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आशय - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकलघुकथा

आशय

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आशय
बच्चे जब छोटे थे,उन्हें सुबह जगाने के लिए मैं कहती,"उठो  लाल अब आंखें खोलो पानी लाई हूं मुंह धो लो..." इस कविता के साथ दिन 

व प्रारम्भ होता। साथ ही मैं हथेलियों में पानी भरकर लाती,बच्चों पर छिड़कती, गाते हुए उन्हें जगाने का प्रयास करती और पूरी कविता होने तक कसमसाते हुए उठते...

           बीती रात कमलदल ..मेरे प्यारो अब मत सोओ।

बच्चे झुंझलाते,चिढ़ते,गुस्से में ही उठते।

"मां, सोने भी दिया करो और यह तुम्हारी पानी छिड़क कर जगाने की आदत बहुत गुस्सा दिलाती है,इसे बदल डालो।"

मैं कहती,"बिना पानी छिडके 

 तुम उठते नहीं, फिर स्कूल को देरी हो जायेगी,तब ?"

"अच्छा तो गाया मत करो, प्लीज़।"

मैंने तो बहुत मधुर कंठ पाया था, जहां भी एकबार गाया, बार - बार गाने की फरमाइश हुई थी। पूछा,"

 गाना इतना बुरा गाती हूं,क्या ?"

सोचा बच्चे मन के सच्चे होते हैं,बाहर वाले शायद यूं ही चने के झाड़ पर बैठाते होंगे,ये सच ही बताएंगे और फिर गाने से तौबा कर लूंगी।

बच्चे बोले," मां,आप बहुत मीठा गाती हैं।"

"तो फिर ?"

"सारी चिढ़ तो इस कविता के 

 पहले शब्द से शुरू होती है,' उठो ', क्यों उठो ? क्यों न सोओ?

फिर आपका पानी लाना,मुंह पर छिड़कना,आगे

 ... बीती रात ' रात इतनी जल्दी क्यों बीत जाती है ?


उसके बाद ' चिड़ियां चहक उठीं  ' कहां जाकर चहकती हैं ये कवि की चिड़ियां, हमने तो नहीं सुना चिड़ियों का चहकना।' ओह आगे कवि महोदय कहते हैं,

 ... नभ में देखो लाली छाई,धरती पर उजियाली छाई ' हमें तो मैदान में जाकर सूर्य दिखते हैं,यहां से उजाला नजर भी नजर नहीं आता।


और अंतिम पंक्ति ' ऐसा सुंदर समय न खोओ! ' मां, आज तो उन विकट मेम के लगातार दो पीरियड हैं,सप्ताह में आज का दिन सबसे डरावना होता है।इसलिए यह सुंदर समय तो कतई नहीं है। प्लीज़ इस गीत को मॉर्निंग अलार्म न बनाओ।"


नहीं जानती थी कि कवि की इतनी सुन्दर कविता का बच्चे यूं छिद्रानवेशण करेंगे!

क्यों बच्चों ने इससे यह आशय नहीं निकाला कि रात बीत गई ,अंधकार दूर हुआ।नया सबेरा हुआ,  कमलों का कीचड़ में खिलना! अर्थात प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अच्छाई बनाए रखना है,क्यों बच्चे ऐसा नहीं सोच पाए ? समझाऊंगी ,किसी दिन।

अब तो बस मन ही मन गुनगुना लेती हूं....बीती रात कमल दल फूले...।

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दादी की परी
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