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यथार्थ रूप - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

यथार्थ रूप

  • 250
  • 3 Min Read

चरित्र का व्याख्यान
ना तो व्यग्र, ना ही सूझ-बूझ
और ना ही ह्रदय की कोमलता कर सकती हैं
जबकि व्यवहारिक तौर पर
अस्तित्व का ज्ञान
किसी के स्वभाव को अधूरा ही समझा पाता है।
फलतः एक ऐसी स्थिति
जब मन अन्धक की भांति
शान्ति के विभिन्न संबलों को गिराता चलता है
तो जिव्हा ही, भावनाओं की आड़ में
वास्तविकता को छुपाने लगती है
जिससे एक विश्वास अहम् के सदृश होकर
औचित्य को भूल सत्य से परे हो जाता है
जहाँ स्वयं को सार्थक कहने का दर्प
अपमान के भय में,
निरंतर बढ़ता ही रहता है।

‌‌- शिवम राव मणि

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

निःशब्द कर दिया

शिवम राव मणि3 years ago

सहृदय आभार आपका

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत खूब

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया

प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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माँ
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तन्हाई
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