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"लगता"
कविता
क्यों
बस अच्छा लगता है।
अनकहा दर्द
मैं तुमसे प्यार नही करता
क्यों लगता है मैं बहू से बेटी ना बन पाई
बस मुझेअच्छा लगता है
ना जाने क्यूँ
मुझे तू अपना सा लगता है
बहुत कुछ है हमारे बीच
तू मुझे अपना सा लगता है
मुझे तू अपना सा लगता है
मुझे तू अपना सा लगता है
मेरे जज़्बात
अच्छा लगता है
मिले खुदसे हुए ज़माना सा लगता है
मुझे तू अपना सा लगता है
मुझे तू अपना सा लगता है
गुलाब
चेहरा
ना जाने क्यूँ आज अधूरा
मन के आईने में
मुक्तक
फिर मन करता है
गुमानी एहसास
मन्नत
ऊंची हो जाती है दीवार कभी कभी
इक उम्र गुजरी है बशर यहाँ तक आने में
अपनों को अपना कहने से डर लगता है
एक परिंदा
ख़ामोशी से हमें डर लगता है
इश्क़ -चार मिसरे
लाख आवाजें लगाया करना
बेमानी होने लगता है बारबार सुना गया भी
कहानी
सपनों के उस पार
हां मुझे बहुत डर लगता है..
"वो प्यारा डर"
वह ज़माना (यह 2080 की बात है)
मेले में मिलाप
तन्हाई
लेख
#ममता
लोग क्या कहेंगे
तू मुझे अपना बेटा सा लगता हैं….
दिल का दर्द
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