"उसने सुनी नहीं चीखेंं मेरी खामोशी के पीछे की,
वो खुद को मेरा हमसफर कहता था "
©भावना सागर बत्रा
फरीदाबाद,हरियाणा
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Section | Genre | Rank |
---|---|---|
कविता | अन्य | |
कविता | नज़्म | 4th |
London is the capital city of England.
कविताअन्य
कभी कभी अपनों को समझाना मुश्किल हो जाता है,
अपना हाल बता पाना मुश्किल हो जाता है ।
दिल दुखाना मकसद नहीं होता कभी किसी का,
फिर भी चंद अल्फाज़ों की चोट से,कोई अपना रूठ जाता है ।
दिल में इज़्जत भी होती
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कवितानज़्म, अन्य
मिले खुदसे हुए एक ज़माना सा लगता है -२
खुद में खुद को ढूंढना कुछ पुराना सा लगता है ।
आओ चले एक ऐसी हवा के संग -२
जिसमें नदी की तरह बहना,बहाना सा लगता है ।
और यूँ तो हर रोज़ देखती हूँ आईना मैं -२
मगर न जाने
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वाह क्या खूब कहा निशब्द
जी शुक्रिया
कविताअन्य
कभी खा म खां,कुछ बेवजह आओ पास मेरे ,
यूँ ही बेवजह करलो कुछ बातें,
दो वक्त कुछ पलों का मुझे ,
आओ कभी बैठो पास तसल्ली से ।
ठण्डी हवाओं का माहौल हो,
एक कप चाय और दो प्याली ,
उस आधे कप की चाय करदे
हर बात को पूरा
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बहुत बढ़िया रचना। कभी-कभी ऐसा भी ज़रूरी है
जी बहुत ज़रूरी
कविताअन्य
तुम्हारे साथ क्या और क्यों हो रहा है ,
इसका इल्ज़ाम दूसरों पर क्यों लगाते हो ,
जो बोया है तुमने वही तो पाते हो,
दूसरों को गिराने में खुद नीचे गिर जाते हो ,
पढ़ते हो लोगों के झूठे-सच्चे चेहरे
और पढ़ते
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कविताअन्य
काश कोई समझने वाला हो ,
मेरी कविताओं को न भी पढ़े ।
मगर मुझे पढ़ने वाला हो
बस इतनी सी तो ख्वाहिश थी मेरे मन में ,
कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में ।
बिन बोले ही सुनले ऐसा भगवान नहीं चाहा ,
बताकर भी
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कविताअन्य
मैं पूर्व से उगती धूप सी हूँ ,
वो ढलती किसी शाम सा है ।
मैं अधूरी कोई किताब सी हूँ ,
वो किसी पूरी कहानी सा है ।
रिश्ता न जाने कैसे खुदा ने ये जोड़ दिया
मैं बिखरे हुए कागज़ के टुकड़े,
वो सिमटी हुई किसी
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कविताअन्य
हर राह है मुश्किल ,हर मंज़िल है दूर
थकान होती है जल्दी,सपने हो जाते है चूर
सामने जब आती है हार ,तो आता है एक सवाल
सवाल ये, के क्यों कठिन है ज़िंदगी ----
मंज़िल मेरी है ,मेहनत भी मुझे ही करनी है
सपने मेरे
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कविताअन्य
जब महसूस होता है अकेलापन ,
जब होते है कई सवाल और
अनेकों ख्याल ज़हन में ।
दर्द जब हद से बढ़ जाता है ,
मजबूर होती है ज़ुबां, खुलते नहीं लब,
शिकायत करने को किसी से ,
मन हो जाता है परेशान ,
वो खुद ब खुद बुलाती
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कवितानज़्म
एक रोज़ देखा चाँद को,
बड़े ही ध्यान से, ज़रा इत्मिनान से -2
और पूछा उससे कि तुम परेशान नहीं होते।
वो बोला किसलिए??
मैंने कहा सारी रात चंद आशिक निहारते हैं तुम्हें,
बच्चे छोटे, मामा पुकारते हैं तुम्हें
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कवितानज़्म, अन्य
"ख़्याल से हकीकत की कलम"
रात का अंधेरा, और बंद कमरे में मैं
खुद से करती हूँ सवाल
कि क्या सोना है मुझे ,
या जागकर लिखना है ??
