कविताअतुकांत कविता
लिखते लिखते कलम रुक क्यों जाती है।
क्यों अनायास ही उदासी मन को घेर लेती है।
क्यों तरस जाती है। मन की धरती चाहत की बूंदों के लिए।
क्यों बात करने से पहले होंठ सिल जाते है।
आखिर क्यों है इतनी कशमकश जिंन्दगी से।
हर काम अधूरा क्यों लगता है।
क्यों लगता है जी रहे है बस बिना किसी वजह के।
या मर चुके है ख्यालों में अपने बस बेवजह
अल्फाजों को अंधेरे में डाल क्या अकेले होना सही है
बस इन्ही प्रश्नों में उलझ कर रह गया है मेरा मैं।
या मेरा मौन है जो पूछता है मुझसे।
क्या बोलना गुनाह है या बेड़ियां तोड़ना गुनाह है।
या बोलकर सच किसी को अपना मान उससे दूर होना।
सच हाहा हां यही सुनना कौन चाहता है।
तुम या तुम चलो जाने दो। नकाब को नकाब रहने दो।
वरना न जाने कितने काले दिल निकल आएंगे जिस्म से बाहर।
फिर से अंधेरा फैलाने। - नेहा शर्मा