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जोगन की यात्रा - Anujeet Iqbal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

जोगन की यात्रा

  • 239
  • 3 Min Read

जागरण करती है वो जोगन
गहन निद्रा में भी
निद्रागस्त होना भी चाहे तो
सजगता उसको सोने नहीं देती

हरीतिमा त्यक्त कर
लतामंडल का परित्याग कर
गमन करती है वो
धवालगिरि की ओर

देह के गिर्द है काला तमस
मानों, प्राणवायु प्रतिक्षण
आग्नेय मंत्रों का उच्चारण
करती हो
अटल मृत्यु की
अभ्यर्थना करती हो


बैठी है जोगन चेतना के प्रकाश में
लेकिन, विचार बाधाएं हैं
जो प्रकाश को
अमूर्त और निभृत की जमीन तक
पहुंचने नहीं देते

लेकिन, जोगन निराश नहीं है
जानती है वो कि
प्रकृति निर्वात रखना नहीं जानती
और, पात्रता आते ही
वो उसको पूर्ण कर देगी


अनुजीत इकबाल

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Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

धन्यवाद बहना

Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

बढ़िया

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद आँटी❤️

Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

धन्यवाद प्यारी

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

वाह! बहुत खूब

Anujeet Iqbal3 years ago

प्रेम अंकिता

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बेहतरीन ??

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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