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मेरे कुछ फर्ज़ है - vssrak Adarsh (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

मेरे कुछ फर्ज़ है

  • 34
  • 3 Min Read

हर सांस पर हर बार खुद को कोसता हूं।
नई उम्र में सिलवटे बुनता
अपनी तकदीर के भरोसे
हार जता हूं खुदा से कई बार
इस लड़ाई में जीतता हूं मै आखरी बार।
जो है वो दूर जा रहा है,
उस मोड़ पर शहर बस रहा है।
मै कातिल नही हूं वो क्या समझते
जान लेने को वो तरसते।
मेरी सादगी उम्र की सीख नही
बची हुई आश है कोई भीख नहीं
सजदा होने को मै तैयार बैठा हूं।
इस बात का कोई गवाह नहीं।
जिनके हाथ में है स्याही
वो ढूढते है पन्ने यहां
धूल की आंधियां आती रहीं।
बंद दरवाजे करते रहें।
सोच कर हंस देता हूं मै
मगर प्यासा हूं हर बार की तरह
मै कर्ज लेकर जहां से
एतबार कर भूल चुका हूं
मुझे लौटाना है कुछ फर्ज

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