कवितागजल
ग़ज़ल पर थोड़ी आजमाइश की है
ग़ज़ल
तेरे साए से भी तुझे मैं
पहचान लेती हूँ
तुझे साँसों की हवाओं
में जान लेती हूँ
तू मुझको चाहे या ना
चाहे मुझे क्या
तुझे हांसिल करूँ,ये मैं
ठान लेती हूँ
कहानी तेरी मेरी जहाँ
में रहे ना रहे
बस तेरा नाम जुबाँ से
पुकार लेती हूँ
दरम्यां हमारे दूरियां व
मजबूरियां हैं
तसल्ली से दिल की बात
मान लेती हूँ
दस्तरख़ान कई पकवानों
का सजा है
तेरे नाम से हुजूर फ़क़त
पान लेती हूँ
जी यह गज़ल नही है, गजल का बहर में होना आवश्यक है। गजल को गाया जा सकता है। साथ ही काफिया रदीफ़ भी आवश्यक है। अभी तो हम सभी लिखना ही सीख रहे हैं जल्दी गजल लिखनी भी आ जायेगी।