दर्द हुँ सबको रास नही आता
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कविता | गजल | 5th |
London is the capital city of England.
कवितागजल
ग़ज़ल के कुछ अश'आर -
अब उम्र के शालीन किस्से पढ रहा हूं दोस्तों
मैं मौत की तरफ सही से बढ रहा हूं दोस्तो
क्या उम्र पूरी हो गई या हिज्र का है ये असर
सूखे हुए पत्तो के जैसे झड रहा हूं दोस्तों
बारात आये
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बहुत खूब नितिन जी..!? नितिन लास्ट लाइन में थोड़ा फेर बदल होना चाहिये ऐसा मुझे लगता हैं.... बाकी बहुत ही बेहतरीन लिखा आपने..!?
इनबॉक्स में सुझाव भेजे जी??
कवितागजल
एक ग़ज़ल केे कुछ शे'र ...
तेरे छोटे मन में कैसे आती
मैं तो बात बडी जो करता था
अब आता है देर से अक्सर वो
इंतज़ार हर घडी जो करता था
छोड देता था स्कूटी की जगह
अपनी कार खडी जो करता था
नितिन पंडित
कवितागजल
मिरे कमरे में दरवाजा नही लगता
तुझे मेरा ये गम ज्यादा नही लगता
रहोगे तुम हमेशा साथ मेरे ही
मुझे पक्का तिरा वादा नही लगता
सँवरती हो खिडकी पर आकर तुम अब
मुझे तो नेक इरादा नही लगता
कितना भी देखूं तक्सीन
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