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"पानी"
कविता
कलम-मिल गई मुझे शादमानी
कलयुग है ये
असली शिक्षक कौन
बोल मेरी मछली, कितना पानी
जाते जाते दे गई वो मेरी आंखों में पानी
दीप जलाये
पानी पर चलता है क्यों
मिल गई मुझे शादमानी
सफेद
तन ही कमजोर था
रिमझिम बरसता पानी
आँखों का पानी
काश यह मेरा घर होता
आ भी जाओ गौरैया
मौसम का मिजाज
व्यंग्य
राधे ...राह दे
मनके
मैं पानी हूँ
प्यास दरिया की बुझती है समंदर में आकर
दश्त हरा पानी छू-कर होता है
तहरीर-ए-मुक़द्दर लिख दी है बशर खुदा ने हमारी पानी पर
*पानी पर तहरीर*
*कुछ गीला पड़ गया है*
मरतीं आ कर साहिल पर
किनारों को मिलाने चले हो
तिश्नालबी छुपानी नहीं आती
खुदको खोना पड़ता है
पानी का नामोनिशान न होगा
सब से ज्यादा कीमती
शोख़ चंचल हवा दरिया की पानी लगती हो
मुख़्तलिफ किरदार
कहानी
दादी का ट्रंक
परी और टूटू की दोस्ती
खलिश
सब पर पानी फिर गया
सब पर पानी फिर गया
आपके बाद
दम लगाके होइशा
मुनिया का जवाब नहीं
यादें बचपन की
आशय
दम लगाके होइशा
टिप टिप बरसे पानी
पानी
टिप टिप बरसे पानी
"बियर-पार्टी"
रिटर्न गिफ्ट
वैशाख की धूप
रिटर्न गिफ्ट
रि टर्न गिफ्ट
वैशाख की धूप
दूसरा जनम
लेख
भारत व विश्व शान्ति
क्या 1 लीटर पानी से पेड़ उगाया जा सकता है ?
सामाजिक जिम्मेदारी
जल ही जीवन है
जल ही जीवन है
पनिया भरण कैसे जाऊँ
११ मोतियों की माला …..
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