कविताअतुकांत कविता
शाक्य की तलाश
कितनी यायावरी, कितनी दीवानगी और कितना ध्यान, तप
"शाक्य" की तलाश में
भस्मीभूत हुआ ये मुख
धारणाओं के विफल अनुष्ठान
विचारों की अवांछनीय खरपतवार
विकारों की बहती प्रचंड धार
अव्यक्त संवाद रचने में मिली हार
मन खोजता रहा निर्मन को
परछाई ढूंढती रही दिनकर को
अंतःकरण उस "विराट" को छू न पाया
कितने उपद्रव उठाये चलती रही
अंततः "अक्रिया" की ठोकर से
चेतना की सतह पर पड़ी दरार
और फूट पड़े मेरे अंतस से
"शाक्य" बन कर जलप्रपात
निकटता की सघनता इतनी कि
चैतन्य ने ले लिया विस्तार
और हुई युगों की क्षुधा शांत
अनुजीत इकबाल
बेहद उम्दा रचना आपकी रचना बहुत गहन होती है और बेहतरीन भी
आपका प्रेम है