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जाते जाते दे गई वो मेरी आंखों में पानी - Ankita Bhargava (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

जाते जाते दे गई वो मेरी आंखों में पानी

  • 240
  • 5 Min Read

जाते जाते दे गई वो मेरी आंखों में पानी



बरसों बाद, एक रोज़...

फिर आई मुझसे मिलने को चिड़िया

न उतरी उस आंगन में,

जहां करती थी दिन भर अठखेलियां

बस बैठी रही मुंडेर पर, गरदन घुमाए

रूठ के बैठी हो, जैसे लाडली बिटिया

नराज थी वो कि

हटाए थे घरोंदे उसके

हमने अपने झरोखों से

न छोड़ी इंच भर जगह,

न संकरे घरों में, और न अपने दिलों में

वह दे रही थी जब दस्तक बंद दरवाजों पे

हम थे व्यस्त मोबाइलों के टॉवर लगाने में

कलरव से उसके,

गूंजता था कभी घर का हर कोना

चली गई वो, हो गया सब सूना

दादी की थाली से उसका खाना चुराना

टपकते नल की बूंदों से, अपनी प्यास बुझाना

बसी है मन में मेरे,

जाने उसकी कितनी ही समृतियां

की मैनें मनुहार भी उसकी

पर वो खामोश सी, ताकती रही मुझे

लिए शिकायतों का अंबार अपनी निगाहों में

मैं भी थी चुप, वो भी थी चुप

पर चला बातों का एक लंबा दौर

हम दोनों के ही इस मौन में

आखिर पहुंच ही गई मुझ तक,

उसके दर्द की कहानी

आह! जाते जाते दे गई, वो मेरी आंखों में पानी

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

चिंतन करने को मजबूर करती रचना; बहुत बढ़िया

Ankita Bhargava3 years ago

जी शुक्रिया

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

निःशब्द कर दिया

Ankita Bhargava3 years ago

आभार सर

Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

सुंदर रचना अंकिता जी..!

Ankita Bhargava3 years ago

शुक्रिया

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