कविताअतुकांत कविता
शीर्षक: "इस बार जब बरसा सावन"
इस बार, जब बरसा सावन
प्रीत सोई जगा गया !
बन बूँद यादों की,
इन आँखो को भिगा गया !
धुंधली सी बातों को फिर
अपनी बातों में उलझा गया !
लिपटी सी बूंदों में जब
हँसी उसकी सुना गया !
थी धुन प्रेम की जो, उसे
बिरहा गीत बना गया !
बांध प्रीत की पायल नाची
आज आँखो में दर्द समा गया !
हर बूँद में क्यों .? वही...
सपना बीता दिखा गया !
फिर यादो के झूले में जैसे
पींग नई बढ़ा गया!
इस बार जब बरसा सावन
प्रीत सोई जगा गया !
कितनी बातें कितनी यादें
सबको ही तो गिना गया.!
©✍पूनम बागड़िया "पुनीत"
(नई दिल्ली)