कविताअतुकांत कविता
माँ त्रिपुर सुंदरी
जीवन में तुम्हारी स्पर्शमणि से
परम तत्व की प्रतिच्छाया
प्रकाशित होती
और संसार चक्र के
धुँधियाले में भयविह्वल
साधनारत मैं
जीवनोत्सर्ग को आतुर
मुक्ति की सँकरी पगडंडी पर
चलने को अधीर
तुम्हारा अनवरत चिंतन
हटाता चंहु ओर से
परिवेष्टित धुंआ
और तमाच्छादित अंतस को
बना देता
प्रस्फुरित और गुंजरित
न कोई कामना, न आवृति
निर्बाध समय की तरंग के साथ
मैं प्रवाहित होती
बिना निषेध के
राजी हो कर
जब जब मैं देती प्राणाहुति
न बचती देह, न अवशेष
केवल यह वीरान मरघट
चिता से उठती निर्धुम अग्नि
तुम्हारे श्यामवर्ण को
और भी
धूम्रलोहित कर देती
अनुजीत इकबाल