लिखना है कुछ किस्सों को,
लिखना है कुछ कहानियों को,
लिखना है कुछ हकीकत को,
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कविताअन्य
हिंद से है प्रेम मुझे, काव्य का करती हूँ सम्मान
#हरियाणा की वासी हूँ,#फरीदाबाद शहर का नाम।
नाम में ही भाव छुपे है,"भावना" है मेरा नाम
जाति में न बाँटू खुदको, बस समझूँ मैं #इंसान।
#ब्यूटीशियन है पेशा
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कविताअन्य
परेशान पति बोले मोदी जी से,
क्या कर दिया कोरोना की वजह से ।
गेट पर लगा दिया है ताला,
मोदी जी किस दुविधा में डाला ।
चाय जो माँगू बीवी से,बर्तन मुझसे धुलवाती है।
माँगू जो दूसरी बार भोजन,जो़रो से चिल्लाती
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haha awsome
शुक्रिया दीदी
Thnk u
कविताअन्य
* तुम होेते तो बात ओर होती *
अब भी हंसती हूँ अब भी रोती हूँ,
जो पल साथ बिताए,उन्हें ही याद करके जीती हूँ
काश वक्त/हालातों को हमसे हुई कोई नाराज़गी न होती
खुशियाँ आज भी है मेरे आस पास,
मगर तुम होते तो बात
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बहुत अच्छी कविता बधाई हो।
जी शुक्रिया
sach me bahut sundar bhaav tum hote to aur baat hoti bahut aham baat hai ye
शुक्रिया दीदी
कविताअन्य
ज़रा सी नाराज़ रहने लगी है कलम मेरी,
बातें दिल की स्याही से उतारने नहीं देती
कुछ अल्फाज़ कैद है दिल के अंदर ,
जैसे एक लंबी खामोशी के बाद गहरा समुंदर
सही ,गलत के चक्कर में न जाने
कितना कुछ बिखर जाता
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कविताअन्य
मेरे माथे की बिंदी तेरे नाम की मोहताज नहीं रहेगी,
खुद में खुद के लिए अभि ज़िदा हूँ मैं ।
मेरे गले में मंगलसूत्र तेरे नाम का हो ये ज़रूरी नहीं,
एक सादा काला धागा,मेरी खुशी के लिए पहनूँगी मैं ।
मेरे
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बहुत ही गूढ़ अल्फाजों से सजी साहित्य लड़ी
जी शुक्रिया
कविताअन्य
कल रात चाँद की चाँदनी
मेरे घर की खिड़की का सीना चीरते हुए,
मेरे कमरे में दाखिल हुई और वो हल्की हल्की रोशनी ।
मेरे कमरे में पड़ी चीज़ों पर कुछ यूँ बिखर रही थी,जैसे मानो मुझसे कुछ कह रही हो।कुछ हसीन
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कवितानज़्म
बीते वक्त का एक घाव ज़हन में रह गया है,
और वो अपना होकर भी अपना नहीं था-2
टुकड़ों में कहीं मेरे अंदर रह गया है।
वो भरोसा कुबूल-ए-इश्क पर उसके जो किया था मैंने-2,
जब टूटा वो भ्रम तो आँसुओं में दर्द सारा
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कविताअन्य
ज़िंदगी में मेरी तुम आ तो गए हो-2
रूह में मेरी समाओगे कब।
रिश्ता तो बना लिया है मुझसे तुमने-2
उस रिश्ते को दिल से निभाओगे कब।
तेरा साथ चाहती हूँ, और बस तुझे साथ चाहती हूँ-2
तुझे ही दोस्त,जीवनसाथी,हमदम,हमसफर
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कविताअन्य
माँ ने मुझको जन्म दिया,पर पिता ने मुझको पाला है,
माँ जन्नत है खुशियों की,पर पिता उन खुशियों का रखवाला है|
बचपन में कभी,जब मैं रो जाया करती थी,
तो पापा की फटकार के डर से,
माँ थोड़ा डर जाया करती थी|
गल्ती
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कविताअन्य
"इश्क़ वाला लव"
वो मुझसे बेइंतहा इश्क़ करता है-2
जताता नहीं है मुझे,मगर परवाह बहुत करता है।
मैं भी कभी पूछती नहीं हूँ,
के कितना प्यार है तुम्हें मुझसे-2
मेरे कुछ कहे बिना ही मेरे जज़्बात समझता है।
देर
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अति सुन्दर
शुक्रिया अंकल जी ।
जी बहुत बहुत आभार
कविताअन्य
"पत्नी हूँ तुम्हारी ,मैं भी प्रेम चाहती हूँ"
तुम्हारी खुशी में खुश होती हूँ,
तुम्हारी उदासी में मुरझा जाती हूँ-2
हर दम साथ तुम्हारा निभाती हूँ,
पत्नी हूँ तुम्हारी, मैं भी प्रेम चाहती हूँ-2
माना कि
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