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"जीने"
कविता
हैरत नहीं कि अब जान बेहतर है
यह जिंदगी है
बचपन हमें जीने दो
लौटोगे?
अंकुरण
जीने की ललक
जीने का चाव
जीने की कला
कतरा-कतरा, बूँद-बूँद
जिंदगी
यह जिंदगी है
वक़्त मिलता ही कहाँ है बशर जिंदगी को संवरने के लिए
जिंदगी मिली है जीने के लिए
जीने के लिए सारा जग भागे
जीने के अहसासात गुजारे हमने गाँवमें अपने
जीने केलिए बंदा मरने को तैयार हो जाता है
*जीने के हुनर भूल गए *
*जीने की आरज़ू रखे है बशर*
*जीने का तरीक़ा बड़ा आसान है*
*जीने के लिए मरता हूँ मैं*
जीने की हसरत है
कोशिश जीने की करनी चाहिए
खुदही बशर खुदके रहबर
जीने से सरोकार छोड़ दिया
जीना नहीं आया
मरना जीने की आदत से कम नहीं
नारी तुम कमजोर नहीं
जीने केलिए जगह नहीं
जीने केलिए तैयार रहो
जीने केलिए मरना पड़त है
जीने के लिए मरना पड़ता है
यादें जीने की वज़ह बन जाती हैं
लेख
#न्याय...
चैन से जीने दो हमें
पर्यावरण जीवन जीने की कुंजी है
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