कविताअतुकांत कविता
एक फूल जो खूब पनपा
पनपने की चाहत में ऊंचा उठा
ऊंचे उठने के हौसले थे उसमे
वही हौसले उसकी पहचान बने
लेकिन एक दिन ढहा
ज़मीन पर यूँ गिरा
की पत्ते पत्ते सारे बिखर गए
हौसले भी दम तोड़ गए
ऋतुएँ बदलती गयी
और मौसमों का प्रहार होता गया
जो फूल खूब खिला था
वो धीरे धीरे सूखता गया
बेअसर हुआ उस पर पानी
जी तने से टूट कर गिरा था
क्या करता वो रखवाला जो पानी देता रहा
फूल के तो हौसले बुलन्द थे
लेकिन तना ही कमजोर था।