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"तुझे"
कविता
रूह में मेरी समाओगे कब
मेरा अपनापन
उम्र के दायँरे
धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस
ए मेरे दिल.....
मायूसी
तू नहीं प्यार के काबिल
घायल परिंदा
ग़ज़ल
आखिर मेरा क्या कसूर था
रो पड़ता हूं ये सोच-सोच...
जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया
जिंदगी ! तुझे पढ़ न पाया
कुछ उल्टा सीधा
तुझे मजबूत बनना होगा
आप मेरी जिंदगी हो
"नारी तुझे क्या उपहार दूँ"
मैं पुकारुँ तुझे
सपनों को उड़ान मिले
जीवित श्मशान
आऊँ भरूँ तुझे अंक में
आ भरूँ तुझे अंक में
भय की शिला
क्यूंकि तू ग़म है...
ये स्पर्श
चांद का खिलौना
यादों का कहर
खोने का दर्द
बशर मग़र कभी रोया नहीं
चार दिनों का है तू तो बशर मेहमान यहाँ
मीरा पुकार
मीरा पुकार
देखें सपने तेरे
भोली सूरत बुलाती है वापस घर हमको
इस जमाने से विदा लेकर ......
कहानी
एक दिन सफलता मेरे सपनें में आई
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