कविताअतुकांत कविता
एक रचना दिल की पुस्तक से
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अक्सर लोग तुमको कद में छोटा माप लेते हैं।
हाँ माना उम्र में छोटी हूँ मैं।
पर किसी की बेटी हूँ मैं।
ख्वाब देखना उन्होंने ही सिखाया था मुझको।
मैं बस उस ख्वाब को पंखों में बदल रही हूं।
हाँ अब उड़ रही हूं मैं
खुले आसमान में
पर यहां कुछ लोग कैंची लिए खड़े हैं।
कहते हैं उम्र में छोटे लोगों को उड़ना मना है।
पर मेरा दिल तो मंजिल पाना चाहता है।
उसने देख लिया है ख्वाब
आगे बढ़ने का
एक ख्वाब जिसमें वह अकेला नही।
लाखों करोड़ों की भीड़ शामिल है।
फिर ये उम्र....
नही अब कोई मायने नही रखती
क्योंकि आसमान मेरा है और मंजिल भी मेरी। - नेहा शर्मा ©
ये मेरे बारे में क्या लिख दिया??
सभी के साथ है क्या करें। हर जगह हर तरह के लोग मिलते हैं।