वार से होकर गुजरता है
गैरों से दोस्ताना अहबाब से रक़ाबत रखते हैं
*मुस्कुराए हुए ज़माना हुआ*
तन्हाई
क्या हुआ हासिल अमीर होकर
दरबदर होकर घरकी बहुत याद आती है
नारी तुम कमजोर नहीं
भुलाये जा रहे हैं
किसी का होकर आने से,तेरा जाना लगा अच्छा
किसीके होकर भी देखो
कहानी
एक और नवप्रभात
सत्य बना यूँ शरणागत
लेख
ऐ कलम मेरी, मेरे अल्फाज़ लिख दो।
इश्क क्या है ?
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