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"उम्र"
कविता
उम्र के दायँरे
अपना क्या है
कद
आखिरी मोड की तरफ
उम्र का सौदा
ऑनलाइन इश्क का खुमार
मै आज भी वही हूं
जीने की कला
दर्पण
दर्पण
इक उम्र गुजरी है बशर यहाँ तक आने में
इमदाद ए किरदार लोगोंको याद जुबानी होगी
इमदाद ए किरदार लोगोंको याद जुबानी होगी
दुआएं उम्र ए दराज़ होने की न मांग
अहबाब का अहसान हो जाता
उम्रे-ए-तमाम शबे-तन्हाई है
ये हसरतें मुंतज़िर हैं किस बात की
उम्रें गुज़र जाती हैं बात दिल की कानों तक आने में
चले आए हम सवाली की तरह
सन्मति औ विवेक का कोष
*हुई उम्रेतमाम शाद होते होते*
सबक बन गए
*जीत हुई कभी मात हुई*
कागज़ की कश्ती में घर
विसाले-यार न हुआ
मां -बाप भी बंट जाते हैं
उम्रे-पीरी में अहद-ए-शबाब चाहते हो
उम्रे-पीरी में अहद-ए-शबाब चाहते हो
उम्र-भर के लिए सो जाएंगे
उम्र पक गई मग़र हम कच्चे रह गए
प्यास क्या है तिश्नगी क्या है
अना में रहे कम न हुए
उम्रे-तमाम इंतज़ार करने को भी हम हैं तैयार
बनालेना उम्रेतमाम का तख़मीना
तिश्नालबी छुपानी नहीं आती
फ़ासला दरमियान में रहा
ताउम्र करना पड़े पश्चाताप
वसवसे और वहम में गुज़र गई
मेरे कुछ फर्ज़ है
पत्थर जमा करते रहे
ज़रूरतें बदल जाती हैं इन्सान की
अभी जिंदा मेरा बचपन है
उम्र हुई तमाम दर्दे -दिल को समझाने में
कहानी
फिर वही तन्हाई
चुनौती
" सुलभा-ताई "💐💐
लेख
एकांत
कहावते
ज़िन्दगी
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