लेखअन्य
बचपन में पढ़ा एक आर्टिकल याद आ गया जिसका शीर्षक था एकांत तब मैं Sangeeta Gupta दीदी से ट्यूशन पढ़ा करती थी। हाँ पढ़ने में बहुत स्लो थी। पर मुझे झेला भी उन्होंने ही। चलिये जो आप सबको बताना चाहती हूँ उस मुद्दे पर आती हूँ। उस आर्टिकल के लेखक का मुझे नही पता परन्तु उसकी बातें मुझे सत प्रतिशत सही लगती हैं।
उसके आर्टिकल का नाम था एकांत आर्टिकल अंग्रेजी में था मैं उसके कुछ अंश ही यहां लिख पा रही हूं। क्योंकि कुछ याद हैं कुछ भूल गयी हूँ जो याद है वह बेहतरीन है। दरअसल हमारे जीवन एक अंश एकांत भी है। कभी सोचा है यह एकांत एक तरह से अच्छा है तो एक तरह से बेकार भी है। चलिये इसके एक पहलू पर गौर करते हैं। यह तो सब जानते ही हैं कि जब भीड़ से थक जाते हैं तो हम खुद के लिये एकांत तलाशते है। ऐसा एकांत जहां हमें कोई परेशान नही कर सके। हम खुद अपनी मर्जी के मालिक हों उस एकांत में हम कुछ भी करें कोई रोकने टोकने वाला नही होता। हम पूरी तरह खुद पर निर्भर रहते हैं बस यहां यही लाभ है इस एकांत का। मन को खुश रखने एवम थके शरीर और दिमाग को आराम देने का एकमात्र उपाय है एकांत। यह था इसी एकांत का एक पहलू जो कि सुनने में जितना अच्छा लगता है उतना ही आरामदेह भी लगता है।
परन्तु क्या आप जानते हैं यही एकांत हमें बहुत बार परेशानियों में भी डाल देता है। या फिर दिमाग को अशांत कर देता है नही जानते हैं कैसे चलिये मैं बताती हूँ। आप सोचते हैं कि एकांत में बैठकर पढ़ाई अच्छी होती है। परन्तु यहां उल्टा है। आप अपने बच्चे को एकांत में पढ़ने के लिये भेज तो देते हैं पर थोड़े ही समय मे या तो उसे सोता हुआ पाएंगे या पढ़ाई के बदले कुछ और कार्य में व्यस्त पाएंगे। वैसे ये जो एकांत है ना ये वयस्क एवम वृद्ध मतलब जो चालीस की उम्र पार कर चुके हैं उनके लिये सबसे ज्यादा खतरनाक है। यह एक ऐसी उम्र है जब व्यक्ति खुद को फिर से उस जवानी की दहलीज पर देखता है जब वह कभी था। यदि उसे एकांत में छोड़ दिया जाए तो निश्चित ही वह कोई न कोई गलत कार्य या गलत सोच को अंजाम दे देगा।एक कारण यह भी हो सकता है कि इस उम्र के व्यक्ति अपने लिये एक ऐसे साथी की तलाश करना चाहते हैं जिनसे वह हर तरह की बात कर सकें। ऐसे व्यक्तियों को अपने ही उम्र के या परिवार के साथ समय बिताना चाहिये। शायद इस बात पर बहुत से लोग राजी न हों पर यह ऐसा सत्य है जिसे झुठलाया नही जा सकता। जिस व्यक्ति को बात बात पर टेंशन लेने की आदत हो या किसी को भयंकर टेंशन हो उसे कभी एकांत में नही छोड़ना चाहिये। यह उनके लिये जानलेवा हो सकता है।
अन्त में बस इतना ही कहूँगी, एकांत उतना ही चाहो जितना जरूरत हो। खुद को एकांत में मत ढालों हाँ अगर एकांत मिलता है तो उसका सदुपयोग करो ध्यान लगाकर। नही तो इस एकांत के चक्कर में कही के नही रहोगे। नेहा की कलम से थोड़ा सा सच थोड़ा सा ज्ञान शुक्रिया। - नेहा शर्मा