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"इस बार जो बरसा सावन" - Poonam Bagadia (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

"इस बार जो बरसा सावन"

  • 240
  • 3 Min Read

शीर्षक: "इस बार जब बरसा सावन"

इस बार, जब बरसा सावन
प्रीत सोई जगा गया !

बन बूँद यादों की,
इन आँखो को भिगा गया !

धुंधली सी बातों को फिर
अपनी बातों में उलझा गया !

लिपटी सी बूंदों में जब
हँसी उसकी सुना गया !

थी धुन प्रेम की जो, उसे
बिरहा गीत बना गया !

बांध प्रीत की पायल नाची
आज आँखो में दर्द समा गया !

हर बूँद में क्यों .? वही...
सपना बीता दिखा गया !

फिर यादो के झूले में जैसे
पींग नई बढ़ा गया!

इस बार जब बरसा सावन
प्रीत सोई जगा गया !

कितनी बातें कितनी यादें
सबको ही तो गिना गया.!

©✍पूनम बागड़िया "पुनीत"
(नई दिल्ली)

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