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ग़ज़ल - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कवितागजल

ग़ज़ल

  • 122
  • 3 Min Read

ग़ज़ल पर थोड़ी आजमाइश की है
ग़ज़ल

तेरे साए से भी तुझे मैं
पहचान लेती हूँ
तुझे साँसों की हवाओं
में जान लेती हूँ

तू मुझको चाहे या ना
चाहे मुझे क्या
तुझे हांसिल करूँ,ये मैं
ठान लेती हूँ

कहानी तेरी मेरी जहाँ
में रहे ना रहे
बस तेरा नाम जुबाँ से
पुकार लेती हूँ

दरम्यां हमारे दूरियां व
मजबूरियां हैं
तसल्ली से दिल की बात
मान लेती हूँ

दस्तरख़ान कई पकवानों
का सजा है
तेरे नाम से हुजूर फ़क़त
पान लेती हूँ

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

जी यह गज़ल नही है, गजल का बहर में होना आवश्यक है। गजल को गाया जा सकता है। साथ ही काफिया रदीफ़ भी आवश्यक है। अभी तो हम सभी लिखना ही सीख रहे हैं जल्दी गजल लिखनी भी आ जायेगी।

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