कवितालयबद्ध कविता
जिसने राह दिखलाई वो हर एक गुरु है पास।
मैं दूँ किसको बधाई बतलाओ गुरु को हमसे आस
पीने के पानी ने हमको जीवन देकर सिखलाया।
कैसे किसी को अपनाए हमको यह बतलाया।
हवा ने हमको सांसे देकर कर्ज से आजाद किया।
बिना स्वार्थ के कैसे बहना आजादी में नाम दिया।
गेंद जैसे उछलना भी तो फ्लेक्सिबिलिटी कहलाया।
सीखा रिश्तों में वैसे हो जाना इसने भी कुछ सिखलाया।
रही सही बात पत्थर की करती वो भी सख्त ही कहलाये।
कभी कभी व्यवहार में अपने पत्थर दिल भी तो आये।
फूलों की यदि बात करूं मैं कली से फूल बन जाते हैं।
वैसे बचपन छोड़ हम अपना जवानी में बह जाते हैं।
खुशबू लेकर फूलों की जीवन को महकाते हैं।
कुछ यूं एक दूजे से हम सीखते सिखलाते है।
प्रकृति से मिले उपहार वह भी शिक्षक कहलाये।
किसको दूँ बधाई बतलाओ हम भी शिक्षक कहलाये।
पढ़ी किताबें जितनी हमने वो भी शिक्षक कहलाई।
एक दिन में न समझेंगे किसको दूँ मैं बतलाओ बधाई।
सीखना सबसे कुछ न कुछ अंतिम सांस तक चलता है।
हर किसी के अंदर खुद ही एक शिक्षक अब पलता है। - नेहा शर्मा