कवितालयबद्ध कविता
प्रतियोगिता से इतर
सफेद चौला पहन वो दुल्हन सी नज़र आती है।
साज श्रृंगार में वो गुड़िया सी नज़र आती है।
सफेद साड़ी भी उसके होंठो की रंगत से रँगी है।
लाली लिपिस्टिक बिन वो खुले बाल लहराती है।
न हमदर्द उसका न चाहने वाला कोई है।
वो तो हवा है बस सर्द सी जमी नज़र आती है।
कभी मिली जो पानी से पानी सी बह जाती है।
भाँप बनकर कभी हवा में घुलती नज़र आती है।
न सजती है न सँवरती है कभी वो गोरी
हाथों में खन - खन बजती सी नज़र आती है।
शरीर में लहर जैसे उठती है उसके।
अदनी सी बर्फ है कलेजे को ठंडक पहुंचा देती है। - नेहा शर्मा।